आपका परिचय

मंगलवार, 12 जुलाई 2011

अंक : 8/जून 2011
प्रधान सम्पादिका : मध्यमा गुप्ता/सम्पादक : डा. उमेश महादोषी /सम्पादन परामर्श : सुरेश सपन/मुद्रण सहयोगी : पवन कुमार

इस अंक के अतिथि सम्पादक : रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
इस अंक में शामिल रचना सामग्री और रचनाकारों का विवरण निम्न प्रकार है-
माइक पर : सम्पादक डा. उमेश महादोषी का वैचारिक स्तम्भ (पृष्ठ : आवरण 2)।
सम्पादकीय : हाइकु पर अतिथि-सम्पादक रामेश्वर काम्बोज हिमांशु का वक्तव्य (पृष्ठ : 3)।
हाइकु : डा. सुधा गुप्ता (पृष्ठ : 5), डा. भावना कुँअर, सुरेश यादव (पृष्ठ : 6), डा.हरदीप सन्धु, राधेश्याम (पृष्ठ : 7), रचना श्रीवास्तव, शिवशरण सिंह चौहान अंशुमाली (पृष्ठ : 8), डा. गोपाल बाबू शर्मा, के.एल. दिवान (पृष्ठ : 9), कमला निखुर्पा, अशोक जैन पोरवाल (पृष्ठ : 10), मंजु मिश्रा, डा. बाल कृष्ण पाण्डेय (पृष्ठ : 11), सुभाष नीरव, रमेश कुमार (पृष्ठ : 12), डा. जेन्नी शबनम, एन.एल.गोसाईं (पृष्ठ : 13), रेखा रोहतगी, प्रदीप गर्ग पराग (पृष्ठ : 14), डा. रमा द्विवेदी, प्रियंका गुप्ता (पृष्ठ : 15),पूर्णिमा वर्मन, ममता किरण (पृष्ठ : 16), डा. मिथिलेश दीक्षित, कृष्ण कुमार यादव (पृष्ठ : 17),डा. सतीश राज पुष्करणा, डा. अमिता कौंडल (पृष्ठ : 18),डा. रमाकान्त श्रीवास्तव, नीलू गुप्ता (पृष्ठ : 19), मुमताज-टी.एच.खान, रमेश चन्द्र श्रीवास्तव (पृष्ठ : 20), सुदर्शन रत्नाकर, चेतन दुबे ‘अनिल’ (पृष्ठ : 21), डा. उर्मिला अग्रवाल, गिरीश पंकज (पृष्ठ : 22), लक्ष्मीशंकर बाजपेयी, डॉ. सुरेन्द्र वर्मा, आलोकेश्वर चबडाल (पृष्ठ : 23), संकल्प शर्मा, पुष्पा रघु, गांगेय कमल (पृष्ठ : 24), प्रताप सिंह सोढ़ी, डॉ. पुरुषोत्तम दुबे, केशव शरण, दिलीप भाटिया (पृष्ठ : 25). राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी ‘बन्धु’, शशांक मिश्र भारती, राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’ (पृष्ठ : 26), रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, लाल बिहारी लाल (पृष्ठ : 27)।
हाइकु वर्कशाप : नागेश भोजने, मीरा ठाकुर व स्वरूप राय (पृष्ठ : 28)।
जनक छन्द : डा. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’ (पृष्ठ : 30), डा. ब्रह्मजीत गौतम, कुँ0 शिवभूषण सिंह गौतम ‘भूषण’ (पृष्ठ : 31), आचार्य भगवत दुबे, मृदुलमोहन अवधिया (पृष्ठ : 32), पं. गिरिमोहन ‘गुरु’, सनातन कुमार बाजपेयी ‘सनातन’ (पृष्ठ : 33), महावीर उत्तरांचली, अनामिका शाक्य (पृष्ठ : 34), मदन दुबे, चन्द्रसेन विराट, शिवशरण सिंह चौहान ‘अंशुमाली’ (पृष्ठ : 35), हरिश्चन्द्र शाक्य, चन्द्रकान्त दीक्षित (पृष्ठ : 36), चन्द्रभान भारद्वाज, प्रदीप गर्ग ‘पराग’, पं. ज्वालाव्रसाद शांडिल्य ‘दिव्य’ (पृष्ठ : 37)।
क्षणिका : पूर्णिमा वर्मन (पृष्ठ : 41), प्रशान्त उपाध्याय, जयभगवान गुप्त ‘राकेश’(पृष्ठ : 42), भगीरथ परिहार, मदन मोहन पाण्डे(पृष्ठ : 43), बलराम अग्रवाल, डॉ.भावना कुँअर (पृष्ठ : 44), सुरेश यादव, केशव शरण(पृष्ठ : 45), हरकीरत ‘हीर’, डा. अशोक भाटिया(पृष्ठ : 46), नारायण सिंह निर्दोष, माधव नागदा(पृष्ठ : 47), अनवर सुहैल, नरेश कुमार ‘उदास’, दया पाण्डे(पृष्ठ : 48), त्रिभुवन पाण्डे, शशांक मिश्र भारती, डॉ. पुरुषोत्तम दुबे, डॉ. शिव नन्दन कपूर (पृष्ठ : 49), डॉ. रवि शर्मा ‘मधुप’, के.एल.दिवान, लाल बिहारी लाल (पृष्ठ : 50), सिद्धेश्वर, शिवानन्द सिंह‘सहयोगी’(पृष्ठ : 51), मुकुट सक्सेना, सुमन शेखर, सूर्य नारायण गुप्त ‘सूर्य’(पृष्ठ : 52), सुधीर निगम, सम्राट सुधा(पृष्ठ : 53), प्रो0 हितेश व्यास, डा. वेद प्रकाश ‘अंकुर’(पृष्ठ : 54), हरनाम शर्मा, मंजु मिश्रा(पृष्ठ : 55), रचना श्रीवास्तव, डा. सुरेश सपन(पृष्ठ : 56), कृष्ण सुकुमार, कमला निखुर्पा (पृष्ठ : 57), रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, राजीव कुमार त्रिगर्ती (पृष्ठ : 58), डा. जेन्नी शबनम, जितेन्द्र जौहर, प्रताप सिंह सोढ़ी (पृष्ठ : 59)।
साभार : जनक छन्द पर कथा-संसार के जनक छन्द विशेषांक से 20 रचनाकार (पृष्ठ : 38), क्षणिका पर पांडुलिपि-एक से तीन रचनाकार (पृष्ठ : 60)।
पड़ताल : ‘हाइकु: कुछ विचार’/डा. हरदीप सन्धु (पृष्ठ : 29), जनक छन्द: स्वरूप और महत्व/डा. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’ (पृष्ठ : 40), क्षणिका का रचना-विधान/बलराम अग्रवाल (पृष्ठ : 61), क्षणिका की सामर्थ्य/डा. उमेश महादोषी (पृष्ठ : 64)।
चिट्ठियां : अविराम के गत अंक पर डा. कमल किशोर गोयनका, डा. सतीश दुबे, श्री जितेन्द्र जौहर एवं डा. सुरेन्द्र वर्मा के पत्रांश एवं अन्य पत्रों की प्राप्ति-सूचना (पृष्ठ : 67)।
गतिविधियाँ : संक्षिप्त साहित्यिक समाचार (पृष्ठ : 68)।
प्राप्ति स्वीकार : विगत त्रैमास में प्राप्त पुस्तकों की सूचना (आवरण पृष्ठ : 3)।

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9 टिप्‍पणियां:

  1. अविराम के जून 2011 अंक (हाइकु, जनक छन्द व क्षणिका विशेषांक) पर अगस्त 2011 के मध्य तक प्राप्त प्रतिक्रिया-पत्रों के सम्पादित अंश हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं।

    * सूर्यकान्त नागर,81, बैराठी कॉलोनी न.ं2, इन्दौर-14 (म.प्र.)

    .....जून अंक हाइकु, जनक छन्द और क्षणिकाओं पर केन्द्रित है। काव्य क्षेत्र में तुलनात्मक रूप से थोड़ी कम प्रचलित इन विधाओं के बारे में उपयोगी जानकारी मिली है, रचनाओं के माध्यम से भी। जनक छन्द के प्रणेता डॉ. ओम्प्रकाश भाटिया जी से उनके निवास पर मिलने और चर्चा करने का अवसर मिला है। जनक छन्द को स्थापित और लोकप्रिय बनाने के लिए वे जो कर रहे हैं, उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए, कम है।.....


    * डा. रमाकान्त श्रीवास्तव, एल 6/96, सेक्अर एल, अलीगंज, लखनऊ-226024 (उ.प्र.)

    .....इस अंक में प्रेरक एवं प्रभावी रचनाओं का चयन तो किया ही गया है, उनकी प्रस्तुति की परिकल्पना भी कम सराहनीय नहीं है। अनेक कलाकारों- परस दासोत, बी.मोहन नेगी, सिद्धेश्वर, सुरेन्द्र वर्मा, रितेश गुप्ता, सुरभि ऐरन, महावीर रवांल्टा, अभिशक्ति, चेतन, किशोर श्रीवास्तव, हिना आदि के रेखाचित्रों एवं चित्रों को रचनाओं के साथ देकर इस अंक को जो आकर्षक भव्यता प्रदान की गयी है, उससे यह अंक प्रदर्शनीय भी बन गया है, पठनीय तो है ही, संग्रहणीय भी बना रहेगा।
    आज का युग आपा-धापी का युग है। धनलिप्सा से ग्रस्तता का युग है, धन की मृगतृष्णा को पाने के लिए हाँफते हुए भागने का युग है। ऐसे सोचनीय युग में हाइकु, जनक और क्षणिकाओं के प्रचार-प्रसार की आवश्यकता है। ये सरफिरे (इस शब्द का उपयोग युग की शोचनीय स्थिति के लिए जिम्मेवार लोगों के लिए किया गया है) लोग इन्हें पढ़ने में शायद एक-दो क्षण व्यय कर सकेंगे। ....अविराम के इसी अंक से दुखद जानकारी मिली कि स्थापित लघुकथाकार कालीचरण प्रेमी नहीं रहे। अर्पित है दिवंगत आत्मा को हार्दिक श्रद्धांजलि।

    * डा. सुधेश, 314,सरल अपार्टमेट्स, द्वारका, सैक्टर-10, नई दिल्ली-110075

    ‘अविराम’ का यह अंक पठनीय है। हाइकु जापानी छन्द है, पर क्ष्णिका किसी छन्द का नाम नहीं है। कहने को तो हाइकु भी क्षणिका है। जनक छन्द एक कृत्रिम छन्द है, जिसे दिल्ली के .....कवि और उनके मित्रों ने प्रचारित किया है। नये कवियों को प्रकाश में लाने का काम आपने बखूबी किया है। बधाई। कालीचरण प्रेमी मेरे मित्र थे। उनके देहान्त से दुःख पहुंचा।....

    * डा. राजेन्द्र मिलन, मिलन मंजरी, आजाद नगर, खंदारी, आगरा-2

    .....पत्रिका का गेटअप, मेकअप और सामग्री स्तर देखकर अतिप्रशन्नता हुई। निश्चय ही ऐसी तथाकथित लघु पत्रिकाएं ही आज हिंदी साहित्य को गौरान्वित कर रही हैं। चकित हुआ कि अभी आप इसे निशुल्क (एक सीमा तक) रखकर एक महाअभियान का सूत्रपात कर रहे हैं।......

    * माधव नागदा, श्री गोवर्द्धन राज. उच्चमाध्यमिक विद्यालय, नाथद्वारा-313301 (राज.)

    .....आपका और रामेश्वरजी का परिश्रम देखकर अभिभूत हूँ। नन्हीं नन्हीं दिलकश काव्य रचनाएं, दुनिया भर के रचनाकार, शानदार प्रस्तुतीकरण और विद्वत्तापूर्ण आलेख। इतना सब कैसे जुटा लेते हैं आप! बधाई। आपको और रामेश्वर कम्बोज हिमांशु दोनों को, हृदय की अंतरतम गहराइयों से।

    * महेश अग्रवाल, 71, लक्ष्मीनगर, रायसेन रोड, भोपाल-462021 (म.प्र.)

    .....हाइकु, जनक छन्द एवं क्षणिकाओं पर केन्द्रित यह अंक गागर में सागर की उक्ति को चरितार्थ करता है। पड़ताल शीर्षक से डा. अराज का जनक छन्द: स्वरूप और महत्व, डॉ. हरदीप संधु का हाइकु: कुछ विचार तथा बलराम अग्रवाल का क्षणिका का रचना विधान सम्बन्धी आलेख, सम्बन्धित विधाओं से गहन परिचय एवं उनकी प्रशस्ति का परिचायक है। लेखक त्रय को मेरी ओर से बधाई।......

    * गोवर्धन यादव, 103, कावेरी नगर, छिन्दवाड़ा-48

    .....आपने तथा हिमांशु जी ने कड़ी मेहनत पश्चात एक अनूठे संग्रह का प्रकाश्न किया है, जिसमें हाइकु, जनक छन्द तथा क्षणिकाओं का संकलन किया गया है। इससे बड़ी बात यह है कि आपने उनके नियमों को भी प्रकाशित किया है। यह अंक अनेक-2 सहित्यकारों का मार्गदर्शन करेगा।.....

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  2. कुछ और प्रतिक्रियांश



    * डा. केवल कृष्ण पाठक, सं. ‘रवीन्द्र ज्याति’, 874/8, आनन्द निवास, गीता कालौनी, जीन्द-(हरि.)

    .....अंक में सचित्र रचनाकारों की सुन्दर रचनाओं और जनक छन्द, क्षणिका और हाइकु पर लेख पढ़कर आनन्दित हुआ हूं। अराज के जनक छन्द एक नई विधा वास्तव में आकर्षक और प्रभावशाली हैं। 72 पृष्ठों में इतनी सुन्दर रचनाओं का चयन और आकर्षक रेखाचित्रों का समन्वय आपकी उत्कृष्ट सम्पादन कला को दर्शाता है.......

    * दिनेश चन्द्र दुबे, 68, विनयनगर-1, ग्वालियर-12 (म.प्र.)

    .....हैरत हुयी कि इतनी लघुपत्रिका में लेखक के पते, परिचय के साथ सबकुछ कैसे जोड़ लेते हो! पर भाई मेरे पत्रिका को दो पृष्ठों की चौड़ाई में क्यों नहीं कर देते? मेरे व्यक्तिगत मत से हाइकु, जनक छन्द जैसे रचनाक्रम ही शायद मूलतः जो कविता होती है, उसकी लोकप्रियता, आनन्ददायिता कम कर रहे हैं। कौन कहता है कि यदि हर शब्द कविता हो तो बड़ी रचनायें नहीं पढ़ी जाती। कालीचरण प्रेमी की मृत्यु कष्ट दे गई।

    * शशिभूषण बड़ोनी, आदर्श विहार, ग्रा. व पो.- शमशेरगढ़, देहरादून (उ.खण्ड)

    ......मेरी अभी तक हाइकु व क्षणिका में उतनी गंभीर रूचि नहीं रही किन्तु इस अंक को पूरा-पूरा पढ़कर मुझे इन विधाओं को (जिसमें आपके व बलराम अग्रवाल के आलोचनात्मक आलेखों ने विशेष सहायता की) सही ढंग से समझने मे का अवसर मिला। पूरा अंक रोचक बन पड़ा है। इस अंक को आकर्षक बनाने में बी. मोहन नेगी, सिद्वेश्वा, सुरेन्द्र वर्मा, अभिशक्ति, रितेश गुप्ता, किशोर श्रीवास्तव, चेतन, महावीर रवांल्टा, हिना के रेखांकनों व छाया चित्रों का विशेष योगदान है। सभी को साधुवाद। हाँ पारस दासोत का रेखांकन(मुख पृष्ठ) भी बहुत सुन्दर है। रचनाओं में बलराम अग्रवाल, हिमांशु, लक्ष्मीशंकर बाजपेयी, सतीशराज पुष्करणा, कृष्णकुमार यादव, सुभाष नीरव, कमला निखुर्पा, के.एल. दिवान, कृष्ण सुकुमार, अनवर सुहैल, नरेश कुमार उदास तथा केशव तिवारी जी की ‘सिद्ध कवि’ नाम से तीन क्षणिकाएँ बहुत बार पढ़ी।.....

    * सुधीर निगम, 104 ए/315, रामबाग,कानपुर-208012 (उ.प्र.)

    अभी तक मैं लघु पत्रिकाओं को हल्के में लेता था, परन्तु अविराम ने यह भ्रान्त धारणा बदल दी है। पूरा अंक पढ़ लिया है और कई पक्ष उजागर हुए हैं- पत्रिका की गागर में आपने ऐसा सागर भर दिया है, जिसका मधुर है; जनक छन्द से परिचय कराया है। सर्वोपरि पत्रिका निशुल्क और विज्ञापनरहित स्ववित्तपोषी है।....

    * आर.पी.शर्मा महर्षि, 402,11/ए,श्री रामनिवास टट्टा निवासीब्भ्ैए पेस्टम सागर रोड नं.3, महुल-घाटकोपर रोड,चेम्बूर,मुम्बई-89

    .....सभी नन्ही-मुन्नी विधाओं के अन्तर्गत प्रभावी रचनाएं पसन्द आईं। हार्दिक अभिनन्दन स्वीकारें।

    * राधेश्याम, 184/2, शील कुंज, आई.आई.टी. कैम्पस, रुड़की, जिला- हरिद्वार (उ.खण्ड)

    ......अविराम पहली बार पढ़ने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। चित्त प्रसन्न हुआ। पत्रिका रुड़की का गौरव है।...अनेक कवियों की रचनाएं पढ़ने को मिली, एक सुखद अनुभव है।....

    * सत्येन्द्र तिवारी, 20/71, गुप्ता बिल्डिंग, रामनारायण बाजार, कानपुर-208001 (उ.प्र.)

    ......हाइकु, जनक छन्द व क्षणिका पर केन्द्रित अंक निश्चय ही सुन्दर लगा। मुख पृष्ठ पर पारस दासोत का रेखाचित्र नव संदेश देता हुआ आकर्षक है।.....

    * किशोर अग्रवाल, निकट मेरठ बस स्टैण्ड, बुलन्दशहर-203001 (उ.प्र.)

    .....आप अविराम के माध्यम से साहित्य के क्षेत्र में सराहनीय कार्य कर रहे हैं। सफलता और प्रगति के लिए शुभकामनायें स्वीकार करने की कृपा करें।.....

    * डा. रामशंकर चंचल, मां, 145, गोपाल कालौनी, झाबुआ (म.प्र.)

    .....बहुत मन, निष्ठा, समर्पण से निकाला है अंक। गागर में सागर कोई आपसे सीखे। वह भी इतना साफ-सुथरा व स्तरीय।

    * चन्द्रसेन विराट, 121, वैकुण्ठधाम कॉलोनी, आनन्द बाजार के पीछे, इन्दौर-452018 (म.प्र.)

    .....हाइकु/जनक छन्द/क्षणिका पर केन्द्रित यह अंक वास्तव में पठनीय और संग्रहणीय बन पड़ा है। ‘माइक पर’ में आपने जनक छन्द के पगणेता आदरणीय अराज जी पर खूब अच्छा लिखा है। वे असाधारण प्रतिभा वाले साधारण मनुष्य एवं बड़े भाषा विज्ञानी हैं। हाइकु पर हिमांशु जी ने पर्याप्त प्रकाश डाला है। अंक में रचनाएँ उसकी पुष्टि करती हैं। क्षणिका पर आलेख हैं जो उसकी अर्हताओं की बात करते हैं।

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  3. कुछ और प्रतिक्रियांश


    * मोहम्मद मुमताज़ हसन, रिकाबगंज, टिकारी, गया-824236 (बिहार)


    .....सम्पादकीय काबिले गौर है। इस अंक में सम्मिलित विदेश में बसे भारतीयों की हिन्दी रचनाएं देखकर यही लगा कि अपने वतन से दूर होने के बावजूद उनमें देश की मिट्टी से प्यार बरकरार है। हिन्दी के प्रति उनमें निष्ठा है। क्या ही अच्छा होता यदि आप उनके सम्पर्क के साथ उनका मोबाइल नम्बर भी देते। खैर.. कुल मिलाकर यह अंक आकर्षक और उल्लेखनीय है।....

    * राजीव नामदेव ‘राना लिधौरी’, सं. आकांक्षा, नई चर्च के पीछे, शिवनगर कालोनी, टीकमगढ-472001 (म.प्र.)

    .....हाइकु, जनक छन्द एवं क्षणिका की त्रिवेणी से सजा हुआ यह अंक संग्रहणीय है। आलेख तथा रचनाएँ बढ़िया हैं। रचनाओं का चयन एवं अविराम में प्रस्तुतीकरण बहुत ही आकर्षक है। संपादन में काफी श्रम किया गया है। पत्रिका निश्चित ही अपनी बिशेष छाप छोड़ती है।....चित्र एवं रेखाचित्र पत्रिका की खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं।......

    * कुं. शिवभूषण सिंह गौतम‘भूषण’, अन्तर्वेद, कमला कालोनी, छतरपुर-471001 (म.प्र.)

    .....इस लघु पत्रिका में तीन-तीन विधाओं को पर्याप्त स्थान प्रदान करे के साथ-साथ प्रत्येक विधा पर पड़ताल के अन्तर्गत उस विधा को व्याख्यायित करता आलेख अत्यन्त उपयोगी है। हाइकु, जनक छन्द तथा क्षणिकाओं को जिस सुरुचिपूर्ण ढंग से समायोजित किया गया है, वह आपकी सम्पादकीय कुशलता का परिचायक है। हाइकु में तुकान्त का नया प्रयोग मनभावन है। पत्रिका का विस्तार देश की सीमाओं के परे भी है तथा भारत के बाहर रहने वालों की हिन्दी व साहित्य के प्रति लगाव देखकर संतोष का अनुभव हुआ अन्यथा भारतीय व्यवस्था तो अत्यन्त चिंतनीय है। आपने अविराम के माध्यम से युवापीढ़ी को साहित्य के प्रति आकर्षित तो किया ही है, उन्हें पर्याप्त प्रोत्साहन भी दे रहे हैं।......

    * डा. पूरन सिंह, 240,बाबा फरीदपुरी, वेस्ट पटेलनगर, नई दिल्ली-6

    .....हाइकु/जनक छन्द/क्षणिका पर केन्द्रित अंक अच्छा लगा।...इस विधा के बारे में अभी तक अनभिज्ञ हूँ। हां इस अंक को पढ़कर खुशी हो रही है, कुछ नया पढ़ रहा हूँ और सीख भी रहा हूँ।....

    * विवेक सत्यांशु, 14/12, शिवनगर कालोनी, अल्लापुर, इलाहाबाद-211007(उ.प्र.)

    .....बहुत कम समय में अविराम ने समकालीन परिदृश्य में अपना विशिष्ट स्थान बना लिया है।.....

    * सनातन कुमार बाजपेयी, पुराना कछपुरा स्कूल,गढ़ा, जबलपुर-482003 (म.प्र.)

    .....हाइकु, जनक छन्द एवं क्षणिका पर केन्द्रित यह अंक सुन्दर बन पड़ा। कलेवर सुन्दर, छपाई सुन्दर, पेपर सुन्दर, समग्री सुन्दर। सभी कुछ तो सुन्दर है। सम्पादकीय में हाइकु के रचना विधान पर विस्त्रत चर्चा अच्छी लगी। अनेक रचनाकारों के श्रेष्ठ हाइकु/जनक छन्द सभी अच्छे हैं। क्षणिकायें भी अच्छी हैं। मेरे विचार से इस अंक में जिन छन्दो को स्थान दिया गया है, उन सबका चयन श्रेष्ठ है।.......

    * महावीर रवांल्टा, संभावना, महरगाँव, पत्रा.-मोल्टाड़ी, पुरोला, उत्तरकाशी-249185 (उ.खण्ड)

    .....जून 2011 अंक में कालीचरण ‘प्रेमी’ के बारे में पढ़ा, उनके निधन पर गहरा दुःख हुआ। उनसे फोन पर बातचीत भी हुई थी। ‘अंधा मोड़’ लघुकथा संग्रह के लिए उन्होंने बड़ी आत्मीयता से सामग्री मांगी थी। वह उल्लेखनीय बना है। उनका श्रम स्तुत्य रहा। उनके निधन से काफी विचलित हुआ हूँ। उन्हें मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।


    * रमेश कुमार सोनी, जे.पी.रोड, बसना-493554 (म.प्र.)

    .....हाइकुकार हूँ, हाइकु केन्द्रित किसी पत्रिका का ऐसा आकर्षक अंक बहुत कम पढ़ा हूँ, हाइकु पर आपका कार्य प्रशंसा से ऊपर का है। स्थापित हाइकुकार, विदेशी एवं उभरते हाइकुकारों को एक साथ समेटकर पहचान देना अच्छा रहा। वाकई यह अंक अन्य अंक की तरह ही- हाइकु, जनक छन्द एवं क्षणिकाओं का समग्र संकलन है। हाइकु में लोगों के अपने विचार एवं संवेदनाएं हैं, जिन्हे उन्होंने व्यक्त किया है, पढ़कर आनन्द आता है। आपने साहित्यिक समाचारों में आने वाली साहित्य जगत की गतिविधियों को जगह दी, मुझे अच्छा लगा, क्योंकि हलचल बीत जाने के बाद कई बार ऐसा लगता है कि इसमें तो मैं भी शामिल हो सकता था। हाइकु अब इन्टरनेट पर अपना कब्जा जमाने की होड़ में है परन्तु दूरस्थ अंचलों तक इन्टरनेट को पहुँचने में वक्त लगेगा। यहाँ तक तो कभी-कभी कोई ‘अविराम’ ही आ पाता है।....

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  4. कुछ और प्रतिक्रियांश

    * डा. हरिसिंह पाल, 684, इन्द्रा पार्क, नई दिल्ली-45

    .....इस अंक के अतिथि सम्पादक श्री रामेश्वर काम्बोज हिमांशु ने बड़ ही परिश्रम से इस अंक के लिए उत्कृष्ट सामग्री का चयन किया है। रचना के साथ रचनाकारों का सचित्र परिचय देना भी बिशेष उल्लेखनीय कार्य है। अन्यथा पत्रिकाएं ता सिर्फ रचनाकार का नाम देकर ही इतिश्री कर लेती हैं। पूरा पता देना भी उन्हें अखरता है। ऐसे में ‘अविराम’ में रचनाकार का सचित्र परिचय निश्चय ही रचनाकार को सुखद लगेगा। वरना रचनाकार को मिलता ही क्या है! विशेषांक में पूरे देश के प्रतिष्ठित रचनाकारों के साथ-साथ संघर्षशील और नवोदित रचनाकारों को भी समान रूप से सम्मानजनक स्थान दिया गया है। वास्तव में ‘अविराम’ जैसी पत्रिका ही रचनाकारों को साहित्याकाश में स्थापित कर रही है। नई पीढ़ी के रचनाकारों को भी सम्बल मिल जाता है, जिससे साहित्य रूपी सुरसरि अनवरत प्रवाहमान बनी रहती है। भले ही ‘अविराम’ का आवरण पृष्ठ उतना चित्ताकर्षक न हो लेकिन उत्कृष्ट पठनीय एवं मननीय सामग्री से परिपूर्ण यह पत्रिका गुणवत्ता में बहुत आगे है।.....

    * गणेश भारद्वाज ‘गनी’, भारद्वाज हाउस, भुट्टी कालोनी,शम्शी, कुल्लू (हि.प्र.)

    .....इतना महत्वपूर्ण अंक मुझे निःशुल्क मिला, जिसका मूल्य पैसों में नहीं चुकाया जा सकता। सच कहूँ तो कई बार दो-तीन पंक्तियों की कविता बनती थी, तो मैं सम्हालता नहीं था, बल्कि वैसे ही गुम हो जाती थी। मुझे हाइकु तथा जनक छन्द का ज्ञान नहीं था। हाइकु के बारे में थोड़ा-बहुत इन दिनों में ही किसी पत्रिका में पढ़ा तो था मगर गहराई से नहीं। अविराम ने सचमुच मेरा ज्ञान बढ़ाते हुए मुझे भी इस क्षेत्र में लिखने की प्रेरणा दी। यह अंक संग्रहणीय व कवियों के लिए वेशकीमती है। मुझे डॉ. अशोक भाटिया, अनवर सुहैल, डॉ. वेद प्रकाश अंकुर, मंजू मिश्रा, डॉ. सुरेश सपन, रामेश्वर काम्बोज हिमांशु, बलराम अग्रवाल, प्रशान्त उपाध्याय, की रचनाएं बहुत पसन्द आईं। पड़ताल में डॉ. हरदीप संधू ने हाइकु पर ज्ञानवर्द्धक जानकारी दी, धन्यवाद। अन्य रचनाकार भी महत्वपूर्ण हैं। बार-बार पढ़ने के बाद मुझे यकीन है कि और अधिक मजा आयेगा।....

    * शिवशरण सिंह चौहान ‘अंशुमाली’,शान्ती कुंज, 253,भारतीय स्टेट बैंक के पीछे, आवास विकास, फतेहपुर (उ.प्र.)

    .....हाइकु, जनक छन्द तथा क्षणिका का एक-एक शब्द एक एक कविता का रूपान्तरण है; यदि उस शब्द की व्याख्या की जाए तो उसके भीतर एक कवि की कविता समाहित है। एक दोहा के समान ही हाइकु, क्षणिका तथा जनक छन्द विस्तृत कविता की परिभाषा, विश्लेषण एवं गहनता को उद्भाषित करते हैं। इस विधा में अभिव्यक्ति और अर्थ की व्यापकता इतनी सघन होती है कि लघु कलेवर के होते हुए भी पाठक शेष कथ्य को स्वयं पूर्ण कर लेता है। इस अविराम की लघुता में मुझे एक जल बिन्दु की व्यापकता का आभास होता है, जो धारा बनकर समुद्र के उद्भव का कारण बनता है, लेकिन उसके सृजन के कारण तो वे कलम के सिपाही हैं, जिन्होंने अविराम के कलेवर में ... समिधा के रूप में अपनी-अपनी आहुतियां प्रस्तुत की हैं। मैं सभी को द्वय सम्पादक की ओर से धन्यवाद प्रेषित करता हूँ।.....

    * संतोष सुपेकर, 31, सुदामा नगर, उज्जैन-456001 (म.प्र.)

    .....अविराम का यह अंक हिन्दी साहित्य में मील का पत्थर सिद्ध होगा। हाइकु, जनक छन्द और क्षणिका जैसी विधाओं पर इतनी शोधपरक, संग्रहणीय, सराहनीय जानकारी शायद ही कहीं और हो।... कालीचरण प्रेमी जी पर आपका मार्मिक लेख आँखें नम कर गया। उनकी रचना ‘नहले पे दहला’ साहित्य को धन कमाने का जरिया बनाने वालों की पोल खोलती है।...

    * आचार्य राधेश्याम सेमवाल, एम.-57, शिवलोक कालोनी, फेज-3, हरिद्वार (उ.खण्ड)

    .....अविराम त्रैमासिक पढ़ने को मिली, कवि एकत्रित मिले। आपका यह प्रयास प्रशंसा के शिखर का है। मेरा आग्रह हैं कि कवियों का मो.नं. अवश्य दें, जिससे उन्हें सराहा जा सके।.....

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  5. कुछ और प्रतिक्रियांश

    * आचार्य भगवत दुबे, 2672, ‘विमल स्मृति’, पिसनहारी मढ़िया के पास, जबलपुर-482003 (म.प्र.)

    .....इसमें अधिकांश जाने-माने तथा कुछ नये चेहरे हैं। सभी की रचनाएं अच्छी लगीं। हिमांशु जी ने इस अंक को सजाने-संवारने में सार्थक श्रम किया है। यह अंक शोधार्थियों के लिए भी उपयोगी रहेगा। केवल हाइकु या जनक छन्द पर ही केन्द्रित रखते तो अच्छा होता।...

    * अशोक जैन ‘पोरवाल’, ई-8/298,आश्रय अपार्टमेन्ट, त्रिलोचनसिंह नगर, त्रिलंगा, शाहपुर,भोपाल-462039 (म.प्र.)

    .....इस अंक की साज-सज्जा/पेज-सेटिंग एवं प्रस्तुति का कायल हूँ। मुझे इतना प्रभावित किया कि मैं निम्न सभी कलाकारों को धन्यवाद दिये बिना नहीं रह सकता- रेखांकन सहयोग के लिए- सर्व-श्री पारस दासोत/बी. मोहन नेगी/सिद्धेश्वर/सुरेन्द्र वर्मा आदि। दृश्य सहयोग के लिए- सर्व-श्री उमेश महादोषी/अभिशक्ति/रितेश गुप्ता/सुरभि ऐरन/महावीर रवांल्टा/चेतन आदि। चित्रांकन के लिए- किशोर श्रीवास्तव/हिना।....

    * मुखराम माकड़ ‘माहिर’, विश्वकर्मा विद्या निकेतन, रावतसर, जिला- हनुमानगढ़ (राज.)

    .....हाइकु, जनक छन्द, क्षणिका पर केन्द्रित यह अंक बहुत भाया। सभी आलेख ज्ञानबर्धक, विचारोत्तेजक, विश्लेषणात्मक एवं सारगर्भित हैं। सम्पादन एवं मुद्रण विशुद्ध एवं उत्तम कोटि के हैं। सभी रचनायें सुन्दर एवं स्तरीय हैं।....

    * गांगेय कमल, शिवपुरी, जगजीतपुर, कनखल-249408, जिला- हरिद्वार (उत्तराखण्ड)

    .....उत्तम कलेवर, प्रतिष्ठित साहित्यकारों की रचना से पत्रिका संकलन योग्य है। आपका प्रयास स्तुत्य है।......

    * मृदुलमोहन अवधिया, हितकारिणी महाविद्यालय के निकट, देवताल, गढ़ा, जबलपुर-482002(म.प्र.)

    .....अविराम जून अंक मिला। अच्छा है पसन्द आया। ‘अविराम’ को अविराम निकालते रहने में साहित्य का हित-संवर्धन एवं मानवीय कल्याण की बात भी बन सकती है।.....

    * सूर्य नारायण गुप्त ‘सूर्य’, ग्रा. व पो.- पथरहट (गौरीबाजार), जिला- देवरिया (उ.प्र.)

    .....साहित्य जगत में अपनी एक अलग पहचान व मुकाम बना रही यह अनूठी व संग्रहणीय पत्रिका मन को भा गयी। ....सारगर्भित साचयुक्त, तथ्यपरक व लीक से हटकर बेजोड़ पत्रिका है।

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  6. ' हाइकु भी क्षणिका है' -जैसे कथन भ्रामक हैं । काव्य पहले काव्य है -दोहा , चौपाई , आदि बाद में है । खराब लेखन करने वाले हर विधा में हैं । रचनाकार अपनी रचना से बड़ा या छोटा बनता है, नाम से नहीं या किसी विधा विशेष में( जिसमें उसकी पैठ नहीं है) हाइकु विशेषांक को जो आप सबका प्यार मिला ,उसके मुख्य सूत्रधार भाई उमेश महादोषी जी और इस अंक के रचनाकार हैं ।

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  7. नि:संदेह, "अविराम" का यह अंक एक संग्रहणीय और दस्तावेजी अंक बन गया है। इसके पीछे आपकी मेहनत और लगन स्पष्ट दिखलाई देती है। रामेश्वर काम्बोज़ हिमांशु जी ने 'हाइकु' के चयन में बहुत सर्तकता बरती है और उन्होंने अपनी ओर से पूरा प्रयास किया है कि एक भी हाइकु कमजोर न जाने पाए। वह इसमे सफल भी हुए हैं। जब तक अच्छी और श्रेष्ठ रचनाएं पाठकों और नये लेखकों/कवियों के सामने नहीं आएँगी, तब तक नये रचनाकारों से अच्छे और उत्तम सृजन की हम कैसे आस कर सकते हैं। 'अविराम' ने यह कार्य किया, इसके लिए वह बधाई का पात्र है और बधाई के पात्र हैं वे सभी लोग जिन्होंने इस महती कार्य को अंजाम दिया…

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  8. जून 2011 अंक पर कुछ और मित्रों की देर से आयीं प्रतिक्रियायें-

    मोहन सिंह रावत, वर्ड्स आई व्यू, इम्पायर होटल परिसर, तल्लीताल, नैनीताल-263002 (उ.खण्ड)

    ...जानकर प्रशन्नता हुई कि आप उत्तराखण्ड से अनूठी साहित्यिक पत्रिका का सम्पादन कर रहे हैं। हाइकु, जनक छन्द, क्षणिका पर केन्द्रित अंक में आपने हाशिये पर रही विधाओं पर सारगर्भित और साहित्यिक दृष्टि से मूल्यवान सामग्री प्रकाशित की है। कम शब्दों में अधिक कह जाना इन विधाओं की सामर्थ्य है। उम्मीद है कि आपके प्रयास से रचनाकार, पाठकों, साहित्य मर्मज्ञों का ध्यान इन विधाओं की ओर जायेगा और यह हिन्दी साहित्य की मुख्यधारा में अपना विशिष्ट स्थान बना पायेंगी। साधुवाद।.....

    मदन दुबे, 49/280, जसूजा सिटी, भेड़ाघाट रोड, धनवन्तरिनगर, जबलपुर-482002(म.प्र.)

    ...विविध विधाओं की रचनाओं के समावेश से पत्रिका फुलवारी की तरह सजी-संवरी है। ‘लघुता में प्रभुता बसै’ कहा जाये तो अतिश्याक्ति न होगी। लघु रचनाओं में भाव पक्ष को प्रबल बनाकर सजीवता लाने की कला परिलक्षित होती है।....

    शशंक मिश्र भारती, दुबौला-रामेश्वर-262529, पिथौरागढ़ (उ.खण्ड)

    ...अविराम त्रैमासिक संकलन यथासमय मिला। अतिथि सम्पादक द्वय ने अपने कर्तव्य का बड़ी निष्ठा व विश्वास से कर संकलन को पठनीय के साथ प्रेरणादायक भी बना दिया है। सुन्दर संयोजन हेतु संपादकीय परिवार व रचनाकार बधाई के पात्र हैं।...

    डॉ. रश्मि शील, 3/1, टिकैत राय तालाब कालौनी, तालकटोरा रोड. लखनऊ-226017 (उ.प्र.)

    ....पत्रिका अपने लघु कलेवर में होने पर भी साहित्यिक दृष्टि से पूर्ण प्रतिनिधित्व करने में सक्षम है। अविराम पत्रिका अपने नाम के अनुरूप निरन्तर याहित्य साधना में तत्पर रहे। ऐसी मेरी कामना है। पत्रिका के माध्यम से नवीनतम गतिविधियों की जानकारी मिली। पत्रिका में संकलित रचनाएँ समसामयिक एवं स्तरीय हैं।....

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  9. अंक 8, सितम्बर 2011 पर देर से प्राप्त पत्र

    डॉ. गंगाप्रसाद बरसैंया,12-एमआईजी, चौबे कॉलोनी, छतरपुर (म.प्र.)
    .....आपके द्वारा प्रेषित ‘अविराम’ त्रैमासिक का जून 2011 अंक मुझे 5.11 को मिला क्योंकि मैं लम्बे प्रवास पर था। आने पर डाक देखी। ‘हाइकु, जनक छन्द और क्षणिका’ पर केन्द्रित यह अंक जहां रचनाकारों की समझ-बूझ और काव्य-कौशल का परिचय कराता है, वहीं शब्द-शक्ति का भी बोध देता है। कम से कम शब्दों में गंभीर और सटीक बात किस प्रकार कही जाय, इसका यह उदाहरण है। इतने सारे कवि इस दिशा में सक्रिय हैं, इसकी एक झलक भी इस अंक के सचित्र संकलन में मिलती है। कभी लघुता की दृष्टि से दोहा-सोरठा की ही प्रायः चर्चा होती है। पुराने कवियों-विद्वानों ने इसके निर्वाह को बहुत महत्वपूर्ण माना था। एक जमाने में दोहा बहुत प्रचलित था। अब फिर लौट रहा है। बहरहाल इस नई विधा केा प्रात्साहित करने का आपका प्रयास सराहनीय है। मुझे यह अंक बहुत अच्छा लगा।....

    डॉ. रश्मि शील, 3/1, टिकैतराय तालाब कॉलोनी, ताल कटोरा, लखनऊ-226017 (म.प्र.)
    .....अविराम पत्रिका का हाइकु, जनक छन्द, क्षणिका पर केन्द्रित जून 2011 अंक प्राप्त हुआ। पत्रिका अपने लघु कलेवर में होने पर भी साहित्यिक दृष्टि से पूर्ण प्रतिनिधित्व करने में सक्षम है। अविराम पत्रिका अपने नाम के अनुरूप निरन्तर साहित्य साधना में तत्पर रहे, ऐसी मेरी कामना है। पत्रिका के माध्यम से नवीनतम गतिविधियों की जानकारी मिली। पत्रिका में संकलित रचनाएं समसामयिक एवं स्तरीय हैं।....

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