अविराम का ब्लॉग : वर्ष : १, अंक : ०७, मार्च २०१२
।।कविता अनवरत।।
सामग्री : रेखा चमोली, विजय कुमार सत्पथी, अवनीश सिंह चौहान, प्रभुदयाल श्रीवास्तव, अंकिता पंवार एवं सुधीर मौर्या ‘सुधीर’ की काव्य रचनाएँ।
रेखा चमोली
बचाव
बेहद ठंड है
धूप चली जाती है
मध्यान्तर में ही
फिर छुटटी होने तक
ठिठुरते रहते हैं बच्चे
फटे-पुराने, आधे अधूरे कपडों में
घर से ले जाती हूँ
अपने, अपने बच्चों, भाई-बहनों के गर्म कपडे
कुछ को तो राहत मिले
‘‘चलो इधर ध्यान दो!
तुम्हें ठंड तो नहीं लग रही ?
बच्चों को ठंड नहीं लगती
बच्चों की ठंड तो पत्थर के नीचे
छिपी रहती है ’’
अपनी आवाज के ठंडेपन से
खुद ही सिहर उठती हूँ
हाथ, मुहँ, पैर सब बुरी तरह
फट गये हैं
पर मुस्कान बाकी है चेहरों पर
और उत्साह बेहिसाब
एक को पुकारो तो
दस जबाब देते हैं
आते ही घेर लेते हैं
मन करता है
रेखांकन : बी.मोहन नेगी |
सब ओढ़ा दूँ इन्हें
पर इन्हें तैयार होना है
कल के लिए
तो ठंड सहन करनी आनी ही चाहिए
सोचकर
खुद को बहला लेती हूँ।
साफ बचा लाती हूँ,
खुद को जिम्मेदारियों से।
- जोशियाडा, उत्तरकाशी
विजय कुमार सत्पथी
दो कविताएं
परायों के घर
कल रात दिल के दरवाजे पर दस्तक हुई;
सपनो की आंखो से देखा तो,
तुम थी .....!!!
मुझसे मेरी नज्में मांग रही थी,
उन नज्मों को, जिन्हें संभाल रखा था,
मैंने तुम्हारे लिये ;
एक उम्र भर के लिये ...!
रेखांकन : नरेश उदास |
वक्त के धूल भरे रास्तों में;
शायद उन्ही रास्तों में;
जिन पर चल कर तुम यहाँ आई हो .......!!
लेकिन;
क्या किसी ने तुम्हे बताया नहीं;
कि,
परायों के घर भीगी आंखों से नहीं जाते........!!!
सलीब
कंधो से अब खून बहना बंद हो गया है ...
आँखों से अब सूखे आंसू गिर रहे है..
मुंह से अब आहे-कराहे नही निकलती है..!
बहुत सी सलीबें लटका रखी है मैंने यारों ;
इस दुनिया में जीना आसान नही है ..!!!
हँसता हूँ मैं,
कि..
ये सारी सलीबें;
सिर्फ़ सुबह से शाम और
फिर शाम से सुबह तक के
सफर के लिए है ...
रेखांकन : महावीर रंवाल्टा |
देवता ने भी सलीब लटकाया था..
दुनियावालों को उस देवता की सलीब,
आज भी दिखती है ...
मैं देवता तो नही बनना चाहता..,
पर ;
कोई मेरी सलीब भी तो देखे....
कोई मेरी सलीब पर भी तो रोये.....
- फ्लैट नं. 402, पांचवां तल, प्रमिला रेजीडेंसी, मकान नं. 36-110/402, डिफेन्स कॉलोनी, सैनिकपुरी, पोस्ट-सिकन्दराबाद-500094, आं.प्र.
अवनीश सिंह चौहान
पिता हमाए
मैं रोया
तो मुझे चुपाया
बिल्ली आई
कह बहलाया
मुश्किल में
जीवन जीने की-
कला सिखाए
पिता हमाए
नदिया में मुझको
नहलाया
झूले में मुझको
झुलवाया
मेरी जिद पर
गोद उठाकर
मुझे मनाए
पिता हमाए
जब भी फसली
चीजें लाते
सब से पहले
मुझे खिलाते
कभी-कभी खुद
भूखे रह कर
मुझे खिलाए
पिता हमाए
रेखांकन : शशि भूषण बडोनी |
पापा का जब से
मैं भी पिता
बन गया तब से
मधुर-मधुर-सी
संस्मृयों में
अब तक छाए
पिता हमाए
- सहायक प्राध्यापक (अंग्रेजी), सी ओ ई, तीर्थंकर महावीर विश्वविद्यालय, मुरादाबाद-244001 (उ.प्र.)
प्रभुदयाल श्रीवास्तव
ग़ज़ल
जो अपनी राह चलते हैं लकीरों पर नहीं चलते।
जिन्हें विश्वास श्रम का है नज़ीरों पर नहीं चलते।
चलाने के लिये समझाइश और धक्के जरूरी हैं
जिन्हें हो आत्मा का बल शरीरों पर नहीं चलते।
रेखांकन : पारस दासोत |
नदी के आजकल आदेश तीरों पर नहीं चलते।
जो थककर हार जाते हैं फकत डरपोंक होते हैं
परंतु व्यर्थ के संदेश वीरों पर नहीं चलते।
तरक्की और सुधारों के लिये कानून हैं लेकिन
नियम ये हुक्मरानों और वजीरों पर नहीं चलते।
नहीं है लोभ कुर्सी, पदवियों, महलों, दुमहलों का
सियासत के हथकंडे फकीरों पर नहीं चलते।
- 12 शिवम सुंदरम नगर छिंदवाड़ा म. प्र.
अंकिता पंवार
आज का सच
किसी भी शब्द के
सबके लिये भिन्न-भिन्न अर्थ होते हैं
मैं तुमसे पूछना चाहती हूँ- प्रेम क्या है?
शब्दों को दो-तीन बार दोहरा देना ही
यही सोचते हो तुम
सुनने व समझने का
वक्त ही कहां है तुम्हारे पास
तुम हो चुके हो शामिल उन लोगों में
रेखांकन : हिना |
जीवन का एक संवेदनात्मक पक्ष भी है
जो कि मेरे भीतर अब भी जिन्दा है
तुम तो हो गये हो आदी बाजार के
परन्तु मैं अब भी वहीं हूँ
प्रकृति की छांव में, गांव की मांटी में
हमारा तो अब कोई मेल भी नहीं
सिर्फ एक नाम का रिश्ता है
जो कि आज हर शख्स का एक कड़वा सच है!
- द्वारा श्री उदय पंवार, भरत विहार, निकट ऋषि गैस एजेन्सी, हरिद्वार रोड, ऋषिकेश-249201(उ.खंड)
सुधीर मौर्या ‘सुधीर’
बारिश
बारिश को देखती
वो कमसिन लड़की
हाथ बड़ा कर
पानी की बूंदों को
कोमल हथेलियों में
इकट्ठा करती
फिर ज़मीं की जानिब
उड़ेल देती
मैं उसके पास जाकर खड़ा हुआ
तो एक अंजुली पानी
मेरे चेहरे पर फेंक कर
रेखांकन : नरेश उदास |
अंदर भाग गई
लाल जोड़े में
वो जब डोली में बैठी
आँखों से उसके अश्क बरस रहे थे
आज उसने
अंजुली में इस बारिश
को इकटठा नहीं किया
आज मुझसे कोई शरारत नहीं की
आज न जाने क्यों, मुझे
ये बारिश अच्छी नहीं लगी.
- ग्राम व पोस्ट- गंज जलालाबाद, जिला- उन्नाव, पिन- २४१५०२
अच्छी रचनाओं का संयोजन ...
जवाब देंहटाएंसपत्ति जी अच्छा लिखते हैं ....
बाकि सभी रचनाओं ने भी प्रभावित किया ....
बधाई ....!!
रेखा चमोली,सुधीर मौर्या "सुधीर"की रचनाएँ भी अच्छी लगी .
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