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गुरुवार, 26 जुलाई 2012

अविराम विस्तारित

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : 1,  अंक : 10,  जून  2012  



।।कविता अनवरत।।

सामग्री :   डॉ. श्याम सखा ‘श्याम’,  डॉ. रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’, जगन्नाथ ‘विश्व’, डॉ. मधुर नज्मी, राजेन्द्र बहादुर सिंह ‘राजन’, कृष्ण स्वरूप शर्मा ‘मैथिलेन्द्र’, डॉ. डी. एम. मिश्र, नरेश हमिलपुरकर, ज्ञानेन्द्र साज, ललित फरक्या ‘पार्थ’, नरेन्द श्रीवास्तव व  मुकेश मणिकांचन की काव्य रचनाएँ।




डॉ. श्याम सखा ‘श्याम’






ग़ज़ल


गर खुदा खुद से जुदाई दे
कोई क्यों अपना दिखाई दे


ख्वाब बेगाने न दे मौला
नींद तू बेशक पराई दे
रेखांकन : डॉ सुरेन्द्र वर्मा 


काश मिल जाये कोई अपना
रंजो-गम से जो रिहाई दे


जब न काम आई दुआ ही तो
कोई फिर क्योंकर दवाई दे


तू न हातिम या फरिश्ता है
कोई क्यों तुझको भलाई दे


डूबने को हो सफीना जब
क्यों किनारा तब दिखाई दे


आँख को बीनाई दे ऐसी
हर तरफ बस तू दिखाई दे


साथ मेरे तू अकेला हो
अपनी ही बस आशनाई दे



  • निदेशक, हरियाणा साहित्य अकादमी, पी-16, सेक्टर-14, पंचकूला-134113 (हरियाणा)





डॉ. रामसनेही लाल शर्मा ‘यायावर’






क्रोध नपुंसक


(26.11.2008के मुम्बई आतंकी हमले के सन्दर्भ में)


बन्दूकों से लड़ने निकला
क्रोध नपुंसक


अब चौके में 
आ पहुँची
टोलियां वृकों की
मानसरोवर में 
उतरी हुकार बकों की
फटा जाल
टूटी नौका 
घायल पतवारें
सागर का सन्तरण
और झंझायें ध्वंसक


अर्थहीन
रेखांकन : महावीर रंवाल्टा 
शब्दों की तोपें
लिए बिजूके
शब्दबेध चौहानी धनुके
चूके-चूके
शान्ति-कपोल
बन्द आंख से
करें प्रतीक्षा
रक्त पियें मार्जार
उधर
सतर्क प्रतिहिंसक


अन्तहीन सिलसिला
कहानी
लिए ‘तथा’ है
नरबलियों
मुर्दा जिस्मों की
यही कथा है
‘निसिचर हीन करहुं महि’
का प्रण
कहीं नहीं है
मांग रहा मंगलाचरण 
अब जीने का हक

  • 86, तिलक नगर, बाईपास रोड, फ़िरोज़ाबाद-283203 (उ.प्र.)



जगन्नाथ ‘विश्व’






साजन घर आए


अनुराग अनहदी लगन प्राण गीत गाए।
मन वीणा के झंकृत स्वर साजन घर आए।


स्वर कूल को अचानक
लहरें जवान छू गई,
मुक्त नेह की तरंग
अनछुई उड़ान छू गई,
सौंधी-सौंधी गंध उड़ी महकी सब दिशाएं।
मन वीणा के झंकृत स्वर साजन घर आए।


रेखांकन : नरेश उदास 
मृदु स्पर्शमयी किरणें
सूनापन चीर गई,
निर्धारित नीड़ छोड़
परदेसन पीर गई,
उर अभिलाषा नाच उठी, बिंदिया इतराए।
मन वीणा के झंकृत स्वर साजन घर आए।


स्मृति के सागर में
मछली ज्यूं तैर गई,
कंपन के पंख उड़े
शीतलता फैल गई,
चली दोपहरी संध्या संग लाँघती निशाएं।
मन वीणा के झंकृत स्वर साजन घर आए।



  • मनोबल, 25, एम.आई.जी., हनुमान नगर, नागदा जं.-456335 (म.प्र.)





डॉ. मधुर नज्मी






ग़ज़ल


काँच का देखकर हौसला-
वक्त कहता है पत्थर उठा


आँखों-आँखों में सजदा हुआ-
आस्ताने का दर बंद था


ग्वाल-बालों की सुनता नहीं
‘कान्हा’ है ‘गोपियों’ पर फिदा


जब बलन्दी क़रीब आ गयी-
पस्त होने लगा हौसला


रेखांकन : सिद्धेश्वर 
ये अलामत तबाही की है-
मेरा साया है क़द से बड़ा


शाइरी भी इबादत हुई-
मैं जुड़ा तो जुड़ा रह गया


आज के साथ कल देखिये-
मुड़ के माज़ी को क्या देखना


उसकी रहमत का साया हूँ मैं
ऐसा महसूस अक्सर किया



  • काव्यमुखी साहित्य-अकादमी, आदर्श नगर, गोहना मुहम्मदाबाद, जिला-मऊ-276403 (उ.प्र.)





राजेन्द्र बहादुर सिंह ‘राजन’






समय के हस्ताक्षर


फूक अपना घर स्वयं जो
वेदनाओं में जले हैं,
ताज पहने शूल का
नव वाटिका में जो पले हैं।
समय के हस्ताक्षर 
वे लोग हैं।


ज्ञान की तलवार पर चल
कार्य जो अभिनव किये हैं,
जान का जोखिम उठाकर
जिन्दगी हर पल जिए हैं।
समय के स्वर्णाक्षर
वे लोग हैं।


लीक से हटकर सदा जो
नव सृजित पथ्र से गये हैं,
भाव की अभिव्यक्ति के स्वर
काव्य में जिनके नये हैं।
समय के नव भास्कर
वे लोग हैं।

  • ग्राम-फत्तेपुर, पोस्ट-बेनीकामा, जिला-रायबरेली-229402 (उ.प्र.)



कृष्ण स्वरूप शर्मा ‘मैथिलेन्द्र’




दोहे


1. 
ऐसा मौसम आ गया, उपजे कई खजूर।
छाँव किसी को दें नहीं, बढ़ते गये हुजूर।।
2.
आये हैं किस देश से, जाना है किस देश।
बिना पते का पत्र में, अनजाना परिवेश।।
3.
अन्ना साबित कर दिये, जीवन कर्म प्रधान।
मंदिर से बाहर निकल, कर्मों की पहचान।।



  • गीतांजलि-भवन, म.आ.ब. 8, शिवाजीनगर, उपनिवेशिका, नर्मदापुरम्-461001 (म.प्र.)



डॉ. डी. एम. मिश्र




ग़ज़ल




दर्द  से  मुक्ति  कभी  तू  जरूर  पायेगा
सफ़र का क्या है साथ वक्त के कट जायेगा।


ज़िंदगी पाँव पर नहीं चलती देख लिया
पग बढ़े या न बढ़े पर मुकाम आयेगा।


कई हसीन ख़्वाब टूट गये अच्छा है
रेखांकन : डॉ सुरेन्द्र वर्मा 
अब न पलकों पे तू भारी वज़न उठायेगा।


कहीं शिकवे, कहीं मलाल, कहीं हैं फ़िकरे
मुफ्त में सिर्फ़ यही तीन चीज़ पायेगा।


न तो पाँवों को तू ठोकर से बचा पाया है
न तो दामन को तू धब्बों से बचा पायेगा।

  • 604, सिविल लाइन, निकट राणा प्रताप पी.जी. कालेज, सुल्तानपुर-228001 (उ.प्र.)







नरेश हमिलपुरकर




एकता अखण्डता रहे


नेता अधिकारी हर आदमी ईमानदार हो
भ्रष्टाचार अत्याचार मिटानेवाली सरकार हो


चैन-ओ-अमन, भाईचारे का हर सू नारा हो
सबके लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार हो


फिर वहीं गौरव, वही वैभव, वही रामराज हो
एकता अखण्डता रहे, प्यार की सदा बहार हो


दुनिया भर में भारत का जय-जयकार हो
सबको सम्मान-सुविधा और अधिकार हो


सपने सबके जुदा-जुदा, पर हैं तो सारे अपने
इच्छानुसार जीने का सबको अधिकार हो


सारे भेद मिटाकर एक करने, नेक करने
त्याग बलिदान देने बच्चा-बच्चा तैयार हो


सदाचार संस्कार सही सोच-विचार हो
स्वर्ग-सा सबका घर-परिवार, सारा संसार हो 



  • चिटगुप्पा-585412, बीदर (कर्नाटक)



ज्ञानेन्द्र साज






हवा के लिए


कुछ वफ़ा भी चले बेवफ़ा के लिए
बात कुछ तो उठे मुद्दआ के लिए


हाथ उठाके दिखावा है किसके लिए
सिर्फ दिल को टटोलो खुदा के लिए


क्या जरूरी है चेहरा ढँका जाए ही
सिर्फ नज़रें झुका दो हवा के लिए


रेखांकन : सिद्धेश्वर 
दिल में जज्बा भी हो प्यार का दोस्तो
ये जरूरी बहुत है वफ़ा के लिए


कब तलक बंद कमरों में जियेंगे हम
खिड़कियां खोल दो अब हवा के लिए


तुम किसी और के ख्वाब में खोए रहो
‘साज’ ऐसा न कहो खुदा के लिए

  • 17/212, जयगंज, अलीगढ़-202001 (उ.प्र.)



ललित फरक्या ‘पार्थ’




पूरक


घर के बाहर खड़े वृक्ष में
जब कोई कीलें ठोंकता है
तो मैं चुभन महसूस करता हूँ,
जब कोई उसे हिलाता है
तो मैं कम्पन महसूस करता हूँ,
जब कोई उससे रगड़ता है
तो मैं छिलन महसूस करता हूँ,
जब कोई उसे काटता है
तो मैं कटन महसूस करता हूँ,
जब कोई उसे जलाता है
तो मैं जलन महसूस करता हूँ
जब कोई उसे पूजता है
तो मैं अपनापन महसूस करता हूँ
क्योंकि मेरी आत्मा भी 
उसमें निवास करती है
हम एक-दूसरे के पूरक हैं।



  • ’श्रद्धाश्रय’, 14, गोविन्द नगर, दशपुर, मन्दसौर-458001 (म.प्र.)




नरेन्द श्रीवास्तव




आखर-आखर की


आओ बात करें कुछ घर की, 
कुछ बाहर की,
और जिन्दगी रहे गवाही,
आखर-आखर की।


यह जीवन तो दुख-सुख का-
बहता सा झरना है,
साँसों के झूले पर चढ़ना,
और उतरना है,
कौन पा सका आज तलक
थाह समन्दर की।


प्यासी हिरनी लगे जिन्दगी,
भाग रही पल-छिन,
और शिकारी सा यह पतझर,
ये गर्मी के दिन,
मैत्री होती है अटूट,
पानी और पाथर की।


कोई कमी नहीं है पर,
हर आँख बहुत रोयी,
हमने कुछ खोया है तो-
बस मानवता खोयी,
नित्य सवेरा करे भूमिका-
जैसे हाकर की।


अर्थ शब्द से बिछड़ न जायें,
छन्द हों लय से दूर,
पिंगल साधु-सन्त हो जायें,
रस न मिले भरपूर,
अनुभूतियाँ हमारी थाती,
भीतर-बाहर की।


कविता में ही तो जीवन के,
अगणित रूप दिखे हैं,
यह ऐसी चिट्ठी है जिस पर
सबके पते लिखे हैं
ग़म और खुशी ज़िन्दगी की,
कविता ने उजागर की।

  •  ब्लाक कॉलोनी, वार्ड -18, जाँजगीर, छत्तीसगढ़






मुकेश मणिकांचन


भाग्यविधाता


नल से पानी आता है
नल और जल का अटूट नाता है
कभी यह संबंध टूट जाता है 
तो बेचारा नल पब्लिक के हाथों
मार खाता है।
इससे क्या सिद्ध होता है ?
कि समाज में दो वर्ग हैं-
एक लेने वाला
एक देने वाला
या यूं कहें,
एक पिटने वाला
दूसरा पीटने वाला
अर्थात
यहां देने वाला मार खाता है, और
लेने वाला उसका भाग्यविधाता है। 



  • गली रामचरण, सिरसागंज, जिला फिरोजाबाद (उ.प्र.)


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