अविराम का ब्लॉग : वर्ष : १, अंक : ०४, दिसंबर २०११
{अविराम के ब्लाग के इस अंक में डॉ. ब्रह्मजीत गौतम की पुस्तक दोहा-मुक्तक-माल की समीक्षा रख रहे हैं। कृपया समीक्षा भेजने के साथ समीक्षित पुस्तक की एक प्रति हमारे अवलोकनार्थ (डा. उमेश महादोषी, एफ-488/2, राजेन्द्र नगर, रुड़की-247667, जिला- हरिद्वार, उत्तराखण्ड के पते पर) अवश्य भेजें।}
डॉ. ओम्प्रकाश भाटिया ‘अराज’
‘दोहा-मुक्तक-माल’ पर मेरे विचार
‘दोहा-मुक्तक-माल’ (दोहा-मुक्तक संग्रह) में डॉ. गौतम लिखित 180 ‘दोहा मुक्तक’ हैं। ‘आत्मिका’ में लेखक-कवि ने स्पष्ट किया है कि चतुष्पदिक मुक्तक संस्कृत से चले आ रहे हैं। चतुष्पदिक में चार चरणों में से चरण 1, 2 और 4 के अन्त में ‘तुक’ (अन्त्यानुप्रास) रहता है। यह घोषणा भी की है कि मुक्तक को किसी छन्द में लिखा जा सकता है। इस पुस्तक के सभी 180 मुक्तक दोहा की एक पंक्ति 24 मात्राओं के 4 चरणों से बने हैं। यह पद्धति इससे पूर्व अन्य कई कवियों ने भी अपनाई है किन्तु एक पूरी पुस्तक दोहा-मुक्तक से बनी हो, ऐसा मेरी दृष्टि से प्रथम बार गुजरा है।
उर्दू में ग़ज़ल से पूर्व एक-दो उसी छन्द में चतुष्पदियां पढ़ना लय के अभ्यास के लिए होता था। हिन्दी में दोहा-ग़ज़ल के पूर्व दोहा-मुक्तक वही काम कर सकते है। सम्भव है कि अन्य कवि किसी अन्य छन्द पर भी ऐसे प्रयोग के ग्रन्थ लेकर आएँ।
डा. ब्रह्मजीत गौतम के इस ग्रन्थ में दोहा-मुक्तक ‘मुक्तक’ रूप में तो हैं ही, जनक छन्द की ‘बन्ध’ पद्धति के अनुसार कुछ-कुछ बन्धों में भी हैं। वे बन्ध सरस्वती-गुरु-प्रकृति, नीति, समय इत्यादि की लड़ियों में भी हैं, यद्यपि उन बन्धों के शीर्षक नहीं दिए हैं। वस्तुतः समस्त ज्ञान एक समग्र होने पर भी उसके अनन्त अंश एक-दूसरे के पूरक और समग्र के अंशों के विस्तारक ही होते हैं। इस विशेष ग्रन्थ ने हिन्दी साहित्य को कला और चिन्तन की एक नवल दृष्टि पथ का अवदान किया है। पुस्तक प्रकाशन स्वयम् लेखक ने किया है। उनसे चलभाष- 09425102154 द्वारा सम्पर्क किया जा सकता है।
इस पुस्तक में इन छन्दोबद्ध रचनाओं में जो विचार, भाव और कला की राशि प्रस्तुत की है वह आकर्षक, उपकारक और मानवता एवं भारत की उन्नति में सहायक है। प्रत्येक पाठक इसे पढ़के विचार करके लाभान्वित होगा। कवि डा. ब्रह्मजीत गौतम हिन्दी के विद्वान, प्रतिष्ठित-सम्मानित कवि एवं साधुजनोपम सामाजिक तथा देशभक्त हैं। अतः उसकी पुस्तक भी वैसी ही है। यों तो सभी मुक्तक पाठक को मुग्ध करेंगी ही, किन्तु इस लाभ के लिए उन्हें स्वयम् पुस्तक को पढ़ना चाहिए। इस नये छान्दस प्रयोग का नमूना है-
करें अपेक्षाएँ नहीं कभी किसी से आप।
यदि वे हों पूरी न तो होता पश्चाताप।।
ऐसे पश्चाताप से बनती मन में ग्रन्थि।
जो अन्तस में क्रोध का भरती है आलाप।।173।।
मुझे पूर्ण विश्वास है कि इस सुघड़ पुस्तक का हिन्दी में भरपूर आदर होगा और अन्य अनेक कवि अन्य छन्दों में भी ऐसे ग्रन्थ प्रस्तुत कर भारत की राष्ट्रभाषा ‘भारति’ का भण्डार भरेंगे।
दोहा-मुक्तक-माल : दोहा मुक्तक संग्रह। कवि : डॉ. ब्रह्मजीत गौतम। प्रकाशक : डॉ. ब्रह्मजीत गौतम, बी-85, मिनाल रेजीडेंसी, जे.के. रोड, भोपाल-462023 (म.प्र.)। पृष्ठ : 72। सहयोग राशि : सदभाव मात्र। संस्करण : जुलाई 2011
- बी-2-बी-34, जनकपुरी, नई दिल्ली-110058
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