अविराम का ब्लॉग : वर्ष : 1, अंक : 12, अगस्त 2012
सामग्री : डॉ मिथिलेश दीक्षित, डॉ रमाकान्त श्रीवास्तव, डॉ. गोपाल बाबू शर्मा, डॉ. जेन्नी शबनम, रेखा रोहतगी, डॉ. रमा द्विवेदी, डॉ. पूर्णिमा वर्मन, डॉ. उर्मिला अग्रवाल, सुदर्शन रत्नाकर, प्रियंका गुप्ता, राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी ‘बन्धु’ के हाइकु।
{अविराम के हाइकु विशेषांक (जून 2011 अंक) के लिए अतिथि संपादक श्री रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी द्वारा चयनित हाइकुओं में से स्थानाभाव में छूट गये हाइकुओं के प्रकाशन की तीसरी किश्त में प्रस्तुत हैं ग्यारह और कवियों के हाइकु।}
डॉ मिथिलेश दीक्षित
1.
बेले का फूल
पत्ते की चुटकी से
क्यों गया फूल
2.
माँ का आँचल
शीतल-सुरभित
मलयानिल!
3.
नहीं समता
सभी गुणों से ऊँची
माँ की ममता
4.
मेरा सपना-
बच्चे न माने उसे
बोझ अपना।
डॉ रमाकान्त श्रीवास्तव
1.
आये कोकिल
धुन वंशी की गूँजे
बौर महकें।
2.
सूनी वीथी में
शेफाली बन झरी
हँसी वन की।
3.
गीत न होते
मीत न होते, हम
साँसे ही ढोते।
4.
कोई रोया है
चाँदनी रात भर
ओस के आँसू।
डॉ. गोपाल बाबू शर्मा
1.
कंगूरे हँसे
पत्थर कब दिखे
नींव में धँसे
2.
रेतीले टीले
दिखते बड़े ऊँचे
कितने दिन?
3.
न हों सवार
काग़ज़ की कश्तियाँ
डूबना तय
4.
जीना ज़रूरी
हो जाओ नीलकण्ठ
ज़हर पियो
डॉ. जेन्नी शबनम
1.
ज्यों तुम आए
जी उठी मैं फिर से
अब न जाओ.
2.
रूठ हीं गई
फुदकती गौरैया
बगिया सूनी.
3.
जायेगी कहाँ
चहकती चिड़िया
उजड़ा बाग़.
4.
पेड़ की छाँव
पथिक का विश्राम
अब हुई कथा.
रेखा रोहतगी
1.
बेटी बाहर
गुज़ारे आधी रात
सोया न जाए
2.
सपना देखूँ
अपनों के प्यार का
फिर कलपूँ
3.
है बरसात
बाहर-भीतर है
पानी ही पानी
4.
शब्द है सीपी
जिसमें मिलता है
भाव का मोती
डॉ. रमा द्विवेदी
1.
धूप उतरी
आँख मिचौली खेल
मुँडेर चढ़ी।
2.रात बिताई
घड़ियाँ गिन-गिन
बीते न दिन।
3.
सिमटा जल
क्षीण हुईं नदियाँ
करें रुदन।
4.
सुलगे दिन
रूठ गई क्यों नींद
पूछे दो नैना।
डॉ. पूर्णिमा वर्मन
1.
बिन बारिश
दिन भर झरते
सारे झरने
2.
रेत के खेल
टीलों पर दौड़ती
तेज़ गाड़ियाँ
3.
आँगन तक
छम-छम दोपहरी
नीम पायलें
4.
चिड़िया प्यासी
घर की छत पर
जमी उदासी
डॉ. उर्मिला अग्रवाल
1.
दीपक-बाती
संग जली दीप के
नेह बिना भी।
2.
धूप सेंकती
गठियाए घुटने
वृद्धा सर्दी के।
3.
नम आँखों से
जब निहारे कोई
सिहरे मन।
4.
पहला प्यार
तपती धरा पर
पहली बूँद।
सुदर्शन रत्नाकर
1.
सरसों खिली
खिलखिलाई धरा
आया वसन्त।
2.
वसन्त आया
मन है भरमाया
बदली काया।
3.
वर्षा की बूंदें
भिगो देती हैं तन
लुभाती मन।
4.
फुनगी पर
चिड़िया है चहकी
ज्यों मेरा मन।
प्रियंका गुप्ता
1.
डरता मन
आने वाले कल से
जो आज आया।
2.
मुट्ठी में रेत
ठहरती नहीं है
वक़्त के जैसे।
3.
चंचल मन
उड़ता फिरता है
मानो पतंग।
4.
बेटे की आस
प्रेम को तरसती
बेटी उदास।
राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी ‘बन्धु’
1.
लू की मार से
तन हो गया लाल
मन बेहाल
2.
।।हाइकु।।
{अविराम के हाइकु विशेषांक (जून 2011 अंक) के लिए अतिथि संपादक श्री रामेश्वर काम्बोज हिमांशु जी द्वारा चयनित हाइकुओं में से स्थानाभाव में छूट गये हाइकुओं के प्रकाशन की तीसरी किश्त में प्रस्तुत हैं ग्यारह और कवियों के हाइकु।}
डॉ मिथिलेश दीक्षित
1.
बेले का फूल
पत्ते की चुटकी से
क्यों गया फूल
2.
माँ का आँचल
रेखांकन : नरेश उदास |
मलयानिल!
3.
नहीं समता
सभी गुणों से ऊँची
माँ की ममता
4.
मेरा सपना-
बच्चे न माने उसे
बोझ अपना।
- 699, सरस्वती नगर, फ़ीरोज़ाबाद-205135, उ.प्र.
डॉ रमाकान्त श्रीवास्तव
1.
आये कोकिल
धुन वंशी की गूँजे
बौर महकें।
2.
सूनी वीथी में
शेफाली बन झरी
हँसी वन की।
3.
रखांकन : महावीर रंवाल्टा |
मीत न होते, हम
साँसे ही ढोते।
4.
कोई रोया है
चाँदनी रात भर
ओस के आँसू।
- एल 6/96, सेक्टर एल, अलीगंज, लखनऊ-226004
डॉ. गोपाल बाबू शर्मा
1.
कंगूरे हँसे
पत्थर कब दिखे
नींव में धँसे
2.
रेतीले टीले
दिखते बड़े ऊँचे
कितने दिन?
3.
न हों सवार
काग़ज़ की कश्तियाँ
डूबना तय
4.
जीना ज़रूरी
हो जाओ नीलकण्ठ
ज़हर पियो
- 46, गोपाल विहार कॉलोनी, देवरी रोड, आगरा-282001(उ.प्र.)
डॉ. जेन्नी शबनम
1.
ज्यों तुम आए
जी उठी मैं फिर से
अब न जाओ.
2.
रूठ हीं गई
फुदकती गौरैया
बगिया सूनी.
3.
छाया चित्र : रोहित कम्बोज |
चहकती चिड़िया
उजड़ा बाग़.
4.
पेड़ की छाँव
पथिक का विश्राम
अब हुई कथा.
- द्वारा राजेश कुमार श्रीवास्तव, द्वितीय तल, 5/7 सर्वप्रिय विहार नई दिल्ली -110016
रेखा रोहतगी
1.
बेटी बाहर
गुज़ारे आधी रात
सोया न जाए
2.
सपना देखूँ
अपनों के प्यार का
फिर कलपूँ
3.
है बरसात
बाहर-भीतर है
पानी ही पानी
4.
शब्द है सीपी
जिसमें मिलता है
भाव का मोती
- बी-801, आशियाना अपार्टमेण्ट, मयूर विहार फेज़-1, दिल्ली-110091
डॉ. रमा द्विवेदी
1.
धूप उतरी
आँख मिचौली खेल
मुँडेर चढ़ी।
2.रात बिताई
घड़ियाँ गिन-गिन
छाया चित्र : उमेश महादोषी |
3.
सिमटा जल
क्षीण हुईं नदियाँ
करें रुदन।
4.
सुलगे दिन
रूठ गई क्यों नींद
पूछे दो नैना।
- फ़्लैट नं.102, इम्पीरिअल मनोर अपार्टमेंट, बेगमपेट, हैदराबाद -500016(आं. प्र.)
डॉ. पूर्णिमा वर्मन
1.
बिन बारिश
दिन भर झरते
सारे झरने
2.
रेत के खेल
टीलों पर दौड़ती
तेज़ गाड़ियाँ
3.
आँगन तक
छम-छम दोपहरी
नीम पायलें
4.
चिड़िया प्यासी
घर की छत पर
जमी उदासी
- पो बॉक्स 25450, शारजाह ,यू ए ई, ईमेल- abhi_vyakti@hotmail-com
डॉ. उर्मिला अग्रवाल
1.
दीपक-बाती
संग जली दीप के
नेह बिना भी।
2.
धूप सेंकती
गठियाए घुटने
वृद्धा सर्दी के।
3.
नम आँखों से
जब निहारे कोई
सिहरे मन।
4.
पहला प्यार
तपती धरा पर
पहली बूँद।
- 16, शिवपुरी, मेरठ-250001, उ.प्र.
सुदर्शन रत्नाकर
1.
सरसों खिली
खिलखिलाई धरा
आया वसन्त।
2.
वसन्त आया
छाया चित्र : अभिशक्ति |
बदली काया।
3.
वर्षा की बूंदें
भिगो देती हैं तन
लुभाती मन।
4.
फुनगी पर
चिड़िया है चहकी
ज्यों मेरा मन।
- ई-29, नेहरू ग्राउण्ड, फ़रीदाबाद-121001, हरि.
प्रियंका गुप्ता
1.
डरता मन
आने वाले कल से
जो आज आया।
2.
छाया चित्र : डॉ बलराम अग्रवाल |
ठहरती नहीं है
वक़्त के जैसे।
3.
चंचल मन
उड़ता फिरता है
मानो पतंग।
4.
बेटे की आस
प्रेम को तरसती
बेटी उदास।
- एम आई जी-292, आ. वि. यो. संख्या-एक, कल्याणपुर, कानपुर-208017 (उ.प्र)
राजेन्द्र मोहन त्रिवेदी ‘बन्धु’
1.
लू की मार से
तन हो गया लाल
मन बेहाल
गर्मी बढ़ी जो
फैल गया सन्नाटा
कर्फ्यू के जैसा
रेखांकन : उमेश महादोषी |
कर्फ्यू के जैसा
3.
लू के थपेड़े -
श्रमिकों की पीठ पे
पड़ते कोड़े
4.
लोग बेहाल
हँसे गुलमोहर
फूले हैं लाल
4.
लोग बेहाल
हँसे गुलमोहर
फूले हैं लाल
- 33, निराला नगर, निकट हनुमान मन्दिर, रायबरेली-229001 (उ.प्र.)
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