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बुधवार, 4 मार्च 2015

अविराम विस्तारित

अविराम  ब्लॉग संकलन :  वर्ष  : 4,   अंक  : 05-06 :  जनवरी-फ़रवरी  2015


।। जनक छंद ।। 

सामग्री :  इस अंक में विजय गिरि गोस्वामी ‘काव्यदीप’ के जनक छंद। 



विजय गिरि गोस्वामी ‘काव्यदीप’



सात जनक छन्द

01.
मन मोहक परिवेश है
कहाँ ‘विजय’ संसार में
भारत जैसा देश है

02.
सर्दी का भय रूप है
सूरज की किरणें स्वयं
ढूँढ़ रही ‘गिरि’ धूप है

03.
नेह बीज तो खो गया
कैसे होगा अंकुरण
मन रेतीला हो गया

04.
जल से जग साकार है
छाया चित्र : उमेश महादोषी 

सोच समझ उपयोग ले
बिन जल हाहाकार है

05.
दीन जनों पर तरस तू
करना है उपकार ‘गिरि’
बादल बनकर बरस तू

06.
नदी मेघ जाते जहाँ
उपकारी ये हर जगह
भेदभाव करते कहाँ

07.
भ्रूण गिराना पाप है
मारे जो शिशु कोख में
कैसी माँ वह, बाप है

(‘जनक छन्द रत्नावली-1’ संग्रह से साभार)

  • मु. बोदिया, पोस्ट मादलदा, तह. गढ़ी, जिला बांसवाड़ा-327034 (राजस्थान) / मोबाइल :  09928699344

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