अविराम का ब्लॉग : वर्ष : १, अंक : ०६, फरवरी २०१२
सरस्वती सुमन : एक अग्रणी पत्रिका
सरस्वती सुमन के पिछले तीन अंक देखने को मिले हैं, जिनमें दो विशेषांक है, क्रमशः लघुकथा एवं मुक्तक-रुबाई-क़त्आ पर तथा एक सामान्य अंक है। दरअसल सरस्वती सुमन की विशेषांकों की एक समृद्ध परम्परा है, जिसके माध्यम से विभिन्न विधाओं एवं विषयों पर वैचारिक एवं मार्गदर्शक साहित्य का दस्तावेज प्रस्तुत करती है यह पत्रिका। बड़े आयोजनों में कुछ कमियों का रह जाना स्वाभाविक होता है, पर महत्वपूर्ण यह होता है कि आप किस मन्तव्य को लेकर चल रहे हैं। सरस्वती सुमन का मन्तव्य बेहद साफ और सकारात्मक है, इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए।
लघुकथा विशेषांक में 126 लघुकथाकारों की लघुकथाओं एवं दस लघुकथा बिषयक आलेखों को स्थान दिया गया है। अधिसंख्यक लघुकथाएं प्रभावित करती हैं, पर कुछ लघुकथाएं ऐसी भी हैं, जिनके कथ्य अस्वाभाविक अथवा लीक पीटते से लगते हैं। लघुकथा यदि पीछे की ओर मुड़कर देखे तो उसका मन्तव्य गलतियों को सुधारना होना चाहिए, न कि उनका अनुकरण करना। यह बात हर लघुकथाकार को समझनी होगी। विशेषांक के लिए रचनाएं भेजते समय हर रचनाकार के जेहन में यह बात साफ होनी चाहिए कि आप एक दस्तावेज का हिस्सा बनने जा रहे हैं, इसलिए अपनी श्रेष्ठ रचनाएं ही दें। पर बहुत सारे रचनाकार इसका ध्यान नहीं रखते, सम्पादक को जो मिलता है, उसी में से अपेक्षाकृत अच्छे का चयन करना उसकी विवशता बन जाती है। सर्वश्रेष्ठ की प्रस्तुति का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता। इस तरह की सीमाओं और आलेखों को लेकर सामने आये तथ्याधारित कुछ विवादों के बावजूद विशेषांक की अपनी उपयोगिता है। अतिथि सम्पादक श्री कृष्ण कुमार यादव जो भी दे पाये हैं, उसके लिए उनका मनोबल बढ़ाना ही अभीष्ट होगा। अभी भी लघुकथा को एक लम्बी दूरी तय करनी है, इस लिहाज से लघुकथा से जुड़े लोग विवादों का कारण न बनकर महत्वपूर्ण कार्या में निर्विवाद सहयोगी बनें, तो इस तरह के विशेषांकों में होने वाला श्रम एवं निवेश कहीं अधिक सार्थक हो सकेगा।
दूसरा विशेषांक मुक्तक-रुबाई-क़त्आ पर है। इस विशेषांक का संपादन अपने अध्ययन-मनन का भरपूर उपयोग करते हुए उत्साही एवं समर्पित कवि-समीक्षक श्री जितेन्द्र जौहर ने किया है। दरअसल मुक्तक-रुबाई-क़त्आ के वैचारिक पक्ष पर काम बहुत अधिक नहीं हुआ है और बहुत सारी भ्रान्तियां भी रही हैं, जिनका यथासम्भव समाधान इस विशेषांक के माध्यम से करने का प्रयास किया गया है, इसलिए इसका महत्व और भी अधिक हो जाता है। दूसरी ओर मुक्तक और रुबाई में कुछ अन्य विधाओं/छन्दों, यथा- हाइकु, दोहा आदि के प्रयोग की सम्भावनाओं को भी टटोला गया है। यद्यपि ये प्रयोग मूल छन्दो की सीमाओं के दृष्टिगत बहुत अधिक सफल नहीं कहे जा सकते, फिर भी सम्भावनाओं की तलाश के लिए इस तरह के प्रयोग स्वागतेय हैं। एक और खास बात यह है कि इस विशेषांक में पुराने लब्ध-प्रतिष्ठित कवियों के साहित्य में भी मुक्तक-रुबाई की परम्परा और तकनीक को खोजने का सार्थक श्रम किया गया है। देश की विभिन्न भाषा-बोलियों में लिखे गये मुक्तकों एवं मूल भारतीय रचनाकारों के साथ अनिवासी भारतीयों को भी एक प्लेटफार्म पर प्रस्तुत करने से बिशेषांक का आकर्षण बढ़ गया है। रुबाइयों को मुक्तक से अलग रखकर एवं कुछ आलेखों एवं अतिथि सम्पादकीय के माध्यम से रूबाई एवं मुक्तक के बीच के अन्तर को स्पष्ट किया गया है। रुबाई के औज़ानों पर भी पर्याप्त जानकारी दी गई है। इस विधा के नए रचनाकारों को इससे काफी लाभ होगा और उनके लिए यह विशेषांक एक स्कूल जैसा काम करेगा। निश्चित रूप से यह विशेषांक एक ऐतिहासिक दस्तावेज प्रमाणित होगा। जौहर जी ने इस अंक के माध्यम से जितना कुछ दिया है, उसके लिए वह पूरे अंक पाने के हकदार हैं।
सामान्य अंक में भी सरस्वती सुमन ने अधिकांशतः अच्छी सामग्री प्रस्तुत की है। रचनाओं की प्रस्तुति आकर्षक है। रेखाचित्रों का पर्याप्त उपयोग आकर्षण को और भी बढ़ा रहा है। तीनो अंकों के आवरण सुप्रसिद्ध चित्रकार श्री संदीप राशिनकर जी ने तैयार किए हैं। निश्चित रूप से सरस्वती सुमन लघु पत्रिकाओं में अग्रणी भूमिका निभा रही है। अपने हर विशेषांक के साथ एक बड़े साहित्यिक कार्यक्रम का हिस्सा बनकर सरस्वती सुमन के सम्पादन-प्रकाशन परिवार के लोग साहित्यिक हलचल को जीवन्त बनाये रखने का भी दोहरा कार्य कर रहे हैं। साधुवाद!
सरस्वती सुमन : त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका। प्रधान सम्पादक : डॉ. आनन्दसुमन सिंह, सम्पादक: नेहा क्रान्ति सिंह व कुँवर विक्रमादित्य सिंह। सम्पादकीय सम्पर्क: 1, छिब्बर मार्ग (आर्यनगर), देहरदून-248001, उत्तराखण्ड।
{अविराम के ब्लाग के इस स्तम्भ में अब तक हमने क्रमश: 'असिक्नी', 'प्रेरणा (समकालीन लेखन के लिए)', कथा संसार, संकेत, समकालीन अभिव्यक्ति, हम सब साथ साथ, आरोह अवरोह , लघुकथा अभिव्यक्ति, हरिगंधा व मोमदीप साहित्यिक पत्रिकाओं का परिचय करवाया था। इस अंक में हम एक और पत्रिका 'सरस्वती सुमन' पर अपनी परिचयात्मक टिप्पणी दे रहे हैं। जैसे-जैसे सम्भव होगा हम अन्य लघु-पत्रिकाओं, जिनके कम से कम दो अंक हमें पढ़ने को मिल चुके होंगे, का परिचय पाठकों से करवायेंगे। पाठकों से अनुरोध है इन पत्रिकाओं को मंगवाकर पढें और पारस्परिक सहयोग करें। पत्रिकाओं को स्तरीय रचनाएँ ही भेजें, इससे पत्रिकाओं का स्तर तो बढ़ता ही है, रचनाकारों के रूप में आपका अपना सकारात्मक प्रभाव भी पाठकों पर पड़ता है।}
सरस्वती सुमन : एक अग्रणी पत्रिका
सरस्वती सुमन के पिछले तीन अंक देखने को मिले हैं, जिनमें दो विशेषांक है, क्रमशः लघुकथा एवं मुक्तक-रुबाई-क़त्आ पर तथा एक सामान्य अंक है। दरअसल सरस्वती सुमन की विशेषांकों की एक समृद्ध परम्परा है, जिसके माध्यम से विभिन्न विधाओं एवं विषयों पर वैचारिक एवं मार्गदर्शक साहित्य का दस्तावेज प्रस्तुत करती है यह पत्रिका। बड़े आयोजनों में कुछ कमियों का रह जाना स्वाभाविक होता है, पर महत्वपूर्ण यह होता है कि आप किस मन्तव्य को लेकर चल रहे हैं। सरस्वती सुमन का मन्तव्य बेहद साफ और सकारात्मक है, इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए।
लघुकथा विशेषांक में 126 लघुकथाकारों की लघुकथाओं एवं दस लघुकथा बिषयक आलेखों को स्थान दिया गया है। अधिसंख्यक लघुकथाएं प्रभावित करती हैं, पर कुछ लघुकथाएं ऐसी भी हैं, जिनके कथ्य अस्वाभाविक अथवा लीक पीटते से लगते हैं। लघुकथा यदि पीछे की ओर मुड़कर देखे तो उसका मन्तव्य गलतियों को सुधारना होना चाहिए, न कि उनका अनुकरण करना। यह बात हर लघुकथाकार को समझनी होगी। विशेषांक के लिए रचनाएं भेजते समय हर रचनाकार के जेहन में यह बात साफ होनी चाहिए कि आप एक दस्तावेज का हिस्सा बनने जा रहे हैं, इसलिए अपनी श्रेष्ठ रचनाएं ही दें। पर बहुत सारे रचनाकार इसका ध्यान नहीं रखते, सम्पादक को जो मिलता है, उसी में से अपेक्षाकृत अच्छे का चयन करना उसकी विवशता बन जाती है। सर्वश्रेष्ठ की प्रस्तुति का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाता। इस तरह की सीमाओं और आलेखों को लेकर सामने आये तथ्याधारित कुछ विवादों के बावजूद विशेषांक की अपनी उपयोगिता है। अतिथि सम्पादक श्री कृष्ण कुमार यादव जो भी दे पाये हैं, उसके लिए उनका मनोबल बढ़ाना ही अभीष्ट होगा। अभी भी लघुकथा को एक लम्बी दूरी तय करनी है, इस लिहाज से लघुकथा से जुड़े लोग विवादों का कारण न बनकर महत्वपूर्ण कार्या में निर्विवाद सहयोगी बनें, तो इस तरह के विशेषांकों में होने वाला श्रम एवं निवेश कहीं अधिक सार्थक हो सकेगा।
दूसरा विशेषांक मुक्तक-रुबाई-क़त्आ पर है। इस विशेषांक का संपादन अपने अध्ययन-मनन का भरपूर उपयोग करते हुए उत्साही एवं समर्पित कवि-समीक्षक श्री जितेन्द्र जौहर ने किया है। दरअसल मुक्तक-रुबाई-क़त्आ के वैचारिक पक्ष पर काम बहुत अधिक नहीं हुआ है और बहुत सारी भ्रान्तियां भी रही हैं, जिनका यथासम्भव समाधान इस विशेषांक के माध्यम से करने का प्रयास किया गया है, इसलिए इसका महत्व और भी अधिक हो जाता है। दूसरी ओर मुक्तक और रुबाई में कुछ अन्य विधाओं/छन्दों, यथा- हाइकु, दोहा आदि के प्रयोग की सम्भावनाओं को भी टटोला गया है। यद्यपि ये प्रयोग मूल छन्दो की सीमाओं के दृष्टिगत बहुत अधिक सफल नहीं कहे जा सकते, फिर भी सम्भावनाओं की तलाश के लिए इस तरह के प्रयोग स्वागतेय हैं। एक और खास बात यह है कि इस विशेषांक में पुराने लब्ध-प्रतिष्ठित कवियों के साहित्य में भी मुक्तक-रुबाई की परम्परा और तकनीक को खोजने का सार्थक श्रम किया गया है। देश की विभिन्न भाषा-बोलियों में लिखे गये मुक्तकों एवं मूल भारतीय रचनाकारों के साथ अनिवासी भारतीयों को भी एक प्लेटफार्म पर प्रस्तुत करने से बिशेषांक का आकर्षण बढ़ गया है। रुबाइयों को मुक्तक से अलग रखकर एवं कुछ आलेखों एवं अतिथि सम्पादकीय के माध्यम से रूबाई एवं मुक्तक के बीच के अन्तर को स्पष्ट किया गया है। रुबाई के औज़ानों पर भी पर्याप्त जानकारी दी गई है। इस विधा के नए रचनाकारों को इससे काफी लाभ होगा और उनके लिए यह विशेषांक एक स्कूल जैसा काम करेगा। निश्चित रूप से यह विशेषांक एक ऐतिहासिक दस्तावेज प्रमाणित होगा। जौहर जी ने इस अंक के माध्यम से जितना कुछ दिया है, उसके लिए वह पूरे अंक पाने के हकदार हैं।
सामान्य अंक में भी सरस्वती सुमन ने अधिकांशतः अच्छी सामग्री प्रस्तुत की है। रचनाओं की प्रस्तुति आकर्षक है। रेखाचित्रों का पर्याप्त उपयोग आकर्षण को और भी बढ़ा रहा है। तीनो अंकों के आवरण सुप्रसिद्ध चित्रकार श्री संदीप राशिनकर जी ने तैयार किए हैं। निश्चित रूप से सरस्वती सुमन लघु पत्रिकाओं में अग्रणी भूमिका निभा रही है। अपने हर विशेषांक के साथ एक बड़े साहित्यिक कार्यक्रम का हिस्सा बनकर सरस्वती सुमन के सम्पादन-प्रकाशन परिवार के लोग साहित्यिक हलचल को जीवन्त बनाये रखने का भी दोहरा कार्य कर रहे हैं। साधुवाद!
सरस्वती सुमन : त्रैमासिक साहित्यिक पत्रिका। प्रधान सम्पादक : डॉ. आनन्दसुमन सिंह, सम्पादक: नेहा क्रान्ति सिंह व कुँवर विक्रमादित्य सिंह। सम्पादकीय सम्पर्क: 1, छिब्बर मार्ग (आर्यनगर), देहरदून-248001, उत्तराखण्ड।
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