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गुरुवार, 22 नवंबर 2012

अविराम विस्तारित

अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : 2,  अंक : 2,  अक्टूबर  2012  

।।क्षणिकाएँ।।


सामग्री : अनिल जनविजय की क्षणिकाएँ।

अनिल जनविजय


{बहुधा प्रमुख कवियों के कविता संग्रहों को पढ़ते हुए अच्छी और प्रभावशाली क्षणिकाएँ देखने को मिलती हैं। दरअसल क्षणिका के विधागत अस्तित्व की ओर ध्यान दिए बिना ही लघुआकारीय कविताएँ नई कविता/छन्दमुक्त कविता के अधिकांश कवियों के द्वारा लिखी गई हैं। इन रचनाओं का अपना रूपाकार, शिल्प और प्रभाव का समन्वय उनकी अलग उपस्थिति दर्ज कराता और इन रचनाओं की ओर ध्यान आकर्षित करता है। सुप्रसिद्ध कवि श्री अनिल जनविजय का वर्ष 2004 में प्रकाशित कविता संग्रह ‘राम जी भला करें’ हमें वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. बलराम अग्रवाल जी के माध्यम से अभी हाल ही में पढ़ने को मिला, इस संग्रह में भी कई रचनाएँ अच्छी क्षणिकाएँ हैं। इन्हीं में से साभार प्रस्तुत हैं कुछ क्षणिकाएँ।}

1. भविष्य
रेखांकन : के. रविन्द्र 

याद हैं मुझे
तुम्हारे वे शब्द
तुमने कहा था-
एक दिन आएगा
जब आदमी
आदमी नहीं रह पाएगा
वह बंजर ज़मीन हो जाएगा
या ठाठें मारता समुद्र

2. भय

जब सारी चिड़ियां
गुम हो जाती हैं
आकाश
काला पड़ जाता है
मैं डर जाता हूँ

3. औरतें
रेखांकन : बी. मोहन नेगी 

औरतें 
शहरों की तरह होती हैं

जिन्हें
जितना ज्यादा निकट से 
तुम देखते हो

उन्हें 
उतना ही कम
तुम जानते हो

4. जीवन

बेचैन होते हैं
फड़फड़ाते हैं
पेड़ों से टूटकर गिर जाते हैं

पुराने पत्ते
नयों के लिए
यह दुनियां छोड़ जाते हैं

5. स्मृति

जब भी याद आती है तेरी
धीरे से मैं
दीवार की खाल
खुरच देता हूँ
जहाँ तेरा नाम
कभी लिखा था मैंने
ख्ड़िया से

6. ये दिन
(कवि सुधीर सक्सेना के लिए)

दिन हैं 
ये कठिन बड़े
अड़ियल टट्टू से खड़े

सारी गतिविधियाँ बंद हैं
सब मृतक से पड़े
हम पर होता
क्या असर
हम भी हैं चिकने घड़े

आदमी 
ऐसा चाहिए
जो इस मौसम से लड़े

7. शेष सिर्फ़
रेखांकन : के. रविन्द्र 
(कवि सोम दा के लिए)

तुम गए
एक पुल ढह गया

शेष सिर्फ़
कविताओं का 
मलबा रह गया

8. मृत्यु

मृत्यु ने
आलिंगन में बाँधा
और चूमा मुझे कई बार

पर एक द़फा भी
उसने मुझसे
किया न सच्चा प्यार

  • ई मेल : aniljain@df.ru

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