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सोमवार, 27 फ़रवरी 2012

किताबें


अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : १, अंक : ०६, फरवरी २०१२ 

{अविराम के ब्लाग के इस अंक में सत्य सेवक मिश्र द्वारा लिखित श्री हरिश्चंद्र  शाक्य की कृति ‘पूरब की बाँसुरी-पश्चिम की तान’ (हाइकु संग्रह)  की समीक्षा  रख  रहे हैं।  कृपया समीक्षा भेजने के साथ समीक्षित पुस्तक की एक प्रति हमारे अवलोकनार्थ (डा. उमेश महादोषी, एफ-488/2, राजेन्द्र नगर, रुड़की-247667, जिला- हरिद्वार, उत्तराखण्ड के पते पर) अवश्य भेजें।} 



सत्य सेवक मिश्र

पूरब की बाँसुरी-पश्चिम की तान: कहीं विचार, कहीं भाव

   श्री हरिश्चंद्र  शाक्य की कृति ‘पूरब की बाँसुरी-पश्चिम की तान’ (हाइकु संग्रह) पढ़ने का अवसर मिला। श्री शाक्य मैनपुरी जनपद के एक प्रतिभा सम्पन्न, सशक्त युवा हस्ताक्षर हैं। उन्होंने हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं में अपनी कलम चलाई है। ‘पूरब की बाँसुरी-पश्चिम की तान’ (हाइकु संग्रह) उनकी चौथी प्रकाशित कृति है। इससे पूर्व उनकी तीन साहित्यिक कृतियाँ- अमर साधना (काव्य संग्रह), मायानगरी (उपन्यास) एवं औरत तेरी यही कहानी (कहानी संग्रह) आ चुकी हैं। उनका उपन्यास ‘माया नगरी’ बेहद सफल एवं बहुचर्चित रहा।
    हाइकु एक विदेशी काव्य विधा है, जो मूल रूप से जापान में जन्मी और पल्लवित हुई तथा विकसित होते हुए इसने धीरे-धीरे समूचे विश्व में अपनी पहचान बना ली। गत बीस-पच्चीस वर्षो से हिन्दी साहित्य में भी इस विधा में बहुत कुछ लिखा जाने लगा है। हिन्दी साहित्य में इससे पहले इस विधा में लिखा साहित्य बहुत कम मिलता है। हाइकु 5-7-5 वर्ण क्रम में लिखा जाने वाला 17 वर्णों का छन्द है। सूत्र या मंत्र की तरह संक्षिप्तता या कथ्य सामग्री की सीमितता इसकी विशेषता है। सूत्र रूप में कम से कम वर्णों में अपनी बात कह देना या गागर में सागर भर देना इसकी विशेषता है। 
   चूंकि हाइकु एक विदेशी काव्य विधा है, स्वदेशी विचार भाव या अनुभूति को इसमें अभिव्यक्त करना किसी भी साहित्यकार के लिए साधरण बात नहीं है। इसमें सदैव मौलिकता के अभाव की संभावना बनी रहती है। किसी भी विदेशी विधा का अन्धानुकरण नहीं किया जा सकता।
   ‘पूरव की बाँसुरी-पश्चिम की तान’ में श्री शाक्य ने अपने स्वदेशी विचारों एवं भावों को सफलतापूर्वक अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है और मौलिकता का भी ध्यान रखा है। उनका हाइकु जापान का अन्धानुकरण नहीं है। उन्होंने मानवीय संवेदनाओं और दृश्य जगत की गहन अनुभूतियों को मौलिक रूप में अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है। उनकी अनुभूति की अभिव्यक्ति स्वतः स्फूर्त प्रतीत होती है। ऐसा प्रतीत होता है कि स्वदेशी अनुभूति मौलिक रूप से उनके हृदय से हाइकु के रूप में फूट पड़ी है। उन्होंने अपनी अनुभूतियों एवं मानवीय संवेदनाओं को संश्लेषणात्मक रूप में अभिव्यक्ति देने का प्रयास किया है। सम्प्रेषणीयता की दृष्टि से भी वह सफल रहे हैं। उनके हाइकुओं में कही विचार तो कहीं भाव की प्रधानता है। श्री शाक्य इस नई विधा में काव्य लिखने में सफल रहे हैं। 
   आजकी जटिल परिस्थितियों में मनुष्य हाइकु जैसी छोटी कविता से काव्यानन्द प्राप्त कर सकता है। इसलिए हाइकु इक्कीसवीं शताब्दी की लोकप्रिय काव्य विधा बनने में समर्थ है, सक्षम है और निसन्देह अभिव्यिक्ति का सशक्त माध्यम है। श्री हरिश्चन्द्र शाक्य को इस विधा में लिखने का प्रयास करने पर बधाई।

पूरब की बाँसुरी-पश्चिम की तान : हाइकु संग्रह। कवि : हरिश्चन्द्र शाक्य प्रकाशक : माण्डवी प्रकाशन, 88-रोगनगान, देहली गेट, गाजियाबाद-201001 (उ.प्र.)। मूल्य: रु. 100/- मात्र। संस्करण: जुलाई 2009।

  • 132, मिश्राना, मैनपुरी-205001(उ.प्र.)

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