अविराम का ब्लॉग : वर्ष : 3, अंक : 01-02, सितम्बर-अक्टूबर 2013
।।सेदोका।।
सामग्री : इस अंक में डॉ. उर्मिला अग्रवाल के सेदोका।
डॉ. उर्मिला अग्रवाल
{कवयित्री डॉ. उर्मिला अग्रवाल का एकल सेदोका संग्रह ‘‘बुलाता है कदम्ब’’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। हिन्दी में सेदोका में रचनाकर्म कम ही हुआ है और संभवतः उर्मिला जी का यह संग्रह सेदोका का पहला प्रकाशित एकल संग्रह है। सेदोका कवियों के अनुसार सेदोका 5-7-7-5-7-7 वर्णों की षष्टपदीय काव्य रचना होती है, जो 5-7-7 के कतौता के एक युग्म से बनती है। उर्मिला जी के इस संग्रह में 160 सेदोका शामिल हैं। इन्हीं में से दस सेदोका हम अपने पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं।}
दस सेदोका
01.
तुम आये तो
दर्द के समंदर
पछाड़ खाने लगे
होने लगे थे
फिर ज़ख्म हरे
अतीत की याद से
02.
काँपता रहा
नयनों की झील में
तुम्हारा प्रतिबिम्ब
पलकें मूँदी
तो भी डोलता रहा
इधर-से-उधर
03.
प्यार के पुष्प
मैंने चढ़ाए पर
वह खुश न हुआ
कटे पेड़ सी
पैरों में गिर पड़ी
वो खिलखिला उठा
04.
उसने सोचा
महकूँगी फूल सी
पर हुई वीरान
जीवन बना
बंजर धरती सा
कुछ न उगा
05.
सच के बीज
अंकुरित न हुए
सिंचन नहीं मिला
मिटे थे बीज
छुआ परिवेश की
विषैली हवाओं ने
06.
डाला है डेरा
सुधियों ने मन में
कुछ रुला-रुला दें
कुछ हँसा दें
तो कुछ रेशम सा
सहला दें मन को
07.
शिशिर काँपा
धूप के आतंक से
और कहीं जा छिपा
खोजने चले
तो मिला सोया हुआ
पर्वतों की गोद में
08.
संध्या के माथे
गुलाबी चुनरिया
सजा दी सूरज ने
कहा- आऊँगा
आँचल में छिपने
इंतज़ार करना
09.
काँप क्यों रहे
मैंने पत्तों से पूछा
वे खिलखिला उठे
अरी नादान
कोई छुएगा तो क्या
सिहरन न होगी
10.
डरते क्यों हो
साँझ को आने तो दो
अंधेरा छाने तो दो
चाँद-सितारे
फैला देंगे रोशनी
तेरी डगर पर
डॉ. उर्मिला अग्रवाल
{कवयित्री डॉ. उर्मिला अग्रवाल का एकल सेदोका संग्रह ‘‘बुलाता है कदम्ब’’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। हिन्दी में सेदोका में रचनाकर्म कम ही हुआ है और संभवतः उर्मिला जी का यह संग्रह सेदोका का पहला प्रकाशित एकल संग्रह है। सेदोका कवियों के अनुसार सेदोका 5-7-7-5-7-7 वर्णों की षष्टपदीय काव्य रचना होती है, जो 5-7-7 के कतौता के एक युग्म से बनती है। उर्मिला जी के इस संग्रह में 160 सेदोका शामिल हैं। इन्हीं में से दस सेदोका हम अपने पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं।}
दस सेदोका
01.
तुम आये तो
दर्द के समंदर
पछाड़ खाने लगे
रेखा चित्र : शशि भूषण बड़ोनी |
होने लगे थे
फिर ज़ख्म हरे
अतीत की याद से
02.
काँपता रहा
नयनों की झील में
तुम्हारा प्रतिबिम्ब
पलकें मूँदी
तो भी डोलता रहा
इधर-से-उधर
03.
प्यार के पुष्प
मैंने चढ़ाए पर
वह खुश न हुआ
कटे पेड़ सी
पैरों में गिर पड़ी
वो खिलखिला उठा
04.
उसने सोचा
महकूँगी फूल सी
पर हुई वीरान
जीवन बना
बंजर धरती सा
कुछ न उगा
05.
सच के बीज
अंकुरित न हुए
सिंचन नहीं मिला
मिटे थे बीज
छुआ परिवेश की
विषैली हवाओं ने
06.
डाला है डेरा
सुधियों ने मन में
कुछ रुला-रुला दें
कुछ हँसा दें
तो कुछ रेशम सा
सहला दें मन को
07.
शिशिर काँपा
धूप के आतंक से
और कहीं जा छिपा
खोजने चले
तो मिला सोया हुआ
पर्वतों की गोद में
08.
संध्या के माथे
गुलाबी चुनरिया
सजा दी सूरज ने
कहा- आऊँगा
छाया चित्र : रामेश्वर कम्बोज हिमांशु |
इंतज़ार करना
09.
काँप क्यों रहे
मैंने पत्तों से पूछा
वे खिलखिला उठे
अरी नादान
कोई छुएगा तो क्या
सिहरन न होगी
10.
डरते क्यों हो
साँझ को आने तो दो
अंधेरा छाने तो दो
चाँद-सितारे
फैला देंगे रोशनी
तेरी डगर पर
- 15, शिवपुरी, मेरठ-250002, उ.प्र.
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