अविराम ब्लॉग संकलन : वर्ष : 3, अंक : 09-10, मई-जून 2014
नित्यानंद गायेन
चार क्षणिकाएं
01.
हमारे पूर्वज वानर थे
यानी
उनकी पूंछ हुआ करती थी
आज विकसित हो चुके हैं हम
किन्तु, नाख़ून अब भी बचे हैं
फिर भी अक्सर
मैं खोजता हूँ
अपनी पूंछ....
02.
जो, चले गए सागर पार
वानर सेना कहलाये
हम रुके रहें इस पार
तो, असुर कहलाये...?
03.
कागज़ पर लिखा
मैंने,
सम्राट, सेना
जय -जयकार
राजा खुश हुए
फिर लिखा मैंने
तानाशाह, अहंकारी
‘विद्रोह’ कारागार...
मुझे राजद्रोही कहा गया।
04.
हम सब लगे हुए हैं
अपने -अपने रंगों की खोज में
उधर देखिये मुड़कर
उड़ गया है
कई चेहरों का रंग
चिन्तामणि जोशी
चार क्षणिकाएँ
01. नियत
मुँडेर पर दाने
व्यर्थ ही क्यों बिखेरता है
रोज
लेकर ओट
कि चिड़ियाँ तो
कबके भाँप चुकी
तेरी नियत का खोट।
2. ताला
दिन रात चौकसी की
खूँटे पर टँगा रहा
कसम है फर्ज की
जो झपकी भी ली हो
मैंने सोचा भी न था
कि चाभी
स्वयं खो कर आओगे
गुस्सा मुझ पर उतारोगे।
3. नियत
उस आदमी की
नियत के क्या कहने
प्रकृति का आक्रोश सह
लाश में तब्दील
आदमी के अंग काट
निकाल रहा है गहने।
4.सुख का स्वप्न
बहुत पहले से
कतरा-कतरा
आँसू डाला
एक सुख का
स्वप्न पाला
अब मेरे टुकड़ों पर पला
कुत्ता ही मुझको काटता है,
पैरों पर तब लोटता था
अब वो मुँह को चाटता है।
।। क्षणिका ।।
सामग्री : इस अंक में श्री नित्यानंद गायेन व श्री चिंतामणि जोशी की क्षणिकाएँ।
सामग्री : इस अंक में श्री नित्यानंद गायेन व श्री चिंतामणि जोशी की क्षणिकाएँ।
नित्यानंद गायेन
चार क्षणिकाएं
01.
हमारे पूर्वज वानर थे
यानी
उनकी पूंछ हुआ करती थी
आज विकसित हो चुके हैं हम
किन्तु, नाख़ून अब भी बचे हैं
फिर भी अक्सर
मैं खोजता हूँ
अपनी पूंछ....
02.
जो, चले गए सागर पार
वानर सेना कहलाये
हम रुके रहें इस पार
तो, असुर कहलाये...?
छाया चित्र : उमेश महादोषी |
03.
कागज़ पर लिखा
मैंने,
सम्राट, सेना
जय -जयकार
राजा खुश हुए
फिर लिखा मैंने
तानाशाह, अहंकारी
‘विद्रोह’ कारागार...
मुझे राजद्रोही कहा गया।
04.
हम सब लगे हुए हैं
अपने -अपने रंगों की खोज में
उधर देखिये मुड़कर
उड़ गया है
कई चेहरों का रंग
- 1093, टाइप-2, आर.के.पुरम, सेक्टर-5, नई दिल्ली-110022 // मोबाइल : 09030895116
चिन्तामणि जोशी
चार क्षणिकाएँ
01. नियत
मुँडेर पर दाने
व्यर्थ ही क्यों बिखेरता है
रोज
लेकर ओट
कि चिड़ियाँ तो
कबके भाँप चुकी
तेरी नियत का खोट।
2. ताला
दिन रात चौकसी की
खूँटे पर टँगा रहा
कसम है फर्ज की
जो झपकी भी ली हो
मैंने सोचा भी न था
कि चाभी
स्वयं खो कर आओगे
गुस्सा मुझ पर उतारोगे।
3. नियत
छाया चित्र : आदित्य अग्रवाल |
नियत के क्या कहने
प्रकृति का आक्रोश सह
लाश में तब्दील
आदमी के अंग काट
निकाल रहा है गहने।
4.सुख का स्वप्न
बहुत पहले से
कतरा-कतरा
आँसू डाला
एक सुख का
स्वप्न पाला
अब मेरे टुकड़ों पर पला
कुत्ता ही मुझको काटता है,
पैरों पर तब लोटता था
अब वो मुँह को चाटता है।
- देवगंगा, जगदम्बा कॉलोनी, पिथौरागढ-262501, उ.खंड // मोबा. : 09410739499
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