अविराम ब्लॉग संकलन : वर्ष : 4, अंक : 07-12, मार्च-अगस्त 2015
।।हाइकु / ताँका।।
सामग्री : इस अंक में डॉ. सुरेन्द्र वर्मा व सुश्री कृष्णा वर्मा के हाइकु तथा डॉ. उर्मिला अग्रवाल के ताँका।
डा. सुरेन्द्र वर्मा
हास्य-व्यंग्य हाइकु
मानो न मानो
01.
मानो न मानो
कोयले की दलाली
पैसा सफ़ेद
02.
फूल से ऊबे
तो कांटे सजा लिए
मानो न मानो
03.
मुंह में जीरा
ऊँट लगा छींकने
मानो न मानो
04.
रात अंधेरी
दिखा गयी सच्चाई
मानो न मानो
05.
कसमें खाईं
और पूरी कर दीं
मानो न मानो
छाया चित्र : अभिशक्ति |
आम न खाए
पेड़ गिनाते रहे
मानो न मानो
07.
कोयल चुप
कौए ने गीत छेड़ा
मानो न मानो
08.
मैं चुप रहा
मिट्ठू बोलता रहा
मानो न मानो
09.
नहीं छलकी
अधजल गगरी
मानो न मानो
10.
गंगू तेली ने
राजा को भोज दिया
मानो न मानो
- 10, एच.आई.जी.; 1-सर्कुलर रोड, इलाहाबाद (उ.प्र.) / मोबाइल : 09621222778
कृष्णा वर्मा
{प्रवासी कवयित्री सुश्री कृष्णा वर्मा जी ने हाइकु, ताँका, चोका, सेदोका, माहिया आदि के क्षेत्र में तेजी से काव्य सृजन किया है। उनका पहला हाइकु संग्रह ‘अम्बर बाँचे पाती’ गत वर्ष प्रकाशित हुआ था। उनके इस संग्रह से यहाँ प्रस्तुत हैं कुछ हाइकु।}
हाइकु
01.
नवल पंख
उड़ चले रश्मि के
अलसुबह।
02.
साँझ का सूर्य
छाया चित्र : ज्योत्सना शर्मा |
सागर की गोद में
मुखड़ा लाल।
03.
रोज जन्मती
रात की कोख एक
नया सूरज।
04.
कैसा सृजन
प्रकृति को उजाड़
बुने कफन।
05.
पवन गाए
दाद दें टहनियाँ
शीश डुलाएँ।
06.
जन्मा पलाश
मुखड़े पे लालिमा
होठों पे हास।
07.
पत्तों की टोली
हवा के कांधे चढ़ी
मृत्यु की डोली।
08.
महके क्षण
अँचरा में बाँध के
लाया बसंत
09.
उड़ी फिरे ले
महकता आँचल
किशोरी हवा।
10.
मचला रूप
ओढ़ी जो धरती ने
उजली धूप।
11.
भानु को ज्वर
दुख में तपे धरा
सूखा सागर।
12.
बत्तियाँ जलीं
तुषार के होठों पे
हँसी आ खिली।
13.
स्वप्न साकार
पितृ बल पे उड़ें
पंख पसार।
14.
खुदा ने लिखा
छाया चित्र : अभिशक्ति |
शिला के नसीब में
योगी का साथ
15.
नन्ही गौरैया
पंजों से हस्ताक्षर
करे ज़मी पर।
16.
चढ़ मुंडेर
दीपक ललकारे
तम ना हारे।
17.
होली की रीत
छलकाती गगरी
नेह व प्रीत
- 62, हिलहर्सट ड्राइव, रिचमण्डहिल, ओंटेरियो, कनाडा, एल 4 बी 2 वी 3 / ईमेल : kvermahwg@gmail.com
डॉ. उर्मिला अग्रवाल
{चर्चित कवयित्री डॉ. उर्मिला अग्रवाल का ताँका संग्रह ‘सच के रेगिस्तान’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। संग्रह में उनके छः अध्यायों में विभक्त 226 ताँका संग्रहीत हैं। प्रस्तुत हैं इसी संग्रह से उर्मिला जी के कुछ ताँका।}
ताँका
01.
घंटा बजाया
और आरती भी की
पर कभी भी
गले से न लगाया
किसी मजलूम को
02.
बरसायी है
सूर्यदेव ने आग
जिस तरह
बरसा देगा जल
मेघा उसी तरह
03.
शिशिर-सूर्य
तेरे इंतज़ार में
बैठे हैं हम
लाओ तो धूप शॉल
खरीद लेंगे सब
04.
ग्रीष्म स्वागत
खिला गुलमोहर
लाल चूनर
पहन के धरती
बन गई दुल्हन
05.
रात जो आई
तारे जगमगाए
चाँद मुस्काया
बिखर गई ज्योत्सना
सज गये सपने
06.
पुकारा उसे
तो ठहर गया वो
विस्मित थी मैं
आज ज़िन्दगी कैसे
मेहरबां हो गयी
07.
ख़त लिखेगा
वो कभी मेरे नाम
सोचा था पर
ये मासूम ख़्वाहिश
कभी पूरी न हुई
08.
डूब जाती हूँ
यादों के सागर में
खारा ही सही
पर गहरा तो है
अस्वीकारेगा नहीं
09.
तेरी गली से
रेखा चित्र : रमेश गौतम |
मुड़ गयी हैं राहें
कहीं और को
रुक-रुक जाऊँ मैं
बढ़ें न पग आगे
10.
न भी आओ तो
कोई बात नहीं है
सज जायेगी
अपनी महफ़िल
यादों की शमाओं से
11.
तीखा गरल
भर देते प्राणों में
ये न सोचते
शिव नहीं हूँ मैं
रोक लूँगी कंठ में
12.
ज़िन्दगी भर
कठपुतली जैसे
नाच रही थी
उसके इशारों पे
कि धागे टूट गये
- 15, शिवपुरी, मेरठ-250002 (उ.प्र.) / मोबाइल : 09897079664
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