अविराम ब्लॉग संकलन : वर्ष : 4, अंक : 05-06, जनवरी-फ़रवरी 2015
।।क्षणिका।।
सामग्री : इस अंक में श्री महेश पुनेठा एवं सुश्री हरकीरत ‘हीर’ की क्षणिकाएं।
महेश पुनेठा
तीन क्षणिकाएं
01. विकास
इस वर्ष
लाला जी के
गाड़ियों के काफिले में
बढ़ गयी है एक और गाड़ी
खड़ी हो गयी है एक और मंजिल
और
कलुआ के
टैंट की पन्नी में
जड़ गया है एक और पैबंद
बेच डाली है उसने एक और बच्ची।
02. काश !
तुम हवा, मैं पानी
तुम बहो, मैं खो जाऊँ।
तुम बादल बन जाओ
मैं गोद तुम्हारे सो जाऊँ।
रेखा चित्र : बी.मोहन नेगी |
तुम बरसो मैं फिर से
धरती में बिखर जाऊँ
दग्ध हृदय को सुख पहुँचाऊँ
काश! प्रेम में ऐसी गति पाऊँ।
03. माँ
किसी को
तनिक सा भी दर्द हो कोई
सभी पुकारते हैं उसे
आवाज के साथ
दौड़े-दौड़े चली आती है वह
पर
दर्द अपना
छुपा लेती है ऐसे
जैसे
बुझी राख आग को।
- शिव कालोनी, वार्ड पियाना, डाक डिग्री कॉलेज, पिथौरागढ़-260501 (उत्तराखंड) / मोबाइल : 09411707470
हरकीरत ‘हीर’
चार क्षणिकाएं
01. तेरी याद...
जब भी...
तेरी याद का परिंदा
मेरी छत की मुँडेर पर
बैठता है...
मेरे मकान की नींव हिलने लगती है
आ इक बार ही सही...
अपनी मोहब्बत की इक ईंट लगा जा
कहीं ये ढह न जाए...!!
02. उम्मीदों के दीये...
रातों की उदासी
और मायूसी के बीच
इस बार फिर जलाये हैं
छाया चित्र : अभिशक्ति |
कुछ उम्मीदों के दीये...
देखना है चिरागों में रौशनी
लौटती है या नहीं...!!
03. तीखे शब्द....
छिलते-छिलते
जख्म नासूर बन गया है
तुमने गाड़े भी तो थे
गहरे तक धँसने वाले
तीखे शब्द....
04. अनकहे शब्द....
तुमने कभी
पढ़ा ही नहीं
मेरे अनकहे शब्दों का प्रेम
पता नहीं कसूर
मेरी आँखों का था
या तुम ही नहीं पढ़ पाए
मेरी आँखों को कभी...
- 18, ईस्ट लेन, सुन्दरपुर, आर.जी. बारू रोड, हाउस नं.5, गुवाहाटी-781005 (असम) / मोबाइल : 9864171300
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