आपका परिचय

शुक्रवार, 21 अक्टूबर 2011

कुछ और महत्वपूर्ण पत्रिकाएँ

{अविराम के ब्लाग के इस  स्तम्भ में पिछले  अंक में हमने दो महत्वपूर्ण साहित्यिक पत्रिकाओं क्रमश:  'असिक्नी' और 'प्रेरणा (समकालीन लेखन के लिए)' का परिचय करवाया था।  इस  अंक में  हम चार और  पत्रिकाओं पर अपनी परिचयात्मक टिप्पणी दे रहे हैं।  जैसे-जैसे सम्भव होगा हम अन्य  लघु-पत्रिकाओं, जिनके  कम से कम दो अंक हमें पढ़ने को मिल चुके होंगे, का परिचय पाठकों से करवायेंगे। पाठकों से अनुरोध है इन पत्रिकाओं को मंगवाकर पढें और पारस्परिक सहयोग करें। पत्रिकाओं को स्तरीय रचनाएँ ही भेजें,  इससे पत्रिकाओं का स्तर तो बढ़ता ही है, रचनाकारों का अपना सकारात्मक प्रभाव भी पाठकों पर पड़ता है।}
 

कथा संसार :  कुछ नया करने की चाहत
   कथा संसार हिन्दी सहित्य की प्रमुख और चर्चित लघु पत्रिकाओं में से एक है। पिछले दस वर्षों में कथा संसार के इक्कीस अंक आये हैं । स्पष्ट है निरन्तरता वाधित हुई है, फिर भी कथा संसार की उपस्थिति साहित्य से जुड़े तमाम लोगों ने लगातार महसूस की है, इसका कारण निश्चित रूप से सम्पादक सुरंजन द्वारा कदम-कदम पर संघर्षों के बावजूद हमेशा अपनी क्षमताओं से अधिक और हर बार कुछ न कुछ नया और जरूरी देने की कोशिश एवं इच्छाशक्ति ही है। कथा संसार का हर अंक एक विशेषांक होता है और नये-पुराने बहुत सारे रचनाकारों की उपस्थिति के साथ तमाम बड़ी पत्रिकाओं के बराबर खड़ी नज़र आती है यह पत्रिका। खास बात यह है कि अपने अधिकांश रचनाकार मित्रों के साथ सम्पादक सुरंजन जी के सम्बन्धों की गहराई प्रत्येक अंक में महसूस की जा सकती है, साथ ही पत्रिका की रचनात्मकता और वैचारिकता पर सुरंजन जी के व्यक्तित्व के खुलेपन और स्पष्टवादिता का प्रभाव भी।
   कथा संसार के पिछले दो अंक क्रमशः जनक छन्द और पुरुष व्यथा पर केन्द्रित रहे हैं। जनक छन्द एक नया छन्द है, तदापि इसके प्रणेता डॉ. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’ जी के व्यक्तित्व एवं जनक छन्द के लिए उनके तमाम प्रयासों, जनक छन्द की पृष्ठ-भूमि एवं विकास यात्रा और उसकी रचना-प्रक्रिया व रचनात्मकता के तमाम पक्षों आदि को विस्तार से आलेखों, साक्षात्कार एवं प्रतिनिधि जनक छन्द रचनाओं के माध्यम से सामने रखा गया है जनक छन्द विशेषांक (अंक 20) में। जनक छन्द से जुड़े लगभग सभी रचनाकारों की रचनाओं को विशेषांक में स्थान दिया गया है। विशेषांक की सामग्री के चयन एवं संयोजन में रमेश प्रसून जी का विशेष योगदान रहा है। जनक छन्द से जुड़े रचनाकारों के लिए भी और उन रचनाकारों के लिए भी, जो जनक छन्द का गहन परिचय प्राप्त करना चाहते हैं, यह विशेषांक बेहद महत्वपूर्ण एवं संग्रहणीय है। सुरंजन जी, रमेश प्रसून जी एवं पूरी संपादकीय टीम के सदस्य इस स्तुत्य कार्य के लिए बधाई के पात्र हैं।
    इक्कीसवां अंक पुरुष व्यथा पर केन्द्रित है। समाज में नारी उत्पीड़न और नारी सशक्तीकरण का मुद्दा चर्चा के केन्द्र में है। इस मुद्दे के पक्ष में बहुत सारी अतिरंजित प्रतिक्रियाओं का परिणाम यह हो रहा है कि पुरुष की बहुत सारी पीड़ाएं नज़र अन्दाज हो रही हैं। इस सम्बन्ध में गहराई से और व्यवहारिक स्तर पर निष्पक्ष होकर सोचा जाये, तो महिला-उत्पीड़न हो या पुरुष-उत्पीड़न, बहुत सारे मामले विशुद्ध रूप से मानवीय उत्पीड़न के होते हैं, उनका सम्बन्ध महिला या पुरुष होने से उतना नहीं होता है, जितना समझा जाता है। दूसरी बात उत्पीड़न पुरुष द्वारा महिला/महिलाओं का हो या महिला द्वारा पुरुष/पुरुषों का हो, चर्चा और समाधान दोनों का होना चाहिए। सकारात्मक तथ्य यह है कि महिला और पुरुष दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं और इसी तथ्य को दोनों के समान जीवन-मूल्यों के सन्दर्भ में समान अधिकारों और समान कर्त्तव्यों के आधार पर स्थापित किया जाना चाहिए। पर व्यापक स्तर पर ऐसा हो नहीं पा रहा है। प्रमुखतः महिलाओं के पक्ष में एकतरफा चर्चाएं हो रही हैं और इन चर्चाओं के उद्देश्य और परिणामों पर प्रश्नचिह्न भी लग रहे हैं। इन्हीं सबके मध्य महिलाओं द्वारा पुरुष उत्पीड़न का मुद्दा भी उठने लगा है। अमर साहनी जी ने नियोजित अध्ययन एवं चिन्तन के बाद इसको लेकर एक पुस्तक लिखी है- ‘अथ पुरुष व्यथा’। इस पुस्तक और उसमें उठाये गये मुद्दे यानी महिलाओं द्वारा पुरुषों के उत्पीड़न पर केन्द्रित है- कथा संसार का ‘अथ पुरुष व्यथा विशेषांक-2011’। इस विशेषांक में एक ओर जहाँ अमर साहनी जी की पुस्तक से पुरुष व्यथा पर विभिन्न आलेख रखे गये हैं, वहीं कई रचनाकारों की सशक्त कविताओं, लघुकथाओं एवं कहानियों के साथ सम्पादकीय के माध्यम से भी विशेषांक के विषय का समर्थन किया गया है। रमेश प्रसून जी ने साहनी जी की पुस्तक की संतुलित समीक्षा भी दी है। विशेषांक का उद्देश्य निश्चित रूप से पुरुषों के उत्पीड़न के पक्ष को भी चर्चा के मध्य रखना रहा है, पर कहीं-कहीं वैसी ही अतिरंजित सी प्रतिक्रियाएं भी दृष्टिगत होती हैं, जैसी नारीवादी चर्चाओं में आती रही हैं, खासतौर से पौराणिक सन्दर्भों को उद्धृत करते समय। यद्यपि कथा संसार के विशेषांक को काफी संतुलित करने की कोशिश की गई है, तदापि यह कहना प्रासंगिक होगा कि नारीवाद या पुरुषवाद से अधिक जरूरत दोनों के पूरक सम्बन्धों को समझने एवं स्थापित करने की है।
    निश्चय ही कथा संसार वैचारिक व रचनात्मक स्तर पर तो एक महत्वपूर्ण पत्रिका है ही, कई रचनाकारों और उनके कार्य को पहचान देने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।

कथा संसार :  कथा साहित्य और चिन्तन की पत्रिका। सम्पादक :  सुरंजन सम्पादकीय सम्पर्क :  ई-385 सी, प्रताप विहार, निकट कैप्टन गैस ऐजेन्सी, गाजियाबाद-201009(उ.प्र.)। फोन :  9313195796। पृष्ठ :  80-90। मूल्य- एक प्रति :  रु.50/-, वार्षिक :  रु. 200/-(संस्था/लाइब्रेरी के लिए :  रु. 500/-), आजीवन :  रु. 2000/-।

संकेत  :  कविता में जीवन दृव की अभिव्यक्ति को खोजती लघु पत्रिका
 संकेत कविता केन्द्रित लघु पत्रिका है। लोकोन्मुखी एवं जीवन-दृव के अहसास को अभिव्यक्ति देने वाली कविता की खोज में संकेत का हर अंक ऐसी ही कविता के सृजन से जुड़े अपने समय के किसी एक कवि पर केन्द्रित होता है। एक अंक में एक ही कवि की कविताएं होने से सम्पादक जिस कविता की खोज में निकले हैं, उसे उसके फलक की व्यापकता के साथ समझना तो सम्भव होता ही है; कवि विशेष की रचनात्मकता और उसके व्यक्तित्व को समझना भी सम्भव हो जाता है। इस दृष्टि से सम्पादक अनवर सुहैल जी का यह सतत प्रयास अपने-आपमें अनूठा है। हर अंक एक लघु संग्रह की तरह आ रहा है। हालांकि इसके साथ विभिन्न रचनाकारों से आने वाली विविधिता से वंचित जरूर रहना पड़ता है, पर इसे वहन किया जा सकता है क्योंकि इसकी प्रतिपूर्ति के लिए अनेकों अच्छी पत्र-पत्रिकाएं हमारे मध्य हैं।
   संकेत के अब तक आठ अंक आये हैं, जो क्रमशः रजतकृष्ण, केशव तिवारी, शिरोमणि महतो, महेश चन्द्र पुनेठा, खदीजा खान, भास्कर चौधुरी, विष्णु चन्द्र शर्मा एवं ओम शंकर खरे ‘असर’ पर केन्द्रित हैं। इनमें से दो अंक शिरोमणि महतो एवं ओम शंकर खरे ‘असर’ पर केन्द्रित हमें देखने को मिले हैं।
    शिरोमणि महतो की कविताओं में लोक और स्थानीय चेतना के अंकुर भी मिलते हैं और जीवन-दृव का प्रवाह भी। अंक में उनकी ‘अखरा’, ‘काम पर जाते हुए लोग’, ‘इस साल का सावन (2009)’ ‘नदी’, ‘नेटवर्किंग वाले लड़के’ जैसी कई प्रतिनिधि व प्रभावशाली कविताएं शामिल हैं। शिरोमणि महतो भविष्य के एक ऊर्जावान रचनाकार हैं, संकेत के इस अंक से निश्चय ही उनकी प्रतिभा से लोगों को परिचित होने का अवसर तो मिला ही है, महतो जी और अच्छा करने के लिए प्रेरित होंगे।
   ओम शंकर खरे ‘असर’ जी को संकेत के सम्पादकीय में ‘अचर्चित वयोवृद्ध कवि’ कहा गया है, लेकिन उनके कार्यों और योगदन का जो विवरण प्रस्तुत किय गया है, वह इस तथ्य को सामने रखनेे के लिए पर्याप्त है कि आज भी महत्वपूर्ण और महान सृजक समय की अंधेरी कन्दराओं में साधनारत हैं। जब कभी ऐसे सृजकों की ओर किसी का ध्यान जाता है तो हमे कई चौंकाने वाली उपलब्धियां देखने को मिलती हैं। संकेत का असर जी पर अंक निकालना लागों का ध्यान इस ओर खींचने का काम करता है। अंक में असर जी की चौदह ग़ज़लों के साथ कुछ छोटी किन्तु बेहद प्रभावशाली छन्दमुक्त कविताएं रखी गई हैं। सभी रचनाओं में जीवन की धड़कनों को साफ-साफ सुना जा सकता है, जहाँ विसंगतियों को उकेरा गया है, वहाँ भी और जहाँ जीवन के विभिन्न अहसास सीधे अन्तर्मन टकराते हैं, वहाँ भी। असर जी ने कहीं-कहीं व्यंग्य का प्रयोग भी पूरे असर के साथ किया है।
   संकेत छोटी किन्तु एक अच्छी पत्रिका है, कविता के प्रति जिज्ञासुओं के लिए भी और पाठकों के लिए भी। संकेत में कुछ पुस्तकों की सारगर्भित समीक्षाएं भी दी जाती हैं, साथ ही सहयोगी लघु-पत्रिकाओं की परिचयात्मक जानकारी भी।

संकेत :  कविता केन्द्रित लघु पत्रिका। सम्पादक :  अनवर सुहैलसम्पादकीय सम्पर्क :  टाइप 4/3, ऑफीसर्स कालोनी, पो. बिजुरी, जिला- अनूपपुर (म.प्र.) पिन-484440। मोबाइल : 09907978108/07587690183। ई मेल : sanketpatrika@gmail.com . पृष्ठ : 30-32। सहयोग राशि: एक अंक: रु.15/-, विशेष सहयोग: रु.100/-। पुराने उपलब्ध अंक भी रु. 100/- भेजकर मंगावाये जा सकते हैं। सभी धनराशि धनादेश (मनीआर्डर) द्वारा ही भेजें।


समकालीन अभिव्यक्ति  :   संतुलित पत्रिका
     साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चेतना की लघ्ुा पत्रिका के रूप में समकालीन अभिव्यक्ति का अपना महत्व है। पत्रिका विगत नौ वर्षों से निरन्तर प्रकाशित हो रही है, यह बात अपने आपमें महत्वपूर्ण है। दो अंक अप्रैल-सितम्बर 2010 एवं अक्टूबर-दिसम्बर 2010 हमें देखने को मिले है। दिल्ली से श्री उपेन्द्र कुमार मिश्र के सम्पादन में प्रकाशित इस त्रैमासिक पत्रिका में साहित्यिक रचनाओं के साथ सामाजिक विषयों एवं दर्शनीय स्थलों आदि पर आलेख एवं स्तम्भबद्ध महत्वपूर्ण सामग्री भी दी जाती है। साहित्यिक रचनाओं में कविता, कहानी, लघुकथा, समीक्षाएं आदि का चयन स्तरीय है। स्थापित रचनाकारों के साथ कई उभरते हुए रचनाकारों की उपस्थिति भी देखी जा सकती है। ‘चुप्पी तोड़ो’ शीर्षक से काव्यात्मक सम्पादकीय अनूठा तो होता ही है, वैचारिक स्तर पर भी प्रभावित करता है। प्रमुख स्थाई स्तम्भ हैं- अन्दाजे बयाँ, एक दुनियां और भी है, वक्रोक्ति, साहित्यिक विनोद, खोज खबर एवं पोथी की परख। ‘एक दुनियां और भी है’ में सम्पादक उपेन्द्र जी सामाजिक-राजनैतिक समस्याओं पर अपना चिन्तन रखते हैं, जिससे पाठक सीधे तौर भी जुड़कर बहस का हिस्सा बन सकते हैं, यद्यपि ऐसा हो नहीं पा रहा है। वक्रोक्ति में सह सम्पादक हरिशंकर राढ़ी के व्यंग्य आलेख भी बेहद पैनापन लिए हुए होते हैं। धरोहर के अन्तर्गत अनिल डबराल विभिन्न महत्वपूर्ण स्थलों की अच्छी जानकारी दे रहे हैं, इन दोनों अंको में क्रमशः एलोरा एवं कन्याकुमारी के बारे में जाजकारी दी गई है। यात्रा वृतान्त में बुद्धि प्रकाश कोटनाला वर्ष 2009 में अपनी लद्दाख यात्रा के अपने अनुभव बाँट रहे हैं पाठकों के साथ। अपनी स्मृतियों के माध्यम से वह पाठकों को कश्मीर और लद्दाख की खूबसूरती और बहुत सारी अच्छी चीजों से रूबरू कराते नज़र आते हैं।
      ‘खोज खबर’ के अन्तर्गत विभिन्न साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों से सम्बन्धित सूचना-समाचार भी प्रकाशित किए जाते हैं। पुस्तकों की समीक्षाओं के लिए भी पर्याप्त स्थान रखा गया है। सहित्यकारों और पाठकों दोनों की दृष्टि से समकालीन अभिव्यक्ति एक अच्छी संतुिलत पत्रिका है।

समकालीन अभिव्यक्ति :  साहित्यिक एवं सांस्कृतिक चेतना की पत्रिका। सम्पादक :  उपेन्द्र कुमार मिश्रसम्पादकीय सम्पर्क :  फ्लैट नं.5, तृतीय तल, 984, वार्ड नं. 7, महरोली, नई दिल्ली-30। पृष्ठ :  64। शुल्क :  एक अंक :  रु.15/-, वार्षिक : रु.50/-, संस्था रु.80/-, आजीवन शुल्क : रु.500/-। दूरभाष : 011-26645001/26644751। ई मेल : samkaleen999@gmail.com


हम सब साथ साथ :  प्रासंगिक मुद्दों पर ध्यान खींचती लघु पत्रिका
     ‘हम सब साथ साथ’ द्विमासिक साहित्यिक पत्रिका है, नौ वर्ष से निरन्तर निकल रही है। हर अंक को किसी बिषय विशेष पर केन्द्रित करके विषयानुकूल कविता, कहानी, लघुकथा आदि रचनाओं, आलेखों, चर्चाओं आदि के माध्यम से उस विषय पर साहित्यकारों  और अपने पाठकों सहित तमाम बुद्धिजीवियों का ध्यान आकर्षित करती है। चूँकि पत्रिका के द्वारा चयनित विषय प्रासंगिक होते हैं, इसलिए ‘हससासा’ का कार्य निश्चित रूप से महत्वपूर्ण है और इसका नोटिस लिया जाना चाहिए। पत्रिका के दो अंक मार्च-अप्रैल 2011 (राष्ट्रीय एकता/देशभक्ति पर केन्द्रित) और जुलाई-अगस्त2011 (अंधविश्वास/ढकोसला पर केन्द्रित) अंक हमने देखे हैं। सामान्यतः ऐसे विषयों पर अच्छी और स्तरीय रचनाएं/सामग्री जुटाना लघु पत्रिकाओं के लिए बेहद मुश्किल कार्य होता है, पर ‘हससासा’ ने इन अंकों के लिए न सिर्फ पर्याप्त वल्कि स्तरीय सामग्री जुटाई है। आलेखों/चर्चाओं में विचार सुलझे हुए हैं, अधिकांश रचनाएं, खासकर कथा रचनाएं (लघुकथाएं व कहानी) प्रभावशाली हैं। कविताओं में भी अधिसंख्यक प्रभावित करती हैं। कार्यकारी सम्पादक श्री किशोर श्रीवास्तव जी स्वयं एक स्थापित और अच्छे चित्रकार/रेखांकनकार हैं, वे इस कला का यथासम्भव उपयोग पत्रिका में बखूबी करते हैं। रचनाओं के साथ रचनाकारों के छायाचित्र भी देने का प्रयास किया जाता है। पत्रिका अपने सदस्यों का परिचय भी फोटो सहित प्रकाशित करती है। लघु पत्रिकाओं के परिचय एवं साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों की सूचनाओं एवं समाचारों के लिए भी पर्याप्त स्थान रखा गया है। पत्रिका से सम्बन्धित विभिन्न सूचना-समाचारों के लिए इन्टरनेट पर एक ब्लाग भी संचालित किया जा रहा है।

हम सब साथ साथ :  द्विमासिक साहित्यिक पत्रिका। सम्पादिका :  शशि श्रीवास्तव, कार्यकारी सम्पादक :  किशोर श्रीवास्तवसम्पादकीय सम्पर्क :  916, बाबा फरीदपुरी, पश्चिमी पटेलनगर, नई दिल्ली-110008। पृष्ठ : 36। शुल्क :  एक अंक :  रु.15/-, वार्षिक :  रु.120/-, पांच वर्ष का शुल्क रु.550/-, आजीवन शुल् :  रु.1100/-।
फोन :  8447673015/9868709348/9968396832/9971070545
ई मेल : humsabsathsath@gmail.com & hass2004@indiatimes.com
ब्लाग :  http://humsabsathsath.blogspot.com 

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपका बेहद शुक्रिया जो आपने हमारी पत्रिका को बेहतर तरीके से पाठकों के समक्ष रखा। आपका यह ब्लाग सचमुच काबिले तारीफ है।

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  2. आपका ब्लाग बहुत सुदर बन पड़ा है। हमारी पत्रिका की जानकारी भी आपने बेहतर तरीके से दी है। इसके लिए आपका अत्यन्त आभार। आपके इस अमूल्य व बेहतरीन प्रयास के लिए आपको बधाई व शुभकामनाएं...

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  3. Dr.Doshiji,
    So many thanks to you for giving detailed information about Samkaleen Abhivyakti on your blog.
    We're sorry for not having hindi software on this system.

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