अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 7, अंक : 09-10, मई-जून 2018
।। कथा प्रवाह ।।
माणक तुलसीराम गौड़
जन्मदिवस
गाँव में थे तब तक किसी को जन्मदिवस मनाते नहीं देखा। जब से शहर में आए हैं महीने दो महीने के अन्तराल से बच्चे किसी न किसी सहपाठी के जन्मदिवस समारोह में जाकर आते हैं।
आज बड़े बेटे का जन्मदिवस है। हमने कहा शाम को जब भगवान के दीप प्रज्वलित करेंगे उस वक्त कुमकुम का तिलक लगाकर नारियल हाथ मेें देकर जन्मदिवस मना लेंगे, मगर बच्चे माने नहीं। वे जिद करने लगे और उनके साथ उनकी माँ भी।
उनके आगे हारकर आधुनिक ढ़ंग से जन्मदिवस मनाने की तैयारियाँ प्रारम्भ की। बिजली के छोटे-छोटे बल्बों से घर को रोशन किया। गुब्बारे फुलाकर लगाए। केक मँगवाया गया। स्कूल के सहपाठी मित्रों एवं गली-मोहल्ले के बच्चों को आमंत्रित किया। वे सभी आए। सभी बच्चे प्रसन्न हैं। खुशियाँ उनके चेहरे पर साफ झलक रही हैं। बड़ा बेटा अत्यधिक प्रफुल्लित दिखाई दे रहा है। ऐसी खुशी उसके चेहरे पर मैंने पहले कभी नहीं देखी। इस अवसर पर मित्रों द्वारा लाए गए उपहार उसकी खुुशियाँ दुगुनी कर रहे हैं।
भोजन शुरू हो गया है। इतने में मैंने खिड़की में से देखा कि कच्ची बस्ती के दो बच्चे जो फटे कपड़ों में हैं, कातर दृष्टि से लगातार हमें और हमारे इस समारोह को दूर से देख रहे हैं। मेरी नज़र उन पर पड़ी तो मैं घर से बाहर उनकी तरफ गया। वे मुझे देखते ही पाँव सिर पर रखकर भाग खड़े हुए। मैंने उन्हें पुकारा- ‘‘अरे बच्चो, भागो मत।’’
मेरी आवाज़ सुनकर वे रुके और पूछा- ‘‘अंकल, आप मारोगे तो नहीं ना...?’’
मैंने उन्हें आश्वस्त किया तब कहीं जाकर मैं उन्हें घर के भीतर ला पाया। वे अभी भी डर रहे थे। खाने की प्लेट उनके हाथ में दी। वे झट से खा गए। खाना खाकर वे रवाना होने लगे। तभी मैंने कुछ गुब्बारे और एक-एक गिफ्ट उनको दिए। वे अचम्भित हैं। उनके मुखमण्डल पर जो खुशियों के भाव हैं वे मेरे बेटे की खुशियों से भी बढ़कर हैं, जिसका आज जन्मदिवस मनाया जा रहा है।
यह सब देखकर मेरे पिताजी बोले- ‘‘बेटा, जन्मदिवस मनाने का असली मकसद यही होता है कि हम इस अवसर पर उन्हें याद करें जिन्हें कोई याद नहीं करता।’’
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