अविराम का ब्लॉग : वर्ष : १, अंक : ०४, दिसंबर २०११
।। संभावना।।
देशपाल सिंह सेंगर
दान
रजनीकान्त और देवेश गहरे दोस्त हैं। रजनीकान्त गाँव में ही रह रहा है, जबकि देवेश गाँव से दूर महानगर में एक निजी कंपनी में कार्य कर रहा है। दोनों दोस्त जब मिलते हैं तो घण्टों आपस में बातें करते रहते हैं। ऐसे ही एक दिन जब देवेश गाँव आया तो फिर रजनी के साथ देश-दुनियाँ की बातें करने बैठ गया। उस दिन रजनी ने ‘नेत्रदान’ की चर्चा छेड़ दी और देवेश से भी इस पर गम्भीरता से विचार करने को कहा। काफी चर्चा के बाद रजनी ने कहा कि यह सोचना ही कितना रोमांचक है कि नेत्रदान करने वाला स्वयं के न रहने के बाद भी अपनी आँखों से दुनियाँ को देखता है। देवेश इस चर्चा से काफी प्रभावित हुआ और ऐसा महादान करने पर विचार करने लगा। छुट्टियाँ समाप्त होने पर वह वापस अपने काम पर लौट गया।
दीपावली की छुट्टियों में देवेश पुनः गाँव आया और अपने प्रिय मित्र से मिलने पहुँच गया। देवेश ने फिर नेत्रदान की चर्चा छेड़ दी और जानना चाहा कि रजनी ने संकल्प-पत्र भर दिया या नहीं? रजनीकान्त ने जवाब दिया कि दोस्त नेत्रदान का हमारा इरादा था, पर अब नहीं है। देवेश रजनी के इस उत्तर से अचंभित रह गया और उसने कारण जानना चाहा। रजनी ने अपने साथ घटी उस दिन बस में घटी घटना और उससे अपने नजरिए में दुनियाँ के प्रति आये बदलाव के बारे में सब कुछ बताकर बात खत्म करनी चाही, पर देवेश ने कहा- ‘यार! तुम तो उस प्रेमी की तरह निकले, जो प्रेम के बदले हर हाल में प्रेम की लालसा मन में लिये बैठा हो। प्रेम में कुछ पाने की इच्छा का मतलब होता है कि वह प्यार दिखावे का है, सच्चा नहीं। यही दान के बारे में भी सच है। हमें अपनी गिनती विरले निःस्वार्थ दानदाताओं में करानी चाहिए, तभी हमारा दान सच्चा होगा।....बस में लोगों ने बीमार भाभी जी को बैठने के लिए सीट नहीं दी और तुम्हारी गरीबी का मजाक उड़ाते हुए कह दिया कि शहर तक जाने में इतनी ही परेशानी हो रही है तो डॉक्टर को गाँव में अपने घर पर ही बुला लेना चाहिए था। तुम इतनी सी बात से उद्वेलित हो गये और समाज के बारे में अपनी
धारणा ही बदलकर नेत्रदान का संकल्प भी छोड़ दिया। उन लागों को ऐसा व्यवहार नहीं करना चाहिए था, इन्सानों में एक बीमार व्यक्ति के प्रति हमदर्दी होनी चाहिए, पर सोचो दुनियाँ सिर्फ ऐसे ही लागों से तो नहीं बनी है? सोचो दानवीर कर्ण ने किन परिस्थितियों में दान किया था।....तुम्हें एक बार पुनः अपने निर्णय पर विचार करना चाहिए।’’
’बात तुम्हारी एक सीमा तक ठीक है, पर क्या तुम नेत्रदान कर सकते हो?’ रजनी ने देवेश पर प्रश्न दाग दिया।
‘क्यों नहीं! नेत्रदान तो क्या मैं तो देहदान भी कर सकता हूँ, बल्कि कर चुका हूँ।’ देवेश ने रजनी को विश्वास दिलाते हुए कहा, ‘दोस्त मैं देहदान का संकल्प ले चुका हूँ। अब तुम भी देर न करो।’
रजनी ने कहा- ‘दोस्त तुम ठीक कहते हो! दान और प्रेम में बदले की कामना नहीं रखनी चाहिए। मैं जरूर नेत्रदान सहित देहदान करूँगा।’
रजनी की पत्नी लक्ष्मी, जो दोनों की बाते सुन चुकी थी, ने भी इस पुण्य काम में अपने पति के साथ होने का संकल्प कर लिया। बाद में जब रजनी के माता-पिता को पता चला तो उन्होंने भी इस पर विचार किया, जब एक दिन इस शरीर को मिट्टी में मिल ही जाना है तो क्यों न इससे समाज का हित करने का प्रयास करना चाहिए। उन्होंने भी देहदान का संकल्प ले लिया।
- ग्राम बर्रू कुलासर-बेला, जिला: औरैया-206251 (उ.प्र.)
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