अविराम का ब्लॉग : वर्ष : 2, अंक : 11-12, जुलाई-अगस्त 2013
आशीष दशोत्तर
वीसा की महिमा
विदेश का मोह हो तो ऐसा। बार-बार बेइज्जत हो कर भी वहीं जाने की चाह, वाह क्या बात है। विदेश से इतना प्रेम हो भी क्यूं नहीं। आखिर विदेश जाने पर ही तो देश में इज्जत बढ़ती है। और फिर आजकल तो सभी कुछ विदेशी होने से ही प्रभावी होने लगा है। देशी माल पर परदेशी मुहर उसकी कीमत बढ़ा देती है। इस मुहर को लगवाने के लिए बाहर अपमानित भी होना पड़े तो क्या फर्क पड़ता है? वीसा की चाह में दिन-रात एक कर चुके और तमाम तरह की तिकड़में लगा चुके वे कल हमसे टकरा गए। बार-बार अपमानित होते देख उनसे हमने कहा कि यह ठीक नहीं है, आपके अपमानित होने से आपकी इमेज पर प्रभाव पड़ता है। वे कहने लगे, इससे तो मेरी मार्केट वेल्यू और बढ़ गई है। मेरे प्रशंसको की मेरे प्रति सहानुभूति बढ़ी है। हमने कहा कि आपके प्रशंसकों ने बाज़ार में हवा फैला रखी है कि आप समाज को राह दिखाते हैं। आपके अपमानित होने से समाज पर क्या असर पड़ेगा? इस पर वे नाराज हो गए। कहने लगे, राह दिखाने का ठेका हमने ही ले रखा है क्या? राह दिखानी ही है तो ठेकेदार दिखाए, समाज की चिन्ता करने वाले समाज सेवक दिखाएं। हमें तो बस वीसा चाहिए। वो भी अमेरिका का। उनकी ज़िद को देखते हुए हमने सोचा कि वे काफी ज़िद्दी हैं। कुछ भी कर सकते है। वे जो कहते हैं वो बात सही भी है। मग़र उन्हें कौन समझाए कि ठेकेदारों ने देश का बेड़ा गर्क करने का ठेका ले रखा हैं। यह ठेका अभी निरस्त होने की स्थिति में दिखता नहीं है। इसको लगातार एक्सटेंशन मिलता जा रहा है।
सेवक बन चुके लोग, जनता की सेवा करने के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं। पहले खुद साधन सम्पन्न बनकर, जनता को सुख-सुविधा उपलब्ध कराने के संकल्प के प्रति ये सेवक दृढ़ संकल्पित नज़र आ रहे हैं। जनता को यकीन दिलाया जा रहा है कि उसकी किस्मत बदलने वाली है। और जनता भी सेवकों की इस बात पर विश्वास करते हुए अपनी किस्मत बदलने का इंतज़ार कर रही है। वैसे समाजसेवकों के प्रयास भी कमतर नहीं हैं। समाज की नींव मज़बूत करने से पहले वे अपनी नींव मज़बूत कर रहे हैं। उनका मानना है कि वे एक बार मज़बूत बन जाएं फिर समाज को तो चुटकियों में मजबूत बना देंगे। समाज के लोग जो खुद को ‘सामाजिक प्राणी कहते वक्त गर्व का अनुभव करते है, वे अपने इन समाज सेवकों की मज़बूत होती नींव को देख रहे हैं, और इस मज़बूती से संतुष्ट भी हैं।
यानी हर कोई अपने-अपने मिशन में पूरी निष्ठा से जुटा हुआ है। इसीलिए आपसे ही यह अपेक्षा की जा रही है कि समाज को सही राह दिखाएं। वे कहने लगे, हम भी अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं कि पथप्रदर्शक बने रहें। समाज की तमाम बुराइयों को हकीकत में पेश कर हम नागरिकों को नफ़रत करना सिखा रहे हैं। नायक और खलनायक के भेद को मिटाकर बन्धुत्व की भावना का विकास कर रहे हैं। समाज की बुराइयों को ‘नवीनतम तकनीक’ के जरिये इस तरह पेश कर रहे हैं कि लोगों को ‘बुराई‘ बुरी लगे ही नहीं। बुराइयाँ अच्छाइयों में तब्दील हों या बुराई ही अच्छी लगने लगे, इसमें फ़र्क क्या पड़ता है? हम तो बार-बार अपमानित हो कर भी विदेश जा ही इसीलिए रहे हैं ताकि समाज को बता सकें कि चाहे जितना अपमान हो हिम्मत कभी नहीं हारना चाहिए। वीसा के लिए इसीलिए तमाम कोशिश कर रहे हैं। आप भी हमारे लिए दुआ करें। हो सके तो किसी से पत्र लिखवा दें। यह निगौड़ी वीसा एक बार मिल तो जाए फिर हम सबको देख लेंगे।
।।व्यंग्य वाण।।
सामग्री : आशीष दशोत्तर का व्यंग्यालेख 'वीसा की महिमा'
आशीष दशोत्तर
वीसा की महिमा
विदेश का मोह हो तो ऐसा। बार-बार बेइज्जत हो कर भी वहीं जाने की चाह, वाह क्या बात है। विदेश से इतना प्रेम हो भी क्यूं नहीं। आखिर विदेश जाने पर ही तो देश में इज्जत बढ़ती है। और फिर आजकल तो सभी कुछ विदेशी होने से ही प्रभावी होने लगा है। देशी माल पर परदेशी मुहर उसकी कीमत बढ़ा देती है। इस मुहर को लगवाने के लिए बाहर अपमानित भी होना पड़े तो क्या फर्क पड़ता है? वीसा की चाह में दिन-रात एक कर चुके और तमाम तरह की तिकड़में लगा चुके वे कल हमसे टकरा गए। बार-बार अपमानित होते देख उनसे हमने कहा कि यह ठीक नहीं है, आपके अपमानित होने से आपकी इमेज पर प्रभाव पड़ता है। वे कहने लगे, इससे तो मेरी मार्केट वेल्यू और बढ़ गई है। मेरे प्रशंसको की मेरे प्रति सहानुभूति बढ़ी है। हमने कहा कि आपके प्रशंसकों ने बाज़ार में हवा फैला रखी है कि आप समाज को राह दिखाते हैं। आपके अपमानित होने से समाज पर क्या असर पड़ेगा? इस पर वे नाराज हो गए। कहने लगे, राह दिखाने का ठेका हमने ही ले रखा है क्या? राह दिखानी ही है तो ठेकेदार दिखाए, समाज की चिन्ता करने वाले समाज सेवक दिखाएं। हमें तो बस वीसा चाहिए। वो भी अमेरिका का। उनकी ज़िद को देखते हुए हमने सोचा कि वे काफी ज़िद्दी हैं। कुछ भी कर सकते है। वे जो कहते हैं वो बात सही भी है। मग़र उन्हें कौन समझाए कि ठेकेदारों ने देश का बेड़ा गर्क करने का ठेका ले रखा हैं। यह ठेका अभी निरस्त होने की स्थिति में दिखता नहीं है। इसको लगातार एक्सटेंशन मिलता जा रहा है।
सेवक बन चुके लोग, जनता की सेवा करने के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं। पहले खुद साधन सम्पन्न बनकर, जनता को सुख-सुविधा उपलब्ध कराने के संकल्प के प्रति ये सेवक दृढ़ संकल्पित नज़र आ रहे हैं। जनता को यकीन दिलाया जा रहा है कि उसकी किस्मत बदलने वाली है। और जनता भी सेवकों की इस बात पर विश्वास करते हुए अपनी किस्मत बदलने का इंतज़ार कर रही है। वैसे समाजसेवकों के प्रयास भी कमतर नहीं हैं। समाज की नींव मज़बूत करने से पहले वे अपनी नींव मज़बूत कर रहे हैं। उनका मानना है कि वे एक बार मज़बूत बन जाएं फिर समाज को तो चुटकियों में मजबूत बना देंगे। समाज के लोग जो खुद को ‘सामाजिक प्राणी कहते वक्त गर्व का अनुभव करते है, वे अपने इन समाज सेवकों की मज़बूत होती नींव को देख रहे हैं, और इस मज़बूती से संतुष्ट भी हैं।
यानी हर कोई अपने-अपने मिशन में पूरी निष्ठा से जुटा हुआ है। इसीलिए आपसे ही यह अपेक्षा की जा रही है कि समाज को सही राह दिखाएं। वे कहने लगे, हम भी अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं कि पथप्रदर्शक बने रहें। समाज की तमाम बुराइयों को हकीकत में पेश कर हम नागरिकों को नफ़रत करना सिखा रहे हैं। नायक और खलनायक के भेद को मिटाकर बन्धुत्व की भावना का विकास कर रहे हैं। समाज की बुराइयों को ‘नवीनतम तकनीक’ के जरिये इस तरह पेश कर रहे हैं कि लोगों को ‘बुराई‘ बुरी लगे ही नहीं। बुराइयाँ अच्छाइयों में तब्दील हों या बुराई ही अच्छी लगने लगे, इसमें फ़र्क क्या पड़ता है? हम तो बार-बार अपमानित हो कर भी विदेश जा ही इसीलिए रहे हैं ताकि समाज को बता सकें कि चाहे जितना अपमान हो हिम्मत कभी नहीं हारना चाहिए। वीसा के लिए इसीलिए तमाम कोशिश कर रहे हैं। आप भी हमारे लिए दुआ करें। हो सके तो किसी से पत्र लिखवा दें। यह निगौड़ी वीसा एक बार मिल तो जाए फिर हम सबको देख लेंगे।
- 39, नागर वास, रतलाम-457001 (म.प्र.)
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