अविराम का ब्लॉग : वर्ष : १, अंक : ०४, दिसंबर २०११
।।कविता अनवरत।।
सामग्री : रामेश्वर कम्बोज 'हिमांशु', कृष्ण सुकुमार, महेश चंद्र पुनेठा,अलीहसन मकरैंडिया, कमल कपूर, ओम प्रकाश श्रीवास्तव अडिग, सुभान अली ‘रघुनाथपुरी’, डॉ. नसीम अख़्तर, डा. ए. कीर्तिवर्द्धन एवं अमित कुमार लाडी की काव्य रचनाएँ।
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
दोहे
बाज देश में खेलते, लुकाछिपी का खेल ।।1।।
बिना खाद पानी बढ़ा, नभ तक भ्रष्टाचार ।
सदाचार का खोदकर, फेंका खर-पतवार ।। 2।।
रेखांकन : राजेंद्र परदेशी |
गर्दन उनके हाथ में, जिनके हाथ कटार ।।3।।
ऊँची-ऊँची कुर्सियाँ, लिपटे काले नाग ।
डँसने पर बचना नहीं, भाग सके तो भाग ।। 4।।
- 37-बी/02, रोहिणी, सेक्टर-17, नई दिल्ली-110089
कृष्ण सुकुमार
ग़ज़ल
बचा कर आग इक ऐसी मैं अपने में निहां रखूं
मुसलसल अपने भीतर प्यास का दरिया रवां रखूं
छुपाना चाहता हूँ दर्द से इस जिस्म को लेकिन
परिंदा फिर ठिकाना ढूंढ़ लेता है, कहाँ रखूं
दरोदीवार से रखूं बना कर दूरियां इतनी
कि अपने घर को गोया खुला इक आस्मां रखूं
इधर मैं हूँ उधर पड़ता है मेरे जिस्म का साया
रेखांकन : हिना |
हज़ारों ख़्वाब मेरे कारवां में साथ चलते हैं
अकेलेपन से मैं ख़ुद को बचाने का गुमां रखूं
- 193/7, सोलानी कुंज, भा. प्रौ. सं., रुड़की-247667, जिला-हरिद्वार (उ.प्र.)
महेश चंद्र पुनेठा
दो कवितायेँ
1. प्रार्थना
विपत्तियों से घिरे आदमी का
जब
नहीं रहा होगा नियंत्रण
परिस्थितियों पर
रेखांकन : शशिभूषण बडोनी |
उसके कंठ से पहली प्रार्थना
विपत्तियों से उसे
बचा पायी हो या नहीं प्रार्थना
पर विपत्तियों ने
अवश्य बचा लिया प्रार्थना को।
2. गमक
फोड़-फाड़ कर बड़े-बड़े ढेले
टीप-टाप कर जुलके
बैठी है वह पाँव पसार
अपने उभरे पेट की तरह
चिकने लग रहे खेत पर
फेर रही है
हल्के -हल्के हाथ
ढॉप रही है ऊपर तल में
रह चुके बीजों को
रेखांकन : नरेश उदास |
फिर जाँचती है
धड़कन
अपने उभरे पेट में हाथ धर
गमक रही है औरत
गमक रहा है खेत
दोनों को देख
गमक रहा है एक कवि ।
- संपर्क: जोशी भवन निकट लीड बैंक जिला-पिथौरागढ़ 262530(उत्तराखंड)
अलीहसन मकरैंडिया
सीना ताने खड़ा सेतु
1.
सुनामी से रक्षा हेतु, सीना ताने खड़ा सेतु,टूट जाय इतिहास, ऐसा मत कीजिए!
विजय का प्रतीक है, पुरा वास्तु कला-चिह्न,
धरोहर राम की अनौखी बचा लीजिए!
वानर-सेना समान, एकजुट तानें तान,
घूँट अपमान का न चुप रह पीजिए!
करके जो ईश-निंदा, नहीं हुए शरमिंदा,
संविधान अनुसार, दंड उन्हें दीजिए!
2.
रामसेतु सागर में, विश्व-हित साधक है,
थाम लेता सीने पे ही सिन्धु के उफान को!
प्रभु राम के चरित्र की मिसाल है विशाल,
दुनियां से जिसने मिटाया था शैतान को!
द्रश्य छाया चित्र : अभिशक्ति |
आपदा-प्रचंड से बचाया जग-प्राण को!
रामजी के निन्दक तू मुख में लगाम डाल,
सौ-सौ बार सोच फिर खोलना जुबान को!
3.
अत्याचारी दानव, जो मानवों में मिल गये,
कंटक कठोर हैं वे सज्जन-सलाह में!
दुराग्रही और पापी लोग हैं अनीशवादी,
विश्व का विनाश इष्ट उनकी कुचाह में!
सत्य के विरोधी हैं मुरीद भ्रष्टाचार के वे,
निन्दक निगोड़े रत जुल्म की ही राह में!
कहते ‘हसन अली’, औरों की है कब चली,
उनके बढ़ावे से फरेबी हैं पनाह में!
- बी-410, एन.टी.पी.सी. टाउनशिप, डाक-विद्युतनगर, जिला-गौतमबुद्धनगर-201008 (उ.प्र.)
कमल कपूर
आओ सहेली!.....
हम बरसों बाद मिली हैं, कर लें आ जी खोल कर बातें
आओं सहेली! आज करें हम मिलजुल अच्छी-अच्छी बातें
गुज़रे कल को दोहराएँ हम करके बचपन वाली बातें
गुड़िया गिट्टे कंच, छुपन-छुपाई की वो बातें
कॉलेज वाली अमराई की, मीठी प्यारी नटखट बातें
चूरन इमली और अंबियों से सनी हुई वो खट्टी बातें
आओं सहेली! आज करें हम......................।।1।।
गृहस्थी के पचड़ों को छोड़ें, करे किताबों की हम बातें
‘धरमवीर’ के सुधा और चंदर, ‘शरत’ के देवदास की बातें
‘नीरज’ के मीठे नग्मों की, ‘बच्चन’ के गीतों की बातें
‘महादेवी’ की ‘दीप शिखा’ की, ‘प्रसाद’ की ‘कामायनी’ की बातें
मुक्त छंद ‘निराला’ के गुन लें, करें ‘वासंती परी’ की बातें
आओं सहेली! आज करें हम ....................।।2।।
पतझर की हम बात करें न, करें बहारों की हम बातें
मस्त फिज़ाओं, भीगी हवाओं, बरखा और जाड़ों की बातें
बहके-बहके मौसम वाली महकी-महकी मीठी बातें
रोग, गमों, झगड़ों को छोड़ें, खुशियों की ही करें हम बातें
मन में घोलें मधु और मिश्री, छेड़ें मधुर-मनाहर बातें
आओं सहेली! आज करें हम......................।।3।।
आशाओं से खुद को जोड़ें, छोड़ निराशा की हम बातें
उम्मीदों से भरी सुहानी, करें हम प्रीत-प्रेम की बातें
नयनों से न नीर बहाएँ, करें खुशी से हँसती बातें
दर्द, पीर और मौत को भूलें, करें ‘ज़िन्दगी’ की हम बातें
हम आज हैं संग, कल जाने कहाँ! करें सिर्फ हम बातें-बातें
रेखांकन : नरेश उदास |
- 2144/9, फरीदाबाद-121006 (हरियाणा)
गीत अपने प्यार के गाओ
घाटियों में फिर चलो! आओ
गीत अपने प्यार के गाओ।
देव की महती कृपा होगी,
जो हरीती है मरुस्थल में।
शेष बस अनुगूँज रहती है,
जो घटाया शब्द ने पल में
पर्वतों पर रास्ते ऐसे
बने हैं, तुम चले जाओ।। गीत....
सृष्टि कैसी घूमती मन में,
याद का विस्तार है होना।
प्राप्ति का भ्रम जी रहा ऐसे,
स्वप्न में आकाश का खोना।
शाम को जब है मुरझ जाना,
द्रश्य छाया चित्र : अभिशक्ति |
झिलमिलाती दीप की वाती
भी सितारों की तरह होती।
प्यार की ही यह कहानी है,
आँख का आँसू हुआ मोती।
श्वांस में यूं प्राण को भरकर,
फिर सुबह की भांति हरषाओ।। गीत....
- गीतायन, 454, रोशनगंज, शाहजहाँपुर-242001(उ.प्र.)
सुभान अली ‘रघुनाथपुरी’
खामोशी है दिल की जबाँ
मेरे ये नग़मे अब मेरी आवाज़ में अच्छे नहीं लगते,
और कि नये सुर पुराने साज़ में अच्छे नहीं लगते।
वही ख़्वाहिशें दिल में अब भी हैं जो कभी पहले थीं,
अब वे ख़्वाहिशी परिन्दे परवाज़ में अच्छे नहीं लगते।
मेरे सनम पहले तुम्हीं सुना दो मुझे अपने सारे नगमे,
मेरे ये बेअसर नग़में यूँ आग़ाज़ में अच्छे नहीं लगते।
रखो कुछ अपने चाहने वाले की नज़रों का लिहाज,
इतने नख़रे किसी नज़र नवाज़ में अच्छे नहीं लगते।
जब भी बोलें अल्फ़ाज़ की दिलकश ख़शबू उड़े हरसू,
तज़किरे कभी तल्ख़ अल्फाज़ में अच्छे नहीं लगते।
रेखांकन : किशोर श्रीवास्तव |
राज़ खोलने के गुनाह हमराज़ में अच्छे नहीं लगते।
बुजुर्गी में कभी किसी से, ज़ियादह न बोलना यारो,
लफ्ज़ों के ये शग़ल उम्रदराज़ में अच्छे नहीं लगते।
जवानी में जु़बाँ और बुजुर्गी में ख़ामोशी बोलती है,
ज़ज़्बात दिखाने, दीगर अन्दाज़ में अच्छे नहीं लगते।
- हिण्डन विहार, ग़ाज़ियाबाद-03
डॉ. नसीम अख़्तर
ग़ज़ल
मेरा सब्र यूँ आज़माने लगा।
सितम*1 पर सितम मुझपे करने लगा।
तेरे सामने जबसे जाने लगा
सुकूने दिलो जान*2 पाने लगा।
द्रश्य छाया चित्र : पूनम गुप्ता |
ज़माने का अन्दाज़ आने लगा।
वो सरतापा*3 ख़श्बू, वो गुल पैरहन*4
मेरी आत्मा में उतरने लगा।
‘नसीम’ उसके ऐबो हुनर*5 खुल गये
वो हर रोज़ जब पास आने लगा।
*1अत्याचार *2हृदय और आत्मा की शान्ति
*3सिर से पैर तक *4लिबास * 5बुराई-अच्छाई
- जे- 4/59, हंस तले, वाराणसी-221001 (उ.प्र.)
डा. ए. कीर्तिवर्द्धन
आइना
हम नहीं जानते
आप क्या चाहते हैं?
वास्तव में
देश को आगे बढ़ाना
अथवा
राजनीति की
वैसाखी के सहारे
अपने लक्ष्य को पाना।
एक सत्य है
सभी जानते हैं
जो लोग
दूसरों के कन्धों पर
चढ़कर जाते हैं
अपने पैरों वो
द्रश्य छाया चित्र : अभिशक्ति |
चल पाते हैं।
इतिहास गवाह है
राष्ट्र निर्माण का
उत्थान का
अवसान का।
आम आदमी की
भागेदारी
जब-जब बढ़ी है
राष्ट्र अस्मिता
परवान चढ़ी है।
- 53, महालक्ष्मी एंक्लेव, जानसठ रोड, मुजफ्फरनगर-251001 (उ0प्र0)
अमित कुमार लाडी
कई बार
कई बार मुझे
अपने आप से ही
डर लगता है,
कई बार
अपना व्यवहार ही
बर्बर लगता है,
कई बार तो
अपना सुन्दर सा घर ही
मुझे खंडहर सा लगता है
और कई बार
अपना होना भी
एक खबर सा लगता है
‘लाडी’ क्या कहे अब
किस्मत का खेल भी
झूठा सा लगता है।
कई बार
कई बार मुझे
अपने आप से ही
डर लगता है,
कई बार
अपना व्यवहार ही
बर्बर लगता है,
कई बार तो
अपना सुन्दर सा घर ही
द्रश्य छाया चित्र : पूनम गुप्ता |
और कई बार
अपना होना भी
एक खबर सा लगता है
‘लाडी’ क्या कहे अब
किस्मत का खेल भी
झूठा सा लगता है।
- मुख्य सम्पादक, आलराउँड मासिक, डोडां स्ट्रीट, फ़रीदकोट-151203 (पंजाब)
आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
जवाब देंहटाएंकृपया पधारें
चर्चा मंच-756:चर्चाकार-दिलबाग विर्क