आपका परिचय

मंगलवार, 12 जुलाई 2011

अंक : 7/मार्च 2011
प्रधान सम्पादिका : मध्यमा गुप्ता/सम्पादक : डा. उमेश महादोषी /सम्पादन परामर्श : सुरेश सपन/मुद्रण सहयोगी : पवन कुमार
इस अंक में शामिल रचना सामग्री और रचनाकारों का विवरण निम्न प्रकार है-
  • प्रस्तुति : प्रधान सम्पादिका श्रीमती मध्यमा गुप्ता का अविराम के बारे में स्तम्भ (पृष्ठ : आवरण 2)।
लघुकथा के स्तम्भ : संतोष सुपेकर (पृष्ठ : 03) एवं उनकी लघुकथाएं।
  • अनवरत : नारायण सिंह निर्दोष (पृष्ठ : 6), विज्ञान व्रत (पृष्ठ : 7), शैलेन्द्र सरस्वती (पृष्ठ : 8), जनार्दन मिश्र (पृष्ठ : 9), तेज राम शर्मा (पृष्ठ : 11), जेन्नी शबनम (पृष्ठ : 12), मुस्तफा खान (पृष्ठ : 13), प्रमोद कुमार (पृष्ठ : 14), डॉ0 ए. कीर्तिबर्द्धन (पृष्ठ : 15) एवं डॉ0 महेन्द्र प्रताप पाण्डेय ‘नन्द’ (पृष्ठ : 15) की कवितायें।
  • कथा-कहानी : नरेश कुमार उदास की कहानी ‘पारुल लौट आया’ (पृष्ठ : 16)
  • कविता के हस्ताक्षर : शशि भूषण बड़ौनी (पृष्ठ : 23) एवं प्रशान्त उपाध्याय (पृष्ठ : 25)
  • पड़ताल : समकालीन लघुकथा और बुजुर्गों की दुनियां : बलराम अग्रवाल (पृष्ठ : 27)
  • सन्दर्भ : डॉ0 तारिक असलम तस्नीम की आतंक केन्द्रित कवितायें (पृष्ठ : 34)
  • व्यंग्य-वाण : बृजमोहन श्रीवास्तव का व्यंग्य लेख (पृष्ठ : 27)
  • कथा प्रवाह : माधव नागदा (पृष्ठ : 37), डॉ0 राम शंकर चंचल (पृष्ठ : 38), आशीष कुमार (पृष्ठ : 39), मोहन लोधिया (पृष्ठ : 40), उमेश मोहन धवन (पृष्ठ : 41), एवं सुनील कुमार चौहान (पृष्ठ : 42) की लघुकथाएं
  • कवि सम्मेलन : अली हसन मकरैंडिया (पृष्ठ : 43), शकुन्तला यादव (पृष्ठ : 44), सूर्य नारायण गुप्त ‘सूर्य’ (पृष्ठ : 44), मोहन द्विवेदी (पृष्ठ : 45) एवं प्रदीप गर्ग ‘पराग’ (पृष्ठ : 45) की कवितायें।
  • आकलन : अविराम के गत अंक पर सर्वश्री निशान्त, डा. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’, दिनेश चन्द्र रस्तोगी, संतोश सुपेकर एवं डा. विजय प्रकाश के पत्रांश एवं अन्य पत्रों की प्राप्ति-सूचना (पृष्ठ : 46)।
  • गतिविधियाँ : संक्षिप्त साहित्यिक समाचार (पृष्ठ : 47)।
  • किताबें : संतोष सुपेकर के लघुकथा संग्रह ‘बन्द आँखों का समाज’ एवं बृज मोहन श्रीवास्तव के व्यंग्य संग्रह ‘कुछ कुछ नहीं बहुत कुछ होता है’ की परिचयात्मक समीक्षा उमेश महादोषी द्वारा (पृष्ठ : 48 एवं आवरण पृष्ठ : 03)।
  • प्राप्ति स्वीकार : त्रैमास में प्राप्त विविधि प्रकाशनों की प्राप्ति-सूचना (पृष्ठ : 5)।


इस अंक की साफ्ट प्रति ई मेल (umeshmahadoshi@gmail.com) से मंगायी जा सकती है।
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3 टिप्‍पणियां:

  1. अविराम के मार्च 2011 अंक पर कई पाठकों/मित्रों के उत्साहबर्द्धक पत्र मिले, इनमें कई पत्रों में प्रेरक और रचनात्मक समालोचना भी शामिल थी। इनमें से कुछ पत्र स्थानाभाव के कारण जून 2011 अंक में प्रकाशित न हो सके, इसका हमें खेद है। दरअसल पत्रिका के लघु कलेवर में जितना सम्भव है, हम शामिल करने का प्रयास करते हैं। ऐसे ही कुछ महत्वपूर्ण पत्र जैसे-जैसे सम्भव होगा, हम सम्बन्धित अंको के साथ बतौर टिप्पणी दर्ज कर देंगे। फिलहाल हम आदरणीय प्रो. हितेश व्यास जी का पत्र यहां रख रहे हैं।

    * प्रो. हितेश व्यास, 1, मारुति कालौनी, नयापुरा, कोटा-324001

    ...संतोष सुपेकर की लघुकथाओं की कृति ‘बन्द आँखों का समाज’ की समीक्षा में उमेश महादोषी ने उनकी सीमाओं व सम्भावनाओं, दोनो को रेखांकित किया है। इस अंक में प्रकाशित उनकी लघुकथा ‘भाषाई आतंकवाद’ एक कृत्रिम कथा प्रतीत होती है और ‘तपन और फुहार’ एक नीति कथा। ‘बॉर्डर का दर्द’ तो कथा नहीं है, ‘हौसला’ गद्य गीत है। ‘पहेली या व्यथा’ व्यथा कथा है, ‘शब्द प्राण’ में सकारात्मक सोच व ‘गैरतमंद’ में गलत सोच है। नाराष्ण सिंह निर्दोष की कविता ‘विरोध’ में प्रतिरोध की ताकत है, ‘कश्मीर’ कविता में ‘कश्मीर’ शब्द नहीं है, पर यह शीर्षक को सिद्ध करती रचना है। विज्ञान व्रत की पहली ग़ज़ल के चार शेर उम्दा हैं। एक कथ्य केन्द्रितता का शिकार है। दूसरी ग़ज़ल के अन्तिम दो शेर प्रभावी हैं। शैलेन्द्र सरस्वती की पहली ग़ज़ल में बीच का शेर ठीक नहीं है क्योकि उसमें संत गली की खोज है। दूसरी ग़ज़ल का दूसरा व चौथा अच्छा है। जनार्दन मिश्र ने ‘मेरे गाँव में’ परिवर्तित रूप दिखाया है। हे ईश्वर का अन्त भरत वाक्य जैसा है। तेजराम शर्मा की पहली कविता बौद्धिक है दूसरी विरोधाभास से कविता बनी है। जेन्नी शबनम की कविताओं का शिल्प नज़्म सा है। मुस्तफा खान की पहली कविता में स्मृति व दूसरी में संघर्षधर्मिता है। प्रमोद कुमार रिश्ते के दो रास्ते बताते हैं। दूसरी कविता रघुवीर सहाय का एक्सटेंशन है। डॉ.ए.कीर्तिबद्धन की प्रकाश पुंज में सकारात्मकता है। महेन्द्र प्रताप पाण्डे नंद पुरानी जुबान में पुरानी कविता लिख रहे हैं। नरेश कुमार उदास की कहानी वास्तविक से अधिक वास्तविक लगने वाली काल्पनिक कहानी है। शशि भूषण बड़ौनी में यथार्थ का स्पर्श है। दूसरी में माँ की समझ का विस्तार है। प्रशान्त उपाध्याय में परिवर्तित प्रतीक हैं, उनकी विवशता पढ़कर अज्ञेय की हीलिबान याद आती है। वे ग़ज़ल में असफल हैं। बलराम अग्रवाल ने समकालीन लशुकथाओं में न केवल बुजुर्गों की पड़ताल की है वरन बुजुर्गियत पर मौलिक चिन्तन किया है। तारिक में गंगा जमुनी संस्कृति व सकारात्मक आत्मालोचन है। माधव नागदा ने आरक्षण का एक नया पहलू दिखाया है। रामशंकर में अतिरंजना, आशीष ने गिरगिट में समकालीन शिल्प व कथ्य दिया है। मोहन में कल्पनाशीलता है, उमेश घवन में नई सोच है, सुनील आशावादी हैं, शकुन्तला में लोक स्पर्श है प्रदीप ने मुस्कान व मसखरी का अन्तर बताया है।

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  2. अविराम के मार्च 2011 अंक पर कुछ मित्रों के पत्र जून अंक प्रकाशित होने के बाद प्राप्त हुए हैं, इन पत्रों के सम्पादित अंश हम ब्लाग पर रख रहे हैं। आप सभी का आभार।

    * सूर्यकान्त नागर,81, बैराठी कॉलोनी नं. 2, इन्दौर-14 (म.प्र.)

    .....लघुकथा के स्तम्भ के अन्तर्गत संतोष सुपेकर का परिचय और उनकी लघुकथाएँ देकर आपने एक समर्थ लघुकथाकार का सही मूल्यांकन किया है। एक भला और सजग इन्सान ही जीवन-मूल्यों और समकालीन स्थितियों को लेकर ऐसी विचारपरक रचनाओं का सृजन कर सकता है। हर लेखक की अपनी सीमाएं होती है और उसे यथासम्भव उसी दायरे में देखने की कोशिश करनी चाहिए। लेकिन आपने जिस ओर इशारा किया है, वे निसन्देह विचारणीय हैं। माधव नागदा की लघुकथा ‘पुरानी फाइल‘ विशेष रूप से ध्यान आकर्षित करती है। बलराम अग्रवाल का बुजुर्ग जीवन की लघुकथाओं पर लिखे लम्बे आलेख में समाज में आज वृद्धों की जो दशा है, उसका हृदयस्पर्शी चित्रण हुआ है। डॉ. तारिक असलम खूब लिखते हैं और अच्छा लिखते हैं। उनकी ‘फिर ख्वाब बुनो’ इसका प्रमाण है।.....

    * कुंदन सिंह सजल, उदय निवास, रायपुर (पाटन), सीकर-332718 (राज.)

    .....अंक में प्रकाशित सभी रचनाएँ बेहद पसन्द आईं। कहानी, लघुकथा, कविता आदि स्तरीय हैं। श्री बलराम अग्रवाल का आलेख ‘समकालीन लघुकथा और बुजुर्गों की दुनियां’ विशेष पसन्द आया। विज्ञान व्रत की ग़ज़लें अन्तर को छूती हैं। एक स्तरीय पत्रिका के प्रकाशन तथा सम्पादन के लिए आप निश्चय ही बधाई के पात्र हैं।.....

    * अश्विनी कुमार शर्मा, 1282/13, गली राम मन्दिर, नमक मण्डी, अमृतसर-143006 (पंजाब)

    .....लघुकथा के स्तम्भ अच्छी लगी। कविताएँ भी अच्छी लगी, लेकिन कविताओं से सम्बन्धित चित्र बड़े हैं, इन्हें लघुरूप में रखें तो कविता का प्रभाव अधिक पड़ेगा ना कि चित्रों का। छोटे आकार की पत्रिका में बड़े लेख न छापें।.....

    * प्रियंका गुप्ता, एम.आई.जी. आ.वि.यो.संख्या-1, कल्याणपुर, कानपुर-208017(उ.प्र.)

    .....जेन्नी शबनम, प्रशान्त उपाध्याय, शशिभूषण बड़ौनी, डा.तारिक असलम तस्नीम, सूर्यनारायण गुप्त ‘सूर्य’ आदि की रचनाएँ पसन्द आई। कहानी ‘पारुल लौट आया’ में कई बार कहानी प्रथम पुरुष, तो कभी अन्य पुरुष की शैली में चली जाती है, जो थोड़ा खटकता है। संतोष सुपेकर जी की लघुकथाएँ भी बहुत कुछ कह जाती हैं।

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  3. अंक 7 पर प्राप्त पत्रों में से निम्न पत्रों को अंक 8 में ‘चिट्ठियां’ स्तम्भ में प्रकाशित किया गया।

    * डॉ.कमल किशोर गोयनका, ए-98,अशोक विहार,फेज-प्रथम, दिल्ली-52

    ...मुझे पत्रिका का नाम अच्छा लगा- अविराम। साहित्य की साधना भी अविराम है। पत्रिका भी इस व्रत को लेती है तो वह दीर्घजीवी होने का संकल्प लेकर चली है। एक वर्ष के सफल प्रकाशन तथा साहित्य-सेवा के लिए बधाई। मुझे यह भी अच्छा लगा कि ‘अविराम’ अपने लघुकाय में समग्र साहित्य के प्रतिनिधित्व का संकल्प लेकर चला है। यह कठिन कार्य है, परन्तु असम्भव नहीं। आपका यह अंक कविता, ग़ज़ल, लघुकथा, कहानी आदि से सम्बन्धित है और सामग्री को काफी सुसज्जित करके प्रस्तुत किया गया है। यह सुरुचि एवं सौन्दर्य चेतना का प्रमाण है। मेरा एक निवेदन है। पत्रिका में एक लेख अवश्य ऐसा होना चाहिए जो बहस को आमन्त्रित करे, पाठक की सीधी भागीदारी को प्रेरित करे। साहित्य के आज के गम्भीर मुद्दों को उठाना आवश्यक है, क्योंकि इससे पाठक को नवीनतम गतिविधियों की जानकारी मिलती है और उसकी अभिरुचि का विकास होता है।...

    * डॉ.सतीश दुबे, 766, सुदामा नगर, इन्दौर-452009

    ...‘अविराम’ का अंक देखने का सुअवसर आपने जुटाया, धन्यवाद। अड़तालीस पृष्ठों की पत्रिका में आपने साहित्य की हर विधा की वानगी प्रस्तुत की है। साहित्य के आस्वाद से अवगत कराने वाली इस प्रक्रिया को आप जारी रखिए। ‘लघुकथा-स्तम्भ’ के चयन में सावधानी बरतें तो बेहतर। इस विधा की अस्मिता बनाए रखने के लिए जरूरी है कि मूल्यांकन निरपेक्ष और तटस्थ हो।...

    * जितेन्द्र ‘जौहर’, आई.आर.13/6, रेणुसागर, सोनभद्र-231218

    ...पेज-सेटिंग एवं प्रस्तुति का कायल हूँ। बहुत-सी पत्रिकाएँ प्रस्तुति का सलीक़ा आपसे सीख सकती है। यह बात मैं पूरे आत्म-विश्वास के साथ लिख रहा हूँ। मैंने 200 से अधिक लघु पत्रिकाएँ देखी-पढ़ी है। अधिकांश में सामग्री बेतरतीब ढंग से ठुँसी हुई देखी है। आपको साधुवाद!

    * डॉ.सुरेन्द्र वर्मा, 10 एच.आई.जी.,1-सर्कुलर रोड, इलाहाबाद-1

    ....पारस दासोत का मुख पृष्ठ पर रेखांकन आकर्षक है। अभिशक्ति के सभी छायाचित्र बड़े कलात्मक हैं। संतोष सुपेकर की लघुकथाएँ मर्मस्पर्शी हैं। कथा प्रवाह के अन्तर्गत माधव नागदा, डा0रमाशंकर चंचल, आशीष कुमार, मोहन लोधिया, उमेश मोहन धवन, सुनील कुमार चौहान की लघुकथाएँ भी सकारात्मक सोच की वाहक हैं। विज्ञान वृत की दोनो ग़ज़लें छोटी बहर की जरूर हैं, पर बड़ा बल है उनमें। जेन्नी शबनम की कविताएँ (नज़में) मन को छूती हैं। ‘कुछ नहीं..’ की परिचयात्मक समीक्षा ने व्यंग्य की ताक़त और सीमाओं का अच्छा अहसास कराया।...
    साथ ही, श्रीकृष्ण त्रिवेदी (फतेहपुर), डा. अशोक भाटिया (करनाल), डा. रुक्म त्रिपाठी (कोलकाता), प्रो. हितेश व्यास (कोटा), डा. सुधेश (दिल्ली), विजय (दिल्ली/जयपुर), डा. राम नारायण शर्मा (झांसी), डा. माजिद मेवाती (मेवात), निर्मला कपिला (नया नांगल), मदन मोहन पाण्डे (नरेन्द्र नगर), मुकुट सक्सेना (जयपुर), सालिग्राम सिंह (हाजीपुर), शिव प्रसाद कमल (मिर्जापुर), त्रिभुवन पाण्डे (घमतरी), तेजराम शर्मा (शिमला), सुरेश शर्मा (इन्दौर), जगदीश किंजल्क (भोपाल), डा. रामशंकर चंचल(झाबुआ), शिवकुटी लाल वर्मा (इलाहाबाद), बी. मोहन नेगी (पौड़ी), सिद्धेश्वर (पटना), शशि भूषण बड़ौनी (देहरादून), नरेन्द्र श्रीवास्तव (जांजगीर), महावीर रवांल्टा (उत्तरकाशी), आशीष कुमार (उन्नाव), विवेक सत्यांशु (इलाहाबाद), कलाधर (पूर्णिया्र), शैलेन्द्र सरस्वती (बीकानेर), गौरीशंकर वैश्य‘विनम्र’(सीतापुर), जनार्दन मिश्र (आरा), सन्तोष सुपेकर (इन्दौर), मोहन लोधिया (जबलपुर), डा.ए.कीर्तिबद्धन (मु0नगर), डा.वेदप्रकाश ‘अंकुर’ (हल्द्वानी), पूजा येरपुड़े (भोपाल), केशव शरण (वाराणसी केन्ट), अशोक जैन (भोपाल), प्रदीप गर्ग ‘पराग’ (फरीदाबाद), सुमन शेखर (पालमपुर), पं. बी.एन.मुदगिल (रोहतक), गणेश भारद्वाज ‘गनी’ (कुल्लू) आदि के पत्र भी पिछले अंक पर प्राप्त हुए। सभी का आभार।

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