अविराम का ब्लॉग : वर्ष : 2, अंक : 5, जनवरी 2013
सामग्री : प्रभुदयाल श्रीवास्तव, मधुकान्त की कवितायेँ।
प्रभुदयाल श्रीवास्तव
चुहिया और संपादक
मधुकान्त
{वरिष्ठ साहित्यकार मधुकान्त जी का बाल कविता संग्रह ‘मेरी बाल शैक्षिक कविताएँ’ वर्ष 2011 में प्रकाशित हुआ था। उनके दो संग्रह से दो बाल कविताएँ प्रस्तुत हैं।}
दो बाल कविताएँ
नीम का पेड़
हरा-भरा है सुन्दर नीम
दूर भगाए यह हकीम।
गन्दी खाता हवा हमारी
ऑक्सीजन देता हमको प्यारी
मीठे फल और अंग-अंग से
परोपकार करता है भारी।
सुबह-सवेरे दातुन इसकी
कर देती दाँतों को साफ
गहरी शीतल छाया देता
खून को करता पूरा साफ।
इतना सारा काम बनाता
कभी न वेतन-बोनस लेता
फिर भी हँसता बढ़ता रहता
बीमारी से हमें बचाता।
हरा-भरा है सुन्दर नीम,
दूर भगाए यह हकीम।
मोर
कैसा सुन्दर मोर है
जंगल में यह शोर है
सिर पर मुकुट बनाए है
सुन्दर पंख लगाए है।
बढ़ते जब आकाश में बादल
पीहूँ पीहूँ दे आवाज
मटक-मटक फैलाता पंख
घूम-घूम करता नाच।
मित्र पक्षी यह कहलाता
दुश्मन कीटों को खाता है
अच्छी खेती देख-देखकर
झूम-झूम कर इठलाता है।
।।बाल अविराम।।
प्रभुदयाल श्रीवास्तव
चुहिया और संपादक
चुहिया रानी रोज डाक से,
कवितायें भिजवाती।
संपादक हाथी साहब को,
कभी नहीं मिल पातीं।
एक दिन चुहिया सुबह-सुबह ही,
हाथी पर चिल्लाई।
चित्र : आरुषी ऐरन, रुड़की |
बाल पत्रिका में मैं अब तक,
कभी नहीं छप पाई।
तब हाथी ने मोबाइल पर,
चुहिया को समझाया।
क्यों न, मिस, अब तक तुमने,
अपना ई मेल बनाया?
अगर मेल पर,
अपनी रचनायें मुझको भिजवातीं।
तो मिस चुहिया निश्चित ही,
तुम कई बार छप जातीं।
- 12, शिवम सुंदरम नगर, छिंदवाड़ा, म.प्र.
मधुकान्त
{वरिष्ठ साहित्यकार मधुकान्त जी का बाल कविता संग्रह ‘मेरी बाल शैक्षिक कविताएँ’ वर्ष 2011 में प्रकाशित हुआ था। उनके दो संग्रह से दो बाल कविताएँ प्रस्तुत हैं।}
दो बाल कविताएँ
नीम का पेड़
हरा-भरा है सुन्दर नीम
दूर भगाए यह हकीम।
गन्दी खाता हवा हमारी
ऑक्सीजन देता हमको प्यारी
परोपकार करता है भारी।
सुबह-सवेरे दातुन इसकी
कर देती दाँतों को साफ
गहरी शीतल छाया देता
खून को करता पूरा साफ।
इतना सारा काम बनाता
पेंटिंग : मिली भाटिया, रावतभाटा |
फिर भी हँसता बढ़ता रहता
बीमारी से हमें बचाता।
हरा-भरा है सुन्दर नीम,
दूर भगाए यह हकीम।
मोर
कैसा सुन्दर मोर है
जंगल में यह शोर है
सिर पर मुकुट बनाए है
सुन्दर पंख लगाए है।
बढ़ते जब आकाश में बादल
पीहूँ पीहूँ दे आवाज
मटक-मटक फैलाता पंख
घूम-घूम करता नाच।
मित्र पक्षी यह कहलाता
दुश्मन कीटों को खाता है
अच्छी खेती देख-देखकर
झूम-झूम कर इठलाता है।
- अनूप बंसल ‘मधुकान्त’, साँपला-124501, रोहतक (हरियाणा)
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