अविराम ब्लॉग संकलन : वर्ष : 4, अंक : 03-04 : नवम्बर-दिसम्बर 2014
।। जनक छंद ।।
सामग्री : इस अंक में डा. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’ व प्रदीप पराग के जनक छंद।
डा. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’
पांच जनक छन्द
01.
नये वर्ष की कामना।
सबके अन्तर में बसे।
सबके प्रति सद्भावना।।
02.
जीवन नदिया सा बहे।
सुने ओर तट वेदना।
और छोर तट से कहे।।
03.
कर्म सुधा पल पल पियो।
उन्नत करके शीश निज।
अर्जुन होकर तुम जियो।।
04.
कण कण भू का स्वर्ण है।
सत्य प्रेम मसि से लिखित।
हृदय हृदय का पर्ण है।।
05.
रात बिताती कूप है।
पूस जमी प्रातः निकल।
ठंड तापती धूप है।।
प्रदीप पराग
दो जनक छन्द
01.
कहने का आशय यही
काम भले का फल भला
कुछ इसमें संशय नहीं।
02.
खुश हो सबका ही हिया
कितना सुन्दर लग रहा
जलता माटी का दिया।
।। जनक छंद ।।
सामग्री : इस अंक में डा. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’ व प्रदीप पराग के जनक छंद।
डा. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’
पांच जनक छन्द
01.
नये वर्ष की कामना।
सबके अन्तर में बसे।
सबके प्रति सद्भावना।।
02.
जीवन नदिया सा बहे।
सुने ओर तट वेदना।
और छोर तट से कहे।।
03.
कर्म सुधा पल पल पियो।
उन्नत करके शीश निज।
अर्जुन होकर तुम जियो।।
छाया चित्र : उमेश महादोषी |
04.
कण कण भू का स्वर्ण है।
सत्य प्रेम मसि से लिखित।
हृदय हृदय का पर्ण है।।
05.
रात बिताती कूप है।
पूस जमी प्रातः निकल।
ठंड तापती धूप है।।
- बी-2-बी-34, जनकपुरी, नई दिल्ली-110058 / मोबाइल : 09971773707
प्रदीप पराग
दो जनक छन्द
01.
कहने का आशय यही
काम भले का फल भला
कुछ इसमें संशय नहीं।
02.
खुश हो सबका ही हिया
कितना सुन्दर लग रहा
जलता माटी का दिया।
- 1785, सेक्टर-16, फरीदाबाद-121002 (हरियाणा) / मोबाइल : 09891059213
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