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रविवार, 29 जनवरी 2012

अविराम विस्तारित


अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : १, अंक : ०५, जनवरी २०१२ 


।। संभावना।।  

सामग्री : रजनीश त्रिपाठी एवं उषा कालिया अपनी कविताओं के साथ 









रजनीश त्रिपाठी



यथार्थ

मेरे साथ बार-बार
ऐसा क्यों होता है?
जब भी रखती हूं कदम
ड्योढ़ी के बाहर
बाबूजी की हैरान आंखें
देखती हैं मेरी तरफ
जब कभी हंस देती हूं
खिल-खिलाकर,
भाई होते हैं
आपे से बाहर,
मां क्यों टोंकती है?
कदम-कदम पर
मेरे साथ ही बार-बार
ऐसा क्यों होता है?
कहीं मैं परहीन पक्षी तो नहीं,
जो जीवन पर्यन्त देखती है 
सपने 
आकाश में उड़ने के
पर उदास हो जाती है
  • द्वारा उमेश तिवारी,, शांडिल्य निवास, ग्राम-पत्रालय-नोनापार 
जिला-देवरिया, उ.प्र.



ऊषा कालिया


संस्कार

मानव के संस्कार
मां के दूध में
बच्चे को मिलते हैं!
फिर वह सीखता है
आस-पास से
समाज से 
जीवन के पल-पल
उसे तराशते हैं।
उस नए भाव-बोध से
भरने लगते हैं।

संस्कार हमें 
विरासत में मिलते हैं
कई इन्हें संभालकर रखते हैं
तो कुछ उन्हें भूल जाते हैं
वास्तव में वह 
अपनी जड़ों से 
कटकर रह जाते हैं!

  • घुग्गर नाले, चाणक्यपुरी, पालमपुर-176061, जिल-कांगड़ा (हि.प्र.) 

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