अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 6, अंक : 01-04, सितम्बर-दिसम्बर 2016
।।कविता अनवरत।।
अमर महाकवि
श्रीकृष्ण ‘सरल’
{मित्र संतोष सुपेकर जी ने अमर शहीदों की गाथाओं के गायक महाकवि श्रीकृष्ण ‘सरल’ जी की कृति ‘क्रान्ति-गंगा’ उपलब्ध करवाकर हमें उपकृत किया। सरल जी ने ‘क्रान्ति-गंगा’ की प्रेरणादायी भूमिका में प्रसंगवश अपने कुछ चर्चित गीत भी दिए हैं, जिनमें अखिल भारतीय क्रान्तिकारी सम्मेलन, देहरादून की तीनों दिनों की कार्यवाही के शुभारम्भ में क्रमशः पढ़े गए तीनों गीत भी शामिल हैं। उनमें से तीसरे दिन पढ़ा गया गीत यहाँ हमारे पाठकों के लिए। सभी चित्र ‘क्रान्ति-गंगा’ से साभार।}
काँटे अनियारे निखता हूँ
अपने गीतों से गंध बिखेरूँ कैसे
मैं फूल नहीं, काँटे अनियारे लिखता हूँ।
मैं लिखता हूँ मझधार, भँवर, तूफान प्रबल
मैं नहीं कभी निश्चेष्ट किनारे लिखता हूँ।
महान क्रान्तिकारी दुर्गा भाभी के साथ सरल जी |
मैं लिखता हूँ उनकी बात, रहे जो औघड़ ही
जो जीवन-पथ पर लीक छोड़ कर चले सदा,
जो हाथ जोड़कर, झुक कर, डर कर नहीं चले
जो चले, शत्रु के दाँत तोड़कर चले सदा।
मैं गायक हूँ उन गर्म लहू वालों का ही
जो भड़क उठें, ऐसे अंगारे लिखता हूँ।
मैं फूल नहीं, काँटे अनियारे लिखता हूँ।
हाँ वे थे, जिनके मेरु-दण्ड लोहे के थे
शहीद भगत सिंह की माता जी विद्यावती जी के साथ सरल जी |
जो नहीं लचकते, नहीं बल खाते थे,
उनकी आँखों में स्वप्न प्यार के पले नहीं
जब भी आते, बलिदानी सपने आते थे।
मैं लिखता, उनकी शौर्य-कथाएँ लिखता हूँ
उनके तेवर के तेज दुधारे लिखता हूँ।
मैं फूल नहीं, काँटे अनियारे लिखता हूँ।
अमर शहीद अशफाक उल्ला खाँ का स्केच |
जो देश धरा के लिए बहे, वह शोणित है
अन्यथा रगों में बहने वाला पानी है,
इतिहास पढ़े या लिखे, जवानी वह कैसे
इतिहास स्वयं बन जाए, वही जवानी है।
मैं बात न लिखता पानी के फव्वारों की
जब लिखता, शोणित के फव्वारे लिखता हूँ।
मैं फूल नहीं, काँटे अनियारे लिखता हूँ।
- सरल जी के पुत्र का पता : श्री प्रदीप शर्मा ‘सरल’, 27, क्रान्ति-कुँज, दशहरा मैदान, उज्जैन, म.प्र.
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