अविराम का ब्लॉग : वर्ष : १, अंक : ०५, जनवरी २०१२
।।जनक छन्द।।
सामग्री : डा. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’, पं. गिरिमोहन गिरि ‘गुरु’ व अनामिका शाक्य के जनक छंद।
डा. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’
पांच जनक छंद
1.
ढूंढ़ें कैसे ठौर अब?
अधकचरे अँग्रेज हम
दिखे और का और सब
2.
फबा आम सिर बौर है
फागुन की छवि देखिये
रूप और का और है
3.
सदा साथ में धर्म है
जीभा पर जब राम है
और हाथ में कर्म है
4.
आग बने आ नगर में
पर्वत के सोते घटे
5.
कण-कण में कल्याण है
किन्तु स्वयम् जो बँध रहा
उसे कहाँ निर्वाण है!
- बी-2-बी-34, जनकपुरी, नई दिल्ली-110058
:
पं. गिरिमोहन गिरि ‘गुरु’
पांच जनक छन्द
1.
सिर्फ देखता ही रहा
शब्द सभी पथरा गये
मुस्कानों ने सब कहा
2.
क्या ही बढ़िया सीन है
नेता के घर मौज है
शेष प्रजा गमगीन है
3.
समय सरकता जा रहा
लेकिन यह मन आज भी
तुझसे बंधता जा रहा
4.
यात्रा लक्ष्य वहीन है
जीने को तो जी रह
मन चिन्ताकुज दीन है
5.
खाली पन भरते रहो
मन निराश होवे नहीं
ऐसा कुछ करते रहो
- गोस्वामी सेवाश्रम, हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी, होशंगाबाद-461001 (म.प्र.)
अनामिका शाक्य
चार जनक छन्द
1.
सच्चा प्यार महान है
बंधन सारे तोड़ता
दुनियां क्यों अंजान है!
2.
मिलती जब-जब जीत है
मधुर तराने गँूजते
जीवन मीठा गीत है
3.
पापों को धो डालती
आता सब संसार है
4.
ऊँचा कितना नाम है
चमक रहा संसार में
सूरज तुझे सलाम है
- ग्राम किरावली, पोस्ट तालिबपुर, जिला मैनपुरी (उ.प्र.)
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