अविराम का ब्लॉग : वर्ष : १, अंक : ०६, फरवरी २०१२
।।क्षणिकाएँ।।
सामग्री : हरकीरत ‘हीर’ एवं मीना गुप्ता की क्षणिकाएं।
हरकीरत ‘हीर’
पांच क्षणिकाएं
1. उम्मीदों के दीये....
रातों की उदासी
और मायूसी के बीच
इस बार फिर जलाये हैं
कुछ उम्मीदों के दीये....
देखना है चिरागों में रौशनी
लौटती है या नहीं....!!
आज ये फिर....
तेरी कमी-सी
जाने कैसी खली है....
के मेरी कब्र के....
टूटे आले पर रखा चिराग़
सिसक उठा है....
मेरी उम्र की मीआद
अब घटने लगी है....!!
आज....
बरसों बाद जब....
अपना पुराना संदूक खोला
उसमें तुम्हारा दिया
वो पीतल का दीया भी था....
जो अब वक़्त के साथ
काला पड़ चुका है......!!
उनका ज़िक्र....
कुछ यूँ करती है सबा
के इस खुश्क रात के सीने पर
उग आता है....
मीठा-मीठा-सा दर्द
इश्क़ का....!!
दृश्य छाया चित्र : पूनम गुप्ता |
पत्तों के....
लबों की ये थरथराहट....
शाखों की ये मुस्कराहट....
आँखों में अज़ब-सी चमक लिये....
अजनबी-सी ये सबा...
आज ये....
कैसा पता दे रही है....?
- 18, ईस्ट लेन, खुदरपुर हाउस नं0 5, गुवाहाटी-781005 (असम)
दो क्षणिकाएँ
1.
मैं देखना चाहती हूँ
क्षितिज पर
उगते हुए
सूरज को
और खो जाना चाहती हूँ
उसकी अरुणाभा में
दृश्य छाया चित्र : अभिशक्ति |
प्यार के
ढाई आखर पर
टिकी है
कायनात सारी
प्यार बिना
कैसे जी सकता है
कोई नर-नारी
- द्वारा विनोद गुप्ता, निराला साहित्य परिषद, कटरा बजार, महमूदाबाद, सीतापुर-261203 (उ.प्र.)
आभार उमेश जी ...
जवाब देंहटाएंआपकी क्षणिकाएं भी मिली ..आभार ...
कोशिश करुँगी उन्हें शामिल करने की ......