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रविवार, 30 सितंबर 2018

किताबें

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  8,   अंक  :  01-02, सितम्बर-अक्टूबर  2018


{लेखकों/प्रकाशकों से अनुरोध है कृपया समीक्षा भेजने के साथ पुस्तक की एक प्रति (एक से अधिक नहीं) हमारे अवलोकनार्थ अवश्य  डा. उमेश महादोषी, 121, इन्द्रापुरम, निकट बी.डी.ए. कालौनी, बदायूं रोड, बरेली, उ.प्र. के पते पर भेजें। समीक्षाएँ ई मेल द्वारा कृतिदेव 010 या यूनिकोड मंगल फॉन्ट में वर्ड या पेजमेकर फ़ाइल के रूप में ही भेजें।स्कैन करके या पीडीएफ में भेजी रचनाओं का उपयोग सम्भव नहीं होगा। मुद्रित अविराम साहित्यिकी में समीक्षाओं का प्रकाशन फ़िलहाल स्थगित कर दिया गया है। बिना प्रति भेजे समीक्षा प्रकाशित नहीं की जाएगी। 


डॉ. उमेश महादोषी




सौन्दर्य बोध के सूत्रों को प्रतिबिम्बित करती लघुकथाएँ

       लघुकथा लेखन के यथार्थ को समझने, निरन्तर सीखने और सूक्ष्म चिंतन के साथ आगे बढ़ने वाले नई पीढ़ी के श्रेष्ठ लघुकथाकारों  में एक प्रमुख नाम है डॉ. संध्या तिवारी। ‘ततः किम्’ डॉ. संध्या का प्रभावशाली लघुकथा संग्रह है, जिसमें उनकी 71 लघुकथाएँ शामिल हैं। इनमें से अनेक में सटीक बिम्बों का उपयोग विशेष रूप से प्रभावित करता है। संध्याजी पुराने विषयों को भी नए जैसे रूप में प्रस्तुत करने में सक्षम हैं। सृजन शैली पर कविता का प्रभाव है, लेकिन यह प्रभाव कथा पर हावी नहीं है। उनकी काव्यात्मकता लघुकथा के सौंदर्य को बढ़ाने का काम करती है। जीवन के अनेक पहलुओं
को समझकर लघुता में व्यापकता के साथ प्रस्तुत करने में वह सक्षम हैं। उनके पात्रों का व्यक्तित्व और भाषा बहुत तेज-तर्रार नहीं होती, लेकिन अपनी बात कहने की सामर्थ्य उनमें भरपूर होती है। बेहद सरल, सहज और सधे शब्दों में कही गयी बात पाठक के अन्तर्मन में सीधे और पूरी तीव्रता के साथ उतर जाती है। उनके कथ्य भावपूर्ण स्वरूप में उद्भूत होते हैं, उन्हें पारिभाषिक शब्दावली में बाँधना मुश्किल और अनावश्यक लगता है। यदि यह कहा जाये तो कहीं अधिक सही होगा कि उनकी लघुकथाओं में कथा की स्पष्ट और दैहिक उपस्थिति के बावजूद कथ्य कविता की सुगन्ध सरीखे होते हैं। 
       नारी विमर्श संध्याजी का प्रिय विषय है। संग्रह में नारी से जुड़ी समस्याओं और उसकी सामाजिक स्थिति से जुड़ी लघुकथाओं की संख्या काफी अधिक है, इनमें से कविता, जहन्नुम, बिना सिर वाली लड़की, सिलवट, बया और बन्दर, दिठौना, कठिना, कौआ हड़उनी आदि जैसी लघुकथाओं को लम्बे समय तक याद किया जायेगा। दलित विमर्श पर उनकी लघुकथा ‘चप्पल के बहाने’ विशेष ध्यान आकर्षित करती है। असहिष्णुता के मुद्दे पर बुद्धिजीवियों के शोर-शराबे पर ‘मैं तो नाचूँगी गूलर तले’ बेहद मारक लघुकथा है। संग्रह की अन्य लघुकथाओं मे से भी अधिकांश प्रभावशाली हैं। नई पीढ़ी के अन्य लघुकथाकारों के सापेक्ष डॉ. संध्या तिवारी अपने पहले ही संग्रह के माध्यम से विशेष पहचान बनाने में सफल हैं। उनकी कई लघुकथाएँ सार्वकालिक लघुकथाओं की श्रेणी में रखे जाने योग्य है। उनके शीर्षक बहुत आकर्षक और कथ्य को प्रभावी बनाने वाले होते हैं। इस संग्रह को नई पीढ़ी की लघुकथा में सौन्दर्य बोध के सूत्रों के प्रतिबिम्बन के लिए भी देखा जा सकता है। उम्मीद है आने वाले समय में उनकी और भी बेहतरीन लघुकथाएँ सामने आयेंगी।
ततः किम् : लघुकथा संग्रह : डॉ. संध्या तिवारी। प्रकाशक : पोएट्री बुक बाजार, एफएफ-1679, लेखराज डालर, इन्द्रानगर, लखनऊ-16, उ.प्र.। मूल्य: रु. 140/- मात्र।

  • 121, इन्द्रापुरम, निकट बीडीए कॉलोनी, बदायूँ रोड, बरेली-247001, उ.प्र./मो. 09458929004

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