आपका परिचय

रविवार, 6 जुलाई 2014

अविराम विस्तारित



अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 3,   अंक  : 09-10,  मई-जून 2014


।। व्यंग्य वाण ।।

सामग्री : इस अंक में आशीष दाशोत्तर की व्यंग्य रचना ‘आप‘का क्या होगा जनाबेआली?‘

आशीष दशोत्तर

                                                     


आप‘का क्या होगा जनाबेआली?   

     ‘अपनी तो जैसे-तेसे,थोड़ी ऐसे या वैसे कट ही गई,पर ‘आप‘का क्या होगा जनाबेआली?‘ हमारी प्रिय पार्टियों के नेता आजकल इसी गीत को गा रहे हैं। और ‘आप‘को चिढ़ा रहे हैं। हमने तो ‘आप‘को पहले ही कहा था कि कुर्सी के चक्कर में मत पड़िए। यह कुर्सी अच्छे-अच्छों का तेल निकाल देती है। आदमी आता ज़मीन पर है मगर उसे छत पर ही चढ़ना पड़ता है। ‘आप‘ने भी कभी सोचा न होगा कि खुदा ऐसे भी दिन दिखाएगा। वो एक दिन वाले सीएम की पिक्चर देखकर आपके भीतर का नायक जाग गया और ‘आप‘ यह ग़लती कर बैठे। अब इसमें ‘आप‘की भी कुछ गलती नहीं है। कुर्सी का मोह होता ही ऐसा है। बार-बार बेइज्जत हो कर भी उसी को पाने की चाह होती है। 
          वाह क्या बात है इस कुर्सी में। इतना प्रेम हो भी क्यूं नहीं। आखिर कुर्सी पाने पर ही तो इज्जत बढ़ती है। और फिर आजकल तो सभी कुछ कुर्सी  होने से ही प्रभावी होने लगा है। शादी ब्याह में कुर्सी ढूंढते कई लोग मिल जाएंगे। कईयों की तो नज़र ही कुर्सी पर रहती है । एक उठा नहीं कि दूसरे ने खींची। महिलाएं तो अक्सर कई कुर्सियां रोककर बैठतीं है। यानी कुर्सी की लीला न्यारी है। हर कोई कुर्सी को पाने के लिए किसी न किसी का समर्थन पाने में लगा हुआ है। एक बार कुर्सी मिल जाए फिर देखते हैं कौन क्या करता है। हमारे एक साथी को एक बार कुर्सी क्या मिल गई ,उनके पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहे थे। हमने कहा कुर्सी मिलने में क्या है, कोई चिराग मिल गया है क्या? वे कहने लगे, इससे तो मेरी मार्केट वेल्यू और बढ़ गई है। मेरे प्रशंसको की मेरे प्रति सहानुभूति बढ़ी है। हमने कहा कि अब आपको समाज को राह दिखाना पड़ेगा। आपको देखकर लोग अपनी दिशा तय करेंगे। आखिर ‘आप‘ कुर्सी वाले हो गए हैं। कोशिश कीजिएगा कि आपको कहीं छत पर न चढ़ना पड़े। आपके इस तरह के उत्थान से समाज पर गलत असर पड़ेगा। इस पर वे नाराज हो गए। कहने लगे, राह दिखंने का ठेका हमने ही ले रखा है क्या? राह दिखानी ही है तो तो वे दिखाए जो अब तक कुर्सी पर चिपके थे।या फिर वे दिखाए जिनके हाथों से मुंह तक आया निवाला हमने छीन लिया है। 
     हमने कहा आपकी बात सही है पर ‘आप‘के पास कुर्सी है । इस कुर्सी की खातिर ‘आप‘को कुछ तो करना ही होगा। और वैसे भी समाज को राह दिखाने के लिए किसी के पास समय कहां है? मुंह की खा चुके फिर से जनता की सेवा करने के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं। जो लालकिले पर झण्डा फहराने के लिए बेताब हैं वे पहले खुद साधन सम्पन्न बनने में जुटे हैं। घर-घर घूमकर ये जनता को सुख-सुविधा उपलब्ध कराने के प्रति ये सेवक दृढ़ संकल्पित नज़र आ रहे हैं। जनता को यकीन दिलाया जा रहा है कि उसकी किस्मत बदलने वाली है। और जनता भी जनसेवकों की इस बात पर विश्वास करते हुए अपनी किस्मत बदलने का इंतज़ार कर रही है। रही बात तीसरे मोर्चे नामक संस्था की तो ऐसे लोग अभी सोच रहे हैं कि कौन साथ में आ सकता है और कौन नहीं। वैसे भी इस तीसरे मोर्चे की जगह तो ‘आप‘ ने कब्जा कर ही लिया है। तीसरा मोर्चा बनाकर समाज की नींव मज़बूत करने से पहले वे अपनी नींव मज़बूत कर रहे हैं। उनका मानना है कि वे एक बार मज़बूत बन जाएं फिर मुल्क को तो चुटकियों में मजबूत बना देंगे।
     यानी हर कोई अपने-अपने मिशन में पूरी निष्ठा से जुटा हुआ है। इसीलिए ‘आप‘से ही यह अपेक्षा की जा रही है कि समाज को सही राह दिखाएं। वे कहने लगे, हम भी अपनी पूरी कोशिश करेंगे। कुर्सी की खातिर जितनी भी मशक्कत करना पड़े करेंगे। ‘आप‘ तो हमारे पक्ष में हवा बनाए रखिएगा। कहीं कोई हमारी कुर्सी खींचने की कोशिश करे तो ‘आप‘ उसकी कुर्सी खींच दें। हम वादा करते हैं कि इससे हमारे दिल में ‘आप‘के लिए कायम कुर्सी का अस्तित्व बना रहेगा।

  • 39, नागर वास, रतलाम (म.प्र.) 457001 // / मोबा. : 09827084966

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