अविराम ब्लॉग संकलन, वर्ष : 7, अंक : 09-10, मई-जून 2018
।।कविता अनवरत।।
।।कविता अनवरत।।
ग़ज़ल
खाली है मेरा कासा इक सिक्का डाल दे
किस्मत को मेरी तू भी थोड़ा उछाल दे
यदि घर में नहीं हैं दाने मेहमान आ गए है
चावल के साथ थोड़े कंकड़ उबाल दे
रेखाचित्र : कमलेश चौरसिया |
जो भी है तेरे दिल में वो बाहर निकाल दे
भूख में लगती है रोटी भी चाँद जैसी
चाहे तो तू भी कोई ऐसी मिसाल दे
कैसे नहीं सुनेंगे मजलूमों की फरियादें
सबके हाथ में तू इक जलती मशाल दे
रफ़्ता रफ़्ता सब ही पहुँच जाएँगे मंज़िल पे
गिरते हुओं को तू गर थोड़ा सम्भाल दे
पारस भी आ गया है दरवाजे पे तुम्हारे
हिम्मत है तो उसको घर से निकाल दे
- 30, कटारिया कुंज गँगा विहार महल गाँव ग्वालियर-474002, म.प्र./मो. 09329478477
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