अविराम का ब्लॉग : वर्ष : १, अंक : ०६, जनवरी २०१२
।।जनक छन्द।।
सामग्री : डॉ. ब्रह्मजीत गौतम के जनक छंद।
डॉ. ब्रह्मजीत गौतम
जनक छन्द
1.
वर्षा आयी मौज से
माँखी-मच्छर बढ़ गये
नेताओं की फौज से
2.पानी-पानी हरे गये
बादल जो थे गरजते
हवा चली तो खो गये
3.पत्थर बोला स्तम्भ से
तू मुझ पर ही है खड़ा
इतराता क्यों दम्भ से
4.यह संसद आगार है
धक्का-मुक्की, शोर-गुल
ज्यों सब्जी बाज़ार है
5.जड़ता का न प्रभाव है
नित नूतनता प्रकृति में
उसका सतत स्वभाव है
- बी-85, मिनाल रेजीडेंसी, जे.के. रोड, भोपाल-462023(म.प्र.)
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