अविराम साहित्यिकी
(समग्र साहित्य की समकालीन त्रैमासिक पत्रिका)
खंड (वर्ष) : 2 / अंक : 3 / अक्टूबर-दिसम्बर 2013 (मुद्रित)
प्रधान सम्पादिका : मध्यमा गुप्ता
अंक सम्पादक : डॉ. उमेश महादोषी
सम्पादन परामर्श : डॉ. सुरेश सपन
मुद्रण सहयोगी : पवन कुमार
अविराम का यह मुद्रित अंक रचनाकारों व सदस्यों को 19 नवंबर 2013 को तथा अन्य सभी सम्बंधित मित्रों-पाठकों को 28 नवम्बर 2013 तक भेजा जा चुका है। 10 दिसम्बर 2013 तक अंक प्राप्त न होने पर सदस्य एवं अंक के रचनाकार अविलम्ब पुन: प्रति भेजने का आग्रह करें। अन्य मित्रों को आग्रह करने पर उनके ई मेल पर पीडीऍफ़ प्रति भेजी जा सकती है। पत्रिका पूरी तरह अव्यवसायिक है, किसी भी प्रकाशित रचना एवं अन्य सामग्री पर पारिश्रमिक नहीं दिया जाता है। इस मुद्रित अंक में शामिल रचना सामग्री और रचनाकारों का विवरण निम्न प्रकार है-
।।सामग्री।।
सिर्फ सन्नाटा नहीं है : निरंजन श्रोत्रिय व बलराम अग्रवाल (5), सुरेन्द्र वर्मा व कुंवर रवीन्द्र (6), सुधा गुप्ता (7), महेश चंद्र पुनेठा (8), सुरेश यादव व किशोर कुमार जैन (9), नारायण सिंह निर्दोष (10), नित्यानंद गायेन (11), राजवन्त राज व रमेश कुमार भद्रावले (12), जितेन्द्र ‘जौहर’ व हरनाम शर्मा (13), रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ व शिव डोयले (14), प्रशान्त उपाध्याय व उषा अग्रवाल ‘पारस’ (15), मिथिलेश दीक्षित व महावीर रवांल्टा (16), माधव नागदा व अनुपमा त्रिपाठी (17), केशव शरण व जयप्रकाश श्रीवास्तव (18), हरकीरत ‘हीर’ (19), राजेश उत्साही (20), जेन्नी शबनम (21), सुरेश सपन व देवेन्द्र शर्मा (22), डी.एम.मिश्र व सीमा स्मृति (23), अनीता ललित व प्रताप सिंह सोढ़ी (24), सुदर्शन रत्नाकर व रतन चंद ‘रत्नेश’ (25), ओमेश परुथी व ज्योत्स्ना शर्मा (26), कैलाश शर्मा (27), वन्दना गुप्ता व भावना सक्सैना (28), रंजना भाटिया व उषा कालिया (29), कमला निखुर्पा व तुहिना रंजन (30), चक्रधर शुक्ल व संतोष सुपेकर (31), पुरुषोत्तम दुबे, शुभदा पाण्डेय व सुभाष लखेड़ा (32), शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’ व श्याम अंकुर (33), मालिनी गौतम व शेर सिंह (34), अशोक ‘आनन’ व सिद्धेश्वर (35), रमा द्विवेदी व प्रेम गुप्ता ‘मानी’ (36), पंकज परिमल व शोभा रस्तोगी शोभा (37), शशि पुरवार व कुँवर प्रेमिल (38), शिवकुटी लाल वर्मा, मीना गुप्ता व राजेन्द्र बहादुर सिंह ‘राजन’ (39), शैलेष गुप्त ‘वीर’ व नरेश कुमार ‘उदास’ (40), पुष्पा मेहरा व के. एल. दिवान (41), राजेन्द्र परदेसी व धर्मेन्द्र गुप्त ‘साहिल’(42), प्रतिभा माही व महावीर उत्तरांचली (43), रामस्वरूप मूँदड़ा, बंशीलाल ‘पारस’ व विवेक चतुर्वेदी (44), अलका मिश्रा ‘कशिश’ व टी. सी. सावन (45) की क्षणिकाएं।
पहचान : डॉ.कमल किशोर गोयनका (46), डॉ.सतीश दुबे (47), डॉ.सुरेंद्र वर्मा (50), रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ (55), जितेन्द्र ‘जौहर’ (60), डॉ. पुरुषोत्तम दुबे (72), नित्यानंद गायेन (75), डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ (77), शोभा रस्तोगी शोभा (82) के क्षणिका की दशा और दिशा को रेखांकित करते आलेख।
यह भी रास्ता है : कृष्ण सुकुमार, प्रियंका गुप्ता व गौरीशंकर वैश्य ‘विनम्र’ (84), केवल कृष्ण पाठक, रत्ना वर्मा व ए. कीतिबर्द्धन (85), सुशीला शिवराण, राम नरेश ‘रमन’ व रजनीश त्रिपाठी (86), इन्द्रा किसलय, विजय चतुर्वेदी व हरिश्चन्द्र शाक्य (87), मधु सन्धु, सूर्यकान्त श्रीवास्तव व तपेश भौमिक (88), शरद नारायण खरे, पं.ज्वालाप्रसाद शांडिल्य ‘दिव्य’, मोह. मुइनुद्दीन ‘अतहर’व राम अवतार पाण्डेय (89), कमलेश व्यास ‘कमल’, अंजु दुआ जैमिनी व नरेन्द्र नाथ लाहा (90), सुधीर निगम, ज्योत्सना प्रदीप व सूर्यनारायण गुप्त ‘सूर्य’ (91), कन्हैयालाल अग्रवाल ‘आदाब’, दिलीप भाटिया, गांगेय कमल व पवन बत्रा (92), सुरेश उजाला, रामपाल शर्मा विश्वास, लक्ष्मण लाल योगी व दुर्गा बाजपेई (93), वेद व्यथित, मुखराम माकड़ ‘माहिर’ व कृष्ण मोहन अम्भोज (94), राधेश्याम पाठक ‘उत्तम’, राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ व देवीलाल महिया (95) की क्षणिकाएं।
अपनी-अपनी बात : डॉ.डी.एम. मिश्र (96), डॉ.शरद नारायण खरे (97), चक्रधर शुक्ल (98), रमेश कुमार भद्रावले (99), गुरुनाम सिंह रीहल (99), गौरीशंकर वैश्य ‘विनम्र’ (100), राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ (101) क्षणिका लेखन में अपने अनुभवजन्य विचारों के साथ।
क्षितिज के पार : अप्रवासी अपनों की क्षणिकाएं: अनिल जनविजय व पूर्णिमा वर्मन (102), रचना श्रीवास्तव (103), सुधा ओम ढींगरा व भावना कुँअर (104), शशि पाधा (105), मंजु मिश्रा (106), डॉ. अनीता कपूर (107)।
कैनवस : सुरेन्द्र वर्मा, सुरेश यादव, अनिल जनविजय, नारायण सिंह निर्दोष व नित्यानन्द गायेन की एक-एक चयनित क्षणिका पर डॉ.योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ के समग्र आलेख के साथ क्रमशः डॉ.सुधा गुप्ता, हरनाम शर्मा, डॉ.बलराम अग्रवाल, प्रशान्त उपाध्याय एवं डॉ.ज्योत्सना शर्मा की समीक्षात्मक टिप्पणियाँ। (108-113)।
उदाहरण : बीस वरिष्ठ कवियों के रचना संसार से क्षणिका के कुछ उदाहरणों के साथ रूसी कवयित्री ‘वेरा पावलोवा’ की कवि सिद्धेश्वर सिंह द्वारा अनूदित कुछ क्षणिकाएं। (114-116)।
स्तम्भ :
माइक पर (2) : उमेश महादोषी का संपादकीय।
चिट्ठियां (117) : गत अंक पर पाठकों के चयनित पत्रांश।
गतिविधियां (119) : गत अवधि के प्राप्त साहित्यिक गतिविधियों की संक्षिप्त रिपोर्ट्स/समाचार।
प्राप्ति स्वीकार (आवरण-3, 76, 81) : गत अवधि के दौरान प्राप्त पुस्तकों एवं पत्रिकाओं का विवरण।
इस अंक की साफ्ट (पीडीऍफ़) प्रति ई मेल (umeshmahadoshi@gmail.com) अथवा (aviramsahityaki@gmail.com) से मंगायी जा सकती है।
इस अंक के पाठक अंक की रचनाओं पर इस विवरण के नीचे टिप्पणी कालम में अपनी प्रतिक्रिया स्वयं पोस्ट कर सकते हैं। कृपया संतुलित प्रतिक्रियाओं के अलावा कोई अन्य सूचना पोस्ट न करें।
(समग्र साहित्य की समकालीन त्रैमासिक पत्रिका)
अंक सम्पादक : डॉ. उमेश महादोषी
सम्पादन परामर्श : डॉ. सुरेश सपन
मुद्रण सहयोगी : पवन कुमार
यह अंक :
क्षणिका : सृजन, समीक्षा और पहचान
आवरण : श्री के.रविन्द्र |
अविराम का यह मुद्रित अंक रचनाकारों व सदस्यों को 19 नवंबर 2013 को तथा अन्य सभी सम्बंधित मित्रों-पाठकों को 28 नवम्बर 2013 तक भेजा जा चुका है। 10 दिसम्बर 2013 तक अंक प्राप्त न होने पर सदस्य एवं अंक के रचनाकार अविलम्ब पुन: प्रति भेजने का आग्रह करें। अन्य मित्रों को आग्रह करने पर उनके ई मेल पर पीडीऍफ़ प्रति भेजी जा सकती है। पत्रिका पूरी तरह अव्यवसायिक है, किसी भी प्रकाशित रचना एवं अन्य सामग्री पर पारिश्रमिक नहीं दिया जाता है। इस मुद्रित अंक में शामिल रचना सामग्री और रचनाकारों का विवरण निम्न प्रकार है-
।।सामग्री।।
सिर्फ सन्नाटा नहीं है : निरंजन श्रोत्रिय व बलराम अग्रवाल (5), सुरेन्द्र वर्मा व कुंवर रवीन्द्र (6), सुधा गुप्ता (7), महेश चंद्र पुनेठा (8), सुरेश यादव व किशोर कुमार जैन (9), नारायण सिंह निर्दोष (10), नित्यानंद गायेन (11), राजवन्त राज व रमेश कुमार भद्रावले (12), जितेन्द्र ‘जौहर’ व हरनाम शर्मा (13), रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ व शिव डोयले (14), प्रशान्त उपाध्याय व उषा अग्रवाल ‘पारस’ (15), मिथिलेश दीक्षित व महावीर रवांल्टा (16), माधव नागदा व अनुपमा त्रिपाठी (17), केशव शरण व जयप्रकाश श्रीवास्तव (18), हरकीरत ‘हीर’ (19), राजेश उत्साही (20), जेन्नी शबनम (21), सुरेश सपन व देवेन्द्र शर्मा (22), डी.एम.मिश्र व सीमा स्मृति (23), अनीता ललित व प्रताप सिंह सोढ़ी (24), सुदर्शन रत्नाकर व रतन चंद ‘रत्नेश’ (25), ओमेश परुथी व ज्योत्स्ना शर्मा (26), कैलाश शर्मा (27), वन्दना गुप्ता व भावना सक्सैना (28), रंजना भाटिया व उषा कालिया (29), कमला निखुर्पा व तुहिना रंजन (30), चक्रधर शुक्ल व संतोष सुपेकर (31), पुरुषोत्तम दुबे, शुभदा पाण्डेय व सुभाष लखेड़ा (32), शिवानन्द सिंह ‘सहयोगी’ व श्याम अंकुर (33), मालिनी गौतम व शेर सिंह (34), अशोक ‘आनन’ व सिद्धेश्वर (35), रमा द्विवेदी व प्रेम गुप्ता ‘मानी’ (36), पंकज परिमल व शोभा रस्तोगी शोभा (37), शशि पुरवार व कुँवर प्रेमिल (38), शिवकुटी लाल वर्मा, मीना गुप्ता व राजेन्द्र बहादुर सिंह ‘राजन’ (39), शैलेष गुप्त ‘वीर’ व नरेश कुमार ‘उदास’ (40), पुष्पा मेहरा व के. एल. दिवान (41), राजेन्द्र परदेसी व धर्मेन्द्र गुप्त ‘साहिल’(42), प्रतिभा माही व महावीर उत्तरांचली (43), रामस्वरूप मूँदड़ा, बंशीलाल ‘पारस’ व विवेक चतुर्वेदी (44), अलका मिश्रा ‘कशिश’ व टी. सी. सावन (45) की क्षणिकाएं।
पहचान : डॉ.कमल किशोर गोयनका (46), डॉ.सतीश दुबे (47), डॉ.सुरेंद्र वर्मा (50), रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ (55), जितेन्द्र ‘जौहर’ (60), डॉ. पुरुषोत्तम दुबे (72), नित्यानंद गायेन (75), डॉ. शैलेष गुप्त ‘वीर’ (77), शोभा रस्तोगी शोभा (82) के क्षणिका की दशा और दिशा को रेखांकित करते आलेख।
यह भी रास्ता है : कृष्ण सुकुमार, प्रियंका गुप्ता व गौरीशंकर वैश्य ‘विनम्र’ (84), केवल कृष्ण पाठक, रत्ना वर्मा व ए. कीतिबर्द्धन (85), सुशीला शिवराण, राम नरेश ‘रमन’ व रजनीश त्रिपाठी (86), इन्द्रा किसलय, विजय चतुर्वेदी व हरिश्चन्द्र शाक्य (87), मधु सन्धु, सूर्यकान्त श्रीवास्तव व तपेश भौमिक (88), शरद नारायण खरे, पं.ज्वालाप्रसाद शांडिल्य ‘दिव्य’, मोह. मुइनुद्दीन ‘अतहर’व राम अवतार पाण्डेय (89), कमलेश व्यास ‘कमल’, अंजु दुआ जैमिनी व नरेन्द्र नाथ लाहा (90), सुधीर निगम, ज्योत्सना प्रदीप व सूर्यनारायण गुप्त ‘सूर्य’ (91), कन्हैयालाल अग्रवाल ‘आदाब’, दिलीप भाटिया, गांगेय कमल व पवन बत्रा (92), सुरेश उजाला, रामपाल शर्मा विश्वास, लक्ष्मण लाल योगी व दुर्गा बाजपेई (93), वेद व्यथित, मुखराम माकड़ ‘माहिर’ व कृष्ण मोहन अम्भोज (94), राधेश्याम पाठक ‘उत्तम’, राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ व देवीलाल महिया (95) की क्षणिकाएं।
अपनी-अपनी बात : डॉ.डी.एम. मिश्र (96), डॉ.शरद नारायण खरे (97), चक्रधर शुक्ल (98), रमेश कुमार भद्रावले (99), गुरुनाम सिंह रीहल (99), गौरीशंकर वैश्य ‘विनम्र’ (100), राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ (101) क्षणिका लेखन में अपने अनुभवजन्य विचारों के साथ।
क्षितिज के पार : अप्रवासी अपनों की क्षणिकाएं: अनिल जनविजय व पूर्णिमा वर्मन (102), रचना श्रीवास्तव (103), सुधा ओम ढींगरा व भावना कुँअर (104), शशि पाधा (105), मंजु मिश्रा (106), डॉ. अनीता कपूर (107)।
कैनवस : सुरेन्द्र वर्मा, सुरेश यादव, अनिल जनविजय, नारायण सिंह निर्दोष व नित्यानन्द गायेन की एक-एक चयनित क्षणिका पर डॉ.योगेन्द्र नाथ शर्मा ‘अरुण’ के समग्र आलेख के साथ क्रमशः डॉ.सुधा गुप्ता, हरनाम शर्मा, डॉ.बलराम अग्रवाल, प्रशान्त उपाध्याय एवं डॉ.ज्योत्सना शर्मा की समीक्षात्मक टिप्पणियाँ। (108-113)।
उदाहरण : बीस वरिष्ठ कवियों के रचना संसार से क्षणिका के कुछ उदाहरणों के साथ रूसी कवयित्री ‘वेरा पावलोवा’ की कवि सिद्धेश्वर सिंह द्वारा अनूदित कुछ क्षणिकाएं। (114-116)।
स्तम्भ :
माइक पर (2) : उमेश महादोषी का संपादकीय।
चिट्ठियां (117) : गत अंक पर पाठकों के चयनित पत्रांश।
गतिविधियां (119) : गत अवधि के प्राप्त साहित्यिक गतिविधियों की संक्षिप्त रिपोर्ट्स/समाचार।
प्राप्ति स्वीकार (आवरण-3, 76, 81) : गत अवधि के दौरान प्राप्त पुस्तकों एवं पत्रिकाओं का विवरण।
साथ में आवरण-तीन पर सुप्रसिद्ध कवि श्री रमेश चन्द्र शाह की क्षणिका पर आधारित सुप्रसिद्ध चित्रकार श्री बी.मोहन नेगी का क्षणिका पोस्टर।
इस अंक की साफ्ट (पीडीऍफ़) प्रति ई मेल (umeshmahadoshi@gmail.com) अथवा (aviramsahityaki@gmail.com) से मंगायी जा सकती है।
सविता बजाज, पो.बा. 19743, बोरिवली (वेस्ट) प्रधान डाकघर, जयराज नगर, मुम्बई-400091 महा.
जवाब देंहटाएं....पत्रिका में कविताओं का खजाना है। बाकी भी बहुत मेहनत से लिखा गया है। मेरी ढेर सारी बधाई!...
प्रो.भगवानदास जैन, बी-105, मंगलतीर्थ पार्क, कैनाल के पास, जशोदानगर रोड, मणीनगर (पूर्व), अहमदाबाद-382445, गुजरात
....अंक में ‘क्षणिका’ काव्य-विधा विषयक विपुल सामग्री प्रकाशित करके, मैं समझता हूं, एक ऐतिहासिक कार्य सम्पन्न किया है। तदर्थ आप निश्चय ही बधाई के हकदार हैं। अंक में अनेक कवियों की ‘क्षणिकाएं’ प्रकाशित हैं। हां, कुछ सपाट हैं तो कुछ गंभीर विमर्श की फलश्रुति हैं। कविता जितनी संक्षिप्त, कवि का दायित्व उतना ही अधिक गंभीर। फिर वह चाहे दोहा हो, ग़ज़ल का शेर हो या मुक्तक, माहिया अथवा जापानी काव्य-विधा हाइकु हो। क्षण/क्षणिक से व्युत्पन्न शब्द ‘क्षणिका’ यदि कथ्य एवं शिल्प के स्तर पर प्रभावहीन है तो निश्चय ही वह महज़ पानी का बुलबुला है, कविता नहीं।.... अंक में क्षणिका के रूप-कथ्य आदि पर यों तो कई काव्य-ममर्ज्ञ मित्रों के विचार प्रकाशित हैं, किन्तु सर्वश्री डॉ. कमल किशोर गोयनका, डॉ. सतीश दुबे, डॉ. सुरेन्द्र वर्मा, रामेश्वर काम्बोज, जितेन्द्र जौहर के आलेख इस अंक की उपलब्धियां हैं जो अंक को एक महत्वपूर्ण साहित्यिक दस्तावेज के रूप में संग्रहणीय बनाते हैं। इनमें भी श्री जितेन्द्र जौहर का आलेख ‘क्षणिका: एक विधागत विवेचन’ अपने आपमें ‘क्षणिका’ की एक सर्वांगसंपूर्ण समीक्षा है। उनके इस लेख में पदे-पदे उनकी निष्ठा, श्रमसाध्यता, सूक्ष्म शोध दृष्टि एवं तर्कसम्मत सोच लक्षित होती है।....
डॉ.नरेश पाण्डेय ‘चकोर’, सम्पादक अंग माधुरी, बोरिंग रोड,(पश्चिमी) 59, गांधीनगर, पटना-800001, बिहार
....इस अंक में कविताओं की भरमार है। अच्छी बात है। अन्य विधाओं की रचनाएँ भी रहनी चाहिये। इस अंक की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि ‘क्षणिका’ पर अनेक विद्वानों के विचार इसमें प्रकाशित किए गये हैं। इससे यह अंक पठनीय तो है ही, संग्रहणीय भी है। शोधार्थी इससे लाभान्वित होंगे। आपने प्रशंसनीय कार्य किया है। पत्रिका को देखने-पढ़ने से लगता है कि आपने गागर में सागर समाने जैसा कार्य किया है। अनेक कवियों एवं रचनाकारों को पत्रिका में स्थान देने का सफल प्रयास किया है।....
चमेली जुगरान, डी-31, आई.एफ.एस. अपार्टमेन्ट्स, मयूर विहार फेज-1, दिल्ली-91
...क्षणिकाओं से सजी पत्रिका! बहुत पहले कादम्बिनी में कभी-कभार सरोजिनी प्रीतम की क्षणिकाएं छपती थीं, लेकिन वे महज हंसाने के लिए होती थीं। उनमें कोई भाव या संदेश नहीं होता था। आपकी पत्रिका ने क्षणिकाओं को इस मुकाम पर पहुँचाया है। मैं प्रभावित हूँ। पहले तो मैं लघुकथा, क्षणिका आदि को विशेष महत्व नहीं देती थी, लेकिन अब ऐसा नहीं।...
कुछ और पत्र-
जवाब देंहटाएंसंतोष सुपेकर, 31, सुदामानगर, उज्जैन-456001, म.प्र.
....क्षणिका पर इतनी विपुल संग्रहणीय एवं अद्भुत सामग्री देने के लिए आपको कोटिशः धन्यवाद! सम्पादकीय में आपने, जबरन स्थापित एक मिथक को तोड़ा है कि आज पाठकों के पास समय नहीं है सिर्फ इसीलिए वे छोटी रचना पसन्द करते हैं। आपका कथन वास्तविकता के बहुत निकट है और एक नई सुखद सोच की ओर मोड़ता है। श्री निरंजन श्रोत्रिय की प्रभावशाली अद्भुत क्षणिकाओं (सिर्फ सन्नाटा नहीं है) से प्रारंभ कर आपने अंग्रेजी कहावत ूमसस इमहनद पे ींस िकवदम को चरितार्थ किया है। इतनी अच्छी शुरुआत एवं अंक पर अथक परिश्रम के लिए आपके साथ-साथ संपूर्ण अ.साहित्यिकी परिवार के प्रयास स्तुत्य हैं।
बलराम अग्रवाल, एम-70, उल्धनपुर, दिगम्बर जैन मन्दिर के पास, नवीन शाहदरा, दिल्ली
....‘अविराम’ के क्षणिका विशेषांक की पीडीएफ एक बार पलटकर देख ली है। मैं समझता हूँ कि यह विशेषांक ‘लघुकथा विशेषांक’ से भी स्तरीय बन पड़ा है। कई कवियों की क्षणिकाएँ तो चमत्कृत करती हैं।....
डॉ. प्रेम जनमेजय, 73, साक्षर अपार्टमेन्ट्स, ए-3 पश्चिम विहार, नई दिल्ली-110063/ई मेल
अविराम साहित्यिकी के क्षणिका विशेषांक की पीडीएफ प्रति प्राप्त हुई, आभारी हूँ। अत्यधिक श्रम एवं रचनात्मक सोच के साथ अंक का सम्पादन एवं संयोजन किया गया है। आप सबके श्रम को प्रणाम करता हूँ। क्षणिका पर, मुझे नहीं लगता कि इससे पूर्व इस प्रकार किसी ने अंक का प्रकाशन किया है। यह अंक निश्चित ही इस विषय पर विद्वानो का ध्यान आकर्षित करेगा। एक बौद्धिक, चिंतनशील सामग्री प्रस्तुत करने के लिए बधाई...
रमा द्विवेदी फ्लैट नं.102, इम्पीरिअल मनोर अपार्टमेंट, बेगमपेट, हैदराबाद-500016
अविराम का क्षणिका विशेषांक प्राप्त हो गया है। विशेषांक स्तरीय, श्लाघनीय और संग्रहणीय है। गागर में सागर भर दिया है आपने।... अविराम के इस सुन्दर, सार्थक और सारगर्भित अंक के लिए अनंत शुभकामनाएँ।...
श्रीकृष्ण कुमार त्रिवेदी, द्वीपान्तर, ला.ब.शास्त्री मार्ग, फतेहपुर-212601, उ.प्र.
‘अविराम साहित्यिकी’ का क्षणिका केन्द्रित अंक (अक्टूबर-दिसम्बर 2013) प्राप्त हुआ। आभारी हूँ। अपने जोरदार सम्पादकीय एवं कुशल सम्पादन के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें। विद्वान लेखकों ने ‘क्षणिका’ को विधा-रूप में स्थापित करने के लिए अथक प्रयास किया है। उनका मंतव्य यशस्वी हो, यही शुभकामना है। किसी विधा के जनक की खोज सरल नहीं होती, क्योंकि अतीत से कुछ सप्रमाण खोज निकालना कठिन होता है। ‘क्षणिका’ भी इसका अपवाद नहीं है। ऐसे प्रश्नों पर मतैक्य प्राय; नहीं बन पाता, फिर भी प्रयास करें और समय रहते इस विवाद शांत हो जाए तो अच्छा रहेगा।...
मनमोहन सरल, 76, पत्रकार, बांद्रा पूर्व, मुंबई-400051 /ई मेल
‘अविराम साहित्यिकी’ का अक्टूबर-दिसम्बर 2013 अंक मिला, जो क्षणिकाओं पर केन्द्रित है। एक सर्वथा अछूते विषय पर पूरा अंक निकालना बड़े साहस और धैर्य की बात है। बधाई! इस अंक के संपादक को भी बधाई दें, उनहोने काफी श्रम किया है। कई रचनाकारों को पढ़ता रहा हूँ. और ज्यादातर नए भी हैं। सबको एक साथ पाकर अच्छा लगा।.....
कुछ और पत्र-
जवाब देंहटाएंउपेन्द्र कुमार, (upendrakr1947@gmail.com/ मोबाइल 9818934640)
‘अविराम साहित्यिकी’ का क्षणिका पर केन्द्रित अक्टूबर-दिसम्बर 2013 का अंक प्राप्त हुआ। धन्यवाद! आज के इस कठिन और एक हदतक साहित्य विरोधी दौर में लघु पत्रिकाओं ने हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार एवं प्रगति में बहुत बड़ा योगदान दिया है। लघु पत्रिकाओं के लिए संसाधन तथा श्रेष्ठ सामग्री इकट्ठा करना अत्यंत कठिन कार्य है। इसमें जो लोग लगे हुए है, उनके प्रति मेरे मन में सहज प्रशंसा का भाव सदा विद्यमान रहता है। ‘अविराम साहित्यिकी’ का प्रस्तुतीकरण भी नयनाभिराम है। चयनित क्षणिकाएं एवं लेख अत्यंत स्तरीय बन पड़े हैं। इसके लिए आपकी एवं आपकी टीम की जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है। वैसे व्यक्तिगत रूप से इतनी प्रभावशाली, सशक्त और लंबे समय तक दिमाग में उथल-पुथल मचाते रहने वाली इन छोटी कविताओं को ‘क्षणिका’ नाम देना मुझे हमेशा ही अनुपयुक्त लगा है। क्षणिका शब्द कहीं क्षण-भंगुरता का आभास देता है। जो इन कविताओं के प्रमुख गुणों के विरूद्ध है। आकार में लघु होना पानी के बुलबुले की तरह क्षणिक होने से बिल्कुल अलग बात होती है। ये छोटी कविताएं तो अपनी विषय-वस्तु कथन तथा व्यंग्य में इतनी सशक्त है जैसे अणु-परमाणु होते हैं।....
कैलाश शर्मा, 44, विशाखा एन्क्लेव, पीतमपुरा (उत्तरी), दिल्ली-110088
‘अविराम साहित्यिकी’ का क्षणिका विशेषांक प्राप्त हुआ। बहुत बहुत आभार। क्षणिका विशेषांक में उत्कृष्ट क्षणिकाओं और उससे सम्बंधित आलेखों के चयन ने इस अंक को एक संग्रहणीय अंक बना दिया है, जिसके लिए हार्दिक बधाई।...
डॉ. ए.कीर्तिबर्द्धन, 53, महालक्ष्मी एनक्लेव, जानसठ रोड, मुजफ्फरनगर-251001 (उ.प्र.)
...क्षणिका विशेषांक मेरे हाथ में है।... अविराम साहित्यिकी साहित्य के शिखर को चूमने के लिए निर्वाध से बढ़ रही है। इसका प्रसार आज सारे देश में है। केवल दो वर्ष में बहुत ऊँचाई प्राप्त की है इस लघु पत्रिका ने। विशेष तौर पर लघुकथा के लिए जाने जानी वाली इस पत्रिका ने कई विशेषांक भी दिये हैं।
ज्योत्स्ना शर्मा, टावर एच-604, प्रमुख हिल्स, छरवडा रोड, वापी, जिला-वलसाड (गुजरात)-396191
‘अविराम साहित्यिकी’ का क्षणिका विशेषांक पढ़ने का सौभाग्य मिला। माइक पर प्रारम्भ की उद्घोषणा से पटाक्षेप तक बेहद सुन्दर ,संतुलित एवं सारगर्भित प्रस्तुति है। जहाँ अनेक वरिष्ठ, कनिष्ठ रचनाकारों की क्षणिकाएँ एक साथ यहाँ पढ़ने का अवसर मिला वहीं दूसरी ओर क्षणिका के भाव एवं शिल्प पर या कहिये कि उसकी जीवन-यात्रा पर शोधपरक सामग्री प्रस्तुत करते आद. रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ जी, जितेन्द्र जौहर जी, डॉ. सतीश दुबे जी, डॉ.सुरेन्द्र वर्मा जी, डॉ. पुरुषोत्तम दूबे जी, डॉ. शैलेश गुप्त ‘वीर’ जी तथा अन्य सभी के आलेख बेहद प्रभावी हैं। उत्कृष्ट पठनीय सामग्री से सुसज्जित अंक निःसंदेह संग्रहणीय है।....
कुछ और पत्र-
जवाब देंहटाएंडॉ.रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’, 86, तिलकनगर, बाई पास रोड, फीरोजाबाद, उ.प्र.
क्षणिका विशेषांक मिला। आपने रचनाओं के साथ इसमें शोधपरक व गम्भीर आलेख भी दिए हैं, यह महत्वपूर्ण है। इस विशेषांक की सूचना नहीं मिल पायी अन्यथा मैं रचना अवश्य भेजता। क्षणिका सम्बन्धी आलेखों में डॉ. सुरेन्द्र वर्मा, जितेन्द्र जौहर के आलेख इस विधा के स्वरूप व इतिहास को प्रस्तुत करते हैं, प्रभावी हैं। परन्तु कुछ रचनाकार अपनी किसी छन्दोबद्ध रचना को 4-5 या 7-8 पंक्तियों में बिखेरकर लिख देते हैं और क्षणिका नाम दे देते हैं। ऐसी रचनायें आपके विशेषांक में भी छप गयी हैं।...
राधेश्याम सेमवाल, अध्यक्ष, सुमेरु साहित्यिक काव्य मंच, शिवलोक-3, हरिद्वार, उ.खंड
पत्रिका ‘अविराम’ मिल रही है, जिसके लिए आपकी साहित्य सेवा को प्रणाम। ‘‘कभी बन्द करने की बात अच्छी न लगी, अभिव्यक्ति की गंगा को अविरल बहने दो/देश के कवियों को शब्द कुछ कहले दो/‘अविराम’ को अविराम रहने दो/प्रयत्न से अर्थ का अर्थ जुट जायेगा/अविराम बन्द करने की बात रहने दो’’... ‘अविराम साहित्यिकी’ सहेज रहा हूँ। यह समय पर हस्ताक्षर कर डाले हैं आपने।...
शुभदा पाण्डेय, असम विश्वविद्यालय, शिलचर-788011, असम
....एक साथ इतना कुछ पढ़ने को मिला कि क्षणिकाओं का जीवन जीवन्त हो गया। विविधता, समायोजनता व अभिव्यक्ति की पूर्णता में क्षणिकाएँ सफल दिखीं। देश के कोने-कोने के कवि एकत्र हुए हैं। गोयनका जी का आलेख पसन्द आया। कई क्षणिकाएं मन को छू गईं।...
कमलेश चौरसिया, गिरीश-201, डब्ल्यू.एच.सी. रोड, धरमपेठ, नागपुर-214010, महा.
....देखन में ‘छोटे लगे घाव करे गंभीर’ को चरितार्थ करते हुये ‘क्षणिका अंक’ अद्वितीय है। जीवन की सच्चाई को कम से कम शब्दों में समेटना बहुत बड़ी कला है। इस अंक में प्रतिष्ठित प्रतिनिधि कवियों से लेकर नव कवियों तक का लेखन पढ़कर मन विभोर हो गया।....
अमृत लाल मदान, 1150/11, सार शब्द कुंज, प्रोफेसर कॉलोनी, कैथल-136027, हरियाणा
....निरंजन श्रोत्रिय, बलराम अग्रवाल, पुनेठा, सुरेश यादव जैसे लेखकों की क्षणिकाओं का आनंद तो मिला ही, अनेक विद्वान लेखकों द्वारा क्षणिका विधा का सटीक विवेचन भी पढ़ने को मिला तथा महादोषी जी द्वारा क्ष. विवेचन के अतिरिक्त इतिहास भी पठनीय/संग्रहणीय लगा। मैं समझता हूं लघु कविता/क्षणिका/व्यंगिका आदि में ज्यादा भेद न किया जाए तो बेहतर। मुख्य बात तो उसके प्रभाव की है- शेष तो शब्द जाल है या बौद्धिक विलास! गोयनका जी का सुझाव अच्छा है कि मॉरीशस के यशस्वी लेखक अभिमन्यु अनत पर विशेषांक निकालें- इन्हें 75 वें जन्म दिवस की बधाई के स्वरूप। मुझे स्मरण है कि आज से ठीक आठ वर्ष पूर्व आज के दिन मैं मॉरीशस में उनके सानिघ्य में बैठा था उनके निवास ‘संवादिता’ पर। वहां शायद उन्हीं के कहने पर मॉरीशस के लेखक संघ ने मुझे सम्मानित भी किया। हमने परस्पर पुस्तकों का आदान-प्रदान भी किया।....
डॉ.सतीश चन्द्र शर्मा ‘सुधांशु’, प्रतिसार निरीक्षक, रिजर्व पुलिस लाइन, मैनपुरी-205001, उ.प्र.
....‘क्षणिका विशेषांक’ हेतु हार्दिक बधाई। सभी क्षणिकाएं प्रभावित करती हैं। तथा क्षणिका पर कवियों/साहित्य मनीषियों के विचार प्रासंगिक व ग्राह्य हैं। क्षधिका स्वयं ‘गागर में सागर’ है किन्तु आपने भी अंक में ‘गागर में सागर’ भरा है।...
राजेन्द बहादुर सिंह ‘राजन’, ग्राम फत्तेपुर, पोस्ट बेनीकामा, जिला रायबरेली-229402, उ.प्र.
....अधिकांश क्षणिकाएं मन की गहराई में उतरकर अपनी छाप छोड़ने में समर्थ हैं। क्षणिका विधा पर इतनी सशक्त, प्रभावी एवं ज्ञानवर्द्धक सामग्री बहुत कम पढ़ने को मिलती है। यह सब आपके सम्पादकीय कौशल एवं क्षणिका में विशेष पैठ के कारण सम्भव हो सका है।...
क्षणिका विशेषांक पर विलंब से प्राप्त एक और पत्र ...
जवाब देंहटाएंकृष्णशंकर सोनाने, ई-8, जी-145, श्वेता काम्प्लेक्स, भरत नगर, त्रिलंगा, शाहपुरा, भोपाल, म.प्र.
...अक्टूबर-दिसंबर 2013 अंक सधन्यवाद प्राप्त हुआ। अंक अद्यतन पढ़ा। प्रशन्नता हुई। क्षणिका का उद्गम और विकास किसी एक रचनाकार/साहित्यकार के हिस्से में नहीं जाता है। समय-असमय पर कई लेखकों/कवियों ने विभिन्न तरह से क्षणिकाओं के माध्यम से अपनी बात कही है। जिस तरह से आज तक कविता की कोई मौलिक परिभाषा नहीं कही जा सकती, ठीक उसी तरह से क्षणिका की कोई निश्चित परिभाषा नहीं हो सकती। उन्नीसवीं-बीसवीं सदी से लेकर 21वीं सदी के प्रारंभ तक के तमाम रचनाकारों पर दृष्टिपात किया जाये तो इन तमाम रचनाकारों ने गाहे-ब-गाहे क्षणिकाएं लिखीं हैं। इसलिए किसी एक रचनाकार/साहित्यकार को क्षणिका का जन्मदाता नहीं कहा जा सकता। क्षणिकाओं के कई प्रकार हो सकते हैं- क्षण भर में कही जाने वाली सभी रचनाएँ क्षणिकाओं की श्रेणी में आती हैं। मॉरीशस में आधे से ज्यादा रचनाकार क्षणिकाओं से ही अपनी रचना आरंभ करते हैं।... अब चूँकि हमारे यहाँ अलग-अलग राग अलापा जा रहा है। कई रचनाकार ‘हाँ’ में ‘हाँ’ में लगाए जा रहे हैं तो बहुत अच्छी बात है। बहरहाल, क्षणिकाएँ जैसे भी, जो भी हो, क्षण भर में ही श्रोता या पाठक के हृदय को स्पर्श करती हैं। कोई भी रचना दो प्रकार की होती है। पहली रचना, मनोरंजन के लिए होती है, जिसका कोई साहित्यिक/सामाजिक या मानवीय सरोकार नहीं होता। दूसरी कविता/रचना- जो सोचने के लिए विवश करती है और सारे समाज और मानवता को प्रेरित करती है। मनोरंजन वाली रचनाएं सार्वभौम नहीं होतीं, बौद्धिक रचनाएं सार्वभौम होती हैं।...क्षणिका अंक के लिए आपको बधाइयां।