अविराम का ब्लॉग : वर्ष : 2, अंक : 1, सितम्बर 2012
सामग्री : डॉ मिथिलेश दीक्षित’ के दो हाइकु नवगीत एवं हरिश्चंद्र के दस हाइकु।
डॉ. मिथिलेश दीक्षित
{हाइकु की वरिष्ठ एवं सुप्रसिद्ध कवयित्री डॉ. मिथिलेश दीक्षित जी ने नवगीत में हाइकु के अच्छे प्रयोग किये हैं। प्रस्तुत हैं उनके दो हाइकु नवगीत।}
हाइकु नवगीत-1
युगों के बाद
जाने क्यों लगी आने
तुम्हारी याद!
डिगा पाया न
यह विश्वास कोई
आज तक भी,
छुड़ा पाया न
पल को भी तुम्हारा
साथ अब भी,
नहीं मालूम
कैसे क्यों लगी भाने
तुम्हारी याद!
हुआ सार्थक
हमारी जिन्दगी का
एक पल भी,
तुम्हीं सर्वस्व
प्रभु हो ज़िन्दगी में
एक तुम ही,
मिला जो साथ
तो पूरी लगी छाने
तुम्हारी याद!
हाइकु नवगीत-2
खुले नयन
नभ में उड़ने की
है मजबूरी!
टूट चुके हैं
सम्बन्धों के मृदुल
रेशमी धागे,
देख रहा है
आँखें मूँदे मनुज
सदा ही आगे,
गयी सिमट
मन के बढ़ते ही
राह अधूरी!
अन्धकार में
देती नहीं दिखायी
कंटक-बाधा,
वर्तमान के
पंथों में कितनों ने
मन को साधा,
हुई सुबह
‘पर’ खुल पाने की
आस न पूरी!
हरिश्चन्द्र शाक्य
(कवि-कथाकार हरिश्चन्द्र जी का वर्ष 2009 में प्रकाशित हाइकु संग्रह ‘पूरब की बाँसुरी - पश्चिम की तान’ हाल ही में पढ़ने को मिला। इसी संग्रह से प्रस्तुत हैं उनके दस हाइकु)
1.
मेरा जीवन
बन गया सड़क
रौंदा सभी ने
2.
एक शहीद
सिखाता हज़ारों को
वीरता सच्ची
3.
टूटा घरोंदा
जब अरमानों का
सीखा संघर्ष
4.
नूतन सदी!
तुम मत बनना
खून की नदी
5.
नापी दूरियाँ
जिसने आकाश की
वही चमका
6.
नीला आकाश
सिखाता है सबको
बनना विराट
7.
आशा विश्वास
भर लूँ अन्तस में
सारा आकाश
8.
झिलमिलाते
मेहनत के मोती
लगते अच्छे
9.
बाँटते खुशी
जिन्दगी के दो पल
ऊँची उड़ान
10.
तैरत रहो
जीवन का दरिया
गहरा यहाँ
।।हाइकु नवगीत / हाइकु।।
डॉ. मिथिलेश दीक्षित
{हाइकु की वरिष्ठ एवं सुप्रसिद्ध कवयित्री डॉ. मिथिलेश दीक्षित जी ने नवगीत में हाइकु के अच्छे प्रयोग किये हैं। प्रस्तुत हैं उनके दो हाइकु नवगीत।}
हाइकु नवगीत-1
युगों के बाद
जाने क्यों लगी आने
तुम्हारी याद!
डिगा पाया न
यह विश्वास कोई
आज तक भी,
छुड़ा पाया न
पल को भी तुम्हारा
साथ अब भी,
छाया चित्र : डॉ बलराम अग्रवाल |
नहीं मालूम
कैसे क्यों लगी भाने
तुम्हारी याद!
हुआ सार्थक
हमारी जिन्दगी का
एक पल भी,
तुम्हीं सर्वस्व
प्रभु हो ज़िन्दगी में
एक तुम ही,
मिला जो साथ
तो पूरी लगी छाने
तुम्हारी याद!
हाइकु नवगीत-2
खुले नयन
नभ में उड़ने की
है मजबूरी!
टूट चुके हैं
सम्बन्धों के मृदुल
रेशमी धागे,
देख रहा है
रेखांकन : नरेश उदास |
सदा ही आगे,
गयी सिमट
मन के बढ़ते ही
राह अधूरी!
अन्धकार में
देती नहीं दिखायी
कंटक-बाधा,
वर्तमान के
पंथों में कितनों ने
मन को साधा,
हुई सुबह
‘पर’ खुल पाने की
आस न पूरी!
- जी-91,सी, संजयपुरम लखनऊ-226016 (उ.प्र.)
हरिश्चन्द्र शाक्य
(कवि-कथाकार हरिश्चन्द्र जी का वर्ष 2009 में प्रकाशित हाइकु संग्रह ‘पूरब की बाँसुरी - पश्चिम की तान’ हाल ही में पढ़ने को मिला। इसी संग्रह से प्रस्तुत हैं उनके दस हाइकु)
1.
मेरा जीवन
बन गया सड़क
रौंदा सभी ने
2.
एक शहीद
सिखाता हज़ारों को
वीरता सच्ची
3.
टूटा घरोंदा
जब अरमानों का
सीखा संघर्ष
4.
नूतन सदी!
तुम मत बनना
खून की नदी
5.
छाया चित्र : ज्योत्स्ना शर्मा |
जिसने आकाश की
वही चमका
6.
नीला आकाश
सिखाता है सबको
बनना विराट
7.
आशा विश्वास
भर लूँ अन्तस में
सारा आकाश
8.
झिलमिलाते
मेहनत के मोती
लगते अच्छे
9.
बाँटते खुशी
जिन्दगी के दो पल
ऊँची उड़ान
10.
तैरत रहो
जीवन का दरिया
गहरा यहाँ
- शाक्य प्रकाशन,घण्टाघर चौक, क्लब घर, मैनपुरी-205001 (उ0प्र0)
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