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बुधवार, 26 अगस्त 2015

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 4,   अंक  : 07-12,  मार्च-अगस्त 2015



।।क्षणिका।।

सामग्री :  इस अंक में श्री भवेश चन्द्र जायसवाल एवं श्री चक्रधर शुक्ल की क्षणिकाएँ।


भवेश चन्द्र जायसवाल

कुछ क्षणिकाएँ

01. तीसरी बार
पहली बार
जब वे मिले अपने घर
तो सड़क तक छोड़ने आये मुझे

दूसरी बार मिले
तो वे अपने मुहल्ले के मैदान तक
चले आये
तीसरी बार 
उनके पैर
उनके दरवाजे की ड्योढ़ी तक सिमट गये।
रेखाचित्र : डॉ.सुरेन्द्र वर्मा


02. दोस्त
मैं देख रहा हूँ
उन्हें
उछलते-कूदते हुए
साम्प्रदायिक अट्ठहास करते

एक ने 
मेरी ओर
मुस्कुराते हुए देखा
और जोर से चिल्लाया
आओ न!
दोस्त!

03.सुबह-शाम
सुबह
चाय परोसती है

शाम षणयंत्र
रचती है

सुबह से शाम तक
रोज़-ब-रोज़

सुबह-शाम होती है।

04. हाथ
कली
खिलने के बाद
टूटती नहीं
तोड़ दी जाती है
किन्तु
कैसे रह जाता है

आदमी का हाथ?

  • श्रीकृष्णपुरम् कालोनी, अनगढ़ रोड, मिर्ज़ापुर-231001, उ.प्र. / मोबा. 8004489207



चक्रधर शुक्ल




{सुप्रसिद्ध व्यंग्य क्षणिकाकार चक्रधर शुक्ल का क्षणिका संग्रह ‘अँगूठा दिखाते समीकरण’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। संग्रह में उनकी 1975 से अब तक रचित प्रतिनिधि क्षणिकाओं को संग्रहीत किया गया है। प्रस्तुत हैं इसी संग्रह से उनकी कुछ क्षणिकाएँ।}

क्षणिकाएँ
01. कंकरीट के घर
कंकरीट के घरों में
गौरैया
आने से घबराती 
थोड़ी ही देर में
उसे, घबराहट हो जाती।

02. साफ़गोई
साफ़गोई
उसके चेहरे से
झलकती
उल्टे-सीधे प्रश्नों से
आग नहीं लगती।

03. व्यस्तता
पौधों को 
पानी देने में
समय का पता ही नहीं चला
कुविचार भी नहीं आये
आओ चलें, पौधा लगाएं।

04. कही-अनकही
बरसात में नदियां
उफान में रहीं
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया
ताल-तलैयों ने
उनके विषय में
जाने कितनी बातें कहीं।

05. अन्तर्जाल
भावी पीढ़ी
अन्तर्जाल में
हल खोज रही है
ज़िंदगी यहाँ है
वह उसे कहाँ ढूँढ़ रही है।

06. प्रदूषण
मीठी बोली सुनने को
कान तरस गए
कोयल बालकनी में भी
नहीं आती
शहर प्रदूषण से भर गए।

07. विश्वास नहीं
पेपर आउट होने पर
प्रधानाचार्य ने
बस इतना कहा-
‘अब चाभियों पर
विश्वास नहीं रहा।’

08. जाड़ा
पत्तों पर
ओस की बूंदें
सूर्य किरणों में
दमकती रहीं
तितलियां उड़-उड़कर
कलियों से बात करती रहीं।

09. तरसना
घर में 
गौरैया का न होना
बहुत खलता
चहल-पहल को
आंगन तरसता।

10. पीड़ा
पीड़ा 
घनीभूत होकर
कविता में ढल गई
चर्चा चल गई।

11. सृजन
इन्तज़ार करते-करते
रेखाचित्र : रमेश गौतम

जब बहुत दिनों के बाद
गुलाब की कलम से
अंकुर फूटा
मन प्रसन्नता से भर गया
सृजन अनूठा।

12. शीतलहर
दिन में
सड़कों पर सन्नाटा
कोहरे की चादर
शीतलहर लपेटे
मार रही चांटा।

13. दोस्ती
बच्चों की मस्ती देखकर
जाड़ा भी
उछलकूद करने लगा
बच्चों से 
दोस्ती करने लगा।

14. डर भागना
बहुत कुछ करने का
उसके अंदर
जज्बा जाग गया
तालियां मिलीं
डर भाग गया। 

15. सलाह
घनीभूत पीड़ाएँ
अपनों की शेयर करें
मार्केट गिर रही है
ऐसे में
निवेश न करें।

16. संवाद करना
उसकी उन्मुक्त हँसी
आँखों से
भर रही
‘कविता’
संवाद कर रही।

17. उड़ने लगे
बादलों का क्या
हवा का इशारा मिला
उड़ने लगे
बरसे नहीं!

  • एल.आई.जी.-1, सिंगल स्टोरी, बर्रा-6, कानपुर-208027, उ.प्र. / मोबाइल : 09455511337

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