अविराम ब्लॉग संकलन : वर्ष : 3, अंक : 11-12, जुलाई-अगस्त 2014
सामग्री : श्री दिनेश रस्तोगी की दो व्यंग्य गजलें।
दिनेश रस्तोगी
दो व्यंग्य गज़लें
01.
मंत्री जी और साला है।
भूत के हाथ में भाला है।
काली मांद का कारिन्दा,
उसका दिल भी काला है।
राजघाट के एक तरफ,
राजनीति का नाला है।
लोकतंत्र है नाम मगर,
सब गड़बड़ घोटाला है।
शोषण की शिकार है जो,
उसके मुंह पर ताला है।
इस करबट या उस करबट,
ऊंट बैठने .....वाला है।
जिससे हम समझे महफूज़,
पड़ा उसी से ....पाला है।
02.
बुद्धिमानों! आपदा का दौर है।
मूर्ख होने का मज़ा कुछ और है।
हुये होंगे तब के सब नेता महान,
आजकल तो गुंडई सिरमौर है।
खा के क्या अपना बनाओगे उसे,
जिस्म से जो पास, दिल इंदौर है।
उम्र दफना कर कमाते जितना हो,
एक मंत्री के वो मुंह का कौर है।
इस प्रदूषण ने कर दिया सारा उलट,
अब न वो बारिश,न अब वो बौर है।
क्या निकालें बाल की हम खाल अब,
जब कि सिर में अब न उनका ठौर है।
।। व्यंग्य वाण ।।
सामग्री : श्री दिनेश रस्तोगी की दो व्यंग्य गजलें।
दिनेश रस्तोगी
दो व्यंग्य गज़लें
01.
मंत्री जी और साला है।
भूत के हाथ में भाला है।
काली मांद का कारिन्दा,
उसका दिल भी काला है।
राजघाट के एक तरफ,
राजनीति का नाला है।
लोकतंत्र है नाम मगर,
सब गड़बड़ घोटाला है।
शोषण की शिकार है जो,
उसके मुंह पर ताला है।
इस करबट या उस करबट,
रेखा चित्र : डॉ. सुरेन्द्र वर्मा |
ऊंट बैठने .....वाला है।
जिससे हम समझे महफूज़,
पड़ा उसी से ....पाला है।
02.
बुद्धिमानों! आपदा का दौर है।
मूर्ख होने का मज़ा कुछ और है।
हुये होंगे तब के सब नेता महान,
आजकल तो गुंडई सिरमौर है।
खा के क्या अपना बनाओगे उसे,
जिस्म से जो पास, दिल इंदौर है।
उम्र दफना कर कमाते जितना हो,
एक मंत्री के वो मुंह का कौर है।
इस प्रदूषण ने कर दिया सारा उलट,
अब न वो बारिश,न अब वो बौर है।
क्या निकालें बाल की हम खाल अब,
जब कि सिर में अब न उनका ठौर है।
- निधि निलयम, 8-बी, अभिरूप; साउथ सिटी, शाहजहांपुर (उ.प्र.)242226 / मोबाइल : 09450414473
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