अविराम का ब्लॉग : वर्ष : 2, अंक : 8, अप्रैल 2013
।।क्षणिकाएँ।।
सामग्री : नित्यानंद गायेन की क्षणिकाएँ।
नित्यानंद गायेन
{समकालीन कविता के प्रभावशाली कवि हैं नित्यानंद गायेन। उनके ब्लॉग http://merisamvedana.blogspot.com पर उनकी प्रभावशाली कविताओं के मध्य अनेक ऐसी हैं, जिन्हें विधागत स्तर पर सशक्त क्षणिकाओं के रूप में रेखांकित किया जाना चाहिए। इस बार यहाँ हम उनके ब्लॉग से ही कुछ क्षणिकाओं को अपने पाठकों के लिए विशेष रूप से रख रहे हैं।}
सात क्षणिकाएँ
01. उन्होंने कहा - देशद्रोही मुझे
मैंने पढ़ी थी
सिर्फ एक कविता ‘विद्रोही’ कवि की
‘बलो वीर’
उन्होंने कहा -
देशद्रोही मुझे
मुझे आई हंसी
और उन्हें क्रोध....
02. कुछ ने उन्हें दूर से देखा
आदमी-आदमी में
समाया हुआ है षड़यंत्र....
बस पहनकर मुखौटा जाते हैं
आईने के सामने...
कुछ ने उन्हें दूर से देखा
कुछ ने कहा
आत्मा से मरे हुए लोग
मैंने उन्हें जिंदा पाया
भय के कारण
दीर्घ साँस लेते हुए
03. कमाल हो तुम
बंदूक,
कुपोषण
दंगे, आगजनी
नफ़रत
इन सबके बीच रहकर भी
तुम लिख लेते हो
प्रेम कविता....?
सच में कमाल हो तुम....
04. मुल्क तो मेरा भी मासूम
मुल्क तो मेरा भी मासूम
और तेरा भी
वही जमीं, वही आसमान
वही पहाड़, नदियाँ, झरने
परिंदे, हवा, पानी
फिर कहाँ से उग आये
साज़िस भरे दरिंदों की भीड़
05. तुम भी बेचैन हो शायद ओ चाँद
हर बार खोलता हूँ द्वार
कि, हो जाये तुम्हारा दीदार
काले मेघों का जमघट
हटा नहीं अभी
तुम भी बेचैन हो शायद
ओ चाँद....
06. तुम्हारे बिखराए शब्दों को
तुम्हारे बिखराए शब्दों को
समेटकर, लगा दिया है मैंने
पंक्तियों में डाल कर
छंद बनाया है-
देखो एक नज़र
बनी है कोई कविता
या कोई मिलन गीत?
07. खता थी मेरी
तुम्हें गिना था
अपनों में
रखा था
पलकों पर
मूँद कर आँखे
यकीं करना,
खता थी मेरी
सिखा दिया, तुमने
भावनाओं में डूबना
खता थी मेरी,
जता दिया तुमने....
।।क्षणिकाएँ।।
सामग्री : नित्यानंद गायेन की क्षणिकाएँ।
नित्यानंद गायेन
{समकालीन कविता के प्रभावशाली कवि हैं नित्यानंद गायेन। उनके ब्लॉग http://merisamvedana.blogspot.com पर उनकी प्रभावशाली कविताओं के मध्य अनेक ऐसी हैं, जिन्हें विधागत स्तर पर सशक्त क्षणिकाओं के रूप में रेखांकित किया जाना चाहिए। इस बार यहाँ हम उनके ब्लॉग से ही कुछ क्षणिकाओं को अपने पाठकों के लिए विशेष रूप से रख रहे हैं।}
सात क्षणिकाएँ
01. उन्होंने कहा - देशद्रोही मुझे
मैंने पढ़ी थी
सिर्फ एक कविता ‘विद्रोही’ कवि की
रेखा चित्र : के. रविन्द्र |
‘बलो वीर’
उन्होंने कहा -
देशद्रोही मुझे
मुझे आई हंसी
और उन्हें क्रोध....
02. कुछ ने उन्हें दूर से देखा
आदमी-आदमी में
समाया हुआ है षड़यंत्र....
बस पहनकर मुखौटा जाते हैं
आईने के सामने...
कुछ ने उन्हें दूर से देखा
कुछ ने कहा
आत्मा से मरे हुए लोग
मैंने उन्हें जिंदा पाया
भय के कारण
दीर्घ साँस लेते हुए
03. कमाल हो तुम
बंदूक,
कुपोषण
दंगे, आगजनी
नफ़रत
इन सबके बीच रहकर भी
तुम लिख लेते हो
प्रेम कविता....?
सच में कमाल हो तुम....
04. मुल्क तो मेरा भी मासूम
मुल्क तो मेरा भी मासूम
और तेरा भी
वही जमीं, वही आसमान
वही पहाड़, नदियाँ, झरने
परिंदे, हवा, पानी
फिर कहाँ से उग आये
साज़िस भरे दरिंदों की भीड़
05. तुम भी बेचैन हो शायद ओ चाँद
रेखा चित्र : सिद्धेश्वर |
हर बार खोलता हूँ द्वार
कि, हो जाये तुम्हारा दीदार
काले मेघों का जमघट
हटा नहीं अभी
तुम भी बेचैन हो शायद
ओ चाँद....
06. तुम्हारे बिखराए शब्दों को
तुम्हारे बिखराए शब्दों को
समेटकर, लगा दिया है मैंने
पंक्तियों में डाल कर
छंद बनाया है-
देखो एक नज़र
बनी है कोई कविता
या कोई मिलन गीत?
07. खता थी मेरी
तुम्हें गिना था
अपनों में
रखा था
पलकों पर
मूँद कर आँखे
यकीं करना,
खता थी मेरी
सिखा दिया, तुमने
भावनाओं में डूबना
खता थी मेरी,
जता दिया तुमने....
- रूम नं. 202, हाउस नं. 4-38/2/बी, आर.पी.दुबे कॉलोनी, लिंगमपल्ली, हैदराबाद-500019, आं.प्र.
बहुत -बहुत शुक्रिया उमेश जी .
जवाब देंहटाएंBhai Nityaanand jee pahlee teen kavitain acchee lagi. Haardik badhai.
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