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मंगलवार, 20 अगस्त 2013

अविराम विस्तारित

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : 2,  अंक : 9-10,  मई-जून 2013

।।क्षणिकाएँ।।

सामग्री : सु-श्री राजवन्त राज  की क्षणिकाएँ।


राजवन्त राज



पाँच क्षणिकाएँ

1.
दरीचे में उलझकर अटक गये रेशों को
जब मैंने अपनी अंगुलियों से निकालना चाहा
दर्द से मेरा ही दुपट्टा रो पड़ा
बावजूद इसके
वहां कत्ल का कोई निशां न था।
2.
जो कोई बात
तेरे दिल से निकले
और मुझ तक पहुँचे
क्षत-विक्षत होकर
तो दोष किसका
तुमने भेजा लापरवाह होकर
या मैंने लपका बेपरवाह होकर!
छाया चित्र : उमेश महादोषी 
3.
चुक गये शब्दों से
जब मैं अर्थ बीनने बैठी
कुछ यहाँ गिरे मिले
कुछ वहां पड़े मिले
4.
आधी बात कही थी तुमने
आधी बात मैंने भी कह दी
बात पूरी हो गई
5.
सख्त हथेली पे कुदरत की दो चीर हैं
इक जिन्दगी की है इक मौत की है
मैंने जिन्दगी की चीर को
कलम से गहरा रंग दिया
मौत ने हँस के कहा- तेरी स्याही फीकी है!
  • 201, सूर्यालोक व्यू अपार्टमेन्ट, विकल्प खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ-226010, उ.प्र.

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