अविराम ब्लॉग संकलन : वर्ष : 5, अंक : 01-04, सितम्बर-दिसम्बर 2015
।।कविता अनवरत।।
सामग्री : इस अंक में स्व. ज्ञान स्वरूप ‘कुमुद’, तथा सर्वश्री श्यामसुंदर निगम, नित्यानन्द गायेन, जगन्नाथ ‘विश्व’, खालिद हुसैन सिद्दीकी, अशोक अंजुम, देवी नागरानी, ख़याल खन्ना, प्रतिभा माही, डॉ. सुरेश उजाला, रोहित यादव एवं सजीवन मयंक की काव्य रचनाएँ।
स्व. ज्ञान स्वरूप ‘कुमुद’
{बरेली शहर के चर्चित वयोवृद्ध कवि श्री ज्ञान स्वरूप ‘कुमुद’ जी विगत 22 दिसम्बर को इस लोक से विदा ले गए। 06.06.1939 को जन्मे श्री कुमुद जी मूलतः कवि थे। अनेक प्रमुख पत्र-पत्रिकाओं एवं 50 से अधिक संकलनों में उनकी काव्य रचनाएँ संकलित हुई हैं। कल्याण कुँज भाग-एक व भाग-दो, कल्याण-काव्य कलश, कल्याण-काव्य कुसुमाँजली, कल्याण-काव्य कदम्ब, कल्याण-काव्य कमलाकर -7 आदि आपकी मौलिक प्रकाशित काव्य कृतियाँ हैं। श्री चेतन दुबे ‘अनिल’ ने स्वसंपादित संकेत-13 का अंक आपके प्रेम गीतों पर केन्द्रित किया था। कुमुद जी कुछ पत्र-पत्रिकाओं व काव्य संकलनों के संपादन से भी संबद्ध रहे। कक्षा पांच के पाठ्यक्रम संबन्धी एक पुस्तक में रचना शामिल। देश भर की कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित एवं मानद उपाधियों से अलंकृत। वह ‘कवि गोष्ठी आयोजन समिति’ बरेली के संस्थापक/महामंत्री थे। इस संस्था के माध्यम से वह बरेली में अनेक साहित्यिक गतिविधियों का संचालन करते रहे। हम कुमुद जी को अविराम परिवार की ओर से श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए उनका एक गीत यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं।}
रूप घुँघट में सजाना
स्वप्न आँखों में सजाना, याद में आँसू न लाना।
गीत का मधुरिम तराना, धड़कनों में तुम बसाना।।
रात की खामोशियों में
प्यार की मदहोशियों में।
डँस रहे हैं चाँद-तारे
कौर जीते कौन हारे?
कौन कर बैठा बहाना, रूप का घूँघट सजाना।
रेखाचित्र : रमेश गौतम |
गीत का मधुरिम तराना, धड़कनों में तुम बसाना।।
चाँदनी मन भावनी है
सुरभि पूरित यामिनी है।
नयन क्यों भीगे हुए हैं
चरण क्यों धीमे हुए हैं।।
पाँव काँटों पर चलाना, प्रीत को हँसकर निभाना।
गीत का मधुरिम तराना, धड़कनों में तुम बसाना।।
विरह में मधुरिम जलन है
एक तीखी-सी चुभन है।
दूर हम जैसे किनारे
दूर तुम हो बेसहारे।।
चाँद का गज़रा बनाना, लाज का कज़रा लगाना।
गीत का मधुरिम तराना, धड़कनों में तुम बसाना।।
- परिवार सम्पर्क : 301, कुँवरपुर, बरेली (उ.प्र.)
श्यामसुंदर निगम
सिलबिल्ली
वह/चूहों को मिस-मिस कर रोटी खिलाती है
परचूनिया/नुक्कड़वाला आँख दबाता है- पगली है।
वह खजहे-मरगिल्ले पिल्ले को नहलाती है-
-चूमती-चाटती है/उसे लगाती है काला टीका।
धूप सेंकती औरतें ठिल्लहाव करती हैं- सिलबिल्ली है
पगली/सिलबिल्ली वह-
एक दिन सफाचट्ट खोपड़ी लिए
बांस में हंडिया टाँगे/घूम गयी टोले की हर गली
रेखाचित्र : स्व. पारस दासोत |
आवाज बदल गयी/बस्ती आवारा हो गयी
आज पूरी मस्ती में है ...
सहसा चिपक गईं कई जोड़ी चिपड़ी आँखें/चिपचिपे बदन से।
इसके पहले कि/वह पता पूंछ पाती
उसके आँगन की किलकारियां लील गए तूफान का
दया दिखाते रास्तों ने चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया और
रात/पी गयी उसकी खूबसूरती-देह समेत
अँधेरे में/अँधेरा घोलकर।
- 1415,’पूर्णिमा’. रतनलाल नगर, कानपुर-208022, उ.प्र. / मोबा. 09415517469
नित्यानन्द गायेन
दो कविताएँ
01. भाई मेरे कपड़े नही, मेरा चेहरा देखो
उसके ठेले पर हर सामान है
मतलब सुई-धागा से लेकर चूड़ी, बिंदी, नेल पालिस, आलता
कपड़े धोने वाला ब्रश
और उसके ग्राहक हैं -वही लोग, जो खुश हो जाते हैं
किसी मेले की चमकती रौशनी से, लाउड स्पीकर के बजने से
ये सभी लोग जो आज भी
दिनभर की जी तोड़ मेहनत के बाद
अपने शहरी डेरे पर पका कर
खाते हैं दाल-भात और चोखा
कभी-कभी खाते हैं
माड़-भात नून से
इनदिनों जब कभी मैं पहनता हूँ इस्त्री किया कपड़ा
छायाचित्र : आकाश अग्रवाल |
शर्मा जाता हूँ उनके सामने आने से
लगता है कहीं दूर चला आया हूँ अपनी माटी से
आज मैं भी था उनके बीच बहुत दिनों बाद
ठेले वाले से कहा उन्होंने- साहेब को पहले दे दो भाई।
मेरे पैर में जूते थे, हाथ में लैपटाप का बैग
मेरे कपड़े महंगे थे,
मुझे शर्म आई, सोचा कह दूँ- भाई मेरे कपड़े नही
मेरा चेहरा देखो।
2. तानाशाह इतिहास नहीं पढ़ता
तानाशाह इतिहास नहीं पढ़ता
केवल भविष्य देखता है
वह समझ नहीं पाता
कुछ देर बाद वहां
गहरा अंधकार होता है ....
इतना गहरा कि
वह खोज नहीं पाता
खुद की परछाई भी।
- 1093, टाइप-2, आर.के.पुरम, सेक्टर-5, नई दिल्ली-110022 / मोबाइल : 09030895116
जगन्नाथ ‘विश्व’
इतिहास में नया
नक्षत्र लो उदित हुआ आकाश में नया
इक पृष्ठ और जुड़ गया इतिहास में नया
हिंसा के बवंडर ने बुझाया चिराग तो
हमने दिया जला दिया आवास में नया
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया |
जिसको पिलाया दूध उसी नाग ने डसा
विष-दंश दे गया कोई विश्वास में नया
बारूद से जली है एकता-अखण्डता
आतंक और बढ़ गया संत्रास में नया
अब डगमगायेगी नहीं ये नाव ज्वार में
सौभाग्य से केवट खड़ा है पास में नया
- मनोबल, 25, एम.आई.जी., हनुमान नगर, नागदा जं-456335 (म.प्र.) / मोबाइल : 09425986386
खालिद हुसैन सिद्दीकी
ग़ज़ल
हिन्दू बुरा है न मुसलमान बुरा है
आज के दौर का इंसान बुरा है
आपस में मिलकर रहो सभी वतन में
रेखा चित्र : संदीप राशिनकर |
अलगाव की सोच का अंजाम बुरा है
सब धर्म सिखाते हैं प्यार की भाषा
नफरत को बढ़ाये वो फरमान बुरा है
जन्नत मिलेगी तुम्हें नेक अमल से
दोज़ख में ले जाये वही काम बुरा है
जल्द शोहरतें मिलेंगी गलत काम से
दिल जो दुखाये वो शैतान बुरा है
अपनी एकता से देश महान बनेगा
‘खालिद’ इसे तोड़े वो हैवान बुरा है
- एबी-56, संचार विहार कॉलोनी, (आई.टी.आई. लि.), मनकापुर, जिला गोण्डा-271308, उ.प्र. / मोबाइल : 09453946951
अशोक अंजुम
ग़ज़ल
हादिसातों की कहानी कम नहीं
हौसलों में भी रवानी कम नहीं
मेरे बाजू हैं मुसलसल काम पर
यूँ समन्दर में भी पानी कम नहीं
साथ तेरे जो गुजारी है कभी
रेखा चित्र : उमेश महादोषी |
चार दिन की जि़न्दगानी कम नहीं
प्यार हमको आपसे था ही नहीं
आपकी ये सचबयानी कम नहीं
हम अँधेरों की कहानी क्यों कहें
साथ में यादें सुहानी कम नहीं
- गली-2, चन्द्रविहार कॉलोनी, (नगला डालचंद), क्वारसी रोड बाईपास, अलीगढ़-202001(उ.प्र.) / मोबा. : 09258779744
देवी नागरानी
तीन कविताएँ
01. भय
निडरता वहीं दफ़्न हो जाती है
जहाँ कहीं भी
अपने भीतर का डर
ख़तरा बनकर
सामने मंडराता है !
भय तन से ज्यादा
मन के कमज़ोर कोनों में
अपनी धाक जमा बैठता है।
02. हादसा
वार हुआ
हाथ अद्रश्य
आँखें पथराई सी
रेखाचित्र : सिद्धेश्वर |
होंठ सिले हुए! पूछा गया- ‘क्या हुआ?’
कहा गया-
‘हमने कुछ नहीं देखा
कुछ नहीं सुना.’
पर
सिसकियाँ कहती रहीं
‘शायद वो हादसा था’
03. नींव
रिश्तों की बुनियाद
सुविधाओं पर रखी गईं हों, तो
रिश्ते अपंग हो जाते हैं
अर्थ सुविधा के लिए स्थापित हों, तो
रिश्ते लालच की लाली में रंग जाते हैं
और अगर...
रिश्ते साथ निभाने की नींव पर टिके हों, तो
जीवन मालामाल हो जाता है!
- 9-डी. कॉर्नर व्यू सोसाइटी, 15/33 रोड, बांद्रा, मुंबई-400050 / मोबा . : 09987938358
ख़याल खन्ना
ग़ज़ल
हज़ार, पाँव में छाले दिखाई देते हैं
बढ़े चलो कि उजाले दिखाई देते हैं
जहाँ-जहाँ भी उजाले दिखाई देते हैं
तुम्हारे चाहने वाले दिखाई देते हैं
ये किसने हक़-ओ-सदाक़त1 की दास्ताँ छेड़ी
सभी के हाथ में भाले दिखाई देते हैं
सवाल आता है जब मेरी बे-गुनाही का
रेखाचित्र : शशिभूषण बड़ोनी |
तो उनके होटों पे ताले दिखाई देते हैं
इन अहले-फ़न2 के दिलों में भी झाँककर देखो
ये लोग दर्द के पाले दिखाई देते हैं
ज़रूर उनमें कोई इनफि़रादियात3 है ‘खयाल’
जो भीड़ में भी निराले दिखाई देते हैं
1सच्चाई और यथार्थ 2कलाकार 3विलक्षणता
- 1090, जनकपुरी, बरेली-243122 (उ.प्र.)
ग़ज़ल
सितारों ने कहा मुझसे अभी तो रात बाकी है।
ज़रा सुन लो हमारी तुम अभी तो बात बाकी है
पुकारोगे उसे दिल से सुनेगा हाल वो हरदम
घटायें जोड़ता अम्बर अभी बरसात बाकी है
छुरा भौंका है सीने में बुलाकर प्यार से तूने
छायाचित्र : उमेश महादोषी |
मिटाऊँगा तेरी नफ़रत अभी औकात बाकी है
समर्पित कर दिया खुद को तेरे दरबार में आकर
मिलेगा फल सुकर्मों का अभी सौगात बाकी है
पुकारेगा मुझे ‘माही’ मैं सब कुछ छोड़ जाऊँगी
छुपाया प्यार का दरिया अभी ज़जबात बाकी है
- मकान नं. 4/127, शिवाजी नगर, नियर बत्रा हॉस्पीटल, गुड़गाँव-122001 / मोबाइल : 09350672355
डॉ. सुरेश उजाला
बदलाव
मुखौटे से ढके- चेहरे
वक़्त के खुले- पृष्ठ
बिना शीर्षक- जीवन
शब्द सत्ता
तर्क-वितर्क करते लोग
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया |
कथ्य में विखराव
अलख जगाते
वंचित लोगों के
दुःख-दर्द
जहाँ धड़कती है- सिर्फ
ख़ौफ की नब्ज़
फिर भी
जारी है- जंग
बदलाव के लिए।
- 108-तकरोही, पं. दीनदयालपुरम मार्ग, इन्दिरा नगर, लखनऊ (उ.प्र.) / मोबाइल : 09451144480
रोहित यादव
दोहे
1.
करता क्यों बदनाम है, मुझको मेरे मित्र।
मैंने तो खींचे सदा, यहाँ प्यार के चित्र।।
2.
बातचीत होती रहे, जब तक हैं हम-आप।
आये ना कटुता कभी, छोड़ें ऐसी छाप।।
3.
रेखाचित्र : सिद्धेश्वर |
घर-घर अब अलगाव का, घूम रहा शैतान।।
4.
जीवन की कविता हुई, बिना छंद-लय-तान।
देख गरीबी, बेबसी, मचा रही तूफान।।
5.
तव्वे पर रोटी नहीं, आटा नहीं परात।
कैसे कटे गरीब की, भूख बिलखती रात।।
- सैदपुर, मंडी अटेली-123021 (हरियाणा) / मोबाइल : 09416331110
सजीवन मयंक
लीक से हटकर चलना...
लीक से हटकर चलना अक्सर मुश्किल होता है
गंवा चुके अवसर का मिलना मुश्किल होता है।
जो भी है खुद्दार बात का पक्का होता है
मुँह से निकली बात बदलना मुश्किल होता है
अपना दामन अपनी इज्जत अपने हाथों में
दामन के दागों का धुलना मुश्किल होता है
साफ रास्तों पर जीवन में सब चल लेते हैं
छायाचित्र : आकाश अग्रवाल |
शूल भरी राहों पर चलना मुश्किल होता है
पल दो पल के लिये सितारे लाखों चमक रहे
पर सूरज के जैसा जलना मुश्किल होता है
कच्ची मिट्टी से मनचाही मूरत बन जाती है
पक्की मिट्टी से कुछ ढलना मुश्किल होता है
होनी तो होकर रहती है चाहे जो कर लो
होनी के अवसर का टलना मुश्किल होता है
अगर दोस्ती में खटास कुछ भी पड़ जाती है
नीर-क्षीर सा मिलना घुलना मुश्किल होता है
धोखे से गिर करके अक्सर लोग सम्हल जाते
खुद ही गिरकर पुनः सम्हलना मुश्किल होता है
- 251, शनिचरा वार्ड-1, नरसिंह गली, होशंगाबाद-461001 (म.प्र.) / मोबाइल : 09425043627
प्यार हमको आपसे था ही नहीं
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