अविराम ब्लॉग संकलन : वर्ष : 3, अंक : 11-12, जुलाई-अगस्त 2014
सामग्री : इस अंक में सर्व श्री केशव शरण, विश्वेश्वर शरण चतुर्वेदी व अशोक आनन की क्षणिकाएँ।
केशव शरण
{सुप्रसिद्ध कवि-क्षणिकाकार श्री केशव शरण जी की लघु कविताओं का संग्रह ‘दूरी मिट गयी’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। हमारी दृष्टि में इस संग्रह की अधिकांश रचनाओं को क्षणिका की श्रेणी में रखा जा सकता है। प्रस्तुत हैं इसी संग्रह से केशव जी की कुछ प्रतिनिधि क्षणिकाएं। इन रचनाओं में क्षणिका के सांप्रतिक स्वरूप और शिल्प को देखा जा सकता है।}
बारह क्षणिकाएँ
01. दूरी मिट गयी
मैं असंख्य पग चला
तुम्हारी ओर
मगर कुछ नहीं हुआ
तुमने एक पग बढ़ाया
मेरी ओर
और दूरी
मिट गयी
02. बयान
एक आदमी
बयान देता है
और सब देने लगते हैं बयान
एक आदमी
बलिदान देता है
और चुप हो जाते हैं सब
03. चार दिन और
चार दिन और
चिड़ियों को निहार लो
वे क्या कह रही हैं
कॉपी में उतार लो
फूलों और पेड़ों के चित्र
चित्त में संवार लो
चार दिन और
फिर रेगिस्तान में बहार लो
04.विकल्प
कांटे, कंकड़ न चुभें
इस डर से जूता पहना
अब जूता काटता है
क्या कोई और रास्ता है
05. रामलीला
सीता को समाना है
भू में
राम को समाना है
सरयू में
लेकिन देखता हूँ कि
रामलीला हो गयी समाप्त
राजगद्दी और नगर-भ्रमण के पश्चात
06. सिर्फ़ कहने को
जिस चांद को
अब निहार पा रहा हूं
वह अब भी सुदूरतर है
सिर्फ़ कहने को
पीली कोठी की मुंडेर पर है
07. डॉक्टर और मरीज़
हर नया डॉक्टर
एक नयी आशा जगाता है
हर नया डॉक्टर
देवदूत नज़र आता है
या उससे भी बड़ी चीज़
इतना झेल रहा है मर्ज़ को मरीज़
08. बनारस की खूबियां
बनारसी साड़ियां
और वृद्धाश्रम
बनारस की खूबियां हैं
कितने लोग आते हैं घूमने
जो जाते वक्त
बनारसी साड़ियां ले जाते हैं
और छोड़ जाते हैं वृद्धा को
गुमशुदा
09. गुल को क्या पता था
गुल जानता था
बाग़ है, मौसम है
तितलियां हैं
गुल को क्या पता था
गुलचीं भी है
गुलशन में
10. जाने मैं क्या
छाता ताने
मैं अपने को
साफ़ पानी से बचा रहा हूं
और गंदे पानी में चल रहा हूं
संभल-संभलकर
जाने, मैं पागल कि जोकर
कि सयाना
11. भैंस के आगे
भैंस से
आगे निकल जाओ
नहीं तो भैंस को आगे निकल जाने दो
मड़िया मारकर आ रही है वह दलदल में
और तुम नयी धुली शर्ट-पैंट पहनकर
जा रहे हो विद्वत मंडल में
12. तितली
तितली
इस खूबसूरत शै ने
मुझे छला है कितनी बार
हथेलियां मेरी
खरोंचों से भर गयी हैं तब
और वह उड़कर
दूसरे फूल पर जा बैठी है
विश्वेश्वर शरण चतुर्वेदी
दो क्षणिकाएं
01.
फिर मन उद्भ्रान्त हुआ
किसी एक उपग्रह सा
मैं तुमको ‘ध्रुव’ मान
बहुत घूमा हूँ
02.
तुम
तितलियों से बेहतर
तुम
नागिनों से बढ़कर
पर हम भी, तुम समझ लो
फ़नकार आदमी हैं
अशोक आनन
क्षणिका
दीवारें
जिन्होंने
सदा लोगों को जोड़ा
वे पुल
कब के ढह गए
लेकिन-
जिन्होंने सदा लोगों को बाँटा
वे दीवारें
अब भी ज्यों की त्यों खड़ी हैं।
।। क्षणिका ।।
केशव शरण
{सुप्रसिद्ध कवि-क्षणिकाकार श्री केशव शरण जी की लघु कविताओं का संग्रह ‘दूरी मिट गयी’ हाल ही में प्रकाशित हुआ है। हमारी दृष्टि में इस संग्रह की अधिकांश रचनाओं को क्षणिका की श्रेणी में रखा जा सकता है। प्रस्तुत हैं इसी संग्रह से केशव जी की कुछ प्रतिनिधि क्षणिकाएं। इन रचनाओं में क्षणिका के सांप्रतिक स्वरूप और शिल्प को देखा जा सकता है।}
बारह क्षणिकाएँ
01. दूरी मिट गयी
मैं असंख्य पग चला
तुम्हारी ओर
मगर कुछ नहीं हुआ
तुमने एक पग बढ़ाया
मेरी ओर
और दूरी
मिट गयी
02. बयान
एक आदमी
बयान देता है
रेखा चित्र : उमेश महादोषी |
एक आदमी
बलिदान देता है
और चुप हो जाते हैं सब
03. चार दिन और
चार दिन और
चिड़ियों को निहार लो
वे क्या कह रही हैं
कॉपी में उतार लो
फूलों और पेड़ों के चित्र
चित्त में संवार लो
चार दिन और
फिर रेगिस्तान में बहार लो
04.विकल्प
कांटे, कंकड़ न चुभें
इस डर से जूता पहना
अब जूता काटता है
क्या कोई और रास्ता है
05. रामलीला
सीता को समाना है
भू में
राम को समाना है
सरयू में
लेकिन देखता हूँ कि
रामलीला हो गयी समाप्त
राजगद्दी और नगर-भ्रमण के पश्चात
06. सिर्फ़ कहने को
रेखा चित्र : डॉ. सुरेन्द्र वर्मा |
जिस चांद को
अब निहार पा रहा हूं
वह अब भी सुदूरतर है
सिर्फ़ कहने को
पीली कोठी की मुंडेर पर है
07. डॉक्टर और मरीज़
हर नया डॉक्टर
एक नयी आशा जगाता है
हर नया डॉक्टर
देवदूत नज़र आता है
या उससे भी बड़ी चीज़
इतना झेल रहा है मर्ज़ को मरीज़
08. बनारस की खूबियां
बनारसी साड़ियां
और वृद्धाश्रम
बनारस की खूबियां हैं
कितने लोग आते हैं घूमने
जो जाते वक्त
बनारसी साड़ियां ले जाते हैं
और छोड़ जाते हैं वृद्धा को
गुमशुदा
09. गुल को क्या पता था
गुल जानता था
बाग़ है, मौसम है
तितलियां हैं
गुल को क्या पता था
गुलचीं भी है
गुलशन में
10. जाने मैं क्या
छाता ताने
मैं अपने को
साफ़ पानी से बचा रहा हूं
और गंदे पानी में चल रहा हूं
संभल-संभलकर
जाने, मैं पागल कि जोकर
कि सयाना
11. भैंस के आगे
भैंस से
आगे निकल जाओ
नहीं तो भैंस को आगे निकल जाने दो
मड़िया मारकर आ रही है वह दलदल में
और तुम नयी धुली शर्ट-पैंट पहनकर
जा रहे हो विद्वत मंडल में
छाया चित्र : उमेश महादोषी |
12. तितली
तितली
इस खूबसूरत शै ने
मुझे छला है कितनी बार
हथेलियां मेरी
खरोंचों से भर गयी हैं तब
और वह उड़कर
दूसरे फूल पर जा बैठी है
- एस 2/564, सिकरौल, वाराणसी कैन्ट-221002 (उ0प्र0) / मोबाइल : 09415295137
विश्वेश्वर शरण चतुर्वेदी
दो क्षणिकाएं
01.
फिर मन उद्भ्रान्त हुआ
किसी एक उपग्रह सा
मैं तुमको ‘ध्रुव’ मान
बहुत घूमा हूँ
छाया चित्र : उमेश महादोषी |
02.
तुम
तितलियों से बेहतर
तुम
नागिनों से बढ़कर
पर हम भी, तुम समझ लो
फ़नकार आदमी हैं
- 164/10-2, मौ. बाजार कला, उझानी-243639, जिला बदायूँ (उ.प्र.) / मोबाइल : 09997833538
अशोक आनन
क्षणिका
दीवारें
जिन्होंने
सदा लोगों को जोड़ा
वे पुल
कब के ढह गए
लेकिन-
जिन्होंने सदा लोगों को बाँटा
वे दीवारें
अब भी ज्यों की त्यों खड़ी हैं।
- मक्सी-465106, जिला- शाजापुर, म.प्र. / मोबाइल : 09981240575
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