अविराम ब्लॉग संकलन : वर्ष : 4, अंक : 01-02, सितम्बर-अक्टूबर 2014
सामग्री : इस अंक में श्री नरेश कुमार ‘उदास’ की क्षणिकाएँ।
नरेश कुमार उदास
{चर्चित कवि श्री नरेश कुमार ‘उदास’ का क्षणिका संग्रह ‘माँ आकाश कितना बड़ा है’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत हैं उनके इस संग्रह से कुछ क्षणिकाएं।}
सात क्षणिकाएँ
01.
कुछ टूटे हुए सपने
कुछ दर्दीले किस्से
आये हैं
इस जीवन में
सिर्फ मेरे हिस्से
02.
उदास दिनों में
अनायास ही
फूट पड़ते हैं
कण्ठ से
कुछ दर्दीले गीत
और मन
बोझिल सा हो जाता है।
03.
तुम्हारे स्पर्श से
पिघल गया हूँ
पहले मैं पत्थर था
अब मोम बन गया हूँ।
04.
प्रेम की भाषा
निशब्द भी
उतर जाती है
मन में
कहीं गहरे तक
अनपढ़ भी-
इसे झट समझ लेते हैं।
05.
व्यथित मन
भीतर की पीड़ा
न बाँट सका तो
आँखें बरबस रो दीं
सारा गम
बहता चला गया।
06.
घड़ी ने बजाए हैं
बारह
दूर कहीं
एक पहरेदार का स्वर
गँूजता है
जागते रहो
जागते रहो।
07.
गोदी में
लेटे-लेटे
नन्हे-मुन्ने ने
मचलते हुए
माँ से अचानक पूछा था-
‘माँऽऽऽ आकाश कितना बड़ा है?’
माँ ने उसे
प्यार से थपथपाते
आँचल में ढकते हुए कहा था-
‘मेरी गोद से
छोटाऽऽऽ हैऽऽ रे।
।। क्षणिका ।।
नरेश कुमार उदास
{चर्चित कवि श्री नरेश कुमार ‘उदास’ का क्षणिका संग्रह ‘माँ आकाश कितना बड़ा है’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। प्रस्तुत हैं उनके इस संग्रह से कुछ क्षणिकाएं।}
सात क्षणिकाएँ
01.
कुछ टूटे हुए सपने
कुछ दर्दीले किस्से
आये हैं
इस जीवन में
सिर्फ मेरे हिस्से
02.
उदास दिनों में
अनायास ही
फूट पड़ते हैं
कण्ठ से
कुछ दर्दीले गीत
और मन
बोझिल सा हो जाता है।
03.
तुम्हारे स्पर्श से
पिघल गया हूँ
पहले मैं पत्थर था
अब मोम बन गया हूँ।
04.
प्रेम की भाषा
छाया चित्र : बी.मोहन नेगी |
निशब्द भी
उतर जाती है
मन में
कहीं गहरे तक
अनपढ़ भी-
इसे झट समझ लेते हैं।
05.
व्यथित मन
भीतर की पीड़ा
न बाँट सका तो
आँखें बरबस रो दीं
सारा गम
बहता चला गया।
06.
घड़ी ने बजाए हैं
बारह
दूर कहीं
एक पहरेदार का स्वर
गँूजता है
जागते रहो
जागते रहो।
07.
गोदी में
लेटे-लेटे
नन्हे-मुन्ने ने
मचलते हुए
माँ से अचानक पूछा था-
‘माँऽऽऽ आकाश कितना बड़ा है?’
माँ ने उसे
प्यार से थपथपाते
आँचल में ढकते हुए कहा था-
‘मेरी गोद से
छोटाऽऽऽ हैऽऽ रे।
- हिमालय जैव सम्पदा प्रौद्योगिकी संस्थान, पो. बा. न. 6, पालमपुर (हि.प्र.) / मोबाइल : 09418193842
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