अविराम का ब्लॉग : वर्ष : 2, अंक : 11-12 , जुलाई -अगस्त 2013
सामग्री : इस अंक में डॉ. सुधा गुप्ता, रामेश्वर कम्बोज 'हिमांशु', डॉ. जेन्नी शबनम, रचना श्रीवास्तव, प्रियंका गुप्ता, डॉ. सतीश राज पुष्करणा, प्रगीत कुँअर के सेदोका।
अलसाई चाँदनी
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, डॉ. भावना कुँअर व डॉ. हरदीप कौर सन्धु द्वारा संयुक्ततः संपादित सेदोका संकलन ‘‘अलसाई चाँदनी’’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। हिन्दी में सेदोका में रचनाकर्म कम ही हुआ है और संभवतः हिन्दी में यह सेदोका का पहला संपादित-प्रकाशित संकलन है। सम्पादकीय के अनुसार सेदोका 5-7-7-5-7-7 वर्णों की षष्टपदीय काव्य रचना होती है, जो 5-7-7 के त्रिपदीय ‘कतौता’ के एक युग्म से बनती है। कतौता सामान्यतः स्वतन्त्र/एकल काव्य रूप में उपयोग नहीं होता है। इस संकलन में 21 रचनाकारों के 326 सेदोका शामिल हैं। इन्हीं में से कुछ रचनाकारों के तीन-तीन सेदोका हम अपने पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं।}
डॉ. सुधा गुप्ता
1.
कुछ खिलौने
उम्र छीन ले गई
कुछ वक़्त ने लूटे
ख़ाली हाथ हूँ
काश! कोई लहर
हथेली भर जाए।
2.
हिम-यात्रा है
दुर्गम ये चढ़ाई
बर्फ़ में धँसी जाऊँ
सूरज खोया
बर्फ़ की आँधियों में
कुछ देख न पाऊँ।
3.
मेघों ने मारी
हँसके पिचकारी
भीगी धरती सारी
झूमे किसान
खेतों में उग आई
वर्षा की किलकारी।
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1.
छुपा है चाँद
आँचल में घटा के
हुई व्याकुल रात
कहे किससे
अब दिल की बात
गिरे ओस के आँसू।
2.
फूटी किरनें
सुरमई साँझ भी
रूपसी बन गई
लौटेंगे सब
माना नीड़ में पाखी
ये पल न लौटेंगे।
3.
तपती शिला
निर्वसन पहाड़
कट गए जंगल
न जाने कहाँ
दुबकी जलधारा
खग-मृग भटके।
डॉ. जेन्नी शबनम
1.
मन की पीड़ा
बूँद-बँूद बरसी
बदरी से जा मिली
तुम न आए
साथ मेरे रो पड़ी
काली घनी घटाएँ!
2.
अँजुरी-भर
चुरा लूँ मैं चाँदनी
गर चाँद जो दिखे
ज़रा-सा चखूँ
अधरों पे सजा लूँ
गर चाँद जो कहे!
3.
तुम्हारी यादें
दिल में यूँ दफ़न
ज्यों मन-पिरामिड
युग गुज़रे
रहेंगे अवशेष
सदैव सलामत!
1.
रचना श्रीवास्तव
1.
जख़्मी घुँघुरू
रात की पायल का
बजता ही रहा था
सुना था यह-
जमी थी महफ़िल
बादल के घर
2.
इन तारों में
होगा छुपा उसका
नन्हा तारा भी कहीं
सोचके यही
नभ तकती रही
सारी रात एक माँ।
3.
जाने के बाद
लग जाती हैं गाँठें
चहकती हवा में
तब ख़ामोश
दीवारों से झाँकतीं
कुछ बोलती यादें।
ई मेल : rach_anvi@yahoo.com
प्रियंका गुप्ता
1.
कोमल हाथ
कलम को पकड़
लिखना सीख रहे,
माँ की आँखों में
सपनों का सागर,
पार उतरना है
2.
जीवन भर
रिश्तों की लाश ढोई
दर-दर भटकी,
काँधों पर लादे
सपनों का बैताल
जवाब नहीं मिला।
3.
ढूँढती फिरे
पनियाली नज़र
बुढ़ापे का सहारा
चिट्ठी में आए
कितना बँटा-बँटा
कलेजे का टुकड़ा
प्रगीत कुँअर
1.
संवेदनाएँ
छोड़ आए जो पीछे
फिर कहाँ से लाएँ
करे है राज
खुलेपन का दैत्य
हम सब पे आज
2.
दिल के घाव
ले आए जीवन में
कैसा ये ठहराव
झूठी आशाएँ
न जाने कहाँ तक
लेकर अब जाएँ!
3.
बहती नदी
गुज़रती कहीं से
पहुँचती वहीं पे
मंज़िल वही
बदले कई नाम
फिर भी भूली नहीं।
।।सेदोका।।
अलसाई चाँदनी
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, डॉ. भावना कुँअर व डॉ. हरदीप कौर सन्धु द्वारा संयुक्ततः संपादित सेदोका संकलन ‘‘अलसाई चाँदनी’’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। हिन्दी में सेदोका में रचनाकर्म कम ही हुआ है और संभवतः हिन्दी में यह सेदोका का पहला संपादित-प्रकाशित संकलन है। सम्पादकीय के अनुसार सेदोका 5-7-7-5-7-7 वर्णों की षष्टपदीय काव्य रचना होती है, जो 5-7-7 के त्रिपदीय ‘कतौता’ के एक युग्म से बनती है। कतौता सामान्यतः स्वतन्त्र/एकल काव्य रूप में उपयोग नहीं होता है। इस संकलन में 21 रचनाकारों के 326 सेदोका शामिल हैं। इन्हीं में से कुछ रचनाकारों के तीन-तीन सेदोका हम अपने पाठकों के लिए प्रस्तुत कर रहे हैं।}
डॉ. सुधा गुप्ता
1.
कुछ खिलौने
उम्र छीन ले गई
कुछ वक़्त ने लूटे
ख़ाली हाथ हूँ
काश! कोई लहर
हथेली भर जाए।
2.
हिम-यात्रा है
दुर्गम ये चढ़ाई
बर्फ़ में धँसी जाऊँ
सूरज खोया
बर्फ़ की आँधियों में
कुछ देख न पाऊँ।
छाया चित्र : पूनम गुप्ता |
3.
मेघों ने मारी
हँसके पिचकारी
भीगी धरती सारी
झूमे किसान
खेतों में उग आई
वर्षा की किलकारी।
- 120 बी/2, साकेत, मेरठ (उ.प्र.)
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
1.
छुपा है चाँद
आँचल में घटा के
हुई व्याकुल रात
कहे किससे
अब दिल की बात
गिरे ओस के आँसू।
2.
फूटी किरनें
सुरमई साँझ भी
रूपसी बन गई
लौटेंगे सब
माना नीड़ में पाखी
छाया चित्र : उमेश महादोषी |
ये पल न लौटेंगे।
3.
तपती शिला
निर्वसन पहाड़
कट गए जंगल
न जाने कहाँ
दुबकी जलधारा
खग-मृग भटके।
- फ्लैट न-76, (दिल्ली सरकार आवासीय परिसर), रोहिणी सैक्टर-11, नई दिल्ली-110085
डॉ. जेन्नी शबनम
1.
मन की पीड़ा
बूँद-बँूद बरसी
बदरी से जा मिली
तुम न आए
साथ मेरे रो पड़ी
काली घनी घटाएँ!
2.
अँजुरी-भर
चुरा लूँ मैं चाँदनी
गर चाँद जो दिखे
ज़रा-सा चखूँ
अधरों पे सजा लूँ
छाया चित्र : रोहित कम्बोज |
गर चाँद जो कहे!
3.
तुम्हारी यादें
दिल में यूँ दफ़न
ज्यों मन-पिरामिड
युग गुज़रे
रहेंगे अवशेष
सदैव सलामत!
- द्वारा श्री राजेश श्रीवास्तव, द्वितीय तल, 5/7, सर्वप्रिय विहार, नई दिल्ली-16
डॉ. सतीशराज पुष्करणा
1.
मौन जिसका
शब्दों में सज जाता
कवि धन्य हो जाता,
उसको पढ़
हर आम-खास
सही दिशा पा जाता।
2.
सुख बरसे
मिल करें वन्दना
सब हों सुखी
हर घर रौशन
महके चन्दन से।
3.
जब झूमते
फूल, पल्लव, डाली
हवा साज़ बजाए
बनें पुजारी
तब पेड़ों पे पंछी
मिल प्रभाती गाए।
- लघुकथानगर, महेन्द्रू, पटना-800006 (बिहार)
रचना श्रीवास्तव
1.
जख़्मी घुँघुरू
रात की पायल का
बजता ही रहा था
सुना था यह-
जमी थी महफ़िल
बादल के घर
2.
इन तारों में
होगा छुपा उसका
नन्हा तारा भी कहीं
सोचके यही
नभ तकती रही
छाया चित्र : डॉ बलराम अग्रवाल |
सारी रात एक माँ।
3.
जाने के बाद
लग जाती हैं गाँठें
चहकती हवा में
तब ख़ामोश
दीवारों से झाँकतीं
कुछ बोलती यादें।
- 2715 Chattanooga Loop, apt 104, Ardmore OK 73401
ई मेल : rach_anvi@yahoo.com
प्रियंका गुप्ता
1.
कोमल हाथ
कलम को पकड़
लिखना सीख रहे,
माँ की आँखों में
सपनों का सागर,
पार उतरना है
2.
जीवन भर
रिश्तों की लाश ढोई
छाया चित्र : डॉ बलराम अग्रवाल |
काँधों पर लादे
सपनों का बैताल
जवाब नहीं मिला।
3.
ढूँढती फिरे
पनियाली नज़र
बुढ़ापे का सहारा
चिट्ठी में आए
कितना बँटा-बँटा
कलेजे का टुकड़ा
- MIG-292, आ.वि.यो.संख्या-एक, कल्याणपुर, कानपुर-208017 (उ.प्र)
प्रगीत कुँअर
1.
संवेदनाएँ
छोड़ आए जो पीछे
फिर कहाँ से लाएँ
करे है राज
खुलेपन का दैत्य
हम सब पे आज
2.
दिल के घाव
छाया चित्र : उमेश महादोषी |
कैसा ये ठहराव
झूठी आशाएँ
न जाने कहाँ तक
लेकर अब जाएँ!
3.
बहती नदी
गुज़रती कहीं से
पहुँचती वहीं पे
मंज़िल वही
बदले कई नाम
फिर भी भूली नहीं।
- द्वारा डॉ. कुँअर बेचैन, 2 एफ -51,नेहरू नगर, गाजियाबाद (उ प्र) 201001
सभी सेदोका एक से बढ़कर एक!
जवाब देंहटाएंआदरणीया सुधा दीदी जी, प्रियंका जी, रचना जी, जेन्नी जी, तथा आदरणीय सतीश राज पुष्करणा जी, हिमांशु कम्बोज भैया जी, प्रगीत कुँवर जी...आप सभी रचनाकारों को हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ!:-)
~सादर!!!
Sabhi rachnakaron ko mri hardik badhai...
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