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शनिवार, 4 अक्टूबर 2014

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 4,   अंक  : 01-02  :  सितम्बर-अक्टूबर 2014

।। जनक छंद ।। 

सामग्री : इस अंक में श्री मुखराम माकड़ ‘माहिर’ के जनक छंद। 



मुखराम माकड़ ‘माहिर’




(माहिर जी के 1111 भावपूर्ण जनक छंदों का संग्रह ‘ग्यारह सौ ग्यारह जनक’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत हैं उनके इस संग्रह से कुछ जनक छंद।)


दस जनक छन्द


01.
बिखर गया तन फूल का
बरस-बरस बादल थके
भीगा नहिं तन शूल का।

02.
मंत्र सिद्ध जब हो गया
ताप तमस का खो गया
बीज मुक्ति के बो गया

03.
मन मेरा सोता नहीं
खाली खाली सीप सा
प्रीत-गीत बोता नहीं

04.

मरुथल ने भी ठग लिया
नीर खोजती थी मृगी
प्राण काल ने हर लिया

05.

आहट सुनकर जग गये
छाया चित्र : उमेश महादोषी 

पंछी मन के थम गये
आँसू प्यारे ठग गये

06.

टाप सुनाई दे रही
चेतक की वह आज भी
मुक्ति दिखाई दे रही

07 .

सरबजीत की जान ली
अधम पाक सरकार ने
हार हिन्द ने मान ली

08.

बादल नभ में फट गया
कहर ढहा जलधार से
रिश्ता घर से कट गया

09.

ध्वस्त धरा केदार की
प्रलय मचा जब रात में
सुरभि उड़ी हर-हार की

10.

झुग्गी झरती रो रही
दाग देश की देह का
अस्मत धरती खो रही

  • विश्वकर्मा विद्यानिकेतन, रावतसर, जिला- हनुमानगढ़-335524 (राज.) / मोबाइल :  09785206528

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