अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 6, अंक : 01-04, सितम्बर-दिसम्बर 2016
शिवशंकर यजुर्वेदी
झिलमिल सपनों के राजहंस
अधरों की मधुरिम छुअन क्षणिक
युग-युग की प्यास जगा बैठी।
मुरझाये उपवन के मन में
मधुमासी आस जगा बैठी।
बस गये स्नेह संवाद सहज
यूँ श्वाँस सरित की कलकल में
जैसे सुगंध हो रची-बसी
पाँखुरी-पाँखुरी शतदल में
अल्हड़ पुरवा की अठखेली
स्वर्गिक अभिलाष जगा बैठी।
अधरों की मधुरिम छुअन क्षणिक
युग-युग की प्यास जगा बैठी।
रेखाचित्र : रमेश गौतम |
उतरे दृग मानसरोवर में
हो गई समाहित समल सृष्टि
लगता है ढाई आखर में
परिचय विहीन पावन श्रद्धा
अद्भुत विश्वास जगा बैठी।
अधरों की मधुरिम छुअन क्षणिक
युग-युग की प्यास जगा बैठी।
यामिनी-दिवस, प्रातः-संध्या
ज्यों बंधे प्रतीक्षा बंधन में
करबद्ध खड़ीं त्यों आशायें
मधुमिलन पर्व अभिनन्दन में
चाँदनी झाँकती मेघों से
कण-कण उद्भाष जगा बैठी।
अधरों की मधुरिम छुअन क्षणिक
युग-युग की प्यास जगा बैठी।
- 517, कटरा चाँद खाँ, बरेली-243005 (उ.प्र.)/मोबा. 09319467998
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