- कुछ समस्याओं के समाधान और कुछ अतिरिक्त करने की इच्छा के परिणाम स्वरुप यह ब्लॉग मित्रों और पाठकों के समक्ष प्रस्तुत है. भले हजारों चिट्ठों (ब्लॉगों) के मध्य इसका बहुत अधिक महत्व न हो, पर अविराम की रचनात्मकता के पूरक के रूप में थोड़ा-सा योगदान भी इस ब्लॉग के माध्यम से हम कर पाये, तो हमारे लिए संतोष की बात होगी. एक सीमा तक अविराम के लघु कलेवर के कारण कुछ मित्रों के मन में अविराम को लेकर संदेह भरे प्रश्न भी उठने लगे थे, उम्मीद है इस ब्लॉग के माध्यम से हमारी पारदर्शिता उन प्रश्नों का कुछ समाधान अवश्य सामने रखने में सफल होगी.
- अन्ना जी का जनलोकपाल विधेयक को लेकर आन्दोलन का एक चरण पूरा हुआ। इस आन्दोलन में जनता की सहभागिता और उसका रुझान जिस तरह का रहा, उससे एक बात बिल्कुल साफ है कि भ्रष्टाचार, अव्यवस्था और सरकारी तन्त्र के रवैये के खिलाफ जनता आक्रोश से भरी हुई है। यदि कोई अनियन्त्रित विद्रोह नहीं हो रहा है, तो उसका बड़ा और महत्वपूर्ण कारण भारतीय जनमानस की शान्तिप्रियता ही है। लेकिन लगता है सरकारी तन्त्र जनता की शान्तिप्रियता को उसकी भीरुता मानकर चल रहा है। यही कारण है कि आतन्कवाद, नागरिक सुरक्षा, न्याय और आवश्यक जन-सुविधाओं की पूर्ति जैसे मूलभूत मुद्दों पर सरकारी तन्त्र के भीतर अन्ना के आन्दोलन के बावजूद कोई सकारात्मक हलचल दिखाई नहीं दे रही। आन्दोलन के चलते ही दिल्ली में बिजली की दरों में बढ़ोत्तरी, सांसद राहुल गांधी के निवास पर धरना देने गये लागों को समोसे बाँटने की घटना, संसद के अन्दर और संसद के बाहर कई नेताओं का आपत्तिजनक आचरण, एक वरिष्ठतम नौकरशाह का कीमत बढ़ोत्तरी पर तालियाँ पीटने और झूमने जैसा व्यवहार करना और आन्दोलन के बाद की राजनैतिक निष्क्रियता सामान्य भले लगे, पर यह सब जनता को हल्के में लेने की निशानियाँ हैं। सरकारी तन्त्र कोई सबक सीखने को तैयार नहीं लगता है!
- हो सकता है कि धीरे-धीरे राजनैतिक दांव-पेंचों और परिणाम स्वरूप अन्ना जी की टीम को कुछ भूलों की ओर ले जाकर (जैसी कि कोशिशें जारी हैं) इस आन्दोलन को भौंथरा करने में सरकारी और राजनैतिक तन्त्र किसी हद तक कामयाब हो जाये, लेकिन यह तन्त्र यदि यह सोचता है कि इस आन्दोलन के बीज भी वह राजनीतिक चिड़ियाओं को चुगा देगा, तो यह उसकी भयंकर भूल है। निकट भविष्य में यदि चीजों को सुधारने के लिए सरकारी और राजनैतिक स्तर पर जरूरी कड़े फैसले और दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रादुर्भाव नहीं हुआ तो जनता के बीच से एक भयंकर विद्रोही आन्दोलन को रोकना शायद असम्भव हो जाये। ऐसे सम्भावित आन्दोलन के परिणाम क्या होंगे, कोई नहीं जानता!
- जरूरी है सभी पक्ष, और विशेष रूप से बौद्धिक वातावरण से जुड़े लोग चीजों को बेहद सकारात्मक और सन्तुलित दृष्टि से देखते हुए अपने प्रयासों का स्तर और उसकी इन्टेन्सिटी बढ़ाकर राजनैतिक ताकतों पर दबाव बनाएँ और उनका मार्गदर्शन भी करें। मात्र चुनाव और जनप्रतिनिधि व उनकी पंचायत ही लोकतन्त्र का संगठन नहीं है, यह तो लोकतन्त्र का एक हिस्सा मात्र होता है, सिर्फ और सिर्फ व्यवस्था का संचालन करने भर के लिए। एक ओर राजनीतिज्ञों की गलतफहमी दूर करके उन्हें यह अहसास कराने की भी जरूरत है कि बौद्धिक वातावरण और जनाकांक्षाओं को प्रतिबिम्बित करने वाला प्रत्येक अवयव लोकतन्त्र का हिस्सा होता है, दूसरी ओर लोकतन्त्र के इन तमाम अवयवों को भी अपनी जिम्मेवारी और सक्रियता की जरूरत का अहसास करना होगा।
- साहित्य से जुड़े सभी मित्रों और हमारे पाठक मित्र यदि इस बारे में चिन्तन और बहस का हिस्सा बनते हैं, तो हम स्वागत करेंगे। आप इस पन्ने/लेवल के टिप्पणी कालम में अपने विचार दर्ज करके अपनी सहभागिता सुनिश्चित कर सकते हैं। आप अपने विचार हमें लिखकर डाक से भी भेज सकते हैं। पर्याप्त संख्या में प्राप्त होने पर कुछ चुने हुए विचारों को अविराम के आगामी किसी मुद्रित अंक में भी शामिल करने का प्रयास किया जायेगा।
सूचना/क्षणिका पर अविराम की प्रकाशन योजना
क्षणिका पर अविराम की एक प्रकाशन योजना विचाराधीन है। इस योजना में शामिल होने के लिए क्षणिकाकार और क्षणिका पर चिन्तन-मनन से जुड़े सभी रचनाकारों से रचनाएँ आमन्त्रित हैं। क्षणिकाकार कम से कम पाँच और और अधिकतम पन्द्रह क्षणिकाएँ भेजें। क्षणिका पर आलेख अविराम के तीन पृष्ठों से अधिक न हों। रचनाएँ अविराम के सम्पादकीय पते (डा. उमेश महादोषी, एफ-488/2, गली संख्या 11, राजेन्द्र नगर, रुड़की-247667, जिला- हरिद्वार, उत्तराखण्ड) पर भेजें।
अविराम का मुद्रित अंक : सितम्बर 2011
अविराम का सितम्बर 2011 अंक उसके रचनाकारों एवं पाँच सौ से अधिक अन्य मित्रों को 25 सितम्बर 2011 से पूर्व भेज दिया जायेगा। अंक की प्रति दस अक्टूबर तक न मिलने की स्थिति में ही कृपया पुनः भेजने का आग्रह करें, क्योंकि पिछले अनुभवों के अनुसार कई बार डाक बिलम्ब से पहुँच रही है। कृपया पते में परिवर्तन होने पर हमें सूचित अवश्य कर दें।
अविराम के रचनाकार
ब्लाग के इस लेवल के अन्तर्गत अविराम में प्रकाशित सभी रचनाकारों का परिचय (फोटो व सम्पर्क सूत्र सहित) धीरे-धीरे प्रकाशित किया जा रहा है। हम प्रयास करेंगे कि हर सप्ताह पन्द्रह से बीस रचनाकारों का परिचय प्रकाशित करते हुए इस लेवल को भी शीघ्र अद्यतन कर दिया जाये। जिन रचनाकारों ने अपना परिचय/फोटो नहीं भेजा है, भेजने का कष्ट करें। यदि किसी रचनाकार को उसका परिचय प्रकाशित करने में किसी प्रकार की आपत्ति हो तो कृपया सूचित कर दें, हम हटा देंगे।
शुभ समाचार .....:))
जवाब देंहटाएंक्षणिका विशेषांक निकलने की अग्रिम बधाई ....
क्या रचनायें मेल कर सकते हैं .....?
भाई उमेश जी, यह आपने बहुत अच्छा किया, 'अविराम' को ब्लॉग पर लाकर। मैं यह नहीं कहता कि मुद्रित पत्रिका का महत्व नहीं हैं, बहुत महत्व होता है, मुद्रित सामग्री को पढ़ना एक अलग तरह का सुखद अहसास देता है, परन्तु, प्रश्न है कि मुद्रित साहित्य की पत्रिका,किताब आदि हम अधिक से अधिक पाठकों तक पहुंचाना चाहे कितनी पहुंचा पाएंगे। डाक व्यय इतना है कि हौसले पस्त हो जाते हैं और उस पर सरकारी और गैर-सरकारी(कुरिअर) की वितरण प्रणाली पर कोई पक्का भरोसा नहीं कर सकता। आधी से ज्यादा साहित्यिक पत्रिकाएं/किताबें पहुंच ही नहीं पातीं। इसलिए आज यदि कोई पत्रिका नेट से जुड़ती है तो वह अधिक सुलभ हो जाती है और उसका दायरा मात्र 500- 1000 पाठकों तक (वह भी एक ही देश में )सीमित नहीं रहता, बहुत ही व्यापक हो जाता है। हां, यह बात तो है कि अभी अधिकतर लोग नेट के अभ्यस्त नहीं हुए, और कुछ हुए भी हैं तो उन्हें नेट पर साहित्य को ज्यादा देर तक बैठकर पढ़ने में परेशानी होती है… लेकिन, आने वाले समय में धीरे धीरे स्थिति बदलेगी, ऐसा मेरा मानना है…
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