अविराम ब्लॉग संकलन : वर्ष : 1, अंक : 12, अगस्त 2012
वरिष्ठ लघुकथाकार श्री बलराम अग्रवाल को पी-एच.डी. की उपाधि
वरिष्ठ लघुकथाकार, चिन्तक एवं समालोचक श्री बलराम अग्रवाल जी को चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ द्वारा पी-एच.डी. की शोध उपाधि अवार्ड की गई है। उन्हें यह उपाधि ‘समकालीन हिन्दी लघुकथा का मनोविश्लेषणात्मक अध्ययन (वर्ष 1971 से 2000 तक)’ विषय पर उनके महत्वपूर्ण शोधकार्य पर प्रदान की गई है। श्री बलराम अग्रवाल जी लघुकथा पर महत्वपूर्ण सृजन के साथ चिन्तनपूर्ण एवं समालोचनात्मक कार्यों के लिए देश भर में जाने जाते हैं। लघुकथा के मापदण्डों के निर्धारण में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कई चर्चित साहित्यकारों के साहित्य पर भी उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया है, जिनमें प्रेमचंद एवं खलील जिब्रान भी शामिल हैं। उनकी महत्वपूर्ण पुस्तकें ‘खलील जिब्रान’ तथा प्रेमचंद के समकालीन लघुकथा में योगदान पर संपादित पुस्तक ‘समकालीन लघुकथा एवं प्रेमचंद’ अभी हाल ही में प्रकाशित हुई हैं। ‘समकालीन लघुकथा एवं प्रेमचंद’ में प्रेमचंद की लघु आकारीय चौदह कथा रचनाएं, जिनकी चर्चा लघुकथा में उनके योगदान के सन्दर्भ में बहुधा की जाती है, के साथ उनके योगदान पर उन्तीस वरिष्ठ साहित्यकारों के आलेख संकलित हैं। मलयालम एवं तेलगू लघुकथाओं के संकलनों के साथ प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि महान कथाकारों की महत्वपूर्ण कहानियों (जिनमें कई दुर्लभ कहानियाँ भी शामिल हैं।) के करीब पन्द्रह संकलनों का संपादन भी उन्होंने किया है। उनके द्वारा ‘वर्तमान जनगाथा’ का 1993 से 1996 तक प्रकाशन/संपादन लघुकथा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सोपान था। ‘सहकार संचय’ (जुलाई 1997), ‘द्वीप लहरी’ (अगस्त 2002 व जनवरी 2003), ‘आलेख संवाद’ (जुलाई 2008) आदि पत्र-पत्रिकाओं के लघुकथा विशेषांकों के संपादन माध्यम से भी उन्होंने लघुकथा की विकास-यात्रा में महत्वपूर्ण योगदान किया है। ‘अविराम साहित्यिकी’ के शीघ्र प्रकाश्य लघुकथा विशेषांक का संपादन भी डॉ. बलराम अग्रवाल जी कर रहे हैं। ‘सरसों के फूल‘, जुबैदा, चन्ना चरनदास, दूसरा भीम, ग्यारह अभिनव बाल एकांकी, समग्र अध्ययन- उत्तराखण्ड, खलील जिब्रान आदि उनकी मौलिक प्रकाशित कृतियां हैं। वर्तमान में इन्टरनेट पर लघुकथा विषयक तीन एवं दो अन्य ब्लाग पत्रिकाओं के माध्यम से लघुकथा के क्षेत्र में वह महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। (समाचार प्रस्तुति : डॉ. उमेश महदोषी, एफ-488/2, गली सं.11, राजेन्द्र नगर, रुड़की-247667, जिला-हरिद्वार, उत्तराखण्ड)
बेलगाम में ‘हिन्दी संघ’ की स्थापना
विगत 17 अगस्त 2012 को बेलगाम जिले के रानी चेनम्मा का क्षेत्र किट्टूर में वहाँ के सभी शिक्षकों ने मिलकर एक कार्यक्रम में ‘हिन्दी संघ’ की स्थापना की। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री कोटि जी ने की। श्री कदम और श्रीमती माने जी प्रमुख अतिथि रहे। शिक्षक एवं साहित्यकार डॉ. सुनील पारित ने इस अवसर पर कर्नाटका में हिन्दी के पूरे परिदृश्य पर रोशनी डालते हुए कहा कि हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है, इसके बावजूद इसे कर्नाटका में तृतीय भाषा के रूप में पढ़ाया जाता है, वह भी मात्र छठी कक्षा से दसवीं कक्षा तक। इसके विपरीत अंग्रेजी को द्वितीय भाषा के रूप में पहली कक्षा से ही पढ़ाया जाना आरम्भ कर दिया जाता है। उन्होंने माँग की कि हिन्दी को भी आरम्भ से ही पढ़ाया जाना चाहिए। उन्होंने उपस्थित जनों को केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय के बारे में भी जानकारी दी। (डॉ. सुनील पारित, बेलगाम, 08867417505)
हिंदी समाज में वैज्ञानिक चेतना का अभाव
तेजी से बदलती दुनिया में जहाँ विज्ञान ने नए आयाम स्थापित किए हैं, वहीं हमारे रूढ़िवादी समाज में अंधविश्वास की जड़ें भी गहरी हुई हैं। किसी भी समाज के निर्माण में भाषा का योगदान महत्वपूर्ण होता है। भाषा ही विचारों की अभिव्यक्ति है और वही तय करती है कि हमारे समाज की दिशा और दशा क्या होगी? हिन्दी भाषा और साहित्य में उस वैज्ञानिक चेतना की कमी अखरती है जो समाज को तार्किक और विश्वसनीय बनाती है। उक्त विचार ‘विज्ञान-प्रसार’ के निदेशक डॉ. सुबोध महंती ने कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल की रामगढ़ स्थित महादेवी वर्मा सष्जन पीठ में ‘विज्ञान-प्रसार’ और राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं सूचना स्रोत संस्थान (निस्केयर) के सहयोग से पिछले दिनों (26-27 मार्च, 2012) आयोजित ‘वैज्ञानिक मानसिकता और हिंदी लेखन’ विषयक द्वि-दिवसीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए व्यक्त किये।
‘निस्केयर’ के वैज्ञानिक डॉ. गौहर रजा ने कहा कि आज विज्ञान की तार्किकता के स्थान पर अंधविश्वास ने जगह ले ली है। हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि हम अपनी नई पीढ़ी के सामने ज्ञान-विज्ञान को किस प्रकार वैज्ञानिक ढंग से उसके आधारभूत तत्व - तार्किकता और विश्वसनीयता के साथ प्रस्तुत करें। तभी हम अपने समाज, राज्य और आने वाली पीढ़ियों को वैज्ञानिक अंतर्दष्ष्टि से युक्त विश्व-समाज से जोड़ सकते हैं।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ लेखक प्रेमपाल शर्मा ने ‘वैज्ञानिक मानसिकता और समाज’ विषयक अपने व्याख्यान में कहा कि अंधविश्वासी समाज विज्ञान को संकुचित नजरिए से देखता आया है। तर्कों पर आस्था हमेशा भारी पड़ी है। कर्मकांडों को आस्था का प्रश्न मानकर वैज्ञानिक पक्ष का कभी विश्लेषण नहीं किया गया। समाज में प्रचलित धार्मिक विश्वासों का एक सबल वैज्ञानिक पहलू रहा है, उसकेे प्रचार-प्रसार द्वारा हम रूढ़िवादी समाज को अंधविश्वासों से मुक्त कर सकते हैं।
अपने स्वागत-संबोधन में महादेवी वर्मा सष्जन पीठ के निदेशक प्रो.एल.एस.बिष्ट ‘बटरोही’ ने कहा कि पाठ्यक्रम की माध्यम -भाषा के रूप में जो हिंदी विकसित हुई है, वह या तो अनुवाद की कृत्रिम भाषा है या सुदूर अतीत के व्याकरण से निर्मित अस्पष्ट भाषा। ज्ञान-विज्ञान को अपने परिवेश का हिस्सा बनाने के लिए केवल शब्दों के आयात से काम नहीं चलता, उसके लिए नई मानसिकता और नए रचनात्मक तेवरों के द्वारा भाषा का नए सिरे से निर्माण आवश्यक है। इस अवसर पर देवेंद्र मेवाड़ी की पुस्तक ‘मेरी विज्ञान कथाएँ’ तथा सिद्धेश्वर सिंह के कविता-संग्रह ‘कर्मनाशा’ का विमोचन गणमान्य अतिथियों ने किया।
संगोष्ठी के द्वितीय सत्र को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार प्रो. गोविन्द सिंह ने कहा कि भाषा और साहित्य की सामान्य अभिव्यक्ति पत्रकारिता में दिखाई पड़ती है। किसी भी घटना पर तात्कालिक प्रतिक्रिया करते समय पत्रकार के विवेक और मानसिकता का विशेष महत्व है। यदि वैज्ञानिक सोच के साथ किसी घटनाक्रम का विश्लेषण किया जाए तो घटना सनसनी के बजाय अधिक विश्वसनीय लगेगी।
विज्ञान अध्येता एवं कथाकार प्रो. कविता पांडेय ने ‘वैज्ञानिक मानसिकता: हिन्दी क्षेत्र की महिलाओं की भूमिका’ विषयक अपने व्याख्यान में कहा कि हिन्दी समाज में महिलाओं की स्थिति दोयम रही है। ऐसे में उनमें वैज्ञानिक मानसिकता का अभाव स्वाभाविक है। फिर भी शिक्षा के प्रसार के साथ विज्ञान और दूसरे क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति बेहतर हुई है तो इसका प्रमुख कारण उनकी वैज्ञानिक सोच है।
विज्ञान प्राध्यापक और साहित्यकार डॉ. नवीन नैथानी ने कहा कि विज्ञान को तार्किक ढंग से नई पीढ़ी तक पहुँचाने में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है। आज विज्ञान के साथ ही मानविकी से जुड़े सभी विषयों के पाठ्यक्रम को वैज्ञानिक ढंग से पुनर्प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। पाठ्यक्रम के साथ ही हमारे शिक्षण में भी वैज्ञानिक मानसिकता झलकनी चाहिए। वैज्ञानिक सोच से परिपूर्ण शिक्षक ही रूढ़िवादी समाज में वैज्ञानिक चेतना की अलख जगा सकता है।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए कथाकार, उपन्यासकार एवं ‘समयांतर’ के संपादक पंकज बिष्ट ने कहा कि विज्ञान ने हमें अपने समय के साथ संवाद के अनेक अवसर प्रदान किए हैं और विश्व नागरिक के रूप में हमारी जानकारी का अभूतपूर्व विस्तार हुआ है लेकिन अकादमिक जगत में इसकी हलचल नहीं सुनाई देती। वर्तमान में हिन्दी में लेखन के नाम पर ललित साहित्य की चर्चा होती है, जबकि हमारा समाज ज्ञान के जबरदस्त विस्फोट के दौर से गुजर रहा है।
समापन सत्र को संबोधित करते हुए चर्चित कवि विजय गौड़ ने कहा कि सामान्यतः विज्ञान को अंग्रेजी से जोड़कर देखा जाता है जो हमारे संस्कारों की भाषा न होकर एक आयातित भाषा है। हिंदी भाषा से जुड़ी अभिव्यक्ति में वह वैज्ञानिक मानसिकता नहीं दिखाई देती जिसे विज्ञान ने बड़े प्रयत्नों से हमारे समय को दिया है। युवा साहित्यकार प्रभात रंजन ने कहा कि हमारी नई पीढ़ी एक ओर अपनी जड़ों से कटती जा रही है, दूसरी ओर नए विश्व में उजागर हो रहे ज्ञान से उसका रिश्ता कमजोर पड़ता जा रहा है। पत्रकार अनिल यादव ने विज्ञान की तार्किकता को संकुचित नजरिए से देखने की बजाय उसे जीवन के जरूरी अंग के रूप में देखने की जरूरत पर बल दिया। सामाजिक विश्लेषक कष्ष्ण सिंह के अनुसार जीवन का हर पहलू विज्ञान से जुड़ा है लेकिन विज्ञान को हाशिए पर रखकर हम चहुँमुखी विकास की कल्पना नहीं कर सकते।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध विज्ञान कथाकार देवेंद्र मेवाड़ी ने कहा कि वैज्ञानिक सोच को अपने जीवन में आत्मसात कर ही हम सर्वांगीण विकास कर सकते हैं। विज्ञान पाठ्यक्रम और शोध के विषय के रूप में ही नहीं बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़ा है। हम किसी भी क्षेत्र अथवा विषय से क्यों न जुड़े हों, यदि हमारी सोच वैज्ञानिक होगी तभी हमारा समाज और राष्ट्र सही मायनों में तरक्की कर सकता है। सत्र का संचालन कवि-आलोचक डॉ. सिद्धेश्वर सिंह ने किया।
इस अवसर पर प्रतिभागियों के सुझावों पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ तथा विभिन्न संस्तुतियों के आधार पर ‘रामगढ़ पत्र’ के प्रारूप का आलेखन किया गया। संगोष्ठी में सत्रानुसार आयोजित विमर्श में साहित्यकार शैलेय, दिनेश कर्नाटक, त्रेपन सिंह चौहान, सृजन पीठ के शोध अधिकारी मोहन सिंह रावत, पत्रकार रोहित जोशी, भास्कर उप्रेती, राहुल सिंह शेखावत, प्राध्यापक प्रो. गंगा बिष्ट, डॉ. सुधीर चंद्र, डॉ. ललित तिवारी, डॉ. गीता तिवारी, डॉ. प्रकाश चौधरी सहित कपिल त्रिपाठी, भरत हर्नवाल, द्रोपदी सिंह, उमा जोशी, रजनी चौधरी, निर्भय हर्नवाल, हिमांशु पांडे आदि ने भाग लिया। अंत में ‘निस्केयर’ के वैज्ञानिक डॉ. सुरजीत सिंह ने सभी प्रतिभागियों और गणमान्य अतिथियों का धन्यवाद व्यक्त किया। {समाचार प्रस्तुति: मोहन सिंह रावत, वर्ड्स आई व्यू, इम्पायर होटल परिसर, तल्लीताल, नैनीताल-263 002 (उत्तराखण्ड)}
डॉ. अनीता कपूर की दो पुस्तकों का विमोचन
प्रसिद्ध लेखक श्री बलदेव बंशी जी द्वारा विगत 14 जुलाई 2012 को नई दिल्ली में इंडिया वूमेन प्रैस क्लब, नई दिल्ली द्वारा आयोजित समारोह में डॉ. अनीता कपूर की दो पुस्तकों ‘सांसों के हस्ताक्षर’ (कविता संग्र्रह) एवं ‘दर्पण के सवाल’ (हाइकुु संग्रह) का विमोचन किया गया। डॉ. अनीता कपूर के पूर्व में चार कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। ‘सांसों के हस्ताक्षर’ उनका पाँचवां कविता संग्रह है। डॉ. बंशी जी ने इस अवसर पर इसे डॉ. अनीता कपूर के दूसरे चरण का मूल्यवान आत्म सर्जन बताया। उन्होने यह भी कहा कि डॉ. कपूर ने सरस एवं सहृद भाषा के माध्यम से संश्लिष्ट मानव अनुभूति को व्यक्त करते हुए नए शब्द भी रेखांकित किए हैं।
इस अवसर पर उपस्थित श्रीमती बीरवाला काम्बोज, सुदर्शन रत्नाकर, सुभाष नीरव, सुरेश यादव, डॉ. सतीशराज पुष्करणा, डॉ. जेन्नी शबनम, सीमा मल्होत्रा, सुशीला शिवराण, भूपाल सूद, अनिल जोशी एवं सरोज वर्मा आदि ने लेखिका को हार्दिक शुभकामनाएं दी।
कार्यक्रम में डॉ. अनिता कपूर ने अपनी कुछ कविताओं का पाठ भी किया। इसके बाद डॉ. बल्देव बंशी जी के काव्य-पाठ का कार्यक्रम रखा गया। दानों की कविताओं का श्रोताओं ने भरपूर आनन्द लिया। डॉ. सतीशराज पुष्करणा एवं श्री रामेश्वर काम्बोज हिमांशु ने हाइकु के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किये। (समाचार प्रस्तुति: रामेश्वर काम्बोज हिमांशु, नई दिल्ली)
कदम्ब की छावं का लोकार्पण
गुडगाँव-गुडगाँव के जीआईए सभागार में नारी अभिव्यक्ति मंच ‘पहचान’ और ‘शब्द शक्ति’ के संयुक्त तत्वावधान में कथाकार कमल कपूर के आठवें कथा-संग्रह ‘कदम्ब की छावं’ का लोकार्पण समारोह की मुख्य अतिथि प्रख्यात साहित्यकार सुश्री चित्रा मुद्गल तथा हरियाणा ग्रन्थ अकादमी की निदेशक डा. मुक्ता के कर कमलों से संपन्न हुआ।
सर्वप्रथम लेखिका कमल कपूर ने कदम्ब की छावं की कहानियों की रचना प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए कहा, ‘‘यदि मैं ये कहानियां ठीक-ठाक ढंग से लिख पाई हूँ तो इसके पीछे मेरी परम गुरु चित्रा दीदी का मार्ग दर्शन और आशीर्वाद है।’’ मुख्य वक्ता सविता स्याल ने कहानियों के समग्र रचना विधान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ये कहानियां बरसों तक याद रखी जाएँगी। प्रमुख समीक्षक घमंडी लाल अग्रवाल ने तमाम 19 कहानियों पर खुल कर चर्चा की। आभा कुलश्रेष्ठ ने कहा कि कमल जी सामाजिक सरोकारों की रचयिता हैं। सुरेखा जैन ने कृति की भाषा, कला तथा सौंदर्य पक्ष को सामने रखा। अभिषेक गौण ने कहा कि कुछ रचनाएँ सामाजिक प्रदूषण को दूर करने में सक्षम हैं। चित्रा मुद्गल ने कहा की कदम्ब की छावं समूचे विश्व को ठंडक प्रधान करेगी, ऐसा मेरा विशवास है। डॉ. मुक्ता ने कहा, ’कमल संभावनाओं की लेखिका हैं। पुस्तक प्रकाशक अरविन्द बक्षी ने इन कहानियों को सदी की उत्तम कहानियाँ बताया। मधुर मंच संचालन शब्द शक्ति के अध्यक्ष नरेंद्र गौर ने किया और सरस्वती वन्दना वीणा अग्रवाल ने की। नगर के गणमान्य व्यक्तियों की बहु उपस्थिति ने समारोह की गरिमा में चार चाँद लगा दिए। (समाचार प्रस्तुति : कमल कपूर, फरीदाबाद)।
कमलेश भारतीय का सम्मान
हरियाणा ग्रन्थ अकादमी के उपाध्यक्ष व कथाकार कमलेश भारतीय का पंजाब के फगवाड़ा नगर के आर्य मॉडल स्कूल में सपंन्न समारोह में दोआबा साहित्य अकादमी व पंजाब हिंदी साहित्य अकादमी की ओर से सम्मान किया गया। श्री भारतीय ने कहा कि फगवाड़ा का उनके साहित्यिक सफ़र में बहुत महत्त्व रहा है। यहीं पहली बार कवि सम्मेलन में काव्य पाठ किया, यहीं सन् 2008 में डा. चंद्रशेखर सम्मान मिला और यहीं ग्रन्थ अकादमी में जाने पर उनका अभिनंदन किया गया। वे सदैव इस स्नेह को याद रखेंगे। मंच संचालन डा. जवाहर धीर ने किया। इस अवसर पर डा. कैलाश नाथ भारद्वाज, डा. सरला भारद्वाज, डा. किरण वालिया, रमेश सोबती, सुरजीत जज, आरिफ गोबिंद, हरिवंश मेहता, सुनील मोहे, प्रमोद भारती, मनोज, ठाकुरदास चावला व अन्य अनेक साहित्यकार मौजूद थे। रमेश सोबती की नवप्रकाशित पुस्तक का विमोचन भी किया गया। (समाचार प्रस्तुति : कमलेश भारतीय, पंचकुला)
विमोचन एवं काव्य समारोह
पालमपुर (हि.प्र.) की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य निर्झर मंच के तत्वावधान में एक साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के प्रथम सत्र में तीन पुस्तकों का विमोचन हुआ। बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि-कथाकार एवं हिंदी साहित्य निर्झर मंच के अध्यक्ष श्री नरेश कुमार ‘उदास’ के नवीनतम लघुकथा संग्रह ‘आकाशदीप’ का विमोचन ख्यातिप्राप्त कवि-कथाकार श्री रामकुमार आत्रेय जी ने किया। इस अवसर पर श्री उदास जी की धर्मपत्नी श्रीमती छाया रानी भी उपस्थित थीं। कवयित्री सुमन शेखर के काव्य संग्रह ‘कल्पतरु बन जाना तुम’ का विमोचन श्रीमती शक्ति शर्मा, नरेश कुमार ‘उदास’, डॉ. जाह्नवी शेखर एवं श्री रामकुमार आत्रेय जी ने संयुक्त रूप से किया। विमोचित होने वाली तीसरी पुस्तक थी- सुमन शेखर का प्रथम कहानी संग्रह ‘महाव्रत’, जिसका विमोचन श्री नरेश कुमार ‘उदास’ तथा डॉ. जाह्नवी शेखर ने संयुक्त रूप से किया।
पुस्तकों के विमाचन के उपरान्त श्री नरेश कुमार ‘उदास’ ने ‘महाव्रत’ कथा-संग्रह पर समीक्षात्मक लेख का वाचन भी किया। छात्रा दीक्षा कुमारी ने ‘कल्पतरु बन जाना तुम’ की कविताओं पर एक सारगर्भित टिप्पणी की।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में उपस्थित प्रमुख कवियों के काव्य पाठ का कार्यक्रम रखा गया। सर्वश्री रामकुमार आत्रेय (कुरुक्षेत्र), रामकुमार भारतीय (जीन्द), नरेश कुमार ‘उदास’, अमर तनोत्रा, अर्जुन कन्नौजिया एवं सुश्री सुमन शेखर व उषा कालिया की कविताओं को श्रोताओं ने तन्मयता से सुना और उनका भरपूर आनन्द लिया। इस अवसर पर स्थानीय कवियों सहित अनेक साहित्यकार तथा श्रोता उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामकुमार आत्रेय जी ने की तथा संचालन श्री नरेश कुमार ‘उदास’ जी ने किया।
अन्त में संगोष्ठी श्री आत्रेय जी के अध्यक्षीय वक्तव्य एवं श्री उदास जी के द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। (समाचार प्रस्तुति : उषा कालिया, पालमपुर)
वरिष्ठ लघुकथाकार श्री बलराम अग्रवाल को पी-एच.डी. की उपाधि
वरिष्ठ लघुकथाकार, चिन्तक एवं समालोचक श्री बलराम अग्रवाल जी को चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ द्वारा पी-एच.डी. की शोध उपाधि अवार्ड की गई है। उन्हें यह उपाधि ‘समकालीन हिन्दी लघुकथा का मनोविश्लेषणात्मक अध्ययन (वर्ष 1971 से 2000 तक)’ विषय पर उनके महत्वपूर्ण शोधकार्य पर प्रदान की गई है। श्री बलराम अग्रवाल जी लघुकथा पर महत्वपूर्ण सृजन के साथ चिन्तनपूर्ण एवं समालोचनात्मक कार्यों के लिए देश भर में जाने जाते हैं। लघुकथा के मापदण्डों के निर्धारण में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। कई चर्चित साहित्यकारों के साहित्य पर भी उन्होंने महत्वपूर्ण कार्य किया है, जिनमें प्रेमचंद एवं खलील जिब्रान भी शामिल हैं। उनकी महत्वपूर्ण पुस्तकें ‘खलील जिब्रान’ तथा प्रेमचंद के समकालीन लघुकथा में योगदान पर संपादित पुस्तक ‘समकालीन लघुकथा एवं प्रेमचंद’ अभी हाल ही में प्रकाशित हुई हैं। ‘समकालीन लघुकथा एवं प्रेमचंद’ में प्रेमचंद की लघु आकारीय चौदह कथा रचनाएं, जिनकी चर्चा लघुकथा में उनके योगदान के सन्दर्भ में बहुधा की जाती है, के साथ उनके योगदान पर उन्तीस वरिष्ठ साहित्यकारों के आलेख संकलित हैं। मलयालम एवं तेलगू लघुकथाओं के संकलनों के साथ प्रेमचंद, जयशंकर प्रसाद, रवीन्द्रनाथ टैगोर आदि महान कथाकारों की महत्वपूर्ण कहानियों (जिनमें कई दुर्लभ कहानियाँ भी शामिल हैं।) के करीब पन्द्रह संकलनों का संपादन भी उन्होंने किया है। उनके द्वारा ‘वर्तमान जनगाथा’ का 1993 से 1996 तक प्रकाशन/संपादन लघुकथा के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण सोपान था। ‘सहकार संचय’ (जुलाई 1997), ‘द्वीप लहरी’ (अगस्त 2002 व जनवरी 2003), ‘आलेख संवाद’ (जुलाई 2008) आदि पत्र-पत्रिकाओं के लघुकथा विशेषांकों के संपादन माध्यम से भी उन्होंने लघुकथा की विकास-यात्रा में महत्वपूर्ण योगदान किया है। ‘अविराम साहित्यिकी’ के शीघ्र प्रकाश्य लघुकथा विशेषांक का संपादन भी डॉ. बलराम अग्रवाल जी कर रहे हैं। ‘सरसों के फूल‘, जुबैदा, चन्ना चरनदास, दूसरा भीम, ग्यारह अभिनव बाल एकांकी, समग्र अध्ययन- उत्तराखण्ड, खलील जिब्रान आदि उनकी मौलिक प्रकाशित कृतियां हैं। वर्तमान में इन्टरनेट पर लघुकथा विषयक तीन एवं दो अन्य ब्लाग पत्रिकाओं के माध्यम से लघुकथा के क्षेत्र में वह महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। (समाचार प्रस्तुति : डॉ. उमेश महदोषी, एफ-488/2, गली सं.11, राजेन्द्र नगर, रुड़की-247667, जिला-हरिद्वार, उत्तराखण्ड)
बेलगाम में ‘हिन्दी संघ’ की स्थापना
विगत 17 अगस्त 2012 को बेलगाम जिले के रानी चेनम्मा का क्षेत्र किट्टूर में वहाँ के सभी शिक्षकों ने मिलकर एक कार्यक्रम में ‘हिन्दी संघ’ की स्थापना की। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्री कोटि जी ने की। श्री कदम और श्रीमती माने जी प्रमुख अतिथि रहे। शिक्षक एवं साहित्यकार डॉ. सुनील पारित ने इस अवसर पर कर्नाटका में हिन्दी के पूरे परिदृश्य पर रोशनी डालते हुए कहा कि हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा है, इसके बावजूद इसे कर्नाटका में तृतीय भाषा के रूप में पढ़ाया जाता है, वह भी मात्र छठी कक्षा से दसवीं कक्षा तक। इसके विपरीत अंग्रेजी को द्वितीय भाषा के रूप में पहली कक्षा से ही पढ़ाया जाना आरम्भ कर दिया जाता है। उन्होंने माँग की कि हिन्दी को भी आरम्भ से ही पढ़ाया जाना चाहिए। उन्होंने उपस्थित जनों को केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय के बारे में भी जानकारी दी। (डॉ. सुनील पारित, बेलगाम, 08867417505)
हिंदी समाज में वैज्ञानिक चेतना का अभाव
तेजी से बदलती दुनिया में जहाँ विज्ञान ने नए आयाम स्थापित किए हैं, वहीं हमारे रूढ़िवादी समाज में अंधविश्वास की जड़ें भी गहरी हुई हैं। किसी भी समाज के निर्माण में भाषा का योगदान महत्वपूर्ण होता है। भाषा ही विचारों की अभिव्यक्ति है और वही तय करती है कि हमारे समाज की दिशा और दशा क्या होगी? हिन्दी भाषा और साहित्य में उस वैज्ञानिक चेतना की कमी अखरती है जो समाज को तार्किक और विश्वसनीय बनाती है। उक्त विचार ‘विज्ञान-प्रसार’ के निदेशक डॉ. सुबोध महंती ने कुमाऊँ विश्वविद्यालय, नैनीताल की रामगढ़ स्थित महादेवी वर्मा सष्जन पीठ में ‘विज्ञान-प्रसार’ और राष्ट्रीय विज्ञान संचार एवं सूचना स्रोत संस्थान (निस्केयर) के सहयोग से पिछले दिनों (26-27 मार्च, 2012) आयोजित ‘वैज्ञानिक मानसिकता और हिंदी लेखन’ विषयक द्वि-दिवसीय संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए व्यक्त किये।
‘निस्केयर’ के वैज्ञानिक डॉ. गौहर रजा ने कहा कि आज विज्ञान की तार्किकता के स्थान पर अंधविश्वास ने जगह ले ली है। हमारे सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि हम अपनी नई पीढ़ी के सामने ज्ञान-विज्ञान को किस प्रकार वैज्ञानिक ढंग से उसके आधारभूत तत्व - तार्किकता और विश्वसनीयता के साथ प्रस्तुत करें। तभी हम अपने समाज, राज्य और आने वाली पीढ़ियों को वैज्ञानिक अंतर्दष्ष्टि से युक्त विश्व-समाज से जोड़ सकते हैं।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ लेखक प्रेमपाल शर्मा ने ‘वैज्ञानिक मानसिकता और समाज’ विषयक अपने व्याख्यान में कहा कि अंधविश्वासी समाज विज्ञान को संकुचित नजरिए से देखता आया है। तर्कों पर आस्था हमेशा भारी पड़ी है। कर्मकांडों को आस्था का प्रश्न मानकर वैज्ञानिक पक्ष का कभी विश्लेषण नहीं किया गया। समाज में प्रचलित धार्मिक विश्वासों का एक सबल वैज्ञानिक पहलू रहा है, उसकेे प्रचार-प्रसार द्वारा हम रूढ़िवादी समाज को अंधविश्वासों से मुक्त कर सकते हैं।
अपने स्वागत-संबोधन में महादेवी वर्मा सष्जन पीठ के निदेशक प्रो.एल.एस.बिष्ट ‘बटरोही’ ने कहा कि पाठ्यक्रम की माध्यम -भाषा के रूप में जो हिंदी विकसित हुई है, वह या तो अनुवाद की कृत्रिम भाषा है या सुदूर अतीत के व्याकरण से निर्मित अस्पष्ट भाषा। ज्ञान-विज्ञान को अपने परिवेश का हिस्सा बनाने के लिए केवल शब्दों के आयात से काम नहीं चलता, उसके लिए नई मानसिकता और नए रचनात्मक तेवरों के द्वारा भाषा का नए सिरे से निर्माण आवश्यक है। इस अवसर पर देवेंद्र मेवाड़ी की पुस्तक ‘मेरी विज्ञान कथाएँ’ तथा सिद्धेश्वर सिंह के कविता-संग्रह ‘कर्मनाशा’ का विमोचन गणमान्य अतिथियों ने किया।
संगोष्ठी के द्वितीय सत्र को संबोधित करते हुए वरिष्ठ पत्रकार प्रो. गोविन्द सिंह ने कहा कि भाषा और साहित्य की सामान्य अभिव्यक्ति पत्रकारिता में दिखाई पड़ती है। किसी भी घटना पर तात्कालिक प्रतिक्रिया करते समय पत्रकार के विवेक और मानसिकता का विशेष महत्व है। यदि वैज्ञानिक सोच के साथ किसी घटनाक्रम का विश्लेषण किया जाए तो घटना सनसनी के बजाय अधिक विश्वसनीय लगेगी।
विज्ञान अध्येता एवं कथाकार प्रो. कविता पांडेय ने ‘वैज्ञानिक मानसिकता: हिन्दी क्षेत्र की महिलाओं की भूमिका’ विषयक अपने व्याख्यान में कहा कि हिन्दी समाज में महिलाओं की स्थिति दोयम रही है। ऐसे में उनमें वैज्ञानिक मानसिकता का अभाव स्वाभाविक है। फिर भी शिक्षा के प्रसार के साथ विज्ञान और दूसरे क्षेत्रों में महिलाओं की स्थिति बेहतर हुई है तो इसका प्रमुख कारण उनकी वैज्ञानिक सोच है।
विज्ञान प्राध्यापक और साहित्यकार डॉ. नवीन नैथानी ने कहा कि विज्ञान को तार्किक ढंग से नई पीढ़ी तक पहुँचाने में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका है। आज विज्ञान के साथ ही मानविकी से जुड़े सभी विषयों के पाठ्यक्रम को वैज्ञानिक ढंग से पुनर्प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। पाठ्यक्रम के साथ ही हमारे शिक्षण में भी वैज्ञानिक मानसिकता झलकनी चाहिए। वैज्ञानिक सोच से परिपूर्ण शिक्षक ही रूढ़िवादी समाज में वैज्ञानिक चेतना की अलख जगा सकता है।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए कथाकार, उपन्यासकार एवं ‘समयांतर’ के संपादक पंकज बिष्ट ने कहा कि विज्ञान ने हमें अपने समय के साथ संवाद के अनेक अवसर प्रदान किए हैं और विश्व नागरिक के रूप में हमारी जानकारी का अभूतपूर्व विस्तार हुआ है लेकिन अकादमिक जगत में इसकी हलचल नहीं सुनाई देती। वर्तमान में हिन्दी में लेखन के नाम पर ललित साहित्य की चर्चा होती है, जबकि हमारा समाज ज्ञान के जबरदस्त विस्फोट के दौर से गुजर रहा है।
समापन सत्र को संबोधित करते हुए चर्चित कवि विजय गौड़ ने कहा कि सामान्यतः विज्ञान को अंग्रेजी से जोड़कर देखा जाता है जो हमारे संस्कारों की भाषा न होकर एक आयातित भाषा है। हिंदी भाषा से जुड़ी अभिव्यक्ति में वह वैज्ञानिक मानसिकता नहीं दिखाई देती जिसे विज्ञान ने बड़े प्रयत्नों से हमारे समय को दिया है। युवा साहित्यकार प्रभात रंजन ने कहा कि हमारी नई पीढ़ी एक ओर अपनी जड़ों से कटती जा रही है, दूसरी ओर नए विश्व में उजागर हो रहे ज्ञान से उसका रिश्ता कमजोर पड़ता जा रहा है। पत्रकार अनिल यादव ने विज्ञान की तार्किकता को संकुचित नजरिए से देखने की बजाय उसे जीवन के जरूरी अंग के रूप में देखने की जरूरत पर बल दिया। सामाजिक विश्लेषक कष्ष्ण सिंह के अनुसार जीवन का हर पहलू विज्ञान से जुड़ा है लेकिन विज्ञान को हाशिए पर रखकर हम चहुँमुखी विकास की कल्पना नहीं कर सकते।
सत्र की अध्यक्षता करते हुए सुप्रसिद्ध विज्ञान कथाकार देवेंद्र मेवाड़ी ने कहा कि वैज्ञानिक सोच को अपने जीवन में आत्मसात कर ही हम सर्वांगीण विकास कर सकते हैं। विज्ञान पाठ्यक्रम और शोध के विषय के रूप में ही नहीं बल्कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़ा है। हम किसी भी क्षेत्र अथवा विषय से क्यों न जुड़े हों, यदि हमारी सोच वैज्ञानिक होगी तभी हमारा समाज और राष्ट्र सही मायनों में तरक्की कर सकता है। सत्र का संचालन कवि-आलोचक डॉ. सिद्धेश्वर सिंह ने किया।
इस अवसर पर प्रतिभागियों के सुझावों पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ तथा विभिन्न संस्तुतियों के आधार पर ‘रामगढ़ पत्र’ के प्रारूप का आलेखन किया गया। संगोष्ठी में सत्रानुसार आयोजित विमर्श में साहित्यकार शैलेय, दिनेश कर्नाटक, त्रेपन सिंह चौहान, सृजन पीठ के शोध अधिकारी मोहन सिंह रावत, पत्रकार रोहित जोशी, भास्कर उप्रेती, राहुल सिंह शेखावत, प्राध्यापक प्रो. गंगा बिष्ट, डॉ. सुधीर चंद्र, डॉ. ललित तिवारी, डॉ. गीता तिवारी, डॉ. प्रकाश चौधरी सहित कपिल त्रिपाठी, भरत हर्नवाल, द्रोपदी सिंह, उमा जोशी, रजनी चौधरी, निर्भय हर्नवाल, हिमांशु पांडे आदि ने भाग लिया। अंत में ‘निस्केयर’ के वैज्ञानिक डॉ. सुरजीत सिंह ने सभी प्रतिभागियों और गणमान्य अतिथियों का धन्यवाद व्यक्त किया। {समाचार प्रस्तुति: मोहन सिंह रावत, वर्ड्स आई व्यू, इम्पायर होटल परिसर, तल्लीताल, नैनीताल-263 002 (उत्तराखण्ड)}
डॉ. अनीता कपूर की दो पुस्तकों का विमोचन
प्रसिद्ध लेखक श्री बलदेव बंशी जी द्वारा विगत 14 जुलाई 2012 को नई दिल्ली में इंडिया वूमेन प्रैस क्लब, नई दिल्ली द्वारा आयोजित समारोह में डॉ. अनीता कपूर की दो पुस्तकों ‘सांसों के हस्ताक्षर’ (कविता संग्र्रह) एवं ‘दर्पण के सवाल’ (हाइकुु संग्रह) का विमोचन किया गया। डॉ. अनीता कपूर के पूर्व में चार कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। ‘सांसों के हस्ताक्षर’ उनका पाँचवां कविता संग्रह है। डॉ. बंशी जी ने इस अवसर पर इसे डॉ. अनीता कपूर के दूसरे चरण का मूल्यवान आत्म सर्जन बताया। उन्होने यह भी कहा कि डॉ. कपूर ने सरस एवं सहृद भाषा के माध्यम से संश्लिष्ट मानव अनुभूति को व्यक्त करते हुए नए शब्द भी रेखांकित किए हैं।
इस अवसर पर उपस्थित श्रीमती बीरवाला काम्बोज, सुदर्शन रत्नाकर, सुभाष नीरव, सुरेश यादव, डॉ. सतीशराज पुष्करणा, डॉ. जेन्नी शबनम, सीमा मल्होत्रा, सुशीला शिवराण, भूपाल सूद, अनिल जोशी एवं सरोज वर्मा आदि ने लेखिका को हार्दिक शुभकामनाएं दी।
कार्यक्रम में डॉ. अनिता कपूर ने अपनी कुछ कविताओं का पाठ भी किया। इसके बाद डॉ. बल्देव बंशी जी के काव्य-पाठ का कार्यक्रम रखा गया। दानों की कविताओं का श्रोताओं ने भरपूर आनन्द लिया। डॉ. सतीशराज पुष्करणा एवं श्री रामेश्वर काम्बोज हिमांशु ने हाइकु के बारे में अपने विचार प्रस्तुत किये। (समाचार प्रस्तुति: रामेश्वर काम्बोज हिमांशु, नई दिल्ली)
कदम्ब की छावं का लोकार्पण
गुडगाँव-गुडगाँव के जीआईए सभागार में नारी अभिव्यक्ति मंच ‘पहचान’ और ‘शब्द शक्ति’ के संयुक्त तत्वावधान में कथाकार कमल कपूर के आठवें कथा-संग्रह ‘कदम्ब की छावं’ का लोकार्पण समारोह की मुख्य अतिथि प्रख्यात साहित्यकार सुश्री चित्रा मुद्गल तथा हरियाणा ग्रन्थ अकादमी की निदेशक डा. मुक्ता के कर कमलों से संपन्न हुआ।
सर्वप्रथम लेखिका कमल कपूर ने कदम्ब की छावं की कहानियों की रचना प्रक्रिया पर प्रकाश डालते हुए कहा, ‘‘यदि मैं ये कहानियां ठीक-ठाक ढंग से लिख पाई हूँ तो इसके पीछे मेरी परम गुरु चित्रा दीदी का मार्ग दर्शन और आशीर्वाद है।’’ मुख्य वक्ता सविता स्याल ने कहानियों के समग्र रचना विधान पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ये कहानियां बरसों तक याद रखी जाएँगी। प्रमुख समीक्षक घमंडी लाल अग्रवाल ने तमाम 19 कहानियों पर खुल कर चर्चा की। आभा कुलश्रेष्ठ ने कहा कि कमल जी सामाजिक सरोकारों की रचयिता हैं। सुरेखा जैन ने कृति की भाषा, कला तथा सौंदर्य पक्ष को सामने रखा। अभिषेक गौण ने कहा कि कुछ रचनाएँ सामाजिक प्रदूषण को दूर करने में सक्षम हैं। चित्रा मुद्गल ने कहा की कदम्ब की छावं समूचे विश्व को ठंडक प्रधान करेगी, ऐसा मेरा विशवास है। डॉ. मुक्ता ने कहा, ’कमल संभावनाओं की लेखिका हैं। पुस्तक प्रकाशक अरविन्द बक्षी ने इन कहानियों को सदी की उत्तम कहानियाँ बताया। मधुर मंच संचालन शब्द शक्ति के अध्यक्ष नरेंद्र गौर ने किया और सरस्वती वन्दना वीणा अग्रवाल ने की। नगर के गणमान्य व्यक्तियों की बहु उपस्थिति ने समारोह की गरिमा में चार चाँद लगा दिए। (समाचार प्रस्तुति : कमल कपूर, फरीदाबाद)।
कमलेश भारतीय का सम्मान
हरियाणा ग्रन्थ अकादमी के उपाध्यक्ष व कथाकार कमलेश भारतीय का पंजाब के फगवाड़ा नगर के आर्य मॉडल स्कूल में सपंन्न समारोह में दोआबा साहित्य अकादमी व पंजाब हिंदी साहित्य अकादमी की ओर से सम्मान किया गया। श्री भारतीय ने कहा कि फगवाड़ा का उनके साहित्यिक सफ़र में बहुत महत्त्व रहा है। यहीं पहली बार कवि सम्मेलन में काव्य पाठ किया, यहीं सन् 2008 में डा. चंद्रशेखर सम्मान मिला और यहीं ग्रन्थ अकादमी में जाने पर उनका अभिनंदन किया गया। वे सदैव इस स्नेह को याद रखेंगे। मंच संचालन डा. जवाहर धीर ने किया। इस अवसर पर डा. कैलाश नाथ भारद्वाज, डा. सरला भारद्वाज, डा. किरण वालिया, रमेश सोबती, सुरजीत जज, आरिफ गोबिंद, हरिवंश मेहता, सुनील मोहे, प्रमोद भारती, मनोज, ठाकुरदास चावला व अन्य अनेक साहित्यकार मौजूद थे। रमेश सोबती की नवप्रकाशित पुस्तक का विमोचन भी किया गया। (समाचार प्रस्तुति : कमलेश भारतीय, पंचकुला)
विमोचन एवं काव्य समारोह
पालमपुर (हि.प्र.) की साहित्यिक संस्था हिंदी साहित्य निर्झर मंच के तत्वावधान में एक साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम के प्रथम सत्र में तीन पुस्तकों का विमोचन हुआ। बहुमुखी प्रतिभा के धनी कवि-कथाकार एवं हिंदी साहित्य निर्झर मंच के अध्यक्ष श्री नरेश कुमार ‘उदास’ के नवीनतम लघुकथा संग्रह ‘आकाशदीप’ का विमोचन ख्यातिप्राप्त कवि-कथाकार श्री रामकुमार आत्रेय जी ने किया। इस अवसर पर श्री उदास जी की धर्मपत्नी श्रीमती छाया रानी भी उपस्थित थीं। कवयित्री सुमन शेखर के काव्य संग्रह ‘कल्पतरु बन जाना तुम’ का विमोचन श्रीमती शक्ति शर्मा, नरेश कुमार ‘उदास’, डॉ. जाह्नवी शेखर एवं श्री रामकुमार आत्रेय जी ने संयुक्त रूप से किया। विमोचित होने वाली तीसरी पुस्तक थी- सुमन शेखर का प्रथम कहानी संग्रह ‘महाव्रत’, जिसका विमोचन श्री नरेश कुमार ‘उदास’ तथा डॉ. जाह्नवी शेखर ने संयुक्त रूप से किया।
पुस्तकों के विमाचन के उपरान्त श्री नरेश कुमार ‘उदास’ ने ‘महाव्रत’ कथा-संग्रह पर समीक्षात्मक लेख का वाचन भी किया। छात्रा दीक्षा कुमारी ने ‘कल्पतरु बन जाना तुम’ की कविताओं पर एक सारगर्भित टिप्पणी की।
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में उपस्थित प्रमुख कवियों के काव्य पाठ का कार्यक्रम रखा गया। सर्वश्री रामकुमार आत्रेय (कुरुक्षेत्र), रामकुमार भारतीय (जीन्द), नरेश कुमार ‘उदास’, अमर तनोत्रा, अर्जुन कन्नौजिया एवं सुश्री सुमन शेखर व उषा कालिया की कविताओं को श्रोताओं ने तन्मयता से सुना और उनका भरपूर आनन्द लिया। इस अवसर पर स्थानीय कवियों सहित अनेक साहित्यकार तथा श्रोता उपस्थित रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार श्री रामकुमार आत्रेय जी ने की तथा संचालन श्री नरेश कुमार ‘उदास’ जी ने किया।
अन्त में संगोष्ठी श्री आत्रेय जी के अध्यक्षीय वक्तव्य एवं श्री उदास जी के द्वारा धन्यवाद ज्ञापन के साथ कार्यक्रम सम्पन्न हुआ। (समाचार प्रस्तुति : उषा कालिया, पालमपुर)
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