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रविवार, 30 सितंबर 2018

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन,  वर्ष  :  08,   अंक  :  01-02,   सितम्बर-अक्टूबर 2018  





।।कविता अनवरत।। 



ब्रह्मजीत गौतम




ग़ज़ल
अगर तुम करोगे इबादत वतन की
तो पाओगे हर पल मुहब्बत वतन की

मुहब्बत नहीं है जो मन में तुम्हारे
सँभालोगे कैसे अमानत वतन की

अमानत का जिम्मा लिया है जिन्होंने
बदल देंगे इक दिन वो किस्मत वतन की

न किस्मत से दुःख दूर होंगे वतन के
मिटेगी मशक्कत से गुर्बत वतन की

जो गुर्बत में रहकर लड़े सरहदों पर
उन्हीें से है इज़्जत सलामत वतन की

सलामत रहे ये तिरंगा हमारा
ये है जाँ से प्यारी अलामत वतन की

अलामत फ़क़त है नहीं ये तिरंगा 
हक़ीकत में तो है ये इज़्ज़त वतन की
रेखाचित्र : (स्व.) पारस दासोत 

नहीं करते इज़्ज़त बड़ों की जो दिल से
वो पालेंगे कैसे रिवायत वतन की

रिवायत में हो गर नयेपन की ख़ुश्बू
तो कर देगी जादू सियासत वतन की

सियासत में ईमानदारी जो आये
बहुत जल्द बदलेगी सूरत वतन की

सुनो ‘जीत’ बदलेगी सूरत तभी तो
ज़माना करेगा इबादत वतन की

  • युक्का-206, पैरामाउण्ट सिंफनी, क्रासिंग रिपब्लिक, गाजियाबाद-201016, उ.प्र./मो. 09425102154

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