डा. उमेश महादोषी
{अविराम के ब्लाग के इस अंक में फिलहाल हम केवल दो पत्रिकाओं पर ही अपनी परिचयात्मक टिप्पणी दे पा रहे हैं। अन्य सम्पादक बन्धु क्षमा करें। अक्टूबर अंक में हम कई अन्य पत्रिकाओं पर लिखेंगे। जैसे-जैसे सम्भव होगा प्रत्येक लघु-पत्रिका, जिसके कम से कम दो अंक हमें पढ़ने को मिल चुके होंगे, का परिचय पाठकों से करवायेंगे। पाठकों से अनुरोध है इन पत्रिकाओं को मंगवाकर पढें और पारस्परिक सहयोग करें। पत्रिकाओं को स्तरीय रचनाएँ ही भेजें, इससे पत्रिकाओं का स्तर तो बढ़ता ही है, रचनाकारों का अपना सकारात्मक प्रभाव भी पाठकों पर पड़ता है।}
असिक्नी : अपनी जमीन से जुड़ी जरूरी पत्रिका
असिक्नी अनियतकालिक पत्रिका है और अभी तक सम्भवतः इसके दो ही अंक आये हैं। प्रवेशांक अगस्त 2007 एवं दूसरा अंक जुलाई 2010 में। इन दो ही अंको के माध्यम से असिक्नी ने साहित्य-पटल पर अपनी उपस्थिति का अहसास करा दिया है। असिक्नी ने अपने स्वरूप, सामग्री व दिशा और इन सबके पीछे अपनी अव्यक्त भावनाओं से एक अव्यवसायिक/लघु साहित्यिक पत्रिका को परिभाषित भी किया है। साहित्यिक स्तर पर रचनाओं का श्रेष्ठ चयन और वैचारिक स्तर पर खुलेपन के बीच चलकर एक सकारात्मक दिशा की संवाहक बनने की चुनौती लघु पत्रिकाओं के समक्ष है, असिक्नी इस चुनौती को स्वीकार करती दिख रही है।
असिक्नी एक और कार्य कर रही है- साहित्यिक पत्रिका के रूप में अपनी जड़ों से जुड़कर चलने का कार्य। अपने नाम-काम और रूप-स्वरूप, सभी में उस मिट्टी की सुगन्ध समाये हुए है, जिस मिट्टी में उसका अंकुरण हुआ है, जिस मिट्टी के ऊपर छाये आसमान की छाया के नीचे वह संरक्षित है और जिसके वातावरण की हवा में वह सांसें ले रही है। लाहुल स्पति, बल्कि हिमाचल में जाये बिना भी असिक्नी को पढ़ते हुए कल्पनाओं में वहाँ का चित्र सा उभरने लगता है, बावजूद इस तथ्य के असिक्नी रचनात्मक, वैचारिक और रचनाकारों की सहभागिता के स्तर पर पूरी तरह एक अखिल भारतीय पत्रिका है। पूरा सामन्जस्य अद्भुत है। दोनों ही अंको में लाहुल स्पति पर पर्याप्त सामग्री दी गई है। वहाँ की सांस्कृतिक विरासत को सहेजा गया है। वहाँ के रीति-रिवाजों, वहां के सामाजिक-आर्थिक जीवन, वहाँ के साहित्यिक-सांस्कृतिक परिदृश्य आदि से सम्बन्धित पक्षों को उजागर करने की पर्याप्त चेष्टा की गई है। इन सबके बिना एक लघुपत्रिका हमेशा अधूरी रहती है। इसी के साथ लाहुल स्पति और हिमाचल के दूसरे दूर-दराज के क्षेत्रों में रहकर सृजन कर रहे रचनाकारों को एक साथ लाने का कार्य भी हो पाया है।
प्रवेशांक में साहित्यिक आंदोलनों एवं संगठनों के रचनात्मकता पर पड़ने वाले प्रभावों, जिनमें रचनाकार की स्वतन्त्रता का प्रश्न भी शामिल है, जैसे महत्वपूर्ण विषय पर बहस और वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य के बारे में कई ज्वलन्त प्रश्नों और चिन्ताओं को लेकर डॉ. नामवर सिंह के साथ सम्पादक निरंजन देव शर्मा और युवा कवि व शोध छात्र प्रमोद तिवारी की बातचीत बेहद महत्वपूर्ण है। दोनों ही अंकों के सम्पादकीयों में निरंजनदेव शर्मा जी ने महत्वपूर्ण प्रश्नों और मुद्दों पर चर्चा की है। इन अंकों की सभी कविताएं-कहानियां अपने समय के यथार्थ और संवेदनाओं को अभिव्यक्त करती हैं। प्रवेशांक में मुजीब हुसैन साहब व ईशिता जी के तथा दूसरे अंक मे अनूप सेठी जी व सुमनिका सेठी जी के रेखांकन भी आकर्षक हैं। असिक्नी में लघुकथा जैसी महत्वपूर्ण विधा की अनुपस्थिति का कारण समझ नहीं आया!
निश्चय ही असिक्नी अपनी जमीन से जुड़ी एक जरूरी पत्रिका है। इतनी महत्वपूर्ण पत्रिका के लिए रिन्चेन जङ्पो साहित्यिक एवं सांस्कृतिक सभा, लाहुल स्पति; प्रधान सम्पादक श्री छेरिङ्ग दोरज़े, सम्पादक निरंजनदेव शर्मा और उनकी पूरी टीम बधाई की पात्र है। पत्रिका दो सौ पृष्ठ लेकर वर्ष में एक बार आने की जगह यदि एक-एक सौ पृष्ठों के दो अंक वर्ष में लेकर आ सके, तो कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो सकता है।
असिक्नी : साहित्य एवं विचार की अनियतकालीन पत्रिका। प्र. सम्पादक : छेरिङ्ग दोरज़े। सम्पादक: निरंजनदेव शर्मा। प्रकाशक : रिन्चेन जङ्पो साहित्यिक एवं सांस्कृतिक सभा, लाहुल स्पति। मूल्य: रु. 40/- एक प्रति। सम्पादकीय सम्पर्क : भारत-भारती स्कूल, ढालपुर, कुल्लू-175101, हि.प्र.। मोबाइल 09816136900/09418063644। ई मेल : bharatbharatischool@yahoo.co.in
प्रेरणा (समकालीन लेखन के लिए) : साहित्य और विचार की सन्तुलित पत्रिका
प्रेरणा (समकालीन लेखन के लिए) एक महत्वपूर्ण और अग्रणी त्रैमासिक लघु पत्रिका है। प्रेरणा जितना कथा व काव्य साहित्य को महत्व देती है, उतना ही विचार और बहस को। विचार को कई तरीके से रखती है प्रेरणा। विभिन्न/विशेष विषयों पर आलेख, किसी मुद्दे पर चिन्तन, परिचर्चा, समीक्षाएँ, और सबसे बड़ी बात अपने-अपने तरीके से विभिन्न रचनाओं पर प्रतिक्रियाओं के बहाने अपने पत्रों में बहस करते अनेकानेक पाठक। इतनी व्यापक और खुली चर्चा और बहस के लिए मंच दे पाना शायद ही किसी लघु पत्रिका के लिए सम्भव हो। बात स्थान देने की तो है ही, खुलेपन और सुनने की भी है। एक बात और, प्रेरणा साहित्यिक और वैचारिक रचनात्मकता की प्रेरक तो है ही, लघु पत्रिकाओं की निरन्तरता और जीवन्तता के लिए भी प्रेरक की भूमिका निभा रही है। इसके लिए इस पत्रिका में पूरी सहृदयता के साथ लघु पत्रिकाओं पर चर्चा की जाती है। चर्चा में पत्रिकाओं के अंक विशेष के रचनाकारों, सम्पादक के नाम व पते, सदस्यता शुल्क, आवृत्ति आदि की पूरी जानकारी दी जाती है। पाठकों तथा अन्य पक्षों से लघु पत्रिकाओं को आर्थिक एवं अन्य हर तरह के सहयोग की अपील भी प्रेरणा की ओर से जारी की जाती है।
प्रेरणा के पिछले दो अंक नारी अस्मिता पर केन्द्रित अंक रहे हैं। इन अंकों में नारी विमर्श की जगह नारी अस्मिता शब्द का उपयोग करना कहीं अधिक सार्थक रहा है और उद्देश्यपूर्ण भी। दोनों अंकों में सम्पादक अरुण तिवारी जी ने अपना मन्तव्य बेहद सन्तुलित शब्दों में स्पष्ट किया है। इन शब्दों में निश्चित रूप से विशेषांकों के बारे में प्रेरणा का उद्देश्य भी निहित है। जब हम नारी अस्मिता की बात करते हैं तो उसमें किसी न किसी रूप में समग्र नारी विमर्श आ ही जाता है। इन दोनों अंकों में हुआ भी यही है। नारी विमर्श के तमाम मुद्दे सामने आये हैं पर अन्ततः तमाम विमर्श नारी अस्मिता जैसे सार्थक शब्द के साथ सम्बद्ध हुआ है। जब हम अस्मिता की बात करते हैं तो मेरी समझ से हम ‘सरोकारों के साथ स्वतन्त्रता’ की बात कर रहे होते हैं, फिर यह चाहे नारी के सन्दर्भ में हो या पुरुष के सन्दर्भ में। इसीलिए सम्पादक अरुण जी स्वयं और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कई अन्य लेखक/लेखिकाएँ/विचारक भी नारी व पुरुष के पूरक होने की बात करते हैं। बौद्धिक स्तर पर कहीं न कहीं नारी स्वतन्त्रता की छटपटाहट लिए नारी विमर्श ‘नारी विरुद्ध पुरुष’ की अवधारणा में फंस रहा है, जिससे उसे बचाना जरूरी है। नारी स्वतन्त्रता की आवाज बुलन्द हो पर नारी को उसके सरोकारों से विमुख करके नहीं और पुरुष को इसका सम्मान करना चाहिए। पुरुष नारी के दिशा-दर्शन के बिना कोई बड़ा कार्य कभी शायद ही कर पाया हो। लेकिन नारी पुरुष को दिशा-दर्शन तभी करा पाती है, जब उसे पर्याप्त स्वतन्त्रता मिल पाती है और साथ में उसकी दृष्टि सरोकारों से बद्ध होती है। इसी में उसका आत्मसम्मान और गौरव निहित होता है, जो अन्ततः अस्मिता का सही अर्थ है। इस सबके लिए नारी और पुरुष का पारस्परिक विश्वास भी जरूरी है। समग्र नारी विमर्श को इसी स्तर पर लाना जरूरी है, यही कार्य प्रेरणा ने करने की कोशिश की है अपने दोनों विशेष अंकों में। इसके लिए वह बधाई की पात्र है। रचनाओं के चयन में भी सम्पादक और उनके सहयोगी सतर्क हैं। दोनों ही अंकों में 208-208 पृष्ठ हैं, छपाई, प्रस्तुतीकरण एवं रूप-स्वरूप की दृष्टि से भी आकर्षक पत्रिका है। सभी रेखांकन बेहद आकर्षक हैं। प्रेरणा इन्टरनेट पर भी उपलब्ध है, www.prernamagazine.com पर लाग इन कर सकते हैं।
प्रेरणा समकालीन लेखन के लिए : साहित्यिक एवं सामयिक पत्रिका (त्रैमासिक)। सम्पादक : अरुण तिवारी। सम्पा. सम्पर्क : ए-74, पैलेस आरचर्ड फेज-3, सर्वधर्म के पीछे, कोलार रोड, भोपाल-462042 (म.प्र.)। वार्षिक शुल्क: व्यक्ति रु. 100/-, संस्था व पुस्तकालय: रु. 200/-, आजीवन: रु. 1000/-, एक प्रति: रु. 20/-(डाक व्यय रु.5/- अतिरिक्त)।
ई मेल: prerna_magazine@yahoo.com
{अविराम के ब्लाग के इस अंक में फिलहाल हम केवल दो पत्रिकाओं पर ही अपनी परिचयात्मक टिप्पणी दे पा रहे हैं। अन्य सम्पादक बन्धु क्षमा करें। अक्टूबर अंक में हम कई अन्य पत्रिकाओं पर लिखेंगे। जैसे-जैसे सम्भव होगा प्रत्येक लघु-पत्रिका, जिसके कम से कम दो अंक हमें पढ़ने को मिल चुके होंगे, का परिचय पाठकों से करवायेंगे। पाठकों से अनुरोध है इन पत्रिकाओं को मंगवाकर पढें और पारस्परिक सहयोग करें। पत्रिकाओं को स्तरीय रचनाएँ ही भेजें, इससे पत्रिकाओं का स्तर तो बढ़ता ही है, रचनाकारों का अपना सकारात्मक प्रभाव भी पाठकों पर पड़ता है।}
असिक्नी : अपनी जमीन से जुड़ी जरूरी पत्रिका
असिक्नी अनियतकालिक पत्रिका है और अभी तक सम्भवतः इसके दो ही अंक आये हैं। प्रवेशांक अगस्त 2007 एवं दूसरा अंक जुलाई 2010 में। इन दो ही अंको के माध्यम से असिक्नी ने साहित्य-पटल पर अपनी उपस्थिति का अहसास करा दिया है। असिक्नी ने अपने स्वरूप, सामग्री व दिशा और इन सबके पीछे अपनी अव्यक्त भावनाओं से एक अव्यवसायिक/लघु साहित्यिक पत्रिका को परिभाषित भी किया है। साहित्यिक स्तर पर रचनाओं का श्रेष्ठ चयन और वैचारिक स्तर पर खुलेपन के बीच चलकर एक सकारात्मक दिशा की संवाहक बनने की चुनौती लघु पत्रिकाओं के समक्ष है, असिक्नी इस चुनौती को स्वीकार करती दिख रही है।
असिक्नी एक और कार्य कर रही है- साहित्यिक पत्रिका के रूप में अपनी जड़ों से जुड़कर चलने का कार्य। अपने नाम-काम और रूप-स्वरूप, सभी में उस मिट्टी की सुगन्ध समाये हुए है, जिस मिट्टी में उसका अंकुरण हुआ है, जिस मिट्टी के ऊपर छाये आसमान की छाया के नीचे वह संरक्षित है और जिसके वातावरण की हवा में वह सांसें ले रही है। लाहुल स्पति, बल्कि हिमाचल में जाये बिना भी असिक्नी को पढ़ते हुए कल्पनाओं में वहाँ का चित्र सा उभरने लगता है, बावजूद इस तथ्य के असिक्नी रचनात्मक, वैचारिक और रचनाकारों की सहभागिता के स्तर पर पूरी तरह एक अखिल भारतीय पत्रिका है। पूरा सामन्जस्य अद्भुत है। दोनों ही अंको में लाहुल स्पति पर पर्याप्त सामग्री दी गई है। वहाँ की सांस्कृतिक विरासत को सहेजा गया है। वहाँ के रीति-रिवाजों, वहां के सामाजिक-आर्थिक जीवन, वहाँ के साहित्यिक-सांस्कृतिक परिदृश्य आदि से सम्बन्धित पक्षों को उजागर करने की पर्याप्त चेष्टा की गई है। इन सबके बिना एक लघुपत्रिका हमेशा अधूरी रहती है। इसी के साथ लाहुल स्पति और हिमाचल के दूसरे दूर-दराज के क्षेत्रों में रहकर सृजन कर रहे रचनाकारों को एक साथ लाने का कार्य भी हो पाया है।
प्रवेशांक में साहित्यिक आंदोलनों एवं संगठनों के रचनात्मकता पर पड़ने वाले प्रभावों, जिनमें रचनाकार की स्वतन्त्रता का प्रश्न भी शामिल है, जैसे महत्वपूर्ण विषय पर बहस और वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य के बारे में कई ज्वलन्त प्रश्नों और चिन्ताओं को लेकर डॉ. नामवर सिंह के साथ सम्पादक निरंजन देव शर्मा और युवा कवि व शोध छात्र प्रमोद तिवारी की बातचीत बेहद महत्वपूर्ण है। दोनों ही अंकों के सम्पादकीयों में निरंजनदेव शर्मा जी ने महत्वपूर्ण प्रश्नों और मुद्दों पर चर्चा की है। इन अंकों की सभी कविताएं-कहानियां अपने समय के यथार्थ और संवेदनाओं को अभिव्यक्त करती हैं। प्रवेशांक में मुजीब हुसैन साहब व ईशिता जी के तथा दूसरे अंक मे अनूप सेठी जी व सुमनिका सेठी जी के रेखांकन भी आकर्षक हैं। असिक्नी में लघुकथा जैसी महत्वपूर्ण विधा की अनुपस्थिति का कारण समझ नहीं आया!
निश्चय ही असिक्नी अपनी जमीन से जुड़ी एक जरूरी पत्रिका है। इतनी महत्वपूर्ण पत्रिका के लिए रिन्चेन जङ्पो साहित्यिक एवं सांस्कृतिक सभा, लाहुल स्पति; प्रधान सम्पादक श्री छेरिङ्ग दोरज़े, सम्पादक निरंजनदेव शर्मा और उनकी पूरी टीम बधाई की पात्र है। पत्रिका दो सौ पृष्ठ लेकर वर्ष में एक बार आने की जगह यदि एक-एक सौ पृष्ठों के दो अंक वर्ष में लेकर आ सके, तो कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो सकता है।
असिक्नी : साहित्य एवं विचार की अनियतकालीन पत्रिका। प्र. सम्पादक : छेरिङ्ग दोरज़े। सम्पादक: निरंजनदेव शर्मा। प्रकाशक : रिन्चेन जङ्पो साहित्यिक एवं सांस्कृतिक सभा, लाहुल स्पति। मूल्य: रु. 40/- एक प्रति। सम्पादकीय सम्पर्क : भारत-भारती स्कूल, ढालपुर, कुल्लू-175101, हि.प्र.। मोबाइल 09816136900/09418063644। ई मेल : bharatbharatischool@yahoo.co.in
प्रेरणा (समकालीन लेखन के लिए) : साहित्य और विचार की सन्तुलित पत्रिका
प्रेरणा (समकालीन लेखन के लिए) एक महत्वपूर्ण और अग्रणी त्रैमासिक लघु पत्रिका है। प्रेरणा जितना कथा व काव्य साहित्य को महत्व देती है, उतना ही विचार और बहस को। विचार को कई तरीके से रखती है प्रेरणा। विभिन्न/विशेष विषयों पर आलेख, किसी मुद्दे पर चिन्तन, परिचर्चा, समीक्षाएँ, और सबसे बड़ी बात अपने-अपने तरीके से विभिन्न रचनाओं पर प्रतिक्रियाओं के बहाने अपने पत्रों में बहस करते अनेकानेक पाठक। इतनी व्यापक और खुली चर्चा और बहस के लिए मंच दे पाना शायद ही किसी लघु पत्रिका के लिए सम्भव हो। बात स्थान देने की तो है ही, खुलेपन और सुनने की भी है। एक बात और, प्रेरणा साहित्यिक और वैचारिक रचनात्मकता की प्रेरक तो है ही, लघु पत्रिकाओं की निरन्तरता और जीवन्तता के लिए भी प्रेरक की भूमिका निभा रही है। इसके लिए इस पत्रिका में पूरी सहृदयता के साथ लघु पत्रिकाओं पर चर्चा की जाती है। चर्चा में पत्रिकाओं के अंक विशेष के रचनाकारों, सम्पादक के नाम व पते, सदस्यता शुल्क, आवृत्ति आदि की पूरी जानकारी दी जाती है। पाठकों तथा अन्य पक्षों से लघु पत्रिकाओं को आर्थिक एवं अन्य हर तरह के सहयोग की अपील भी प्रेरणा की ओर से जारी की जाती है।
प्रेरणा के पिछले दो अंक नारी अस्मिता पर केन्द्रित अंक रहे हैं। इन अंकों में नारी विमर्श की जगह नारी अस्मिता शब्द का उपयोग करना कहीं अधिक सार्थक रहा है और उद्देश्यपूर्ण भी। दोनों अंकों में सम्पादक अरुण तिवारी जी ने अपना मन्तव्य बेहद सन्तुलित शब्दों में स्पष्ट किया है। इन शब्दों में निश्चित रूप से विशेषांकों के बारे में प्रेरणा का उद्देश्य भी निहित है। जब हम नारी अस्मिता की बात करते हैं तो उसमें किसी न किसी रूप में समग्र नारी विमर्श आ ही जाता है। इन दोनों अंकों में हुआ भी यही है। नारी विमर्श के तमाम मुद्दे सामने आये हैं पर अन्ततः तमाम विमर्श नारी अस्मिता जैसे सार्थक शब्द के साथ सम्बद्ध हुआ है। जब हम अस्मिता की बात करते हैं तो मेरी समझ से हम ‘सरोकारों के साथ स्वतन्त्रता’ की बात कर रहे होते हैं, फिर यह चाहे नारी के सन्दर्भ में हो या पुरुष के सन्दर्भ में। इसीलिए सम्पादक अरुण जी स्वयं और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कई अन्य लेखक/लेखिकाएँ/विचारक भी नारी व पुरुष के पूरक होने की बात करते हैं। बौद्धिक स्तर पर कहीं न कहीं नारी स्वतन्त्रता की छटपटाहट लिए नारी विमर्श ‘नारी विरुद्ध पुरुष’ की अवधारणा में फंस रहा है, जिससे उसे बचाना जरूरी है। नारी स्वतन्त्रता की आवाज बुलन्द हो पर नारी को उसके सरोकारों से विमुख करके नहीं और पुरुष को इसका सम्मान करना चाहिए। पुरुष नारी के दिशा-दर्शन के बिना कोई बड़ा कार्य कभी शायद ही कर पाया हो। लेकिन नारी पुरुष को दिशा-दर्शन तभी करा पाती है, जब उसे पर्याप्त स्वतन्त्रता मिल पाती है और साथ में उसकी दृष्टि सरोकारों से बद्ध होती है। इसी में उसका आत्मसम्मान और गौरव निहित होता है, जो अन्ततः अस्मिता का सही अर्थ है। इस सबके लिए नारी और पुरुष का पारस्परिक विश्वास भी जरूरी है। समग्र नारी विमर्श को इसी स्तर पर लाना जरूरी है, यही कार्य प्रेरणा ने करने की कोशिश की है अपने दोनों विशेष अंकों में। इसके लिए वह बधाई की पात्र है। रचनाओं के चयन में भी सम्पादक और उनके सहयोगी सतर्क हैं। दोनों ही अंकों में 208-208 पृष्ठ हैं, छपाई, प्रस्तुतीकरण एवं रूप-स्वरूप की दृष्टि से भी आकर्षक पत्रिका है। सभी रेखांकन बेहद आकर्षक हैं। प्रेरणा इन्टरनेट पर भी उपलब्ध है, www.prernamagazine.com पर लाग इन कर सकते हैं।
प्रेरणा समकालीन लेखन के लिए : साहित्यिक एवं सामयिक पत्रिका (त्रैमासिक)। सम्पादक : अरुण तिवारी। सम्पा. सम्पर्क : ए-74, पैलेस आरचर्ड फेज-3, सर्वधर्म के पीछे, कोलार रोड, भोपाल-462042 (म.प्र.)। वार्षिक शुल्क: व्यक्ति रु. 100/-, संस्था व पुस्तकालय: रु. 200/-, आजीवन: रु. 1000/-, एक प्रति: रु. 20/-(डाक व्यय रु.5/- अतिरिक्त)।
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