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बुधवार, 28 दिसंबर 2011

अविराम विस्तारित


अविराम का ब्लॉग :  वर्ष : १, अंक : ०४, दिसंबर २०११ 


।।जनक छन्द।।


सामग्री :  पं. ज्वालाप्रसाद शांडिल्य ‘दिव्य’ व कुँ. शिवभूषण सिंह गौतम के जनक छंद। 


पं. ज्वालाप्रसाद शांडिल्य ‘दिव्य’






छ:जनक छन्द
1.
दे न और कुछ शारदे
नित्य धवल शुचि नेह का
दान-मान उपहार दे।
2.
मैली मन की गंग है
तब ही दुनियां आज की
रेखांकन : राजेंद्र परदेशी     
हद से ज्यादा तंग है।
3.
अपना अपना राग है
कुशल छेम कैसे रहे
वैमनस्य की आग है।
4.
करें चोट पर चोट हैं
लिए धर्म की ओट यह
नीयत रखते खोट हैं।
5.
आँख खोल देखें जरा
रात-दिवस सुख का घड़ा
दुर्जन ने दुःख से भरा।
6.
बोया पेड़ बबूल का
मिला नहीं जब आमरस
पता चला तब भूल का।

  • 251/1, दयानन्द नगरी, ज्वालापुर, हरिद्वार-249407 (उत्तराखण्ड)







कुँ. शिवभूषण सिंह गौतम


छ:जनक छन्द


1.
प्रभु माया विस्तार है।
कोटि-कोटि ब्रह्माण्ड में,
कौन पा सका पार है।।
2.
सेवा भाव स्वभाव है!
रेखांकन : डॉ. सुरेन्द्र वर्मा  
साधु संत योगी यती,
जो राखे समभाव है।।
3.
क्यों इतना बौरा गये!
नर तन पाकर बावले,
नारायन बिसरा गये।।
4.
धन्य अगाथा संगमा!
हिन्दी में लेकर सपथ,
तृप्त कर दिया आतमा।।
5.
जो हिन्दी की खा रहे!
वे ही बे सुर-ताल के,
अंग्रेजी में गस रहे।
6.
अभी समय है चेतिये!
सड़े गले से अंग को,
काट बदन से फेंकिये।।

  • अन्तर्वेद, कमला कॉलोनी, नया पन्ना नाका, छतरपुर (म.प्र.)


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