{यहां साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों के प्राप्त समाचार पूर्ण रूप में दिये जा रहे हैं। मुद्रित अंक में स्थान की उपलब्धता के अनुसार चयनित समाचारों को संक्षिप्त रूप में दिया जायेगा। कृपया समाचार यथासम्भव संक्षिप्त रूप में ही भेजें।}
क्षणिका पर अविराम की प्रकाशन योजना
क्षणिका पर अविराम की ओर से एक महत्वपूर्ण प्रकाशन योजना बनायी जा रही है। इस योजना में शामिल होने के लिए क्षणिकाकार और क्षणिका पर चिन्तन-मनन से जुड़े सभी रचनाकारों से रचनाएँ आमन्त्रित हैं। क्षणिकाकार कम से कम पाँच और और अधिकतम पन्द्रह क्षणिकाएँ भेजें। क्षणिका पर आलेख अविराम के तीन पृष्ठों से अधिक न हों। यदि पहले कभी आपने अपना परिचय/फोटो नहीं भेजा है, तो रचनाओं के साथ अवश्य भेजें। रचनाएँ अविराम के सम्पादकीय पते (डा. उमेश महादोषी, एफ-488/2, गली संख्या 11, राजेन्द्र नगर, रुड़की-247667, जिला- हरिद्वार, उत्तराखण्ड) पर भेजें।
शाहजहाँपुर, उ.प्र. से प्रकाशित कविता की समर्पित लघु पत्रिका का आगामी कोई एक अंक कवयित्री विशेषांक होगा। हिन्दी की कवयित्रियों से रचनाएँ सादर आमन्त्रित हैं। सामग्री (किसी भी विधा की दो कविताएँ तथा फोटो एवं यथासामर्थ्य अर्थ सहयोग) निम्न पते पर भेजी जा सकती है।
विजय कुमार तन्हा, सम्पादक: प्रेरणा, पुवायाँ, जिला- शाहजहाँपुर-242401 (उ.प्र.) मोबाइल: 09450412708/ 09044520208 (प्रस्तुति: विजय कुमार तन्हा)
कादम्बरी संस्था द्वारा साहित्यकार/पत्रकार सम्मान समारोह 2011 का आयोजन/आमन्त्रण
संस्कारधानी जबलपुर (म.प्र.) की साहित्यिक-सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्था ‘कादम्बरी’ विशाल स्तर पर साहित्यकार/पत्रकार सम्मान समारोह 2011 का आयोजन 27 नवम्बर 2011 को जबलपुर में आयोजित कर रही है। इस समारोह में प्राप्त प्रविष्टियों के
आधार पर विभिन्न विधाओं में चुने हुए साहित्यकारों/पत्रकारों को नकद राशि प्रदान कर सम्मानित किया जायेगा। लगभग 25 विषयों पर प्रविष्टियां प्रकाशित कृति/पत्रिका की दो प्रतियाँ, 200/- प्रविष्टि शुल्क, जीवन वृत्त एवं दो छायाचित्रों के साथ 30 सितम्बर 2011 तक आमन्त्रित की गई हैं। विषयों एव अन्य विस्त्रत जानकारी हेतु आयोजकों से निम्न पते पर सम्पर्क किया जा सकता है-
डॉ. गार्गीशरण मिश्र ‘मराल’, 1436/बी, सरस्वती कालौनी, चेरीताल वार्ड, जबलपुर-482002(म.प्र.) दूरभाष 0761-2340036, मोबा. 09425899232। (प्रस्तुति: आचार्य भगवत दुबे, महामंत्री: कादम्बरी)
उद्भ्रांत को वर्ष 2008 का अखिल भारतीय भवानी प्रसाद मिश्र पुरस्कार
भोपाल: विगत 25 अगस्त, 2011 को भारत भवन सभागार में मध्यप्रदेश संस्कृति परिषद की साहित्य अकादमी द्वारा आयोजित एक भव्य समारोह में वरिष्ठ हिंदी कवि श्री उद्भ्रांत को उनकी लम्बी कविता ‘अनाद्यसूक्त’ के लिए अकादमी का वर्ष 2008 का अखिल भारतीय भवानी प्रसाद मिश्र पुरस्कार प्रदान किया गया। ‘पूर्वग्रह’ के 123वें अंक में संपूर्ण प्रकाशित होकर पहले ही चर्चा में आई इस लम्बी कविता को कवि ने नौ स्पंदों में विभक्त किया है। अकादमी द्वारा प्रकाशित अलंकरण समारोह की पुस्तिका में कहा गया है कि कवि ने ‘‘नासदीय सूक्त की परंपरा में नए प्रयोग कर सृष्टि के उन्मेष और रहस्य को जानने के लिए वैदिक और तांत्रिक जानकारी का उपयोग किया है। ऐसी भावभूमि वैदिक और औपनिषद् काव्य के बाद कुछ निर्गुणीय कवियों में ही दिखाई देती है। अनाद्यसूक्त में एक शब्दीय पंक्ति का उपयोग कर उसके भीतर समाहित दार्शनिक अर्थों का संप्रेषण, कवि के सोच को अर्थवान बनाता है।’’
इसके अतिरिक्त निबंध संग्रह ‘विवेचना के सुर’ के लिए प्रो. शरद नारायण खरे (मंडला) को माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार, ‘एक अचानक शाम’ पर कहानी के लिए मनमोहन सरल (मुम्बई) को मुक्तिबोध पुरस्कार, उपन्यास ‘काहे री नलिनी’ के लिए उषा यादव (आगरा) को वीरसिंह देव पुरस्कार और आलोचना पुस्तक ‘गांधी: पत्रकारिता के प्रतिमान’ के लिए डॉ. कमलकिशोर गोयनका (दिल्ली) को आचार्य रामचंद्र शुक्ल पुरस्कार से भी अलंकृत किया गया।
सभी पुरस्कृत रचनाकारों को नारियल, शॉल, सम्मान-पत्र के साथ इक्यावन हज़ार रुपये की धनराशि उत्तर प्रदेश की संस्कृति मंत्री माननीय श्री लक्ष्मीकांत शर्मा द्वारा प्रदान की गयी। (समा. सौजन्य: सुनील द्वारा उद्भ्रान्त)
बहुआयामी है डॉ. ‘मानव’ का साहित्य: डॉ. मुक्ता
हिसार (हरियाणा)। ‘विशिष्ट एवं बहुआयामी है डॉ, रामनिवास ‘मानव’ का साहित्य।’ ये शब्द हैं हरियाणा साहित्य अकादमी की निदेशक डॉ. मुक्ता मदान के, जो उन्होंने विगत दिनों हिसार (हरियाणा) में सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ. राम निवास मानव के हिन्दी साहित्य में योगदान पर मानव भारती शिक्षा समिति, हिसार एवं हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकुला के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित एक राष्ट्रीय साहित्य समारोह में चर्चा के दौरान कहे। इस समारोह में मानव-परिवार की दो दर्जन पुस्तकों के विमोचन के उपरान्त मुख्य अतिथि डॉ. मुक्ता मदान ने डॉ. मानव के विपुल साहित्य को अन्य साहित्यकारों के लिए प्रेरणा का स्रोत बताया। इस अवसर पर समारोह के अध्यक्ष राज्यकवि उदयभानु ‘हंस’ ने गर्व व्यक्त करते हुए कहा कि डा. मानव ने देश और दुनियां में हिसार का नाम रौशन किया है। डॉ.मानव की रचनाओं को ‘युगबोध का दर्पण’ बताते हुए उन्होंने डा. मानव की प्रयोगधर्मिता को भी रेखांकित किया। डॉ. मानव की रचनाओं को ‘युगबोध का दर्पण’ बताते हुए उन्होंने डॉ. मानव की प्रयोगधर्मिता को भी रेखांकित किया। डॉ. मानव ने इस अवसर पर अपनी रचना-प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए युगीन यथार्थ एवं जीवन-संघर्ष को अपने सृजन की प्रेरणा बताया।
सत्यपाल शर्मा के कुशल संचालन में सम्पन्न इस समारोह का आरम्भ महेंद्र जैन द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। कार्यक्रम में डॉ. रमेश सोबती (फगवाड़ा), डॉ. बाबूराम महला एवं हरिप्रकाश तिवारी (कुरूक्षेत्र), गोबिन्द शर्मा (संगरिया), घमंडीलाल अग्रवाल (गुड़गांव), डॉ. विश्वबन्धु शर्मा (रोहतक), डॉ. केवलकृष्ण पाठक (जींद), डॉ. रमाकान्त शर्मा (भिवानी), रोहित यादव (मंडी अटेली), डॉ. सत्यवीर मानव (नरनौल), डॉ. शिवनाथ राय, डॉ. पी.एस. मेहता व यशवंत सिंह बादल (हिसार) आदि ने भी डॉ. मानव के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस अवसर पर डॉ. मानव के साहित्य की प्रदर्शनी भी लगाई गई तथा लगभग एक सौ साहित्यकारों को सम्मानित भी किया गया। (समा. सौजन्य: डॉ. कान्ता भारती, हिसार)
उद्भ्रांत का काव्य-विस्फोट रवीन्द्रनाथ जैसा-नामवर सिंह
नयी दिल्ली। ‘‘कवि उद्भ्रांत की एक साथ तीन नयी काव्य-कृतियों का लोकार्पण अद्भुत ही नहीं ऐतिहासिक भी है। उद्भ्रांत जैसी और जिस परिमाण में कविताएं लिख रहे हैं वह उनकी प्रतिभा का बड़ा रचनात्मक विस्फोट है। रवीन्द्रनाथ में भी ऐसा ही विस्फोट हुआ था। इतनी कविताओं का लिखना उनकी प्रतिभा का विस्फोट तो है ही, साथ ही इनकी सर्जनात्मक ऊर्जा की भी दाद देनी होगी।’’ ये बातें मूर्द्धन्य आलोचक डॉ. नामवर सिंह ने उद्भ्रांत की तीन काव्य-कृतियों ‘अस्ति’ (कविता संग्रह), ‘अभिनव पांडव’ (महाकाव्य) एवं
‘राधामाधव’ (प्रबंध काव्य) के लोकार्पण के अवसर पर शुक्रवार दिनांक 17 जून, 2011 को हिन्दी भवन, दिल्ली में आयोजित ‘समय, समाज, मिथक: उद्भ्रांत का कवि-कर्म’ विषयक संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए कहीं।
नामवर जी ने उद्भ्रांत के पूरे रचनात्मक जीवन पर प्रकाष ड़ालते हुए कहा कि उनकी ‘सूअर’ शीर्षक कविता नागार्जुन की मादा सूअर पर लिखी कविता के बाद उसी विषय पर ऐसी कविता लिखने के उनके साहस को प्रदर्शित करती है जिसके लिये वे बधाई के पात्र हैं। उनकी सर्जनात्मक ऊर्जा की दाद देनी होगी। पांच सौ पृष्ठों के कविता संग्रह ‘अस्ति’ का लोकार्पण करते हुए उन्होंने कहा कि कवि अपने शब्दों के द्वारा इसी दुनिया में एक समानान्तर दुनियां रचता है, जो विधाता द्वारा रची दुनिया से अलग होकर भी संवेदना से भरपूर होती है। मिथकों को माध्यम बनाकर उन्होंने जो रचनाएं की हैं, वे भी उनकी समकालीन दृष्टि के साथ उनकी बहुमुखी उर्वर प्रतिभा को प्रदर्शित करती हैं।
मुख्य वक्ता वरिष्ठ आलोचक डॉ. शिवकुमार मिश्र ने ‘अभिनव पांडव’ (महाकाव्य) का लोर्कापण करते हुए कहा कि इसमें कवि ने महाभारत का एक तरह से पुनर्पाठ आधुनिक संदर्भ में बेहद गंभीरता के साथ किया है। युधिष्ठिर को केन्द्र में रखकर जिस तरह से उनको और उनके माध्यम से महाभारत के दूसरे महत्त्वपूर्ण चरित्रों को वे प्रश्नों के घेरे में लाये हैं, वह अद्भुत है और इससे युधिष्ठिर और अन्य मिथकीय चरित्रों के दूसरे पहलुओं के बारे में जानने का भी हमें मौक़ा मिलता है। महाकवि प्रसाद की ‘कामायनी’ से तुलना करते हुए उन्होंने कहा कि वह महाकाव्य नहीं है, लेकिन महत् काव्य ज़रूर है। ‘अभिनव पांडव’ को कवि ने महाकाव्य कहा है और अपनी भूमिका ‘बीजाक्षर’ में इस सम्बंध में बहस की है और अपने तर्क दिये हैं, लेकिन मैं इसे विचार काव्य कहूँगा जो महत् काव्य भी है और मेरा विश्वास है कि आने वाले समय में हिन्दी के बौद्धिक समाज में यह व्यापक विचारोत्तेजना पैदा करेगा। उन्होंने कहा कि ‘राधामाधव’ काव्य बहुत ही मनोयोग से लिखा गया काव्य है, जिस पर बिना गहराई के साथ अध्ययन किए जल्दबाजी में टिप्पणी नहीं की जा सकती। इनकी रचनाएं समय की कसौटी पर खरी उतरी हैं। अपनी पचास वर्ष से अधिक समय की रचना-यात्रा में उनके द्वारा पचास-साठ से अधिक पुस्तकें लिखना सुखद आश्चर्य का विषय है।
वरिष्ठ आलोचक डॉ. नित्यानंद तिवारी ने ‘राधामाधव’ का लोकार्पण करते और कवि की अनेक रचनाओं के उदाहरण देते हुए कहा कि उनके पास कहने को बहुत कुछ है और लिखने की शैली भी अलग है। मिथकों को लेकर उन्होंने कई रचनाएं की हैं जो अपने आप में महत्त्वपूर्ण हैं। इसमें संदेह नहीं कि वे हिन्दी के सुप्रतिष्ठित कवि हैं। उनका रचनात्मक आवेग बहुत तीव्र है और उनके पास अक्षय भंडार है। पूतना के माध्यम से आदिवासी स्त्री जीवन का चरित्र-चित्रण अनोखा है। कवि ने अपने सम्पूर्ण काव्य-सृजन को समकालीन बनाने की हर संभव कोशिश की है जिसके लिए उनकी प्रशंसा की जानी चाहिए। सत्यप्रकाश मिश्र, राममूर्ति त्रिपाठी और रमाकांत रथ जैसे अनेक भारतीय विद्वानों ने उनकी इस विशिष्टता को रेखांकित भी किया है। कवि लीलाधर मंडलोई ने कहा कि बिना राधा के आख्यान को रचे राधाभाव को रचना ‘राधामाधव’ का महत्त्वपूर्ण तत्व है। इसमें स्त्री विमर्श भी है जिससे कवि की अलग पहचान बनती है। इनके समूचे साहित्य में मूल पंूजी आख्यान है और आख्यान को साधना बहुत बड़ी बात है।
आलोचक डॉ. संजीव कुमार ने कहा कि विवेच्य संग्रह ‘अस्ति’ में इतनी तरह की और इतने विषयों की कविताएं हैं जो पूरी दुनिया को समेटती हैं। उद्भ्रांत जी की कविताओं में पर्यावरण के साथ-साथ पशु-पक्षियों और संसार के समस्त प्राणियों की संवेदना को महसूस किया जा सकता है। संग्रह की अनेक कविताएं अद्भुत हैं। साहित्यकार धीरंजन मालवे ने कविता संग्रह ‘अस्ति’ पर केन्द्रित आलेख का पाठ करते हुए कहा कि कवि ने कविता की हर विधा को सम्पूर्ण बनाने में अपनी भूमिका निभाई है और उनकी कृतियों से यह साफतौर पर ज़ाहिर होता है कि उद्भ्रांत नारी-सशक्तीकरण के प्रबल पक्षधर हैं। इसके साथ ही उन्होंने दलित चेतना के साथ अनेक विषयों पर बेहतरीन कविताएं लिखीं हैं।
संगोष्ठी का बीज-वक्तव्य देते हुए जनवादी लेखक संघ की दिल्ली इकाई के सचिव प्रखर आलोचक डॉ. बली सिंह ने कहा कि आज के दौर में इतने तरह के काव्यरूपों में काव्य रचना बेहद मुश्किल है, लेकिन उद्भ्रांत जी इसे संभव कर रहे हैं। उनकी कविताएं विचारों से परिपूर्ण हैं। यहाँ सांस्कृतिक मसले बहुत आये हैं और पहले की अपेक्षा उनकी कविताओं में स्मृतियों की भूमिका बढ़ी है। ‘राधामाधव’ स्मृतियों का विलक्षण काव्य है। ‘अभिनव पांडव’ में स्त्रियों के प्रति बराबरी के दर्जे के लिये कई सवाल उठाये गये हैं जो आज के दौर में अत्यंत प्रासंगिक हैं। उन्होंने इस उत्तर आधुनिक समय में आई उद्भ्रांत की मिथकाधारित और विचारपूर्ण समकालीन कविताओं को बहुत महत्त्वपूर्ण बताया।
कुछ वक्ताओं का कहना था कि हिन्दी और भारतीय भाषाओं में है ही, मगर संभवतः यह विश्व की किसी भी भाषा में आया इतना बड़ा पहला वृहद्काय काव्य संग्रह होगा।
प्रारम्भ में कवि उद्भ्रांत ने तीनों लोकार्पित कृतियों की चुनिंदा कविताओं और काव्यांशों का प्रभावशाली पाठ करने के पूर्व ‘अस्ति’ (कविता संग्रह)-जिसे उन्होंने ‘कविता और जीवन के प्रति आस्थावान अपने सुधी और परम विश्वसनीय पाठक-मित्र के निमित्त’ समर्पित किया है-कीे प्रथम प्रति बड़ी संख्या में उपास्थित सुधी श्रोताओं में एक वरिष्ठ कवि श्री शिवमंगल सिद्धांतकर को तथा ‘राधामाधव’ (काव्य)-जिसे उन्होंने पत्नी और तीनों बेटियों के नाम समर्पित किया है-की प्रथम प्रति श्रीमति ऊषा उद्भ्रांत को भेंट की।
कार्यक्रम का कुशल संचालन करते हुए दूरदर्शन महानिदेशालय के सहायक केन्द्र निदेशक श्री पी.एन. सिंह द्वारा कवि के सम्बंध में दी गई इन दो महत्त्वपूर्ण सूचनाओं ने सभागार में मंच पर उपस्थित विद्वानों और सुधी श्रोताओं को हर्षित कर दिया कि वर्ष 2008 में ‘पूर्वग्रह’ (त्रैमासिक) में प्रकाशित उनकी जिस महत्त्वूपर्ण लम्बी कविता ‘अनाद्यसूक्त’ के पुस्तकाकार संस्करण को लोकार्पित करते हुए नामवर जी ने उसे उस समय तक की उनकी सर्वश्रेष्ठ कृति घोषित किया था-को वर्ष 2008 के ‘अखिल भारतीय भवानी प्रसाद मिश्र पुरस्कार’ से सम्मानित करने की घोषणा हुई है। इसके अलावा उडीसा से पद्मश्री श्रीनिवास उद्गाता जी-जिन्होंने रमाकांत रथ के ‘सरस्वती सम्मान’ से अलंकृत काव्य ‘श्रीराधा’ का उड़िया से हिन्दी में तथा धर्मवीर भारती की ‘कनुप्रिया’ का हिन्दी से उड़िया में काव्यानुवाद किया था-ने कवि को सूचित किया है कि वे आज लोकार्पित ‘राधामाधव’ का भी हिन्दी से उड़िया में काव्यानुवाद कर रहे हैं जो बहुत जल्द उड़िया पाठक-समुदाय के समक्ष आयेगा। धन्यवाद-ज्ञापन हिन्दी भवन के प्रबंधक श्री सपन भट्टाचार्य ने किया।
समारोह में दूरदर्षन, आकाशवाणी और प्रमुख समाचार एजेंसियों के प्रतिनिधियों के साथ ‘समयांतर’ के संपादक पंकज बिष्ट, कथाकार प्रदीप पंत, डॉ. धीरेन्द्र सक्सेना, अषोक गुप्ता, हीरालाल नागर, रेखा व्यास सहित बड़ी संख्या में राजधानी के साहित्य-प्रेमियों की उपस्थिति रही।( प्रस्तुति: तेजभान, ए-131, जहांगीरपुरी,नई दिल्ली-110033, मोबाईल: 9968423949)
अंडमान में ’सरस्वती सुमन’ के लघुकथा विशेषांक का विमोचन
अंडमान-निकोबार द्वीप समूह की राजधानी पोर्टब्लेयर में सामाजिक-सांस्कृतिक संस्था ‘चेतना’ के तत्वाधान में स्वर्गीय सरस्वती सिंह की 11 वीं पुण्यतिथि पर 26 जून, 2011 को मेगापोड नेस्ट रिसार्ट में आयोजित एक कार्यक्रम में देहरादून से प्रकाशित ‘सरस्वती सुमन’ पत्रिका के लघुकथा विशेषांक का विमोचन किया गया। इस अवसर पर ‘बदलते दौर में साहित्य के सरोकार’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन भी किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में श्री एस. एस. चौधरी, प्रधान वन सचिव, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, अध्यक्षता देहरादून से पधारे डा. आनंद सुमन सिंह, प्रधान संपादक-सरस्वती सुमन एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में श्री कृष्ण कुमार यादव, निदेशक डाक सेवाएँ, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, डा. आर. एन. रथ, विभागाध्यक्ष, राजनीति शास्त्र, जवाहर लाल नेहरु राजकीय महाविद्यालय, पोर्टब्लेयर एवं डा. जयदेव सिंह, प्राचार्य टैगोर राजकीय शिक्षा महाविद्यालय, पोर्टब्लेयर उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का आरंभ पुण्य तिथि पर स्वर्गीय सरस्वती सिंह के स्मरण और तत्पश्चात उनकी स्मृति में जारी पत्रिका ‘सरस्वती सुमन’ के लघुकथा विशेषांक के विमोचन से हुआ। इस विशेषांक का अतिथि संपादन चर्चित साहित्यकार और द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवा श्री कृष्ण कुमार यादव द्वारा किया गया है। अपने संबोधन में मुख्य अतिथि एवं द्वीप समूह के प्रधान वन सचिव श्री एस.एस. चौधरी ने कहा कि सामाजिक मूल्यों में लगातार गिरावट के कारण चिंताजनक स्थिति पैदा हो गई है। ऐसे में साहित्यकारों को अपनी लेखनी के माध्यम से जन जागरण अभियान शुरू करना चाहिए। उन्होंने कहा कि आज के समय में लघुकथाओं का विशेष महत्व है क्योंकि इस विधा में कम से कम शब्दों के माध्यम से एक बड़े घटनाक्रम को समझने में मदद मिलती है। उन्होंने कहा कि देश-विदेश के 126 लघुकथाकारों की लघुकथाओं और 10 सारगर्भित आलेखों को समेटे सरस्वती सुमन के इस अंक का सुदूर अंडमान से संपादन आपने आप में एक गौरवमयी उपलब्धि मानी जानी चाहिए।
युवा साहित्यकार एवं निदेशक डाक सेवा श्री कृष्ण कुमार यादव ने बदलते दौर में लघुकथाओं के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि भूमण्डलीकरण एवं उपभोक्तावाद के इस दौर में साहित्य को संवेदना के उच्च स्तर को जीवन्त रखते हुए समकालीन समाज के विभिन्न अंतर्विरोधों को अपने आप में समेटकर देखना चाहिए एवं साहित्यकार के सत्य और समाज के सत्य को मानवीय संवेदना की गहराई से भी जोड़ने का प्रयास करना चाहिये। श्री यादव ने समाज के साथ-साथ साहित्य पर भी संकट की चर्चा की और कहा कि संवेदनात्मक सहजता व अनुभवीय आत्मीयता की बजाय साहित्य जटिल उपमानों और रूपकों में उलझा जा रहा है, ऐसे में इस ओर सभी को विचार करने की जरुरत है।
संगोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए डा. जयदेव सिंह, प्राचार्य टैगोर राजकीय शिक्षा महाविद्यालय, पोर्टब्लेयर ने कहा कि साहित्य के क्षेत्र में समग्रता के स्थान पर सीमित सोच के कारण उन विषयों पर लेखन होने लगा है जिनका सामाजिक उत्थान और जन कल्याण से कोई सरोकार नहीं है। केंद्रीय कृषि अनुसन्धान संस्थान के निदेशक डा. आर. सी. श्रीवास्तव ने इस बात पर चिंता व्यक्त की कि आज बड़े पैमाने पर लेखन हो रहा है लेकिन रचनाकारों के सामने प्रकाशन और पुस्तकों के वितरण की समस्या आज भी मौजूद है। उन्होंने समाज में नैतिकता और मूल्यों के संर्वधन में साहित्य के महत्व पर विस्तार से प्रकाश डाला। डा. आर. एन. रथ, विभागाध्यक्ष, राजनीति शास्त्र, जवाहर लाल नेहरु राजकीय महाविद्यालय ने अंडमान के सन्दर्भ में भाषाओं और साहित्य की चर्चा करते हुए कहा कि यहाँ हिंदी का एक दूसरा ही रूप उभर कर सामने आया है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि साहित्य का एक विज्ञान है और यही उसे दृढ़ता भी देता है।
अंडमान से प्रकाशित एकमात्र साहित्यिक पत्रिका ‘द्वीप लहरी’ के संपादक डा. व्यास मणि त्रिपाठी ने साहित्य में उभरते दलित विमर्श, नारी विमर्श, विकलांग विमर्श को केन्द्रीय विमर्श से जोड़कर चर्चा की और बदलते दौर में इसकी प्रासंगिकता को रेखांकित किया। उन्होंने साहित्य पर हावी होते बाजारवाद की भी चर्चा की और कहा कि कला व साहित्य को बढ़ावा देने के लिए लोगों को आगे आना होगा। पूर्व प्राचार्य डा. संत प्रसाद राय ने कहा कि कहा कि समाज और साहित्य एक सिक्के के दो पहलू हैं और इनमें से यदि किसी एक पर भी संकट आता है, तो दूसरा उससे अछूता नहीं रह सकता।
कार्यक्रम के अंत में अपने अध्यक्षीय संबोधन में ‘‘सरस्वती सुमन’’ पत्रिका के प्रधान सम्पादक डॉ0 आनंद सुमन सिंह ने पत्रिका के लघुकथा विशेषांक के सुन्दर संपादन के लिए श्री कृष्ण कुमार यादव को बधाई देते हुए कहा कि कभी ‘काला-पानी’ कहे जानी वाली यह धरती क्रन्तिकारी साहित्य को अपने में समेटे हुए है, ऐसे में ‘सरस्वती सुमन’ पत्रिका भविष्य में अंडमान-निकोबार पर एक विशेषांक केन्द्रित कर उसमें एक आहुति देने का प्रयास करेगी। उन्होंने कहा कि सुदूर विगत समय में राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तमाम घटनाएं घटी हैं और साहित्य इनसे अछूता नहीं रह सकता है। अपने देश में जिस तरह से लोगों में पाश्चात्य संस्कृति के प्रति अनुराग बढ़ रहा है, वह चिन्ताजनक है एवं इस स्तर पर साहित्य को प्रभावी भूमिका का निर्वहन करना होगा। उन्होंने रचनाकरों से अपील की कि वे सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों को ध्यान में रखकर स्वस्थ्य समाज के निर्माण में अपनी रचनात्मक भूमिका निभाएं। इस अवसर पर डा. सिंह ने द्वीप समूह में साहित्यिक गतिविधियों को बढ़ावा देने के लिए और स्व. सरस्वती सिंह की स्मृति में पुस्तकालय खोलने हेतु अपनी ओर से हर संभव सहयोग देने का आश्वासन दिया।
कार्यक्रम के आरंभ में संस्था के संस्थापक महासचिव एवं आकाशवााणी के उप निदेशक (समाचार) दुर्ग विजय सिंह दीप ने अतिथियों और उपस्थिति का स्वागत करते हुए आज के दौर में हो रहे सामाजिक अवमूल्यन पर चिंता व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन संस्था के उपाध्यक्ष अशोक कुमार सिंह ने किया और संस्था की निगरानी समिति के सदस्य आई.ए. खान ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस अवसर पर विभिन्न द्वीपों से आये तमाम साहित्यकार, पत्रकार व बुद्धिजीवी उपस्थित थे।(प्रस्तुति: दुर्ग विजय सिंह दीप, महासचिव चेतना एवं उप निदेशक, समाचार, आकाशवाणी, पोर्टब्लेयर)
कवि-व्यंग्यकार प्रशान्त उपाध्याय को साहित्य सम्मान
सुप्रसिद्ध कवि एवं व्यंग्यकार प्रशान्त उपाध्याय को साहित्य के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट एवं सतत योगदान के लिए हिन्दी साहित्य सभा एवं हर प्रसाद व्यवहार अध्ययन संस्थान आगरा द्वारा शम्भूनाथ अग्रवाल स्मृति साहित्य सम्मान से सम्मानित किया गया। देश के कई वरिष्ठ साहित्यकारों की उपस्थिति में सम्पन्न इस समारोह के मुख्य अतिथि थे पद्म श्री डा. लाल बहादुर सिंह चौहान।
इस अवसर पर डा. महेश भार्गव की अध्यक्षता में एक कवि सम्मेलन भी आयोजित किया गया। कवि सम्मेलन में रामेन्द्र मोहन त्रिपाठी, प्रशान्त उपाध्याय, ओम प्रकाश अज्ञात, हरिश्चन्द हरि, शिव सागर शर्मा, डा. शुभदा पाण्डेय, शकुन्तला सरूपिया, डा. रजनी कुलश्रेष्ठ आदि की सहभगिता रही। कार्यक्रम के संयोजक-संचालक थे डा. राज कुमार रंजन। (प्रस्तुति: डॉ. राज कुमार रंजन)
कवि-कथाकार नरेश उदास की तीन कृतियों का विमोचन
हिन्दी साहित्य निर्झर मंच (पंजीकृत) पालमपुर (हि.प्र.) के तत्वावधान में न्यूगल पब्लिक विद्यालय में एक साहित्यिक समारोह में वरिष्ठ कवि-कथाकार नरेश कुमार उदास की तीन पुस्तकों का विमोचन किया गया। समारोह के प्रथम सत्र में काव्य संग्रह ‘हमारे सपनों के हत्यारे’ का विमोचन वरिष्ठ साहित्यकार श्री राम कुमार आत्रेय ने, कहानी संग्रह ‘माँ गाँव छोड़ना नहीं चाहती’ का विमोचन सुजानपुर, पंजाब से पधारे हिन्दी व पंजाबी के वरिष्ठ कथाकार डा. लेख्राज ने तथा तीसरी पुस्तक- बाल कहानी संग्रह ‘बच्चे होते हैं अच्छे’ का विमोचन स्थानीय विद्वान एवं विद्यालय के प्राचार्य श्री वासुदेव शर्मा ने किया।
काव्य संग्रह ‘हमारे सपनों के हत्यारे’ का विमोचन करते हुए समारोह के अध्यक्ष एवं कुरुक्षेत्र, हरियाणा से पधारे वरिष्ठ साहित्यकार श्री राम कुमार आत्रेय ने कहा कि उदास जी की कविताओं को मैं पिछले ढाई दशक से भारत-भर की पत्र-पत्रिकाओं में छपते देखता आ रहा हूँ,इन रचनाओं में जन-जन की पीड़ा का यथार्थवादी चित्रण है। हिन्दी व पंजाबी के वरिष्ठ कथाकार डा. लेखराज जी ने कहा कि उदास जी की कहानियों का उन्होंने पंजाबी में अनुवाद किया है और वे प्रकाशित भी हुई हैं। इनकी कहानियों में ग्राम्यबोध के साथ महानगरीय जीवन का भी सजीव चित्रण है, जो मानवीय जीवन के उतार-चढ़ावों, ह्वास, एकाकीपन की पीड़ा से परिचित करवाता है और मृत पड़ी मानवीय संवेदनाओं को अनुप्राणित करता है। वास्तव में उदास जी की विभिन्न विषयों पर सभी कहानियां बेजोड़ हैं।
प्राचार्य श्री वासुदेव शर्मा ने कहा कि साहित्य का जीवन पर गहरा असर होता है, क्योंकि साहित्य में जीवन की सच्चाई छुपी होती है, जो हमे सदैव राह दिखाती है। उदास जी की रचनाएँ इसी का आइना हैं। ये बाल कविताएं बच्चों को नया उजास-नई रोशनी देकर उनमें नये जोश का संचार करेंगी तथा उन्हें भारतीय संस्कृति से जोड़ने का काम करेंगी। कार्यक्रम के दूसरे सत्र में एक काव्य गोष्ठी का आयोजन रामकुमार आत्रेय एवं डॉ. दर्शन त्रिपाठी की अध्यक्षता व कमलेश सूद के संचालन में किया गया। इसमें गोपाल शर्मा ‘फिरोजपुरी’, डॉ. लेखराज, यशपाल शर्मा, राम कुमार आत्रेय, राधेश्याम भारतीय, नरेश कुमार उदास, अमर तनोत्रा, सुदेश शर्मा, कृष्णा अवस्थी, कमलेश सूद, उषा कलिया तथा रुचि शर्मा आदि ने काव्य-पाठ किया।
कार्यक्रम के अन्त में सभी ने उदास जी के स्वर्गीय पुत्र आकाश दीप को हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उसकी आत्मा की शान्ति के लिए ईश्वर से प्रार्थना की। ज्ञात है कि उदास जी के इकलौते पुत्र आकाश दीप का कुछ माह पूर्व असामयिक निधन हो गया था। आकाशदीप होनहार नवयुवक था तथा भारतीय स्टेट बैंक, गुरुदासपुर में अधिकारी संवर्ग में कार्यरत था। (प्रस्तुति: रुचि शर्मा, पालमपुर)
‘जतन से ओढ़ी चदरिया’ तथा ‘कल्पान्त’ के कीर्तिवर्द्धन विशेषांक का लोकार्पण
दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मलेन द्वारा डॉ ए. कीर्तिवर्धन की बुजुर्गों की दशा एवं दिशा पर केन्द्रित ग्रन्थ ‘जतन से ओढ़ी चदरिया’ तथा साहित्य की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘कल्पान्त’ के डा. ए. कीर्तिवर्धन पर केन्द्रित विशेषांक का लोकार्पण हिंदी भवन मे सुप्रसिद्ध समाज सेविका ,वरिष्ठ नागरिक केसरी क्लब की संस्थापिका श्रीमती किरण चोपड़ा द्वारा किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ महेश शर्मा, पूर्व महापौर एवं अध्यक्ष दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मलेन ऩे की। मुख्य वक्ता के रूप मे आकाशवाणी से कार्यक्रम अधिकारी डॉ हरी सिंह पाल, श्रीमती इंदिरा मोहन, महामंत्री दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मलेन तथा दिल्ली पब्लिक स्कूल के डॉ रामगोपाल वर्मा उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ रवि शर्मा ने किया।
कार्यक्रम का प्रारंभ दीप प्रज्वलन से किया गया। सभी अथितियों को पुष्प-गुच्छ से श्रीमती रजनी अग्रवाल, डॉ सुधा शर्मा, सुरम्या, वैभव वर्धन आदि ने सम्मानित किया। तत्पश्चात श्री महेश शर्मा ने डॉ ए. कीर्तिवर्धन के व्यक्तित्व तथा साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डाला। श्री शर्मा जी ने कहा कि पाश्चात्य संस्कृति का प्रभाव और एकल परिवार के कारण समाज मंे वरिष्ठ नागरिकों की समस्याएँ दिन प्रतिदिन बढती जा रही हैं। इस पुस्तक में डॉ ए. कीर्तिवर्धन ऩे इस समस्या को बखूबी उजागर किया है। उन्होंने कहा कि माता पिता संतान के लिए सदैव पूज्यनीय हैं, यही हमारी संस्कृति एवं परंपरा की देन है।
मुख्य अतिथि के रूप में बोलते हुए श्रीमती किरण चोपड़ा ऩे कहा कि बुजुर्ग होना सौभाग्य की बात है। डॉ ए कीर्तिवर्धन ने बुजुर्गों की चिंताओं को समाज के सम्मुख लाने का स्तुत्य प्रयास किया है। यह ऐसा ग्रन्थ है जो समस्याओं का निदान भी बताता है। प्रत्येक आयु वर्ग के लिए मार्ग दर्शक के रूप में इसका अति महत्व है। इस ग्रन्थ की प्रतियाँ प्रत्येक पुस्तकालय तथा प्रत्येक घर में होनी चाहिए। उन्होंने यह भी अनुरोध किया कि डॉ ए. कीर्तिवर्धन से इसे खरीद कर बुजुर्गों तक अवश्य पहुंचाएं। श्रीमती किरण चोपड़ा ऩे वरिष्ठ नागरिक क्लब से भी डॉ ए. कीर्तिवर्धन को जुड़ने का आह्वान किया तथा कहा कि कि ग्रन्थ ‘जतन से ओढ़ी चदरिया’ की सामग्री को विभिन्न प्रकाशनों के द्वारा भी समाज तक पहुँचाने का प्रयास करेंगी।
वक्ता के रूप में डॉ हरी सिंह पाल ने डॉ कीर्तिवर्धन के व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए उन्हें मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण बताया और कहा कि इन्ही संवेदनाओं के कारण यह ग्रन्थ आ पाया जिसके प्रकाशन में सम्पूर्ण व्यय स्वयं डॉ ए. कीर्तिवर्धन द्वारा किया गया। उन्होंने जतन से ओढ़ी चदरिया के महत्वपूर्ण बिन्दुओं पर प्रकाश डाला। ग्रन्थ में मौजूद सूक्तियों तथा लघु प्रसंगों को भी उन्होंने महत्वपूर्ण बताते हुए कहा कि यह ग्रन्थ रामायण की तरह घर में रखने तथा पढ़ने के लिए उत्तम है। इससे आज के भटकते समाज को दिशा मिलेगी। इस बीच शिकागो से कीर्तिवर्धन जी की प्रशंसिका गुड्डों दादी के मोबाइल सन्देश से पूरा हॉल तालियों की गडगडाहट से भर गया।
श्रीमती इंदिरा मोहन ने पुस्तक में समाहित लेखों, सम्पादकीय तथा काव्य खंड के प्रसंगों का उल्लेख करते हुए कि विद्वानों ऩे सच्चे अर्थों में कर्त्तव्य बोध कराया है। श्रीमती मोहन ने कहा कि डॉ ए. कीर्तिवर्धन मानवीय मूल्य एवं विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं। दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मलेन उनकी सराहना करता है। जतन से ओढ़ी चदरिया तथा कल्पान्त के विशेषांक का लोकार्पण संस्था के बैनर तले कर हम गौरवान्वित हुए हैं। उन्होंने कहा कि इस ग्रन्थ का एक-एक शब्द प्रत्येक पीढ़ी के लिए मार्ग दर्शक कि तरह है। इसके पढ़ने तथा इस पर अमल कराने से एकल परिवारों की स्थापना होगी।
चर्चा को आगे बढ़ाते हुए डॉ रामगोपाल वर्मा ऩे कहा कि डॉ रवि शर्मा तथा कल्पान्त के संस्थापक संपादक डॉ मुरारी लाल त्यागी ने डॉ ए कीर्तिवर्धन पर ‘साहित्य का कीर्तिवर्धन‘ निकाल कर सही व्यक्ति का चयन किया है। वास्तव में डॉ कीर्तिवर्धन इसके लिए सर्वथा उपयुक्त व्यक्ति हैं। कल्पान्त में देश के कोने कोने से आये उनके मित्रों, साहित्यकारों तथा पाठकों के विचार उनकी लोकप्रियता का प्रतीक हैं। कीर्तिवर्धन जी लगभग १७ राज्यों से प्रकाशित होने वाले ३५० से अधिक पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहते हैं। वह बहुत मिलनसार, मानवीय तथा चिन्तक हैं।
डॉ रवि शर्मा ने बताया कि डॉ कीर्तिवर्धन की अब तक ७ पुस्तकें आ चुकी हैं। उनकी रचनाएँ सभी वर्ग के पाठकों के द्वारा सराही जाती हैं। उनकी लेखनी विभिन्न विषयों पर चलती है जिसमंे दलित चेतना, नारी मुक्ति, आतंकवाद जैसे विषय हैं तो बालमन का ससक्त चित्रण भी दिखाई देता है। आपकी कुछ कविताओं का चयन महाराष्ट्र में नए पाठ्यक्रम में चयन के लिए किया गया है तथा ‘सुबह सवेरे’ बिहार, उत्तरप्रदेश तथा उत्तराखंड के अनेक विद्यालयों में पढाई जाती है। इस अवसर पर श्रीमती सुधा शर्मा तथा सुरम्या शर्मा द्वारा डॉ ए कीर्तिवर्धन की कविताओं का पाठ किया गया।
डॉ ए कीर्तिवर्धन ने अपने वक्तव्य में अपने लेखन का श्रेय अपने पाठकों, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के संपादकों, अपनी पत्नी तथा पुत्र को दिया। उन्होंने अपने बैंक के साथियों का भी धन्यवाद् किया जिनका सहयोग उन्हें प्रतिदिन मिलता है। दिल्ली हिंदी साहित्य सम्मलेन, श्री महेश चंद शर्मा, श्रीमती इंदिरा मोहन का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि सम्मलेन के इस प्रकार लेखकों को प्रोत्साहित कराने के प्रयास अनुकरणीय हैं। श्रीमती किरण चोपड़ा जी का भी आभार करते हुए कहा की मुझसे जो भी कार्य बुजुर्गों के हित में हो सकेगा, कराने का प्रयास करूँगा। उन्होंने सभी वक्ताओं, डॉ रवि शर्मा, डॉ सुधा शर्मा, सुरम्या तथा सम्मलेन में आये सभी अतिथियों के प्रति भी कृतज्ञता ज्ञापित की।
सम्मलेन के उपाध्यक्ष श्री गौरी शंकर भारद्वाज ऩे सभी का आभार प्रकट किया। इस अवसर पर लाला जयनारायण खंडेलवाल, श्री अरुण बर्मन, श्यामसुंदर गुप्ता, श्री सुरेश खंडेलवाल, श्री स प सिंह, श्री प्रकाश, श्री अनमोल, श्री लक्ष्मीनारायण भाटिया, संपादक जनसंघ वाणी, श्री प्रदीप सलीम संपादक युद्ध भूमि, श्री गोपल किशन मिश्र संपादक संवाद दर्पण, संपादक बिहारी खबर, आकाशवाणी से संवाददाता, नैनीताल बैंक के सहायक महाप्रबंधक श्री के एस मेहरा, चीफ मेनेजर श्री रमण गुप्ता, वी के महरोत्रा, श्री देश दीप, श्री राकेश गुप्ता, श्री मनोज शर्मा सहित अनेकों बैंक कर्मचारियों, श्री लालबिहारी लाल, श्री यू.एस. मिश्र, अनिल चौधरी, भल्ला जी, मोहन पाण्डेय जैसे अनेकों साहित्य प्रेमियों, डॉ ए कीर्तिवर्धन के परिवार जनों सहित बड़ी संख्या में लोगों ऩे भाग लिया। (प्रस्तुति: लाल बिहारी लाल तथा डॉ रवि शर्मा, नई दिल्ली/दिल्ली साहित्य सम्मेलन की ओर से नवीन झा )
होशंगाबाद में लोकार्पण एवं अभिनन्दन समारोह
विगत गुरु पूर्णिमा पर होशंगाबाद (म.प्र.) में शिव शक्ति संकल्प साहित्य परिषद की सम्मान श्रंखला के अन्तर्गत डॉ. हरिशंकर द्विवेदी की अध्यक्षता में आयोजित एक समारोह में ‘गिरिमोहन गुरु के काव्य का समीक्षात्मक अध्ययन’ (लघुशोध), पंचगव्यम पर रचनेश भारती का शोध प्रबन्ध, ‘आपकी सृष्टि मेरी दृष्टि’ (नर्मदा प्रसाद मालवीय की कृति) एवं हस्तलिप्यांकित ‘हस्ताक्षर श्री एवं दोहा सन्दर्भ-2’ का लोकार्पण किया गया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे श्री एस.पी.एस. यादव (पूर्व जि.शि.अधि.) एवं श्रीमती माया नारोलिया (नगरपालिका अध्यक्षा)। डॉ. आर.पी.सीठा, पत्रकार पंकज पटरिया एवं संगीत निर्देशक बृजमोहन पाण्डे की विशेष उपस्थिति में सम्पन्न इस कार्यक्रम में सत्रह साहित्यकारों को परिषद की विभिन्न मानद उपाधियों से सम्मानित किया गया। इनमें डॉ. मुचकुन्द शर्मा (काव्य कौस्तुभ), बृजकिशोर पटैल(साहित्य गौरव), डॉ. पशुपतिनाथ उपाध्याय(समीक्षा श्री), श्रीमति कमला सक्सेना (गीत श्री), श्री अशोक स्याल(साहित्य सौरभ), श्री भीमपुरी गोस्वामी (समाज गौरव), श्री सुरेन्द्र प्रसाद गिरि (काव्य सुमन), श्रीमती निर्मला गोस्वामी (साहित्य सुरभि), श्री अश्विनी कुमार पाठक (काव्य भ्रमर), श्रीमती भारती मिश्रा (साहित्य रश्मि), श्री प्रकाश वैश्य (हिमांशु सम्मान), श्री श्याम अंकुर (काव्य कुसुम), श्री राम किशोर कपूर(साहित्य सिन्धु), श्री साधु शरण शर्मा (छन्द श्री), श्रीमती दुर्गा पाठक भारती (साहित्य निधि), श्रीमती अर्चना मिश्रा (काव्य कोकिला)एवं श्री गंगाराम शास्त्री (साहित्य वारिधि) शामिल हैं। इस अवसर पर डॉ. गिरजाशंकर शर्मा, हरिशंकर, जगदीश बाजपेयी, डॉ. शोभा दुबे, सुदीप जैवार, श्रीमती निशा डाले, गौरी शंकर वशिष्ट, नित्य गोपाल कटारे आदि नगर के अनेक साहित्यकार व गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। कार्यक्रम का संचालन संस्था के संस्थापक नगर श्री पं. गिरिमोहन ‘गिरि’ ने तथा आभार ज्ञापन शशि शर्मा व बृजमोहन पाण्डे ने किया। (प्रस्तुति: पं. गिरिमोहन ‘गिरि’)
लाल बिहारी लाल सम्मानित
नई दिल्ली: हरियाणा साहित्य अकादमी, पंचकुला एवं सुप्रभात साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कला मंच तथा गुरु रविदास वाणी प्रचार मंडल जीन्द के संयुक्त तात्वावधान में स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर एक भव्य कवि सम्मेलन एवं सम्मान समारोह का आयोजन जाट धर्मशाला जीन्द में किया गया। इस कार्यक्रम का उदघाटन मेजर जेनरल एस. सी.सांगला.ने किया। अतिथि हरियाणा साहिय अकादमी, पंचकुला के निदेशक डा. मुक्ता मदान तथा अध्यक्षता कुरुक्षेत्र बिश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. ए.के.चावला.ने किया। कवि सम्मेलन में दिल्ली रत्न लाल बिहारी लाल सहित देश के विभिन्न क्षेत्रों स े(गाजियाबाद,हिसार,रोहतक,जीन्द,दिल्ली, गोहाना ,कुरुक्षेत्र आदि) ग्यारह कवियों ने ओज कविताओं से श्रोताओं का मनमोह लिया। उक्त अतिथियों द्वारा सभी कवियों को सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरुप नकद, प्रशस्ति पत्र एवं प्रतिक चिन्ह भेंट किया गया।इस कार्यक्रम के संयोजक वरिष्ठ साहित्यकार श्री गणेश कौशिक ने किया। इस अवसर पर दर्जनों पत्रकार एवं साहित्यकार मौजूद थे।
श्री लाल को हम सब साथ-साथ के फेस बुक क्लब द्वारा मैत्री एवं भाईचारे के लिए स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर भी इव्हें नई दिल्ली में सम्मानित किया गया था। (प्रस्तुतिः सोनू गुप्ता)
प्रथम फेसबुक मैत्री शिविर व संगोष्ठी सम्पन्न
नई दिल्ली। यहाँ स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर हम सब साथ साथ एवं राष्ट्रकिंकर प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा आयोजित पहली फेसबुक मैत्री शिविर व संगोष्ठी में दिल्ली एन सी आर सहित विभिन्न दूरदराज क्षेत्रों के अनेक लोगों ने शामिल होकर आपसी मैत्री व भाईचारे को प्रगाढ़ किया। शिविर के प्रारम्भ में नित्यप्रति फेसबुक के माध्यम से नेट पर मिलने वाले मित्रों ने एक-दूसरे को अपना परिचय दिया और उसके पश्चात् फेसबुक की उपयोगिता व अनुपयोगिता पर जाने-माने साहित्यकारों व पत्रकारों, सर्वश्री विनोद बब्बर, सुभाष चंदर, नमिता राकेश, रेनू चौहान एव डॉ. हरीश अरोड़ा ने अपने-अपने रोचक व ज्ञानवर्द्धक विचार प्रस्तुत किए। तत्पश्चात् भरतपुर से पधारे अपना घर के संयोजक श्री अशोक खत्री सहित अनेक मित्रों ने उपर्युक्त विषय पर विचार-विमर्श में भाग लेते हुए अपने-अपने खट्टे-मीठे व रोचक अनुभव सुनाए। अनेक मित्रगणों ने जहाँ अपनी बातों और अनुभवों से फेसबुक की उपयोगिता सिद्ध की वहीं कुछ लोगों ने फेसबुक पर फेक मित्रों व ओछी मानसिकता के लोगों से बचकर रहने की सलाह भी दी।
इस अवसर पर आयोजित विभिन्न सत्रों में मित्रों ने जहाँ अनेक कवियों की कविताओं का लुत्फ उठाया वहीं कुछ गायकों की गायिकी का भी आनन्द लिया। कवियों में शामिल सर्वश्री विजय भाटिया ‘काका’, हरभजन सिंह, लाल बिहारी लाल, राम निवास ‘इंडिया’, शोभा रस्तोगी ‘शोभा’ एवं मंच पर पदासीन विशिष्ट अतिथियों आदि ने अपनी सुमधुर कविताएं सुनाकर श्रोताओं को मंत्र मुग्ध कर दिया। गीत, संगीत के सत्र में सर्वश्री किशोर वांकड़े के गीत, अशोक कुमार की पैरोडी व किशोर श्रीवास्तव की गीतों भरी मिमिक्री ने भी श्रोेाताओं को झूमने पर मज़बूर कर दिया। कार्यक्रम के अंत में युवा जादूगर श्री अमर सिंह निषाद ने अपनी जादूगरी के जल्वे दिखाकर श्रोताओं को दांतो तले उंगली दबाने पर मज़बूर कर दिया। शिविर व संगोष्ठी के विभिन्न सत्रों का संचालन सर्वश्री विनोद बब्बर, नमिता राकेश व किशोर श्रीवास्तव ने अपने अनूठे व रोचक अंदाज़ में किया। अंत में विभिन्न प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र देकर सम्मानित किया गया। (प्रस्तुतिः लाल बिहारी लाल, नई दिल्ली, मो. 9868163073)
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