अविराम का ब्लॉग : वर्ष :03, अंक : 09-10, मई-जून 2014
।।संभावना।।
कमलेश सूद
दो कविताएँ
अच्छाई-
एक सुगन्ध है
सुरभि सी फैलती है
चहुँ ओर
सुबह की धूप जैसी
देती है शीतलता
और बनकर चिड़िया
चहकती है, महकती है
बन कस्तूरी।
छाया चित्र : उमेश महादोषी |
अहम्
आज भी पुरुष
वही पुरानी चादर
ताने हुए अहम् की
तना हुआ है।
सदियों से
नारी की
कोमल भावनाओं, वेदनाओं और
संवेदनाओं को वह
महसूसता ही नहीं।
अपने अहम् की धुरी की
करता है परिक्रमा
और सुविधानुसार बदलता है रंग
गिरगिट की तरह।
- वार्ड नं. 3, घुघर रोड, पालमपुर-176061 (हि.प्र.) / मोबा. : 09418835456
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