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रविवार, 29 जनवरी 2012

अविराम विस्तारित

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : १, अंक : ०५, जनवरी २०१२ 


।।व्यंग्य वाण।।

सामग्री : मधुर गंजमुरादाबादी की व्यंग्य कविता 'दमकल की राह ताकिए'  एवं डॉ. सुरेन्द्र प्रकाश शुक्ल का व्यन्ग्यालेख 'बड़े मियां का शौक'।





मधुर गंजमुरादाबादी


दमकल की राह ताकिए

                    उम्दा सन्देश डाकिए
                    लाए हैं आपके लिए।
समय कीमती अपना व्यर्थ नहीं खोइये,
  बिस्तर में मस्ती से दुपहर तक सोइये
              जलसों में रोज़ जागिये।
अपने गुण गौरव का  विज्ञापन कीजिये
जनता कुछ मांगे तो आश्वासन दीजिये।
              सपनों का स्वर्ण बाँटिये।
ग़लती करिए लेकिन क्षमा नहीं माँगिये,
जो ज़बान  खोले  उसको  उल्टा  टाँगिये।
            रह न जायें होठ अनसिये।
   एकता न रहे  कहीं   भेद  को  बढ़ाइये,
   अपराधी  तत्वों को  शीश पर चढ़ाइये।
             जीवन निश्चिन्त काटिये।
आपस में सिर धुनकर बालों को नोंचिये,
ख़ुद घर में आग लगा पानी की सोचिये।
             दमकल की राह ताकिये।

  • अध्यक्ष: हितैषी स्मारक सेवा समिति, गंजमुरादाबाद-209869, जिला उन्नाव (उ.प्र.) 





डॉ. सुरेन्द्र प्रकाश शुक्ल 


बड़े मियां का शौक
   शौकीन आदमी के कहने ही क्या? उसे तो बस एक ही धुन रहती है कि उसके शौक की बजह से अन्य लोग उसे अपने सिर पर चढ़ाये रहें। यानि कि शौकीन होने के कारण वह बड़ा खास समझा जाए। होता भी यही है। किसी भी लकलकाते कपड़े और चमचमाते जूते पहने हुए व्यक्ति का सिर भले बालों से सफाचट हो लेकिन देखते ही लोग वाह करते कह उठेंगे- भाई वाह, क्या शौकीन आदमी है! रईस है रईस! तभी तो ये खानदानी ठाठ हैं। 
   और रईस भाई फूलकर कुप्पा कि उनकी तारीफ की जा रही है। गर्व के मारे लकड़ी जैसे अकड़ते हुए आगे निकल जायेंगे जनाब।
   ये शौक भी जनाब सिर्फ कपड़ों-लत्तों तक ही सीमित नहीं है। अच्छे कपड़ों का शौक, जूतों का शौक, खाने-पीने या खिलाने-पिलाने का शौक, मकान बनवाने का शौक और साहब पालतू जानवरों को और पालतू बनाने का शौक आदि आदि। अनेक लोग नई-नई सायकिल, स्कूटर और मोटरकार ही खरीदते-बेचते रहते हैं। मुद्रा का आदान-प्रदान भी होता रहता है और नए वाहनों में फर्राटे भरने का शौक भी उनका परवान चढ़ता रहता है।
   इन अनगिनत शौकों में आजकल जो शौक समाज को सबसे अधिक दबोच रहा है वह है पालतू पशुओं को पालने का शौक। पशु तो होते ही हैं पालने के लिए वरना जंगली न हो जाएं। वैसे भी जंगल अब कटते ही जा रहे हैं और उनकी जगह ले रही हैं शहरी कालोनियां और फैक्ट्रियां, तो फिर युगों-युगों से जंगलों में आबाद ये पशु-पक्षी भला जाएंगे कहां? घरों को ही जंगल बना देंगे ससुर। फिर आजकल की तहजीब में पशुपालन और पशु-पक्षी प्रेम को लोगों के साथ-साथ दुनियां भर की सरकारों का संरक्षण प्राप्त होता जा रहा है। अब यह बात और है कि इन संरक्षण में पलते-बढ़ते अनेक पशु-पक्षियों का असमय ही दम घुट जाए।
   जो भी हो, पशु प्रेम व उन्हें पालने का शौक पहले के जमाने में भी था और अब तो कहना ही क्या! पहले लोग कबूतर, तोते, बिल्लियां पालते थे। कुत्तों को तो पालो न पालो, हमेशा से ही जहां आदमी है, वहां ये महाशय भी पलेंगे ही। लेकिन आजकल कुत्ता, बिल्ली, तोते, कबूतर सभी अपने नए कलेवर और नए नामों जैसे टामी, पूसी, स्वीटी, मिट्ठू आदि की हैसियत से किसी भी शौकीन अमीरजादे के घर में आम गरीब आदमी से कहीं अधिक हैसियत पाते ही हैं। इनके अलावा भी पशु प्रेम के दायरे में अनेक भाग्यशाली पशुओं को प्रतिष्ठित स्थान प्राप्त हो गया है। इन अजीजों में शामिल हैं हिरन, खरगोश, मुर्गा और शेर खां साहब।
   जी हां जनाब, कुछ अति शौकीन और हिम्मत वाले शौकीन शेर यानी कि टाइगर को भी उनकी बाल्यावस्था से ही पालते-पोसते हैं और लोगों पर अपने इस साहसिक शौक का रौब मारते हैं। अब इस शौक में कुछ सतर्क तो रहना ही पड़ेगा। लेकिन भाई शौकीनों की भी दाद देनी पड़ेगी। शेर को ही पाल लेते हैं।
   अपने राम तो सर्कस के पिंजड़ों में बन्द या अजायबघरों में दहाड़ते शेरों के सामने ही पानी मांगने लगते हैं तो उन्हें पालने-पोषने की कल्पना करना ही मुहाल है। लेकिन दुनियां में एक से बढ़कर एक सूरमा पड़े हैं। जितने खतरनाक जानवर, उतने ही खतरनाक उनके पालक।
   हमारे बड़े मियां भी कुछ इसी उच्च कोटि के शौकीन श्रेणी में हैं। वैसे लगभग सभी पशु मसलन गाय, भैंस, घोड़े और हां हाथी भी सैकड़ों की संख्या में मिल-जुलकर पलते थे उनके यहां। लेकिन तभी उस खानदान में बड़े मियां का पदार्पण, मेरा मतलब आगमन हो गया।
   बड़े मियां जब नौजवान हुए तो अपने परिवार के पशु प्रेम को चरम सीमा पर पहुंचा दिया। किसी जंगल से एक शिकारी के 
माध्यम से एक शेर का प्यारा सा बच्चा मंगवा कर पाल लिया। क्या खूब सेवा करते थे बड़े मियां! हम कौतूहलवश उसके करीब पहुंचते तो उसकी एक ही हुंकार या चिंघाड़ से हमारी फूक सरक जाती थी। लेकिन बड़े मियां को इसमें अपार खुशी मिलती रही।
   धीरे-धीरे वह शेर का बच्चा जवान होने लगा। बलशाली इतना कि दस-पन्द्रह फीट लम्बी कुलांचे भरता रहता। लेकिन किसी को गुर्राने के अलावा और कोई नुकसान नहीं पहुंचाता था। बड़े मियां का इतना पालतू कि उनके साथ-साथ ही लगा रहता और जिधर बड़े मियां के साथ जाता तो डर के मारे मैदान साफ ही रहता। एक दिन बड़े मियां बैठे चबूतरे पर अपनी हजामत बनवा रहे थे। नाई बेचारा सहमा हुआ अपना काम कर रहा था क्योंकि बड़े मियां का पैर चाटता शेरा वहीं बैठा था। चाटते-चाटते बड़े मियां के पैर में खून निकल आया। जिसका स्वाद शेरा पा गया। अब था तो शेर का बच्चा! जब बड़े मियां का ध्यान बहते खून की ओर गया तो शेरा उनका पैर छोड़ ही नहीं रहा था। उन्होंने डांट लगाई तो शेरा ने आक्रमण करके उन्हें धराशाई कर दिया। एक अन्य हिम्मती मर्द ने जब शेरा को गोली मारी तब कहीं घायल हो गये बड़े मियां की जान बची। तब से बड़े मियां एक ही पैर से चलते हैं।



  • 554/93, पवनपुरी लेन 9, आलमबाग, लखनऊ-05 (उ.प्र.) 

1 टिप्पणी:

  1. प्रेम की नाव

    उसकी बातो में
    लगने लगा हे
    बहुत कुछ
    बनाव इन दिनों.

    किसी और की
    गली से
    गुजरने लगे हे
    उसके पावं इन दिनों.

    मागने लगा हे
    कोई और
    उसके जुल्फों की
    छाव इन दिनों.

    हाँ चर्चे हे
    उसके एक और
    अफएर के
    गाँव में
    इन दिनों.

    हो न हो
    वो सवार हे
    प्रेम की
    दो नाव में इन दिनों.

    सुधीर मौर्या 'सुधीर'
    गंज जलालाबाद, उन्नाव
    २४१५०२
    ०९६९९७८७६३४/09619483963

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