अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 5, अंक : 05-12, जनवरी-अगस्त 2016
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।।क्षणिका।।
सामग्री : इस अंक में श्री केशव शरण की क्षणिकाएँ।
केशव शरण
01. ...आँखें खोलकर
हरे पेड़ पर तोता है
झरे पेड़ पर कौन नभचर...
खोजो आँखें खोलकर
संकेत दिया है बोलकर
02. प्रतिदिन अख़बार
मैं नहीं जानता
मैं कितना आगे बढ़ता हूँ
मैं प्रतिदिन अख़बार पढ़ता हूँ
एक अच्छी ख़बर के लिए
03. एक शिकार दृश्य
कबूतर पर
बाज की छाया पड़ रही है
कबूतर धूप में
निकल जाना चाहता है
जो उसके चारों ओर है
कबूतर निकल आता है धूप में
मगर फिर चला जाता है
बाज़ की छाया में
झुरझुरी उठ रही है मेरी काया में।
मेरा दिल
खिलता है बाग़ में
और उसका
बाजार में
हर बार मैं
उसका दिल रखता हूँ
और उसकी खुशी में
होता हूँ बाग़-बाग़
05. जैसे खुले पालों वाली कश्ती
झील-सी उन आँखों में
यों तैरती है मुहब्बतों की मस्ती
जैसे खुले पालों वाली कश्ती
कोई आ रही हो
कोई जा रही हो
- एस-2/564, सिकरौल, वाराणसी-221002, उ.प्र./मोबा. 09415295137
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